31 दिसंबर 2008

गया वर्ष ,नया वर्ष !

लो, यह लो, यह भी साल बीत गया । अजी उसे तो बीतना ही था ,अब नए साल से उम्मीदें जो लगानी थीं नयी !
हर बार जब साल बीतता है तो हम पिछली नाकामियों और उपलब्धियों को नाकाफ़ी समझते हैं तथा नए साल के भविष्य में अपने लिए ज़रूर कुछ नया और जीवन बदल देने वाला सपना पाल लेते हैं ,शायद इसीलिए हमें पूरे साल-भर खुशफ़हमी रहती है। जाने वाले और अतीत को हम हमेशा भुला देने की कोशिश करते हैं पर क्या केवल हमारे भुला देने भर से ख़त्म हो जाएगा? काश! ऐसा हो पाता तो यह दुनिया और हसीन होती!
आदमी अपने पिछले सुखों को भूल जाए तो उसे कुछ फ़र्क नही पड़ता पर दुखों को भूल पाना भी दुखद ही होता है। दुःख केवल याद करने पर ही कष्ट नहीं देते वरन जिन कारणों से वे मिलते हैं वे ऐसी परिस्थितियां पैदा कर देते हैं कि किसी के याद करने या न करने से दुःख नहीं मिलता बल्कि वह तो उनकी ज़िन्दगी का हिस्सा बन जाता है। यह सुख और दुःख वैसे तो अनुभूति कि चीज़ें हैं लेकिन यही सोच सबमें आ कहाँ पाती है?
बहरहाल, ज़िन्दगी इसका भी नाम है कि जो हो चुका है उसे भूलकर आगे बढ़ा जाए क्योंकि ज़िन्दगी किसी के ठहरने पर नहीं रूकती है। समय तो अपनी चाल से चलता रहता है पर वही आदमी सुखी है जो अपने को समयानुरूप ढाल ले!
इसी आशा और विश्वास के साथ पिछले साल (समय) से सबक़ लेते हुए और अगले साल (भविष्य) की सुनहरी आकांक्षा के साथ नूतन वर्ष का स्वागत और अभिनन्दन!


26 दिसंबर 2008

पाकिस्तान किए हलकान !

मुंबई हमलों के बाद

पाकिस्तानी प्रतिक्रया ऐसी रही,

ज़रदारी,गिलानी और शरीफ ने

हास्य-नाटक की प्रस्तुति की

और आपस में बोले,

''कहो कैसी रही ?''

अब हम सबने जाना है कि

अमेरिका हमारा भाई है,

बुश की तरह जूते खाकर हमने भी

अपनी इज्ज़त नहीं गँवाईं है!

हा......हा.....हा....हा.....

और इधर हिंदुस्तान को
मानो लकवा मार गया हो,

उसका अमरीका न कुछ कर रहा है न करने दे रहा है,
अंकल सैम तो लगता चादर तान के सो गया हो!

हिंदुस्तान को अब यह समझ आ जाना चाहिए।


23 दिसंबर 2008

नीरज के लिए

जून 1989 में हिन्दी साहित्य-सम्मलेन,कानपुर में कवि 'नीरज' को 'साहित्य-वाचस्पति' सम्मान के लिए बुलाया गया था जिसमें ऐन मौक़े पर आयोजकों ने ऐसा न करके उन्हें अपमानित किया जिसके फलस्वरूप मैंने भी अपनी भड़ास कुछ इस तरह निकाली ;

साहित्य के सूरज को
दीपकों ने धता दिया।
चलो अच्छा ही हुआ
अपनी जाति तो जता दिया!

कीचड़ के संसर्ग में
होता है जन्म कमल का,
इसलिए 'नीरज' के आस-पास
अस्तित्व होता है ' कीचड़' का।

'नीरज' तो नीरज है
उसे क्या कोई क्षति पहुँचायेगा?
कीचड़ में ढेला मारो तो
अपने ऊपर ही आयेगा!

रंग दिखाकर कीचड़ ने
'कलियों' को भी धमकाया
उसका अस्तित्व है कितना
मानो यह हो समझाया।

मर्दन कुसुम का नहीं
सारे उपवन का हुआ
कंटकों की चुभन का
अहसास सब-तन हुआ।

माँ सरस्वती के चरणों में
पड़े हुए नीरज का
अपमान पुजारी का नहीं
हुआ है उसकी पूजा का!

अपमान पुत्र का नहीं
हुआ है उसकी माँ का,
बढ़ते रहो इसी तरह
चूंकि 'प्रभुत्व ' है आपका!

दूलापुर,26-06-1989

ताला*

सारे शहर में अब तो लग चुका है ताला ।
निकलने का जब वक्त है तो बंद है ताला। ।

ये गाँव -शहर सब वीरान हो गए,
दहशत तो और भी है,देख के ताला।

गली,चौबारे जो फूलों से महकते थे,
लुट गए हैं सब बता रहा है ताला।

इंसान के बदले मंडरा रहे हैं गिद्ध ,
घर हुए निर्जन जता रहा ये ताला।

बस्ती उजाड़कर 'वे'जंगल बना रहे,
रोकनेवालों के मुंह में बंद है ताला।

ख़ामोश क्यों बैठा ख़ुदा ,ये खेल देखकर,
अरसा बीत गया ,कब खुलेगा ताला?


*शीर्षक दल्यान सिंह (मित्र) की प्रेरणा से

दूलापुर (06-09-1989)


17 दिसंबर 2008

अमेरिका और पाकिस्तान का खेल !

छब्बीस नवम्बर दो हज़ार आठ का दिन भारत के लिए एक निर्णायक मोड़ की तरह रहा है। मुंबई में हमले हुए पर छलनी हर भारतीय का सीना हुआ। आतंकवादी हमले पहले भी बहुत हुए हैं पर यह तो दुश्मन का दुस्साहस था कि उसने शेर को उसकी मांद में आकर ललकारा है!हमला होने के बाद देश-विदेश से कड़ी प्रतिक्रियाएं आयीं खासकर भारत के नाभिकीय सहयोगी अमेरिका से कुछ ज़्यादा ही। कहा गया कि भारत को अपनी सुरक्षा करने का पूरा अधिकार है और इस काम में वो उसके साथ खड़ा है। अमेरिका ने इस बावत लगे हाथों चेतावनी भी जारी कर दी । यह तो था परदे के आगे का खेल जिसमें पाकिस्तान ने कुछ ना-नुकुर दिखाने के बाद नाकाफ़ी कार्रवाई की पर असली खेल तो परदे के पीछे चलने लगा जिसमें हिंदुस्तान को बरगलाने का काम किया जा रहा है। पहले मैडम राइस आती हैं हमारे ज़ख्मों को सहलाती हैं,पाकिस्तान की लानत-मलामत करती हैं और पाकिस्तान जाकर उनको भी अंदरूनी दिलासा देती हैं और आतंक के ख़िलाफ़ लड़ाई में उसका बखान करती हैं,इस तरह से अमेरिका हमारे मामले में हमारी मदद करता है और हम भी गदगद हो जाते हैं कि विश्व -बिरादरी हमारे साथ है। अरे भाई अपनी लड़ाई ख़ुद ही लड़नी पड़ेगी,अमेरिका या अन्य कोई देश क्योंकर अपनी टांग फँसाएगा?
याद आते हैं वे दिन जब अमेरिका की एक घुड़की के आगे पाकिस्तान ने अफगानिस्तान -मामले में उसकी जी-तोड़ मदद की थी, बाद में पत्रकार डानिएल क्रेग के हत्यारे को फांसी भी चढ़ा दी लेकिन यहाँ मसला भारत जैसे नरम-देश से है जो कोई पटाका भी फोड़ेगा तो अंकल सैम को चिट्ठी के ज़रिये सूचित करेगा। कहने का लब्बो-लुबाब यही है कि हमें युद्ध का डर दिखाकर कार्रवाई करने से रोका जाता है जबकि अपने लिए दूसरी दलीलें दी जाती हैं। कहते हैं ना कि 'समरथ को नहि दोष गुसाईं ' तो भाई यह अमेरिका और पाकिस्तान का खेल ऐसे ही चलता रहेगा और हम केवल हाथ मलते रह जायेंगे क्योंकि आतंकवादी तो दोनों ही हैं बस उनका तरीका अलग है!
chanchalbaiswari.blogspot.com


11 दिसंबर 2008

आप लाइन में हैं ,कृपया इंतज़ार करें !

पाँच विधानसभा चुनाव के नतीजों ने कांग्रेस और भाजपा दोनों को चौंकाया है। दूसरे राज्यों के नतीजों ने उतना अप्रत्याशित परिणाम नहीं दिया जितना कि दिल्ली ने। भाजपा को तो मानो साँप ही सूंघ गया हो,उसकी सारी हसरतें और कसरतें एकदम से हवा के गुब्बारे -सी फुस्स हो गयीं । कहाँ तो हमारे आडवाणीजी प्रधानमंत्री की कुर्सी में तेल-मालिश लगाकर उसमें बैठने की तैयारी में थे और कहाँ इस मल्होत्रे ने उनकी सारी उम्मीदों पर पलीता लगा दिया। ख़ुद तो वह 'सीएम इन वेटिंग' रह गया और अब इस बात का डर उनके दिल में भी बैठा गया कि वह भी 'पीएम इन वेटिंग' बनकर न रह जाएँ !


वैसे भाजपा ने दिल्ली में नारा दिया था कि 'हारेगा आतंक' और यह बात मतदाताओं ने उसे अच्छी तरह से बता दी है। मुंबई की घटना के दिन पहले भाजपा ने सरकार के हर कदम का साथ देने का एलान किया ,आडवाणीजी मनमोहन सिंह के साथ वहां जाने को तैयार होते हैं लेकिन शाम होते - होते राजनीति हावी हो गई और भाजपा यू-टर्न लेकर वोटों की फसल काटने को बेताब हो गई। दूसरे दिन जब दिल्ली में मतदान होना था ,तब उनका लगभग हर अखबार में एक स्याह विज्ञापन आता है, अटल की आतंक के प्रति 'चिंता' इस संदेश के साथ छपती है कि लोग भाजपा के राज में ही सुरक्षित रहेंगे ,पर मुआ वोटर को कौन समझाए उसने तो अपनी नम आँखों से मुम्बईवासियों को श्रद्धांजलि दी और भाजपा के द्वारा डराए और फैलाये 'आतंक' को हरा दिया।
क्या आडवाणीजी अपने संभावित मंत्रिमंडल की लिस्ट को परे रखकर एक बार यथार्थ की दहलीज़ पर पैर रखेंगे ? अब उन्हें 'पीएम इन वेटिंग ' शब्द से क्या चिढ़ नहीं महसूस होगी ? बहरहाल जनता ने जो परिपक्वता दिखाई है उसके लिए उसे सलाम!



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2 दिसंबर 2008

हमारा पड़ोसी

बेवज़ह ही आजकल ,हमसे पड़ोसी जल रहे,
वे हमें जला रहे या ख़ुद जल रहे।

एक हम हैं कि दोस्ती का भर रहे हैं दम ,
वो हैं कि मसल्सल हमको मसल रहे।

दोस्ती का हमने ,हरदम बढ़ाया हाथ,
हमसे गले मिलके फिर कुचल रहे।

बदनीयती की भी एक, हद होती है यार,
मजबूर होके हम भी हद से निकल रहे ।

वक्त है अभी-भी ,रुख बदल लो 'चंचल' ,
हम भी वरना अपना रुख बदल रहे।


फतेहपुर --15-04-१९९०



1 दिसंबर 2008

खून की होली !

बहुत पहले

जब आती थी होली 

पूरे साल भर बाद,

हम लोग महीनों पहले से तैयारी करते थे,

पिचकारियाँ दुरुस्त की जाती थीं
कुछ बांस की कुछ ऐसी ही ।


अब हर रोज़ जलती हैं होलियाँ ,

पिचकारी की जगह बन्दूक है

और रंग की जगह गोलियां !

अब जब बुढापा आ गया है,

हम जैसे लोग सठिया गए हैं ।

होली अख़बारों में 


सरकारी कैलेंडर में,

और नेताओं के इश्तहार में ,

नज़र आती है ।

होली अब खुशी का पैगाम लेकर नहीं,

डर और आशंका के बादल लाती है !

आख़िर ये होली क्यूँ आती है?



30 नवंबर 2008

नपुंसक होते राजनेता !

अब शायद हमारा देश रोज़ -रोज़ की आतंकवादी घटनाओं से इतना साम्य बिठा चुका है कि ये घटनाएँ किसी को आंदोलित नहीं करतीं .मुंबई की  ताज़ा घटना बताती है कि हम राजनैतिक रूप से तो कमज़ोर थे ही ,हमारे नैतिक बल को भी हिलाया गया है .एक के बाद एक घटनाएँ हमारे देश को झकझोर रही हैं पर हमारा राजनैतिक नेतृत्व चादर ओढे सो रहा है.हमारी कार्यशैली ऐसी बन गई है कि चाहे सरकार कोई भी हो हम अपनी इच्छाशक्ति किसी के हाथों गिरवी रख चुके हैं.कोढ़ में खाज वाली स्थिति तो यह है कि बार -बार सरकार के साथ आतंकवाद के मुद्दे पर साथ देने का वादा करने वाली भाजपा ऐन मौके पर राजनीति करने से बाज नही आती .जो इस समय सरकार चला रहे हैं उनके तो हाल ऐसे हैं जैसे उनकी बयानबाजी से ही सब कुछ ठीकठाक हो जाएगा .ऐसी नपुंसक सरकार अपनी जनता का मनोबल कितना बढ़ा सकती है ,यह आसानी से समझा जा सकता है .चाहे राज ठाकरे की गुंडई हो ,अफज़ल की फांसी हो,देश की आतंरिक सुरक्षा हो या अन्य कोई देशहित का कोई कदम उठाना हो,सरकार वोटों के नफा - नुक्सान का गणित पहले लगाती है,कानून -व्यवस्था लागू करने की बात बाद में सोचती है.आख़िर हम कब तक यूँ ही गुंडों,लुटेरों और कुछ भाड़े के लोगों के हाथ में अपने देश का भविष्य छोडेंगे?अब समय गया है की राजनेता नपुंसकता और बंटवारे की नीति छोड़कर देश के दुश्मनों पर पूरी ताक़त से प्रहार करें.


27 नवंबर 2008

TERROR IN MUMBAI

Again we have been targeted in a form of terrorism .This time the attack was in a new design,they came by ship with loaded arms,guns and grenades and not fixed them at some places but dared to attack directly.the killing of ATS chief Mr.Hemant Karkare is the great loss to the nation with 14 other policemen and hundreds of innocent people.We must not politicise this tragedy and the government should take strong actions against such anti-human terrorists.We cant revive those ,who lost their lives but we can give a strong signal to terrorists by punishing them.It is very much need of this hour. It cant reparable by taking some resignations but to apply the law against culprits.Now,we should dont cry for such things ,must act the right thing.

26 नवंबर 2008

हमरे घर ते आई चिट्ठी !

अम्मा का प्यार दुलार लिखा,
बप्पा का आसिरवाद छुपा ,
भइया ,भउजी का सनेहु,
बहिनी कै चाहत लिखी सदा ,
हम फूले नहीं समाय रहेन,

हमका मिली गाँव कै मट्टी ।
हमरे घर ते आई चिट्ठी ।

'बच्चा ,अपने खान-पियन का
ध्यान हमेशा राख्यो ,
ग़लत राह ना कबहूँ पकड्यो
बातै
हमरी गांठी बाँध्यो

अम्मा आगे लिखवाती हैं
'बच्चा ,तुम बिन होरी बीती ,

तुम रह्यो नहिन मनु लाग नहिन ,
हम दुःख के आंस रहिन
पीती,

तुम हमारि आसा बत्ती ,
हमरे घर ते आई चिट्ठी ।

बप्पा हमका समझाय कहेन ,
'आपन काम लगन ते कीन्ह्यो ,

एकु बात अउ समुझि लेव ,
चिट्ठी जल्दी -जल्दी दीन्ह्यो ,


आंबे मा लागि गई अम्बिया खट्टी,
हमरे घर ते आई चिट्ठी ।

भउजी कै बिथा बड़ी भारी
'बच्चा , का भूलि गयो हमका ?

तुम्हरे भइया ते रोजु कहिथ,
जल्दी ते लई आवैं तुमका ।

तुम चले आव पउतै चिट्ठी
हमरे घर ते आई चिट्ठी । ।
 

दल्ली -राजहरा ,छत्तीसगढ़ --31-03-1991

तुम क्या हो !

तेरी आंखों में हमें  कुछ न मिला,
न कोई ख्वाहिश थी,न कोई गिला !

25 नवंबर 2008

बैसवारा कै कथा

यार, हम बैसवारा के अहिन औ बहुत दिनन ते सोचित अहिन कि अपनी बोली मा कुछु लिखी मुदा आजु मौका मिला है । सबते पहिले यहि बोली क पहिचान देवावै के बरे रमई काका यानी चंद्रभूषण त्रिवेदी क यादि करिथ.हमार बैसवारा राजा राव रामबख्श सिंह,महावीर प्रसाद द्विवेदी ,निराला,राणा बेनी माधव ,पंडित रघुनन्दन प्रसाद शर्मा ,काका बैसवारी ,चंद्रशेखर आजाद ,लल्लू बाजपेई, शिव बहादुर सिंह भदौरिया अउर न जाने केतनी विभूतिन ते भरा परा है ,अगर कभी मौका मिला तो सारी लिस्ट गिना द्याबै.अब जब शुरुआत होइ चुकी है तो हम सब बैसवारा प्रेमिन ते विनती करिथ कि उनके पास जौनि जानकारी होय वहिका स्वागत है .

6 नवंबर 2008

ओबामा का अमेरिका

विश्व की महाशक्ति अमेरिका में नए सूरज का उदय हुआ है .बराक ओबामा के नए राष्ट्रपति चुने जाने को लेकर हालांकि सारी दुनिया उत्साहित है ,पर अविकसित और विकासशील देशों में अमेरिका से ज़्यादा उत्साह देखा जा रहा है .ओबामा का हर तबके की तरफ़ से स्वागत किया जा रहा है पर उनके बारे में बार -बार अश्वेत या काले कहना उनकी असली योग्यता को नकारना और काले लोगों में हीनभावना पैदा करना है.जहांतक दूसरे देशों से सम्बंधित नीति को लेकर बहुत आशावादी होने की बातें की जा रहीं हैं ,मैं समझता हूँ कि अमेरिका की बुनियादी नीतियों में अधिक परिवर्तन नहीं होने जा रहा है.तीसरी दुनिया और विकासशील देशों की अमेरिका से हर समय उनके लिए कल्याणकारी योजनाओं की दरकार होती है पर अतीत में यह कभी नहीं हुआ की अमेरिका अपने हितों की कीमत पर दूसरों की मदद को आगे आए .चूंकि सोवियत संघ के विखंडन के बाद दुनिया एकध्रुवीय हो गयी है इसलिए चाहे अनचाहे सभी देशों की निगाहें अमेरिका के ऊपर ही लगी रहती हैं .इसीलिये शायद ओबामा को काले या अश्वेत कहकर मीडिया उन देशों का ओबामा से गहरा जुडाव दर्शाने की कोशिश कर रहा है लेकिन उनके लिए यह पहचान न्यायसंगत नही है .अब जब वह इतनी ज़द्दोज़हद के बाद अगले अमेरिकी हुक्काम चुन लिए गए तो उनके लिए शुभकामनायें और यह उम्मीद कि जो जोश उन्होंने अभीतक दिखाया है उसे आगे भी बरक़रार रखेंगे.

28 सितंबर 2008

WAKE UP CALL FOR ALL !

One more blast in delhi on 9 /27 clearly indicates that the time for exchanging words is over and the state must take a strong action against these elements.The death penalty is pending against Afzal shows nothing but cowardness of a state and signals very soft message to this type of elements.It is not fullproof solution to combat from terrorism but it will determine the safety of innocent citizens.This incident has come as a wake up call for all !


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21 सितंबर 2008

SALUTE TO INSPECTOR MOHAN CHAND SHARMA

It was indeed great sacrifice to the nation on behalf of inspector sharma on 19th sep. His work is ideal for indian police.As police is loosing its image day by day,mr. sharma's sacrifice will brighten this and now the police has some valueables in his credit .


Connect with friends all over the world. Get Yahoo! India Messenger at http://in.messenger.yahoo.com/?wm=n/

12 सितंबर 2008

WHO IS RAJ THAKRE?

What raj thakre is doing in maharastra is not just a politics.he is targetting anyone related with north each day and the so called government is deaf and dumb.he makes a statement against sign boards in hindi,abuses jaya bachchan,shahrukh khan and biharis(including upians and delhites),theatens police officers and is giving  smiling pose in media but the state government isn't taking a notice even.will central govt. take action after the situation worsten.

15 अगस्त 2008