जिनके मुरझाये चेहरे हैं
कानों से थोड़ा बहरे हैं,
आँखों की ज्योति बुझी-सी है
जिनके जीवन का निकट अंत !
बुड्ढों का कैसा हो वसंत !!
वे
मरे-मरे से रहते हैं
सूने नयनों से कहते हैं,
'तुम यूँ आलिंगन-बद्ध रहो
हम भी कोई नहीं संत’!
बुड्ढों
का कैसा हो वसंत !!सूने नयनों से कहते हैं,
'तुम यूँ आलिंगन-बद्ध रहो
हम भी कोई नहीं संत’!
दिल
के सारे अरमान लुटे
नहीं कोई मोहिनी पटे
पिचके गालों के गढ्ढों में
चुम्बन को आतुर नहीं दन्त !
बुड्ढों
का कैसा हो वसंत !!नहीं कोई मोहिनी पटे
पिचके गालों के गढ्ढों में
चुम्बन को आतुर नहीं दन्त !
यार
मनाओ खुशी आज
छेड़ो
जीवन के मधुर साज ,हम अपनी संध्या-बेला में
तुम कूदो बछड़े बन उदन्त !
बुड्ढों
का कैसा हो वसंत !!
*सुभद्रा कुमारी चौहान से क्षमायाचना सहित
*सुभद्रा कुमारी चौहान से क्षमायाचना सहित