4 अगस्त 2011

जनलोकपाल,मीडिया और सरकार

'जनलोकपाल' के लिए चल रही जद्दोजहद अब सरकार के रहमोकरम पर निर्भर हो गयी है.जिस संस्था या सिस्टम को सुधारने के लिए यह क़वायद की जा रही है,वो लोग भला क्यों चाहेंगे कि उनके ऊपर कोई तलवार लटके !सरकार अपनी कुटिल चालों से जिस तरह पिछले कई सालों से इसको टाल रही है,तो उससे तो यह उम्मीद पहले भी नहीं थी कि वह अपने गले में इस 'हार' को पहनेगी !सबसे मज़े की बात ये है कि इस मुद्दे पर क्या सत्ता-पक्ष क्या विपक्ष सभी के सुर एक हैं !आख़िर 'जन लोकपाल' उनके मंसूबों के मुताबिक नहीं है !

इस बीच यह लगता है कि सरकार के प्रबंधकों ने  हमारी मीडिया के बड़े तबके को भी 'भरोसे' में लेकर  अपने 'तम्बू' में खैंच लिया है !पिछले कुछ दिनों से कई समाचार-पत्रों में इस तरह के आलेख आ रहे हैं कि अन्ना का यह प्रयास 'लोकतंत्र' के लिए भारी ख़तरा है(उससे भी ज़्यादा  जो पिछले साठ सालों से जनता भुगत रही है )! लोग तरह-तरह के तर्क देकर यह बता रहे हैं कि चार-या पाँच लोग पूरी संसद,एक अरब से अधिक आबादी पर कैसे भारी हो सकते हैं?संसद ही जनता की सर्वोच्च प्रतिनिधि है और वहाँ बैठे लोग जनता के 'निर्मल' और चुने हुए फ़रिश्ते हैं !कानून किस तरह का बनना है और कैसे बनना है यह वही लोग बताएँगे जो इसके फंदे में ज़्यादा आते हैं.(अर्थात ,क़ातिल ही अपना मुंसिफ़ होगा ) इस बिल से प्रधानमंत्री,न्यायाधीश,सांसद बाहर रहेंगे क्योंकि ये सभी असंदिग्ध लोग हैं और इन पर सवाल उठाने से लोकतंत्र को गहरा धक्का लगेगा !

अन्ना हजारे, उनके साथियों व देश की जनता को इस बात की आशंका नहीं विश्वास था कि सरकार की तरफ़ से कुछ नहीं होने वाला,पर अब लगता है सरकार पूरी तैयारी से इस अभियान में जुटी है कि कैसे 'जनलोकपाल-आन्दोलन'  की हवा निकाली जाये !इसलिए आए दिन इलेक्ट्रोनिक  मीडिया पर इस तरह की चर्चाएँ हो रही हैं कि अन्ना का आन्दोलन 'ब्लैकमेल' करने जैसा है.हो सकता है कि उनके आमरण-अनशन करने का तरीका ठीक न हो पर क्या कोई और रास्ता बताएगा ? इस सरकार ने अनशन को नाकाम करने के लिए धारा-१४४ लगा दी है,हो सकता है कि वह अन्ना और उनके साथियों पर 'रासुका' भी लगा दे ,इससे तो हम यही उम्मीद करते हैं ,पर जिस तरह पहले मीडिया इसके समर्थन में आया था ,अब किन वजहों से वह हट रहा है?

अब तो इस तंत्र के हौसले इतने बुलंद हो चुके हैं कि न्यायपालिका की सक्रियता भी उसे खटक रही है,इस पर भी लगाम लगाने की तैयारी  होने जा रही है.पहले आरटीआई के दायरे से सीबीआई को बाहर किया गया,अब लोकपाल और कल सुप्रीम कोर्ट को भी घेरने को हमारे रहनुमा प्रतिबद्ध हैं .

हो सकता है कि अन्ना का अनशन अभी असफल कर दिया जाये,हो सकता है कि जन लोकपाल अभी दूर की  कौड़ी लगती हो ,हो सकता है कि अगले गणतंत्र दिवस पर कुछ पत्रकारों,लेखकों को पद्म-पुरस्कारों से नवाज़ा जाये पर यह भी तो हो सकता है कि समय आने पर जनता बता दे कि उसे इतना मूर्ख न समझा जाए !

10 टिप्‍पणियां:

  1. तुम्ही हो माता, पिता तुम्ही हो,
    .
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    जो खिल सके न वो फूल हम हैं।

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  2. पब्लिक है ये सब जानती है .......एक -नएक दिन तो सबको हिसाब देना ही पड़ेगा

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  3. सरकार चाहे जो कुछ भी कर ले ....या मीडिया कुछ भी कह ले ...लेकिन वास्तविकता सबके सामने हैं ....और यह भी सच है कि जीत सच की ही होती है ...!

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  4. जनता ने सबको राह दिखाई है। जो जन‍आक्रोश से है उसे समझ लें तो बेहतर है।

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  5. जनता को चाहिए की अवसर आने पर सही फैसला ले ,तभी सब कुछ ठीक होगा !

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  6. इस सरकार का पाप का घड़ा एक दिन जरुर भरेगा।

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  7. लोकपाल पर एक बढ़िया आलेख।
    समय आने पर जनता अपनी ताकत दिखा ही देगी।

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  8. देखिये सरकार तो बेहया बन अपना पिछवाड़ा दिखा चुकी है ....अब पञ्च लोग जो निर्णय ले ,कुछ कर ही डालें! ,

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  9. मीडिया के बड़े तबके को भी 'भरोसे' में लेकर ...

    भरोसे में नहीं .. खरीद कर ... ये सरकार और कर भी क्या सकती है ...

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