30 दिसंबर 2010

पुस्तक मेला से जो मिला !

अबकी बार हमने सोच रखा था कि दिल्ली पुस्तक मेले में नहीं जायेंगे क्योंकि पिछले मेलों की गठरी अभी  पूरी तरह  खुल नहीं पाई है ,साथ ही श्रीमती जी की ताक़ीद भी कि इतनी पुस्तकों को रखने की तो जगह नहीं है, अब और मत लाना !

अचानक हमारे मित्र महेंद्र मिश्र जी का फोन आ गया कि कब चल रहे हैं तो हम अपना लोभ-संवरण नहीं कर पाए और आख़िर  दिन,तारीख़ तय कर दी.मेले में सीमित धनराशि ले गए थे ताकि अपने से ज़्यादा  खरचा न हो जाए !
पहले तो स्टेशनरी-स्टॉल में कुछ फाइल-कवर लिए फिर अचानक एक स्टॉल में रोबिन शर्मा का चित्र देखा तो  प्रवीण पाण्डेय  की एक पोस्ट याद आई जिसमें उन्होंने इनकी तारीफ़ों के पुल बाँधे थे.बस मैं अपने रंग में आ गया और उनकी दो पुस्तकें(नेता जिसको कोई उपाधि नहीं व कौन रोएगा आपकी मृत्यु पर) तपाक से हथिया लीं !इन पुस्तकों का खरचा प्रवीण भाई से ज़रूर वसूलूँगा !


इसके बाद  नज़रें  उदय प्रकाश की लम्बी कहानी "मोहनदास' को तलाशने लगीं,जिस पर उन्हें अभी साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला है.वाणी प्रकाशन से वह पुस्तक भी ले ली.मेरा 'कोटा' ख़त्म हो चुका था पर मिश्राजी के साथ साहित्य अकादमी के स्टॉल पर जब घुसे तो कम कीमत में अनमोल किताबें देखकर चकित हो गया.मुंशी प्रेमचंद की कहानी रचनावली छह भागों में थी,मात्र बारह सौ रुपयों में,वह भी सजिल्द .वे क्रेडिट-कार्ड भी स्वीकार रहे थे इसलिए हमने तुरत-फ़ुरत ऑर्डर दे दिया तथा  साथ में प्रसाद रचना संचयन भी ले लिया !

ये सब किताबें लेते समय मैं इन्हें पढ़ने के लिए बिलकुल संकल्पबद्ध  रहा ,उम्मीद  करता  हूँ  कि यह संकल्प आगे तक  बना रहेगा !

इसी बीच ख़बर मिली कि नामवर सिंह जी थोड़ी देर में आने वाले हैं सो वहीँ कुछ देर के लिए पसर गए ,बाहर  भी निकले चाय-पानी की,कुछ फ़ोटू भी  खैंच लिए ! जगदीश टाइटलर  साहब दिखाई दिए  तो उनके  साथ भी  एक पोज़ हो गया .

अब तक  भारतीय ज्ञानपीठ वालों की तरफ से 'नवलेखन' पुरस्कारों के वितरण के लिए नामवरजी पधार चुके थे.पहली बार उनसे मिलने की उत्सुकता थी,सो प्रेमचंद की एक पुस्तक में उनसे 'दस्तखत' माँग बैठा,उन्होंने भी सहर्ष मुझे अपना 'नाम' दिया. पद्मा सचदेव,चित्रा मुद्गल,डॉक्टर विजय मोहन सिंह और स्वनामधन्य रवीन्द्र कालिया जी के 'दर्शन' भी हो गए. कुछ लड़के ऐसे भी  मिले जो आई.ए एस. की तैयारी कर रहे थे,साहित्य में उनकी रूचि देखकर प्रसन्नता हुई !

बटुआ खाली हो चुका था,पाँव उठ नहीं रहे थे,हम छह घंटों की इस यात्रा को समेटकर ,अपने अरमानों की गठरी लादे घर वापस  आ गए , एक असीम आनंद के साथ, जिसे समय-समय पर  सबके साथ बांटते रहेंगे !

7 टिप्‍पणियां:

  1. रॉबिन शर्मा को पढ़ना एक अनुभव है। पश्चिम की व्यस्तता भरी जीवनशैली में पूर्वी ज्ञान की फुहार जैसा। सुबह 5 बजे उठने को बहुत जोर देते हैं।
    आपका पूरा मूल्य वसूल हो जायेगा नहीं तो मैं आपको कुछ और पुस्तकें भेंट कर दूँगा पढ़ने के लिये।

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  2. उधारी पर देने के लिए तैयार हो जाइए महाराज !
    हम जैसे काहिल पड़े रह गए दिल्ली के पास तक .....और ?

    जय जय !
    अब ज़रा पढ़ पढ़ के कुछ ठेलिए जल्दी जल्दी !

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  3. किताबों के हम भी बहुत शौकीन हैं हमारे शहर (भोपाल)में कोई भी पुस्तक मेला हो हम जरूर जाते हैं। दिल्ली पुस्तक मेले में जाने की बहुत इच्छा है पर इस बार तो नहीं जा पाएंगे। देखें ये इच्छा कब पूरी होती है।

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  4. sajid usmani in facebook : trivedi ji hum to aapke fan ho gaye. maja aa gaya i m proud to have a friend like u maine dono post padhi police wali bhi
    greeeeat work

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  5. @प्रवीण पाण्डेय आदमी पढने से ज्यादा अनुभवों से सीखता है,सो आपके अनुभव भी बहुत काम आ रहे हैं.

    पुस्तकें भेंट करना सबसे बड़ा तोहफ़ा है,आपने इस लायक समझा,आभार !

    @प्रवीण त्रिवेदी महाराज!पुस्तकें हम उधार नहीं देते ,कभी मौक़ा मिला तो समर्पित ज़रूर कर देंगे !
    पहले हम अपने में ठेल लें फिर तनिक सरकाएँ !

    @सोमेश सक्सेना कोई नहीं ,अबकी का मेरा जाना आपके नाम रहा,ऐसे मेले सौभाग्य से ही मिलते हैं !

    @sajid usmani मेरा खर्चा समझो वसूल हो गया,आप जैसे दोस्त जो खुश हो गए !

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  6. I wish you Happy New 2011!
    क्या कहने साहब ।
    जबाब नहीं निसंदेह ।
    यह एक प्रसंशनीय प्रस्तुति है ।
    धन्यवाद ।
    satguru-satykikhoj.blogspot.com

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  7. @RAJEEV KUMAR KULSHRESTHA धन्यवाद ज़नाब ! पैसे वसूल हुए कि नहीं यह तभी सिद्ध होगा,जब जितना लाया हूँ उतना पा लूँगा !

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