2 दिसंबर 2008

हमारा पड़ोसी

बेवज़ह ही आजकल ,हमसे पड़ोसी जल रहे,
वे हमें जला रहे या ख़ुद जल रहे।

एक हम हैं कि दोस्ती का भर रहे हैं दम ,
वो हैं कि मसल्सल हमको मसल रहे।

दोस्ती का हमने ,हरदम बढ़ाया हाथ,
हमसे गले मिलके फिर कुचल रहे।

बदनीयती की भी एक, हद होती है यार,
मजबूर होके हम भी हद से निकल रहे ।

वक्त है अभी-भी ,रुख बदल लो 'चंचल' ,
हम भी वरना अपना रुख बदल रहे।


फतेहपुर --15-04-१९९०



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