31 मार्च 2012

कइसे दिन फिरिहैं ?

अचानक कुछ याद आने पर फेसबुक में कुछ लाइनें लिखी थीं,पर अच्छा लगने पर उसे तुरत बड़ा कर ब्लॉग में डाल दिया जिसे आप लोगों ने पढ़ा  और  इतना सराहा  कि उसके बाद की पंक्तियाँ अपने आप बन गईं.उम्मीद हैं,अच्छी लगेंगी!


गारा-माटी के घर गायब
कुल्हरी,समसी,लोढ़वा गायब,
लढीहा,लग्घी,बैल कै गोईं
मुसका,चरही,पगही गायब !


ग्वाबरु,गोलई,टोकनी गायब
मूड़े कै वह गोड़री गायब,
अब कइसे दिन फिरिहैं सबके,
घूरे केरि रिहाइश गायब !


चारा-सानी, चोकरा गायब,
पड़वा,पड़िया,लैरा गायब ,
ख्यातन ते,खरिहानन  ते
सीला-गल्ला,पैरा गायब !


दुलहिनि,पाहुन,बालम गायब
जनवासे ठंढाई गायब,
दुलहा,सरहज ,नेगु-कल्यावा
लरिकन कै बरतउनी गायब !

भौजी संग ठिठोली गायब
बुआ चिढ़ाती हरदम, गायब ,
कब तक मनई बचा रहत है
चिट्ठी,पान-सुपारी गायब !




  


*लढीहा=बैलगाड़ी,लग्घी=अरहर की सूखी डाली ,ग्वाबरु=गोबर,गोलई=लग्घी से बनी टोकरी ,मूड़े कै वह गोड़री =सिर पर सामान  उठाते समय रखा जाने वाली कपड़े से बनी चीज़ ,लैरा=भैंस या गाय का छोटा बच्चा 

21 टिप्‍पणियां:

  1. कब तक मनई बचा रहत है
    चिट्ठी,पान-सुपारी गायब !

    पीतल का सरौता गायब ....
    खींसा गायब ...
    आप कि रचना तो बिलकुल पीछे ले गाई है ....धुंधलाते चेहरे साफ़ हो रहे हैं ....
    शुभकामनायें ....

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  2. डुडुआ और कबड्डी गायब ,
    बखरी और दलानौ गायब
    ऊखे क पेराई गायब ,
    चिनगा और चिरई गायब
    कितना कुछ चला गया
    जीवन्तता को लेकर ...
    यह अच्छी वाली रचना है

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  3. अब खोजे से भी नहीं मिलने के.....
    बस याद करो.....कविता लिखो....

    सुन्दर भाव.

    सादर.

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  4. दोनो मिलाकर एक ही कविता है। अच्छी और खुश कर देने वाली। ग्रामीण परिवेश से ये चीजें ही नहीं बल्कि शब्दकोष से ये शब्द भी गायब हो रहे हैं। यदि आप जैसे लोग इन शब्दों का प्रयोग ना करें तो देखते ही देखते ये शब्द भी गायब हो जायेंगे। गायब होती बूढ़ी सभ्यता को सहेजने के लिए भी इन आंचलिक शब्दावलियों का प्रयोग अनिवार्य है। इस दृष्टि से यह कविता भावनात्मक अपील करते हुए ह्रदय से जुड़ जाती है।
    ..बधाई।

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  5. संतोष जी, ऐसे नाही चलेगा
    शब्‍दकोष भी चाहिए
    इनके अर्थ कहां मिलेंगे
    क्‍या अब आपकी क्‍लास में
    एडमीशन लेना होगा
    शब्‍दकोष दे दो तो
    सबको फायदा होगा।

    कुछ तो समझ आते हैं
    बाकी दिमाग के ऊपर से
    तेजी से गुजर जाते हैं
    हम अर्थ भी उनके नहीं
    पकड़ पाते हैं

    परंतु जब इतने लोग
    कर रहे हैं तारीफ तो
    बर्फी तो मीठी ही होगी।

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  6. कोठी बंगला कार मिली तो
    टी वी फ्रिज उपहार मिली तो
    खाते इडली डोसा,नूडल बरगर
    जाते इण्डिया गेट को सैर पर
    तंग करें ना चाचू बापू मैया
    फिर काहे घबरावत भैया!:)

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  7. भौजी संग ठिठोली गायब
    बुआ चिढ़ाती हरदम, गायब ,
    कब तक मनई बचा रहत है
    चिट्ठी,पान-सुपारी गायब !
    वाह ! ! ! ! ! बहुत खूब संतोष जी
    सुंदर रचना,बेहतरीन प्रस्तुति,....


    MY RECENT POST ...फुहार....: बस! काम इतना करें....

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  8. मैं अपनी बिटिया के साथ यह खेल खेलता हूँ.. नेहाली, ओटा, रौदा, गुम्साइन,हइन्सारे,भिनसारे, अन्हारा... मेरी पोस्टें पढ़ने में बहुत से लोगों को तकलीफ होती है, लेकिन हम त ऊहे बिहारी हैं, बदलने वाले नहीं!!
    आपके शब्दकोष का भी जवाब नहीं!!

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  9. वाह पुरानी के ही समकक्ष और दमदार उतनी ही।

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  10. ओह , कितना कुछ और बचा था जो गायब हो गया है ...

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  11. कुछ कहने का साहस नहीं .....बेहतरीन प्रस्तुति संतोष जी

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  12. बहुत बढ़िया ।

    मैं तो ये सारे शब्द २५-३०
    साल बाद सुन-पढ़ रहा हूँ ।

    आभार ।।


    उधम मचाता जा रहा, दसों दिशा इन्सान ।
    शोषण करे प्रकृति का, किस्मत मेहरबान ।


    किस्मत मेहरबान, गधा बलवान कहाता ।
    विद्यमान शैतान, घमंडी धरा डुबाता ।

    हो वैज्ञानिक खोज, करे गायब कस काया ।
    धरा सहे न बोझ, स्वयं में रहे भुलाया ।।

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  13. भाई साहब आपने शब्दों से गायब स्मृति वापस ला दे है ,बचपना याद करा दिया ,अपना गाव ,धुल भरे पाव ,सब कुछ तो ताजा कर दिया

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  14. भाई साहब जिसने ठेठ ज़िन्दगी जी हो उन्हें ही ये शब्द आत्मसात होते हैं।
    (इनके अर्थ क्यों बताए आपने ... जिन्होंने ठेठ ज़िन्दगी नहीं जी उन्हें ढूंढ़ने देते)

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  15. सभी दोस्तों का आभार,यह प्यार न गायब हो बस्स्स्स !

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  16. बहुत खूब ... आज जब बड़ी बड़ी नदियाँ गायब हो रही हैं तो इन छोटी चीज़ों का क्या कहें ...
    गुज़रे हुवे शब्दों की पुनः वापसी ...

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  17. sasuraal udhar ka hai so mujhe to kuchh shabd sune hue lage....is bhasha ko kaafi kuchh seekhane samajhane ki khawahis hai par ab sasuraal bhi gaon se mahanagar aa gaya hai to...par achha laga padhana.

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  18. विस्मृत हुये शब्दों को स्मृति पटल पर लाने के लिये आभार........
    बचपन के गाँव के वो दिन याद दिला गये जो संभवतः हम
    भूल चुके हैं।

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  19. संतोष जी गायब तो बहुत कुछ है आप गाँव शायद बार बार खोजने जाते है

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