28 अगस्त 2013

मोहन और मनमोहन !

१)

बड़ी देर भई नंदलाला,तेरी राह तके हर ग्वाला.....!
देश की जनता भूखी-प्यासी,मौज उड़ायें लाला।
तुमने एक कंस मारा था,यमुना विषधर काला,
आज सर्प सर्वत्र विराजे,जनता बने निवाला।
फिर मुरलीधर चक्र सुदर्शन,उर वैजन्ती माला,
त्राहिमाम्, अब शरण तिहारी, तू ही है रखवाला।।
बड़ी देर भई नंदलाला।


२)

सोना नींद हराम केहे
औ रुपिया धरती फारे ,
बड़-बड़ी होइ गईं  हवा ,
गरियारु बैलु काँधा डारे।।
अब कउनो राह न सूझति है,
दिन मा ही अंधियारु भवा,
मनमोहन चुप्पे  देखि रहे,
काटु करै अब कउनि दवा ?


३)

 
मोहन आकर तुम्हीं उबारो,मनमोहन अब हारे।
धर्म,अर्थ की ग्लानि हुई,भक्त बने बेचारे।।
मुरली मधुर बजाओ अपनी,घर-घर ,द्वारे-द्वारे।
प्राण फूँक दो तुम रूपये में,अब तो तुम्हीं सहारे।।




 
 

5 अगस्त 2013

सामयिक दोहे !

बादल झाँकें दूर से,टिलीलिली करि जाँय।
बरसें प्रीतम के नगर,हम प्यासे रह जाँय।।


माटी की सोंधी महक,हमें रही बौराय।
बदरा प्रियतम सा लगे,जाते तपन बुझाय।।

बारिश आखिर आ गई,भीगा सारा अंग।
चोली चिपकी बदन ते,रति के संग अनंग।।


सत्ता की कुर्सी मिले,रामलला की ओट।
राघव कारागार में,कैसे माँगें वोट।।


दाम टमाटर के बढ़े,आसमान की ओर।
भिंडी का मुँह ताकती, धनिया के मन चोर।।


फेंकू अपने घर गये,पप्पू देहरादून।
राजनीति की आपदा,चूसे सबका खून।।


छाती फटी पहाड़ की,धरती हुई अचेत।
बहती नदी ठहर गई,मुनिया फाँके रेत।।