ब्लॉग-जगत में इन दिनों एक विशेष प्रकार का तत्व सक्रिय है जिसे हम अपनी स्थानीय बोली में खुरपेंच कहते हैं.इसको ऐसे भी कह सकते हैं कि चलते हुए बैल को अरई मारना !अरई एक प्रकार का हथियार है जिससे किसान बैलों में नाहक उत्तेजना भरने का काम लेते हैं.इस तरह का काम अपनी कलम से द्वारा करना 'खुरपेंच' की श्रेणी में आता है.इस काम को पहले आदरणीय स्वर्गीय डॉक्टर अमर कुमार जी किया करते थे,पर उनके जाने के बाद इस विधा को और गति प्रदान करने व विशिष्टता से करने का काम हमारे फुरसतिया वाले अनूप शुक्ल जी ने लगातार किया है.इस प्रकार वे अप्रत्यक्ष रूप से अमर कुमार जी के ब्लॉगरीय-वारिस बनने की दौड़ में भी हैं.
अभी हाल के दिनों में उनकी इस खुरपेंच-प्रतिभा ने और ज़ोर पकड़ा है.जबसे मैंने यह जाना है कि वे टहलते हुए लिख लेते हैं या चर्चिया लेते हैं तब से बहुत हैरान और दुखी हूँ.खुद तो कभी रेलगाड़ी से सफ़र करते हुए ,उठते,बैठते या टहलते हुए कुछ भी लिख सकते हैं पर दूसरे अगर बकायदा नहा-धोकर,मानस-पारायण कर, बैठकर कुछ लिखते हैं तो अनूप जी लाख खामियां निकालने लगते हैं.डॉ. अरविन्द मिश्र जी से उनका गज़ब का याराना है पर मौका मिलते ही उनकी हिज्जों में हुई गलतियाँ भी निकालते हैं.अभी कुछ दिनों पहले आलोक कुमार जी के ऊपर लिखी पोस्ट में मिश्रजी ने 'आदि ब्लॉगर' शब्द पर आपत्ति की थी कि इससे आदि-मानव की गंध महसूस होती है सो इन्होंने उनका मान रखते हुए इसे 'पहला ब्लॉगर' मान लिया था.पर अधिकतर मौकों पर वे मिश्रजी को कोंचते रहते हैं.
मिश्रजी वैज्ञानिक-प्रतिभा संपन्न होते हुए भी यदि हिंदी साहित्य को अपनी ब्लॉगिंग से कुछ दे रहे हैं तो यह उनकी ब्लॉग-जगत पर असीम कृपा ही है.हमारे यहाँ जो निर्वात है,उसको एक तरह से वे भरने की कोशिश कर रहे हैं और इसी सिलसिले में यदि उन्होंने अपने साईं ब्लॉग को पहला विज्ञान-ब्लॉग घोषित कर दिया तो अनूपजी कसमसा गए.इन्होंने पुराना रिकॉर्ड खोजा तो पता चला कि ज्ञान विज्ञान नामका कोई ब्लॉग उनसे पहले से है.मिश्रजी ने अपना रिकार्ड टूटते देखा तो उन्होंने यह नवीनतम जानकारी दी कि वह ब्लॉग मृत हो चुका है,सो इस नाते जो उपलब्ध ब्लॉग हैं ,उनमें उनका ही हक बनता है !इस पर अली साहब ने एक दिलचस्प सुझाव दिया है ,'मृत हो चुके वर्डप्रेस के ब्लॉग के बाद वाला पहला ब्लॉग' |अभी तक इस तरह के दावे पर अनूपजी की कोई प्रतिक्रिया मेरे संज्ञान में नहीं आई है.
कुछ उदाहरण देखिये,जिससे पता चलता है कि अनूपजी को दूसरे का किया कुछ भी अखरता है.कोई अगर लिखकर रिकॉर्ड बनाता है या केवल ब्लॉग बनाकर रिकॉर्ड बनाता है तो भी उन्हें मंज़ूर नहीं है.अगर कोई कविता लिखता है तो उसमें भी उनकी घोर आपत्ति है.सतीश सक्सेना जी की कवितायेँ पढ़कर उनको उसमें रोने वाले बिम्ब नज़र आते हैं,जबकि खुद वो गरमी के बिम्ब पकड़ नहीं पाते और इसके लिए गुहार लगाते हैं !अब अगर कोई सदाबहार-टाइप बिम्ब लेकर कविता लिखता है तो भी उनको आपत्ति है.वे स्वयं मौसमी-बिम्ब का रोना रोते हैं.अगर कविता होगी,तो दर्द तो होगा ही.बिना दर्द के कविता कैसी ? इस तरह की कविताओं को वे रोने वाली कहकर खारिज करते हैं .जब हम दुःख में डूबकर कविता लिखते हैं तो कहते हैं कि या तो वह गीत का हुलिया बिगड़ गया है इसलिए यह कविता नहीं है या भाव झूठे हैं.यानी,किसी प्रकार लिखने में चैन नहीं है |
अनूपजी का जब कानपुर से जबलपुर जाना हुआ,तभी उनने 'घर से बाहर जाता आदमी' कविता लिख कर आर्तनाद किया था,गाहे-बगाहे 'कट्टा-कानपुरी' के नाम से सड़क-छाप शेर भी लिखते रहते हैं पर मजाल है कि कोई उनके रहते किसी भी विधा में कुछ भी लिख सके.हाँ,महिला-ब्लॉगरों के प्रति वे विशेष आदर रखते हैं.कुछ समय पहले तक महिलाओं को अपनी पोस्ट में सम्मान देने के लिए अक्सर सुदर्शन चित्र लगाया करते थे.किसी ने आपत्ति की कि भाई अपनी पोस्टों के ज़रिये वे नस्लवाद और रंगभेद फैला रहे हैं ,सो उन्होंने उन सुदर्शनाओं को काजल कुमार के कार्टूनों से रिप्लेस कर दिया .अब चारों तरफ शांति है.
अगर ब्लॉग-जगत में कोई पुरस्कार देना चाहता है तो इसमें भी उनको आपत्ति है .चाहे परिकल्पना-सम्मान हो या कोई आलसी-परियोजना| इनको सबसे बड़ी खुंदक है कि उनके रहते न कोई गद्य लिख सकता है,न पद्य ,न कोई रिकॉर्ड बना सकता है न पुरस्कार बाँट सकता है.गद्य में जहाँ हिज्जों की गलतियाँ निकाली जाती हैं,वहीँ पद्य में बिम्ब पकड़े जाते हैं.खुद बैठकर,लेटकर और टहलते हुए गद्य,पद्य या व्यंग्य जैसा कुछ लिखते हैं तो कोई बात नहीं,पर एक सामान्य ब्लॉगर अगर अपनी रेटिंग बढ़ाने को लेकर कुछ लिखता है तो उनके पेट में मरोड़ शुरू हो जाती है.लोगों के ब्लॉग-शीर्षकों को लेकर भी वे खूब मजे लेते हैं,इसी सन्दर्भ में उनके अपने ब्लॉग फुरसतिया को खुरपेंचिया जैसे नाम से नवाज़ा गया है !सभी पुरस्कार-समितियों से हमारा निवेदन है कि इन्हें सबसे बड़ा खुरपेंचिया पुरस्कार दिया जाय |
उनमें इतने खुरपेंच भरे पड़े हैं कि पूछिए मत ! पिछले साल जब हम पहली बार जे एन यू के कैम्पस में अमरेन्द्र त्रिपाठी और निशांत मिश्र के साथ उनसे मिले थे,तभी से हमारी ब्लॉगरीय-ज़िन्दगी ने गज़ब की रफ़्तार ले ली.उस समय हमें उन्होंने कुछ ऐसे ख़ुफ़िया सूत्र बताये थे,जिनके सहारे मैं कहाँ से कहाँ पहंच गया ? तब मैं ब्लॉगिंग-जगत का स्ट्रगलर हुआ करता था,उदीयमान-ब्लॉगर की पहुँच से भी बाहर ! उस हंगामी-बैठक के बाद आज इत्ते बड़े ब्लॉगिंग-जगत का सबसे बड़ा आलोचक-ठेकेदार बनने की राह पर हूँ.यह सब अपने फुरसतियाजी उर्फ खुरपेंचिया जी की दी हुई शुरुआती-डोज़ का ही तो कमाल है !
ये तो गिने-चुने लोगों के उदाहरण हैं.पता नहीं,कितने लोग इनसे मार खाए और खार खाए बैठे हैं.कुछ कमज़ोर दिल वालों ने तो इनकी खुरपेंच से आजिज आकर अपना काम-धंधा ही बदल लिया है.अनूप जी या तो किसी के यहाँ टीपकर उसकी सारी खुमारी उतार देते हैं या फिर टहलते हुए चर्चा करके ! चिट्ठाचर्चा को इन्होंने अपना अचूक हथियार बनाया हुआ है,उसी से अपने प्रिय शिकार पर हमला बोल देते हैं ! हमें सबसे बड़ी शिकायत यह भी है कि वो हमारे पड़ोस के हैं, न जाने कितनी बार इधर-उधर की लहरों से खेला करते हैं,पर हमें प्रमोट करने के लिए कभी कुछ नहीं किया !
मोरल ऑफ दा स्टोरी "ये आदमी हमें चैन से लिखने भी नहीं देता !"
होनहार बिरवान के होत चीकने पात ...
जवाब देंहटाएं@ये आदमी हमें चैन से लिखने भी नहीं देता
जवाब देंहटाएं- चैन प्रयोग करने के ज़माने गये, आजकल की पीढी कीबोर्ड (या स्टाइलस?) से लिखती है।
:)
हटाएंजय हो, बांच लिया हूँ. उम्मीद है अब अनूप जी एक तंजिया पोस्ट लिखेंगे. आपके गुरु(?) गार्डेन-गार्डेन हो जायेंगे :) ब्लोग्बुड का यही सब तो 'थ्रिल' है :-)
जवाब देंहटाएं@ मॉरल आफ द स्टोरी ,
जवाब देंहटाएं:)
@ पोस्ट ,
वर्षों बाद अरई के बारे में सुना , ये वही है ना ? जो बैलों के पुट्ठों में अपनी स्नेह स्मृतियां अंकित करती चलती है :)
आलेख का किसान तो समझ में आया पर अरई से टोंचे गये बैल किन्हें कहा गया है , समझ नहीं पा रहा हूं :)
अली साब ,सारे पात्र यहीं मिल जायेंगे ढूँढने से,थोड़ा टाइम खोटी करो !!
हटाएंजब आपने कह दिया कि सारे पात्र यहीं हैं तो फिर टाइम खोटी करने को बचा ही क्या :)
हटाएंगज़ब की अरई चली !:)
हटाएंवातावरण जीवन्त रखने का श्रेय भी तो लिये आते जाते रहते हैं अनूपजी, चित्रकूट एक्सप्रेस में।
जवाब देंहटाएंआप जिनको खुरपेंचिया कह रहे हैं..ऊ खुरपी हैं, खर-पतवार निकालने के काम आते हैं, वो हमेशा सच बोलते हैं, और सच कटु ही होता है...डाटा के मामले में वो हमेशा सही ही रहते हैं, हाँ लीपा-पोती करके बेशक उनको जस्टिफाई किया जा सकता है...
जवाब देंहटाएंआह-वाह करने वालों की कमी इस ब्लॉग जगत में नहीं है, थोक के भाव पर उपलब्ध हैं लोग-बाग़, उनकी आलोचना को 'कंस्ट्रकटिव क्रिटिसिज्म' की तरह लीजिये...कोई तो है जो आपको बेहतर बनने को कह रहा है..
अगर आपकी पोस्ट हास्य-व्यंग के अंतर्गत है तो, मेरा जवाब भी हास्य रूप में लीजियेगा, और अगर आप सीरियस हैं तो जवाब भी सीरियस है...
सादर
अदा जी,
हटाएंखुरपी कई बार फ़सल को भी काट देती है और खर-पतवार कटकर खाद भी तो बनते हैं !
...बाकी आपको हमने कभी हल्के से नहीं लिया है,सो इस बार भी सीरियसली ले रहा हूँ !
बड़ा ही खुरपेंचिया पोस्ट है भाई!
जवाब देंहटाएंमैंने इस शब्द का अर्थ इस प्रकार लगाया है -- जो खुर में पेंच लगा दे।
अनूप और अरविन्द की जोड़ी को मैं धर्म-वीर की जोड़ी मानता हूं ... तोड़े से भी ना टूटे।
बाक़ी अमरेन्द्र भाई ने कह ही दिया है।
:):):)
हटाएंpranam.
:)
जवाब देंहटाएंहम तो फुरसतिया जी के पलटवार का इन्तेज़ार कर रहे हैं :) :) :)
अनूप शुक्ल को समझने की जल्दी मत करिये ...
जवाब देंहटाएंउनको समझने के चक्कर में कई बार हाथ( लल्लू समझ हाथ मिलाने पर ) और मुंह ( छाछ जानकार गरम दूध पी लिया ) जला चुका हूँ !
इन्हें समझने की अब कोई कोशिश नहीं करता , जैसे हैं वैसे ही ठीक हैं !
बस एक बात पक्की है कि वे गुरु चीज हैं बस्स !
सो रहना सावधान !
जारी...
सतीश जी,बस इतना समझ लो,हम भी उसी अखाड़े के पहलवान हैं जहाँ के हमारे अनूप जी !
हटाएंखुर में पेंच लगाते हैं
जवाब देंहटाएंअपने खुर छिपाते हैं
मुंह धोए बिना आकर
तुरंतिया फुरसतिया
पोस्ट एक लगाते हैं
ब्लॉगर हैं असली
ब्लॉ ब्लॉ खूब जोर
जोर से चिल्लाते हैं
गर अपनी पर आते हैं
अपनी पर धरते हैं
सुराही पानी से भरते हैं
मटकी सिर पर रखते हैं
दूसरे के सिर पर फोड़ने में
माहिर हैं, जाहिर हैं
अब न खैर है संतोष की
न अन्नाबाबा की
खुर में से निकालेंगे पेंच
तो यही तो होगा
वहां पर पोस्ट रूपी
मरहम मलहम ही लगेगा।
हटाएंअनूपानंद से पंगा नहीं , अन्ना बाबा !!
आज थैला,तेरा छिन जाएगा अन्नाबाबा !
जो खुर दिखते हैं,वे कुछ भी नहीं अन्नाबाबा !
आज सपने में भी डर जाओगे अन्ना बाबा !!
थैला करा दिया है जमा स्विस बैंक में
हटाएंसाइन तो आपके ही हैं सतीश भाई
थैली मिली थी हमें जो वह है अब
आपके पास सतीश भाई
अगला गीत लिखोगे थैली पर
या थैले का मुंह पूरा खोल दोगे
सतीश भाई
सपना तब जाए, जब नींद आए
न नींद आए, न सपना आए
स्विस बैंक में जमा नोटों का
मजमा गीतों में सजाएं।
अनूपानंद का आनंद
तभी मिलता है जब
लेता है कोई पंगा
और न्यू मीडिया जगत में
बिखर जाता है रायता नहीं
दंगा।
खुर कहने के लिए हैं
वैसे तो गुर हैं
इन्हीं से गुरु बनते हैं
घोड़े दौड़ते हैं
गधे तैरते हैं
उल्लुओं के बारे में
कहना मना है
सबका डरना मना है।
बढ़िया है गुरु माल ठिकाने लगा दिए
हटाएंथैला ही नहीं, यार ठिकाने लगा दिए
सतीश जी,अविनाशजी की अपनी अलग व्यंग्यशैली है.पता नहीं लगता कि कहाँ से कोई बात शुरू और कहाँ खतम !
हटाएं"...आज इत्ते बड़े ब्लॉगिंग-जगत का सबसे बड़ा आलोचक-ठेकेदार बनने की राह पर हूँ...."
जवाब देंहटाएंराह पर हैं? आप ये खुरपेंचिया पोस्ट लिख कर वह बन भी चुके हैं. बधाई!
...झाड़ के पेड़ पर तो चढ़ा ही चुके हैं,अब हिला भी देना थोड़ी देर बाद !
हटाएंहा हा हा ! लगता है , अब तो आप भी खुर्पेंचिया ब्लॉगिंग में फुल्ली ट्रेंड हो गए हैं . :)
जवाब देंहटाएंबस यह समझ नहीं आया की आप फुरसतिया जी की तारीफ कर रहे हैं या अरई --- ! ! !
वैसे फुरसतिया जी में कुछ तो है .
@आप फुरसतिया जी की तारीफ कर रहे हैं या अरई --- ! ! !
हटाएं...इसमें दोनों का मजा है !
☺
जवाब देंहटाएं1. is post ko rach kar apne sabit kiya ke.......unke(fursatiyaji) immediate successor ke roop me aap established ho sakte hain.
जवाब देंहटाएं2. ab tak padhe gaye naye-purane kahin bhi hamne
is tarah unka charcha hote nahi dekha....so,ye
post kuch adhik achha laga.....
3. bajariye barke bhaijee(satish saxenaji) ke oon dono ke masle(sambandh nahle pe dahla) par
sochne ka koi adhik faida nai hoga..
4. ham blog jagat me jis-jis kuti me apni dhooni ramate hain...oon sab se hum bhavnatmak roop se jure hue mahsoos karte hain, ek bahut bare sanyukt parivar ke tarah...aur sabhi ko hum
saman roop se man-hi-man samman karte hain
5 ali sa aur ada di ke antim line se hum sahmat
hain...
kuch kami-besi ho gaya ho to mat-sahab apne taraf se edit kar sakte hain........
chalen, ab wahan jinki charcha aapne ki oonke charche par...
pranam.
तो आप भी उनकी ही राह पर चल पड़े हैं।
जवाब देंहटाएं@तब मैं ब्लॉगिंग-जगत का स्ट्रगलर हुआ करता था,उदीयमान-ब्लॉगर की पहुँच से भी बाहर ! उस हंगामी-बैठक के बाद आज इत्ते बड़े ब्लॉगिंग-जगत का सबसे बड़ा आलोचक-ठेकेदार बनने की राह पर हूँ.
जवाब देंहटाएंहाँ जे एन यू की हवा लग गयी साथ में पूर्वांचल का पूर्ण रूपेन छोंक लग कर, :)
जारी रहिये, बहुत हैं सितारे ब्लॉग जगत में.
nice
जवाब देंहटाएंफुरसतिया हैं तो खुरपेंच तो करेंगे ही। उनके लपेटे में जो आये वो पछताये और जो न आये वो भी पछताये।
जवाब देंहटाएंब्लॉगिंग में स्ट्रगलर, वाह क्या टर्म है।
संतोष जी,,,,लगता है उनका स्थान आप लेने के चक्कर में है.इसीलिये तो,,,,चलिए एक से भले दो,,,,,
जवाब देंहटाएंMY RECENT POST:...काव्यान्जलि ...: यह स्वर्ण पंछी था कभी...
अनुपम लेखन ... आभार
जवाब देंहटाएंडा.अमर कुमार अद्भुत इंसान थे । उनके वारिश बनने की हममे ताब नहीं हैं। उनके जैसा जुनूनी,ज्ञानी, अपने भीषण से भीषण विरोधी को भी गले लगाकर संवाद बनाये रखने वाला, औघड़ ,मस्त-मौला फ़िलहाल तो मेरी समझ में कोई नहीं है। कम से कम मैं तो उनका ब्लॉगरीय-वारिस बन सकने की पात्रता नहीं रखता। डा.अमर कुमार हौसला लोगों की आफ़जाई में करने में बहुत उदार थे। जर्रे को आफ़ताब बताने में भी हिचकते नहीं थे। मेरे जैसे खुरपेंची लिखने वाले के लिये भी वे कहते थे - मैं आपको छूकर देखना चाहता हूं। उनकी खिंचाई के चलते कोई उनसे नाराज नहीं हो सकता। हमारे साथ उल्टा है मामला। बहुत-बहुत उदार थे वे। हम उनके पासंग भी नहीं। इसलिये उनसे मेरी तुलना गैर बाजिब है। शायद उनसे जुड़े अन्य लोग भी इस बात से सहमत हों। उनके लिखे को ’खुरपेंच’के रूप में याद करना कुछ जमा नहीं। यह उनके जैसे हीरा दिल आदमी के बस की ही बात थी कि किसी से भयंकर बहस होने के बाद तुरंत उससे कह सके- मुझसे दोस्ती करोगे।
जवाब देंहटाएंबाकी जहां तक अपने लिये ’खुरपेंच’उपाधि मिलने की बात है तो हम यही कह रहे हैं कि बड़ा भला-भला लग रहा है नयी उपाधि का प्रमाणपत्र पाकर। लेकिन जैसा पहले कहा था-
@ Arvind Mishra , संतोष त्रिवेदी, केवल खुरपेचिया तक सीमित रहकर आप तमाम उन साथियों की अवलेहना करेंगे जिन्होंने और भी इसी घराने के नाम दिये हैं।
हमको इस उपाधि के पहले भी तमाम उपाधियां मिल चुकी हैं। मठाधीश, नारी विरोधी, हिन्दी न जानने वाला, चिरकुट, नर-भक्षी मौज-कार,पक्षपाती और षड़यंत्रकारी, बीच-बचाव कराने वाले झगड़ाकार आदि-आदि वगैरह-वगैरह। अब नयी उपाधि पाने पर इसको ज्यादा भाव देने से पुरानी वाली उपाधियां रूठ जायेंगी इसलिये इसको भी धर लिये हैं बस्स। बनी रहेगी सबके साथ। आपस में लड़ती-झगड़ती इजहार-ए-मोहब्बत करती रहेंगी।
बाकी ’खुरपेंचिया’ के आसपास ही टहलते हुये इस पोस्ट के बारे में ये बयान जारी किये जा सकते हैं:
१. कब तक अपने गुरुजी के दिये बिम्ब इस्तेमाल करते रहेंगे। कुछ अपने मौलिक रचिये।
२. पूरे लेख को खुरपेंचिया के आसपास टहलता देखकर लग रहा है कि कोई गरीब इंसान एक ही कपड़े में गुजर-बसर कर रहा है। उसी को ओढ़ रहा है, बिछा रहा है। कपड़ा फ़टा जा रहा है लेकिन गरीब इंसान( ब्लॉगर) उसी कपड़े ( बिम्ब) से काम चलाने के लिये बाध्य है।
३. डा.अमर कुमार और फ़ुरसतिया असमान तुलना पेश करके लेखक ने सफ़लतापूर्वक यह सिद्ध किया है कि उसे डा.अमर कुमार और अनूप शुक्ल के बारे में बराबर की जानकारी है।
बाकी पढ़कर मजा आया लेकिन उतना नहीं जितना आने की गुंजाइश थी।
...आज आपने बहुत निराश किया है,हमें और अपने उन प्रशंसकों को भी जो आपसे भीषण पलटवार की उम्मीद लगाये बैठे थे.इतना 'डिफेंसिव स्ट्रोक' कब से खेलने लगे गुरु ? आप तो साधारण-सी बात पर या छोटी-मोटी कविता रचते ही टूट पड़ते थे,पर आज जब आपकी कार्यशैली आपके ही अंदाज़ में आपके ही हथियार से दबोच ली गई तो बेबस-से हो गए,हमारे गुरूजी में हिज्जों की गलती ढूंढते-ढूंढते खुद वैसी ही गलतियाँ कर बैठे !
हटाएं....नहीं,इसका मतलब यह बिलकुल नहीं है.आपने आज अपने ऊपर किये गए व्यंग्य को नीलकंठ की तरह गले से उतार लिया है क्योंकि यही बड़े लेखक और असली व्यंग्यकार की निशानी है.जो दूसरों पर खिलखिलाकर,ठठाकर ,मुँह दबाकर हँसता है,यदि उस पर हंसा जाय तो कितना मजा आयेगा,बस,यही गुस्ताखी मैंने की थी और सफल रहा.
इस बहाने आपके प्रशंसकों के,आलोचकों के विचार भी सामने आ गए और वो चुप्पियाँ भी दिखाई देती हैं जिनका आप तहे-दिल से आदर करते हो,कभी उस कॉम की आलोचना नहीं की.
अमर कुमार जी से आपका लगाव मुझे पता है और उनके वारिस कहने का दुस्साहस मैंने केवल इसलिए किया है कि वही एक ब्लॉगर थे जो किसी के रूठ जाने की परवाह किये बगैर टिपियाते थे और यह उनकी अपनी रंजक शैली,जिसे खुरपेंच भी कह सकते हो,से करते थे.आप के भी हूबहू लक्षण मिलते हैं,सो इस नाते कह डाला,बाकी ब्लॉग-जगत में उनका अपना सिंहासन है,जिसे छूने या डिगाने की ताब हममें से किसी की नहीं है !
...आपसे अकसर बतियाता और खुरपेंच करता रहता हूँ क्योंकि ऐसे खुरपेंच अरविन्द मिश्र जी व सतीश सक्सेना जी को भी नहीं हजम होंगे !आपकी सबसे बड़ी खूबी यही है कि अपनी आलोचना सुन व सहन कर लेते हो.हाँ,बदले में ज़रूर मौका मिलते ही सूद समेत वसूल लेते हो !
और हाँ,खुरपेंचिया शब्द हमारे बैसवारे का ही है,इससे कोसों दूर बनारस से कोई ताल्लुक नहीं है !
...आपकी संयत प्रतिक्रिया से हमारे दिल में आपका मान और बढ़ गया है.शुक्रिया हमें थोड़ी खुशी बटोर देने के लिए !
कल शाम को चलकर आज सुबह कानपुर आया। अभी सब प्रतिक्रियायें देखीं। मजे आये। लोगों के विचार-उचार भी सामने आये इसी बहाने।
हटाएंजहां तक पलटवार की उम्मीद में बैठे लोगों के निराश होने की बात है तो उनकी उम्मीदें गलत थीं। इस पोस्ट में ऐसा कुछ नहीं था जिससे हम ’बिलाबिला’ के ’संतोष त्रिवेदी’ के ऊपर पिल पड़ें। जो लिखा था सब सही ही लिखा था। उल्टे कोई यह आरोप लगा सकता है कि ’संतोष त्रिवेदी’ ने ’संगीन आरोपों में वांछित’ अनूप शुक्ल का मामला रफ़ा-दफ़ा कर दिया। यहां तो मौज-मजे की बात है। इसके पहले न जाने कित्ती बार बेहद भद्दी भाषा में भाई लोग अपने उद्गार व्यक्त कर चुके हैं। बावजूद तमाम खुराफ़ातों के हमारे पलटवार के कुछ अपने कुछ सहज नियम हैं उनके आधार पर न यह पोस्ट पलटवार के लिये क्वालीफ़ाई होती है और न ’संतोष त्रिवेदी’ का ब्लाग! जनता और आपकी मंशा पूरी न कर पाने का अफ़सोस है लेकिन क्या करें ’नियम’ के चलते मजबूर हैं :)
डा.अमर कुमार को खुरपेंची कहने वाली बात पर आप चाहें जित्ती सफ़ाई दो लेकिन वह प्रयोग (अनजाने ही सही) जमा नहीं। एक तो इसलिये कि वे आज हमारे बीच नहीं हैं। दूसरे हमारे उनसे ऐसे रिश्ते नहीं हैं/थें कि अब उनके कार्यकलाप को खुरपेंच कह सकें। अगर यही लेख डा. अमर कुमार के बारे में लिखा जाता शायद चल जाता क्योंकि उसमें फ़िर उनके व्यक्तित्व के और पहलुओं की चर्चा होती और उसमें से एक यह शब्द भी चल जाता। आपने लिखा:
इस तरह का काम अपनी कलम से द्वारा करना 'खुरपेंच' की श्रेणी में आता है.इस काम को पहले आदरणीय स्वर्गीय डॉक्टर अमर कुमार जी किया करते थे
इससे आभास होता है कि डा.साहब केवल खुरपेंच ही किया करते थे। यह चूक हुई शुरुआत में। शुरुआत ही ऐसी हुई जैसे पानी की बाल्टी में धर के पटाखा सुलगाया जा रहा हो। :)
इसके बाद अरई वाली बात। अब अगर आप किसी की खिंचाई कर रहे हैं और उसमें शुरुआतै में समझा रहे हैं कि ’अरई’ क्या होती है तो पाठक बोर होकर निकल लेगा। वो अनूप शुक्ल की खिंचाई देखने में रुचि रखता है न कि ’अरई पाठशाला’ में। इससे शुरुआती पंच हल्का था। फ़िर जिसकी खिंचाई कर रहे हैं उनको ’जी’ कहेंगे तो आधी ताकत तो इज्जत देने में चली जायेगी- खिंचाई क्या करोगे? खिंचाई में वैरियेशन कम था। हर बात घूम फ़िरकर खुरपेंच के आसपास टहलती रही।
दो बातें यहां गलत कोट की गयी हैं:
१. ज्ञान-विज्ञान जो ब्लॉग वर्डप्रेस पर नहीं है ब्लॉगस्पाट पर है। वह मरा भी नहीं है। कभी भी उसमें फ़िर से पोस्टें शुरु हो सकती हैं।
२. मैंने कभी आलसी पुरस्कार की आलोचना नहीं की।
आपकी खिंचाई का ताना-बाना गड़बड़ाया इसलिये क्योंकि आपके गुरुजी का बिम्ब-विधान गड़बड़ाया रहता है। दूसरे आप गजल में भी पांव फ़ंसाते हैं, गीत में भी हाथ आजमाते हैं, कविता भी रचते हैं। इसमें सब मामला गठबंधन सरकार सरीखा हो जाता है। ऐसी भी क्या खिंचाई की जिसकी खिंचाई हो वो बिलबिला न जाये और दूसरे वाह-वाह न करने लगें। यहां तो उल्टा हुआ मजाक-मजाक में लोग हमें चरित्र प्रमाण पत्र देने लगे। यह तक कहने लगे ब्लॉग जगत के इस सितारे की हम सभी को आवश्यकता है... जैसे कि अपन आई सी यू में खड़े आखिरी सांसे ले रहे हों और डाक्टरों ने उम्मीद छोड़ दी हो। :)
बाकी जहां तक ब्लॉगजगत का मामला है तो यहां सहज हास्य बोध का भीषण अभाव है। जिसके दोहरेपन की तरफ़ इशारा करो वो कपड़े फ़ाड़ने लगता है। कोई धमकी देता है, कोई नोटिस भेजता है, कोई हड़काता है, कोई रोने लगता है। हर अगले को लगता है कि हमारे बारे में ऐसा लिख दिया , हाय हमारी तो इज्जत गयी। इसके बाद वह ’मार ससुरे’ को वाले मोड में आ जाता है- और हास्यास्पद हरकतें करता है। लोग फ़र्जी नामों से इधर-उधर टिपियाते रहे। फ़र्जी आईडी बनाकर मोर्चा संभालते रहे और जब सीधे-सीधे टोंका जाता रहा तो कहते रहे -आप हमसे जलते हैं। बीमार आदमी को मेल लिख-लिखकर रोने रोये लोगों ने कि देख भाई हमारी खिंचाई कर रहे हैं लोग हमारे पक्ष में लाठी चलाओ चलकर। अगला बेचारा गया भी। बड़े-बड़े लोगों की अनगिनत चिरकुटईआ हैं भाई जी। इसके भी कारण हैं उनके बारे में फ़िर कभी। :)
बाकी मजे तो हमने भी काम भर के ले ही लिये। यह टिप्पणी भी तो मौज ही है। :)
...अब ज़्यादा कुछ नहीं कहूँगा.आपके पहले और बाद वाले कमेन्ट का 'टेस्ट' बिलकुल अलग है.इससे हमारा लिखना सार्थक हो गया.जो बात हमें आप तक पहुँचानी थी,सो पहुँच गई.रही बात अमर कुमार और आप जैसे वरिष्ठ ब्लॉगर्स की ,तो मैं अभी नवजात शिशु की तरह हूँ.मुझे जो बात जैसी लगी,आपके अंदाज़ से ही कह दिया.
हटाएं...अब मैं भी कह रहा हूँ कि मजे और मौज के लिए लिखा है !
निवेदन यही है कि भविष्य में भी हमसे मौज लेते रहिएगा !
@ जैसे कि अपन आई सी यू में खड़े आखिरी सांसे ले रहे हों और डाक्टरों ने उम्मीद छोड़ दी हो। :)
हटाएंडाक्टर तो दहाड़े मार के रो रहे हैं कि कहाँ फंसा दिया हमें ..
वर्तनी सुधार
जवाब देंहटाएंडा.अमर कुमार हौसला लोगों की आफ़जाई में करने में बहुत उदार थे। की जगह पढ़ें
डा.अमर कुमार लोगों की हौसला-आफ़जाई में करने में बहुत उदार थे।
डा.अमर कुमार और फ़ुरसतिया की असमान तुलना पेश करके लेखक ने सफ़लतापूर्वक यह सिद्ध किया है कि उसे डा.अमर कुमार और अनूप शुक्ल के बारे में बराबर की जानकारी है। की जगह पढ़ें:
डा.अमर कुमार और फ़ुरसतिया की असमान तुलना पेश करके लेखक ने सफ़लतापूर्वक यह सिद्ध किया है कि उसे डा.अमर कुमार और अनूप शुक्ल के बारे में बराबर की जानकारी है।
श्रेष्ठ व्यंग्यकार वही जिसके पीछे लोग हाथ धो कर पड़ जांय। अनूप जी को ब्लॉग जगत का श्रेष्ठ व्यंग्यकार सिद्ध करती, उनके प्रशंसकों को मजे दिलाती, पोस्ट के लिए बधाई। शेष तो अनूप जी हैं ही लिखने के लिए।:)
जवाब देंहटाएं:) ये भी खूब रही। हमें एक नया शब्द पता चला खुरपेंचिया, उसके लिये आभारी हैं।
जवाब देंहटाएंखुरपेचिया जी को यह मालूम नहीं है कि इस शब्द का प्रवर्तन आपके द्वारा ही किया गया है ,हमतो बस कापी लेफ्ट समझ लिए उड़ा लिए थे ..कारण यह हमें भी जंच गया था .....
जवाब देंहटाएंहमारा और उनका वर्तनी दोषारोपण चलता रहता है अब जैसे आज उन्होंने वारिस को वारिश बना दिया है और हम टोकेंगे जरुर ...बाद में भी अन्य वर्तनी सुधार उल्लेख में इसका जिक्र न करके उन्होंने यही साबित किया है कि यह उनका स्थाई वर्तनी दोष है जबकि मेरे वर्तनी दोष लापरवाही के चलते है ..
बाकी आपने आज तोड़ दिया है ...राम विलास शर्मा जी की बैसवार आत्मा पूरी तरह आपमें प्रवेश हुयी लगती है ...
अनूप जी हसे छोटे हैं कई साल इसलिए मुझे लगता है मैं उनको डांटने का अधिकार रखता हूँ ..यद्यपि इस बात से असहज होते हुए भी वे इसका सम्मान करते हैं .....बस यही गनीमत समझिये ....
मैं भी असहमत हूँ .डॉ. अमर कुमार खुरपेचिया नहीं थे ...अद्भुत प्रतिभा संपन्न थे ..वे व्यंग्य के बजाय लोगों को प्रेम से आईना दिखाते थे .....
निष्कर्षतः आज ब्लॉग जगत के अनूप शुक्ल जैसा कोई और मेहनती और प्रतिभाशाली ब्लॉगर नहीं है ....बल्कि वे ब्लॉग जगत के एक अमूल्य रत्न हैं ....हाँ कटोक्ति,व्यंग्याक्षेप ,कटाक्ष की वृत्ति उनमें कूट कूट कर भरी हुयी है अब चाहे कोई उसे पसंद करे या नापसंद उनके ठंडे से ..गुजिश्ता दिनों तो मुझे दर लगने लगता था कि पिट पिटा न जायं :) बच्चू बच गए हैं और अब तो अपनी पोजीशन भी कान्सोलिदेट कर लिए हैं कितनी नयकी पुरनकी ब्लागराओं को भी पटरियाये हुए हैं ..कुछ तो केवल इन्ही के यहाँ टिप्पणी करती हैं ... :)
हाँ जब वे मुझे वैज्ञानिक चेतना संपन्न कहते हैं तो मेरी सुलग जाती है :)
बहरहाल ब्लॉग जगत के इस सितारे को बहुत बहुत शुभकामनाएं -आपकी पोस्ट एक टोटका है ,एक काला टीका है उनकी सलामती का .....दिल से तो आप उन्हें ही चाहते हैं ,हमें तो बस दिखाने का गुरु माने हुए हैं जबरदस्ती..... :) हम कभी भी गुरुडम में विश्वास नहीं रखते ....मित्रता में विश्वास है !
हटाएंआपकी यह टिप्पणी अच्छी लगी अरविन्द भाई, मजाक और व्यंग्य की एक सीमा होनी चाहिए उसे पार करना अशोभनीय ही कहा जाएगा और इससे हम लोगों की मानसिकता भी पता चल जाती है !
होना यही चाहिए कि अगर हम किसी का सत्कार ना कर पायें तो कम से कम उसका अपमान करने का प्रत्न भी न करें, यह नियम हर किसी पर लागू होता है !
अनूप शुक्ल बेहतरीन व्यंग्यकार हैं इसमें कोई संदेह नहीं शायद उन जैसा ब्लॉग जगत में दूसरा कम से कम मुझे नहीं मालूम !
ब्लॉग जगत के इस सितारे की हम सभी को आवश्यकता है...
गुरूजी,
हटाएं@मैं भी असहमत हूँ .डॉ. अमर कुमार खुरपेचिया नहीं थे ...अद्भुत प्रतिभा संपन्न थे ..वे व्यंग्य के बजाय लोगों को प्रेम से आईना दिखाते थे .....
अमर कुमार जी के बारे में विस्तार से पहले भी मैं लिख चुका हूँ.यहाँ खुरपेंचिया का अर्थ कतई नकारात्मक नहीं है.यह हमारे बैसवारे का ही शब्द है जो यारी-दोस्ती में ही चलन में है.इसका नकारात्मक शब्द 'खुराफात' है,जिसका मैंने प्रयोग नहीं किया है.अमर कुमार जी अगर आज होते तो वे सबसे ज़्यादा खुश होते.उनका मैं बहुत आदर करता हूँ. वे एक खालिस व्यंग्यकार थे और व्यंग्यकार अगर खुरपेंची न होकर रहमदिल हुआ तो
व्यंग्य की धार ही कहाँ बची ?
बाकी ,बैसवारा का असर अनूपजी की तरह हम पर भी कुछ हो सकता है,पर राम विलास जी का यहाँ दूर-दूर तक कोई अंश नहीं है !
सतीश जी,
हटाएंयहाँ मैं केवल इतना निवेदन करूँगा कि जितना ज़रूरी एक अच्छे व्यंग्यकार का होना है उतना ही ज़रूरी उसे झेलने और समझने वाले पाठक.यह एकतरफा नहीं होता.लिखना और सहना दोनों अलग बातें हैं.
अनूप जी निःसंदेह इस कसौटी में सबसे ऊपर हैं क्योंकि उन्हें यदि किसी पर हँसना या व्यंग्य करना आता है तो स्वयं पर भी उतनी सहजता से लेते हैं.सोचकर देखिये,हममें से कितने लोग इस पैमाने पर खरे उतरेंगे ?
जो लोग साधारण आलोचना सहन नहीं कर पाते ,उनसे खालिस व्यंग्य कहाँ पचेगा ?
इसलिए अनूपजी सम्पूर्ण और विशुद्ध रूप से व्यंग्यकार हैं !
उन्हें यदि किसी पर हँसना या व्यंग्य करना आता है तो स्वयं पर भी उतनी सहजता से लेते हैं
हटाएंसच्ची?
तनिक ताका झांकी कर लीजिए कि चिट्ठाचर्चा ब्लॉग पर कितनी टिप्पणियाँ हटाई/ हटवाई गईं हैं
@डा.अरविन्द मिश्र,
हटाएंयह उपाधि पिछले साल ही जनवरी माह में मुझे डा.आराधना दे चुकी हैं। उन्होंने मेरी इस पोस्ट पर टिपियाते हुये लिखा था:
आपका नाम ’फ़ुरसतिया’ नहीं’खुरपेंची’ होना चाहिये। :)
चलो हमने भी मान लिया कि आपको इससे भी पहले यह नाम दिया गया है पर हमने तो बकायदा उदाहरण देकर सिद्ध किया है.इसलिए असली क्रेडिट से मुझे महरूम मत करिये !
हटाएंइसमें कोई शक नहीं कि अपने खुरपेंचिया जी डॉ अमर कुमार जी के असली वारीश बने खातिर लंगोट कस लिए हैं संतोष जी । पेट में आंत तो है, मुंह मा दाँत भी है लंबे-लबे कार्टूनिष्ट आर के लक्ष्मण स्टाइल, मगर जिगडा नाही दोनों के जैसा । हाँ एक गुण है कि वे कुत्ता और कलक्टर में अंतर नहीं रखते । उन्हें स्वाभिमान शब्द सुनने मे अच्छा तो लगता है पर अपने ऊपर लागू करने मे नहीं। ज़रा सोचिए कितने ऊंचे विचार है अपने खुरपेंचिया जी के ।
जवाब देंहटाएंभाषा ऐसी प्रयोग करते हैं कि जर्तुआह चटनी मिलायके चना जोर गरम कर देते हैं । फर्जी स्टेटमेंट से खुबै चटपटा बनाए देते हैं तो कभी दुराग्रह रूपी छौंक मारके तीता भी कर देते है । जिसको जो भाए। उन्हें भी अच्छा लग रहा होगा इस नए नामाकरण से क्योंकि मठाधीश, नारी विरोधी, हिन्दी न जानने वाला, चिरकुट, नर-भक्षी मौज-कार,पक्षपाती और षड़यंत्रकारी, बीच-बचाव कराने वाले झगड़ाकार आदि-आदि वगैरह-वगैरह से तो अच्छा ही है यह नया नामाकरण । वैसे सतीश सक्सेना जी से मैं सहमत हूँ कि "इन्हें समझने की अब कोई कोशिश नहीं करता , जैसे हैं वैसे ही ठीक हैं !"
वो एक विज्ञापन आता है न संतोष जी, टेढा है पर मेरा है । हमारे खुरपेंचीय जी हमारे जैसे प्रशंसकों के लिए कमोवेश वही हैं ।ये भी खूब रही, हमें गर्व है अपने खुरपेंचिया जी पर ।
भाई रविन्द्र प्रभात जी ,
हटाएंउपरोक्त टिप्पणी को, अनूप शुक्ल के प्रति,उन्ही के इश्टायल में, हल्का मजाक भर माने ! आशा है अनूप भाई बुरा नहीं मानेगे !
सतीश जी, जब आप बुरा न मानने की आशा करते हैं तब बहुत अच्छा लगता है। इसमें एक खतरा भी होता है। दो पक्षों में जब झगड़ा हो रहा हो, लोग बुरा मान रहे हों, तब समझाना ठीक है लेकिन जब यही पता न हो कि कोई बुरा मान भी रहा है या नहीं तो अपने मन की आशंका से समझाना बेहद खतरनाक होता है। एक पक्ष यह सोंच सकता है कि अरे..हमें तो बुरा मानना चाहिए था! भारी चूक हुई!! मतलब हमारी बेइज्जती हो रही है!1! और यह सोचते ही वह अचानक से बुरा मान जाता है।:) वैसे यहां वह खतरा नहीं है फिर भी लिख दिया कि कहीं खतरा न हो।:):)
हटाएंअब आप बुरा मत माने...
हटाएं:)
:)
हटाएंरवीन्द्रजी,
हटाएंफिलहाल मैं इतना ही कहूँगा कि आपकी परिकल्पना-पुरस्कार योजना इस बार जब शुरू हुई थी, तब आपने उसमें सीमित नाम दिए थे और इसके अलावा उनके लिए एक विकल्प भी जो उससे इतर चाहें,उसमें मैंने दशक के सर्वश्रेष्ठ ब्लॉगर में अनूप शुक्लजी को और अच्छे ब्लॉग के लिए क्वचिदन्यतो$पि(विकल्प)को चुना था.इसका रिकॉर्ड आप देख सकते हैं.
यह सब इसलिए बताया क्योंकि ब्लॉग-जगत में अरविन्द मिश्रजी और अनूप जी दोनों प्रमुख स्तंभ हैं !
संतोष जी, आपकी बातों से मैं भी सहमत हूँ ....इसलिए मैं भी उन्हें अब फुरसतिया नहीं खुरपेंचिया ही कहूंगा, क्योंकि फुरसतिया कहने से आलस्य का बोध होता है और खुरपेंचिया कहने से सक्रियता का . मैं कभी नहीं चाहूंगा कि मेरा कोई प्रिय ब्लोगर सक्रियता से बाहर हो !
हटाएंफुरसतिया उर्फ़ खुरपेंचिया उर्फ़ ब्लागर उर्फ़ चर्चाकार को उनके जानने वालों में से मुझे काफी पुराना समझा जा सकता है | कालेज में मुझसे एक वर्ष सीनियर रहे | मैं उनकी ही विंग में हास्टल में उनका सह विंगी रहा | यह बात वर्ष १९८३ की है | उन्होंने रैगिंग के दौरान मेरा मानसिक बलात्कार भी किया था जबरदस्त | ब्लागिंग का जो थोड़ा बहुत शौक मुझमें जागृत हुआ , वह भी उन्ही की वजह से | एक अच्छे प्रेरक हैं वह | परिणाम यह है कि अब मेरे यहाँ एक ही छत के नीचे एक ही मॉउस के भरोसे दो ब्लॉगर जी रहे हैं | उनकी प्रकृति / स्वभाव के बारे में केवल एक कल्पना से समझाना चाहूँगा कि अगर संयोग से वह "चिकित्सक" होते तब अपने मरीज को दवा तो अव्वल दर्जे की देते परन्तु भरसक प्रयास यह भी करते (हुमायूं की तरह ), कि अपने मरीज की चारपाई का चक्कर लगाते और प्रार्थना करते कि वह मरीज ठीक हो जाए और भले ही उस मरीज का रोग उन्हें स्वयं को मिल जाए | इसे मक्खन बाजी कतई न समझा जाए |
जवाब देंहटाएंअरविंद जी हमें मत टोकिएगा । क्या करूँ खुरपेंचिया जी का असली प्रशंसक जो हूँ ......इसीलिए मैंने भी वारिस को वारिश बना दिया है .....हा...हा...हा...हा। !
जवाब देंहटाएंमुझे लगता है कि ब्लॉग जगत में जीवन्तता बनी रहे इसके लिए एक नहीं अनेक खुरपेंचिया दिमागों की जरूरत है। बेचारे अनूप जी अकेले कबतक यह पुनीत कार्य करते रहेंगे। संतोष जी यदि उनके जूते में अपना पैर नापने की कोशिश कर रहे हैं तो उनकी भी हौसला-आफजाई की जानी चाहिए। आगे की दौड़ लगाने के लिए अधिक से अधिक लोग आगे आयें तो अच्छा ही है।
जवाब देंहटाएंवैसे संतोष जी ने बेधड़क होकर लिखा है इसके लिए बधाई के पात्र हैं। हाँ, अदा जी ने अच्छी टिप्पणी की है।
ब्लॉग जगत में जीवन्तता बनी रहे इसके लिए एक नहीं अनेक खुरपेंचिया दिमागों की जरूरत
हटाएंक्या अंदाज़ है आपकी जीवन्तता का
:)
जवाब देंहटाएंदूसरों पर व्यंग्य कर हंसने में कौन बडाई है , स्वयं पर करे और दूसरों को हंसने दें तब कोई बात है !
जवाब देंहटाएंवाणी जी,अगर आप ठीक से देखें तो हमने अपने ऊपर भी व्यंग्य किया है.
हटाएं...और जो व्यंग्यकार है उस पर तो व्यंग्य करने में और मजा है.केवल अपने पर ही व्यंग्य करना अच्छा हो तो यह विधा ही समाप्त हो जायेगी.आप दूसरों पर व्यंग्य करने के लिए स्वतंत्र हैं,मगर बिना किसी छल-कपट के !
इसको यूँ पढ़ लीजिये कि यदि कोई दूसरा हम पर करें , तो हम उसे भी ख़ुशी -ख़ुशी बर्दाश्त कर सकें!
हटाएंये निर्धारित कौन करे कि कौन सी टिप्पणी/लेख बिना छल कपट के लिखा गया!!
यह या पूर्व टिप्पणी व्यक्तिगत नहीं है , इसे अखिल ब्लॉगजगत के सम्बन्ध में देखिये !
आह से आहा!?
जवाब देंहटाएंक्या वाकई खुरपेंचिया है? इन फुरसतिया को हमारा ढीला पेंच तो कभी कसने की फुरसत नहीं मिली ः(
जवाब देंहटाएं:)
हटाएंvaise - मुझे तो व्यंग्य विधा ही पसंद नहीं | किया भी जाए - तो टोपिक पर हो तो समझ आता है | परन्तु व्यक्तियों पर प्रहार, मुझे हैरान और परेशान ( दोनों ही ) करते हैं |
हटाएंव्यंग्य विधा एक तरह से सुरक्षित सजगता प्रयोजन से होती है. विवेकवान व्यंग्यकार हमेशा विचारों विषय मन्तव्यो पर ही चोट करते है. किन्तु लोगों का ईगो अपने विचारों के साथ भी जडता से जुडाव लिए होता है, अक्सर विचारों पर व्यंग्य को व्यक्तिगत अपमान के अभिप्राय में ले लिया जाता है.
हटाएंआदरणीय सुज्ञ जी - थिअरी में होता होगा ऐसा जैसा आप कह रहे हैं - किन्तु प्रेक्टिकली मैंने इस विधा को बहुत ही कम इस तरह से प्रयुक्त होते देखा है | अक्सर (और अधिकतर) तो यह व्यंग करने वाले की मंशा व्यक्ति पर प्रहार ही होती देखि है, विचार पर या परिस्थिति पर नहीं |
हटाएंमैं व्यंग्य के लक्ष्य की नहीं, बल्कि व्यंग्यकर्ता के मंतव्य की बात कर रही हूँ | बात वहीँ आ जाती है फिर से - कि कर्म जो हो रहा है / किया जा रहा है, उसके classification के लिए उसके पीछे का मंतव्य ज्यादा महत्त्व रखता है - कर्म अपने आप में उतना अहम् नहीं है | गीता वाली लेखमाला के एक भाग में भी मैंने कहा था - यदि एक व्यक्ति सेना में है और अपनी बन्दूक से युद्ध के दौरान १०० दुश्मन सिपाहियों को मार दे - तो वह इनाम पाता है | किन्तु वही सैनिक छावनी में किसी बात पर क्रोधित हो कर उसी बन्दूक से एक भी इंसान को मार दे - तो वह फांसी के लिए नामित हो जाता है |
तो बात यह नहीं की वार का लक्ष्य उस व्यंग्य को किस रूप में ले रहा है - बात असल में यह महत्त्व रखती है की व्यंग्यकार व्यंग्य कर किस उद्देश्य से रहा है ? परिस्थितियों को सुधारने के लिए ? सामने वाले के विचार उसे नहीं जंचते - तो अपनी असहमति दिखने और विचार परिवर्तन करवाने के उद्देश्य से ? सिर्फ मजाक, मस्ती, हंसी भर के लिए ? या उसे किसी बात से चोट लगी है और क्रोध के चलते ? या किसी से शत्रुता है उस शत्रुता के चलते ?
हाँ - जिस पर व्यंग्य किया जा रहा हो - वह बहुत ही महान हो और पचा सके तो बात अलग है - किन्तु सार्वजनिक तौर पर व्यंग्य प्रहार से क्रोध आना बहुत ही साधारण सी बात है | आपके जैसे उच्च मानसिक स्तर वाले लोगों को न आता होगा क्रोध - मैं आप जैसे एक्सेप्शंस की बात नहीं कर रही, किन्तु आम जन की बात कर रही हूँ |
लाख टके की बात !
हटाएंवाणी जी - आभार :)
हटाएंआदरणीय शिल्पाजी और वाणी जी,
हटाएंयह कतई हास्य-व्यंग्य है और इसे इसी रूप में लिया जाना चाहिए.मेरी कोई खुंदक यदि अनूप जी से है तो इस बारे में वे ही बता सकते हैं.हमारी और उनकी संवादहीनता की स्थिति भी नहीं है !
...वे परले दर्जे के व्यंग्यकार हैं,ऐसे ही लिखते और टिपियाते रहते हैं.यह और बात है कि आपका व्यंग्य का हाजमा दुरुस्त नहीं है,खासकर शिल्पाजी के अनुसार !
..अभी तक अनूप जी ने इसे सीरियसली नहीं लिया है,अगर आप ऐसा ही कहती रहीं तो वे भी सोचने लगेंगे कि क्या सचमुच ऐसा ही है !
...मैं जहाँ तक जानता हूँ और जैसा उन्होंने कहा भी है कि इससे उनको मजा आया है.अब तो इसी बात का इंतज़ार है कि कब वे हमारी खटिया खड़ी करें और हमें फुल-मजा आए !
ji
हटाएंकृपया अनूपजी का खुद का अवलोकन देखिये !
हटाएंhttp://hindini.com/fursatiya/archives/1816
पता नहीं आपको यह क्यों लग रहा है कि आपकी खुंदक की बात हो रही है , यहाँ सवाल ब्लॉगिंग की प्रवृति का है . मैं पहले ही कह चुकी हूँ कि यह टिप्पणी व्यक्तिगत नहीं है इसलिए इस प्रवृति में वह भी शामिल हैं जिनका लिंक आपने दिया है !
हटाएंउदाहरण वह शब्द है ही जो वे कई बार इस्तेमाल करते हैं और आपने भी इस पोस्ट में किया है!
exactly .. मैं और वाणी जी बात "व्यंग्य प्रवृत्ति" की कर रहे हैं | इस पोस्ट की / आपकी / अनूप शुक्ल जी की नहीं |
हटाएं@ यह और बात है कि आपका व्यंग्य का हाजमा दुरुस्त नहीं है,खासकर शिल्पाजी के अनुसार !
जी - मेरा तो दुरुस्त बिलकुल नहीं है | :)
व्यंग्य विधा मुझे बिलकुल ही हजम नहीं होती , specially जब वह व्यक्ति पर हो | हाँ सिस्टम पर हो - पोलिटिक्स पर हो (पोलिटिशियंस पर नहीं , पोलिटिक्स पर ) तब तो दवा की कडवी गोली की तरह निगल पाती हूँ | परन्तु व्यक्ति पर तो बिलकुल नहीं |
यह आपका या आपकी इस पोस्ट का या फुरसतिया जी की उस पोस्ट का इशु नहीं है मेरे लिए |
पाबला जी ने भी अपनी टिप्पणी में यही बात कही है !
हटाएं@अक्सर (और अधिकतर) तो यह व्यंग करने वाले की मंशा व्यक्ति पर प्रहार ही होती देखि है, विचार पर या परिस्थिति पर नहीं |
हटाएंइस वाक्य से तो यही ध्वनित हुआ कि व्यंग्यकार ने मंशापूर्वक(खुंदक के साथ)व्यंग्य किया.
...पहले मैंने इसीलिए असहमति पर ध्यान नहीं दिया था क्योंकि यह पोस्ट किसी बैर-भाव से प्रेरित होकर नहीं लिखी गई थी.हम व्यंग्य करते हैं तो सहते भी हैं,हाँ,उनके लिए ज़रूर कठिन होता है जिनका 'टेस्ट' केवल सादा है !
:)
हटाएंकभी घूमते फिरते मेरे ब्लॉग को देखिएगा संतोष जी - समय न हो, तो पोस्ट्स भले ही न पढियेगा - सिर्फ ऊपर टोपिक्स के टैब्स भर देख लीजियेगा | बहुत कुछ है दुनिया में लिखने के लिए | सादा भोजन भी बड़ा रुचिकर बन पड़ता है |
आप बेशक व्यंग्य लिखिए | मुझे निजी तौर पर यह विधा पसंद नहीं - इस बात पर मैं कायम हूँ |
@पाबला जी ने भी अपनी टिप्पणी में यही बात कही है !
हटाएंवाणी जी,मैं यहाँ पर पोस्ट के लेबल पर ही कुछ कह सकता हूँ,किसी टिप्पणीकार के मंतव्य पर कहना मेरे लिए उचित नहीं है.हो सकता है आप पाबलाजी और अनूप जी के आपसी रिश्तों के बारे में मुझसे बेहतर जानती हों !
मेरी किस टिप्पणी में आपको पाबलाजी और अनुपजी के रिश्तों की गंध आ गाई?? मेरा मतलब उनकी टिप्पणी में चिट्ठाचर्चा पर डीलिट की गयी टिप्पणियों की ओर किया गया इशारा है .
हटाएंजाने दीजिए वाणी जी
हटाएंसोते हुए को जगाना आसान है, सोने का बहाना करने वालों को जगाना बहुत मुश्किल है
अगर पहले ही उनकी बात को कोट करके कह दिया जाता तो ज्यादा अच्छा होता.अभी भी उस मसले पर हमें कुछ नहीं कहना जिससे मैं अनजान हूँ.
हटाएं... पोस्ट के लेबल पर ही कुछ कह सकता हूँ,किसी टिप्पणीकार के मंतव्य पर कहना मेरे लिए उचित नहीं है
हटाएंहा हा हा
गज़ब है सर जी, आपका कथन और टिप्पणियों पर आपके प्रत्युतर देख कर हँसी आ गई :-)
पाबला जी,हँसी तो हमको भी तीन दिन से लगातार आ रही है या यूँ कहिये कि बंद ही नहीं हो रही है.ऐसा तब होता है जब 'कहीं पे निगाहें,कहीं पे निशाना'वाला सीन चल रहा हो !
हटाएं@किसी टिप्पणीकार के मंतव्य पर कहना मेरे लिए उचित नहीं है
इस पर इत्ता ही कहूँगा कि आपसी रिश्तों की ठंडक को टीप से गरमाने का मेरा उद्देश्य नहीं था!
...अब शिल्पाजी और वाणी जी को ही देख लीजिए,इन लोगों का मुख्य उद्देश्य था कि इस तरह की प्रवृत्ति ठीक नहीं है,पर मामला धीरे-धीरे 'व्यक्तिगत' हुआ जाता है!
समूह एक व्यक्ति से शुरू होकर ही बनता है , इसलिए कई व्यक्तिगत बातें मिलकर सामूहिक हो जाती है . उदाहरण एक व्यक्ति से शुरू होता है , इसे व्यक्तिगत मान लेना समझ का फेर है .
हटाएं@ उदाहरण एक व्यक्ति से शुरू होता है , इसे व्यक्तिगत मान लेना समझ का फेर है
हटाएंsatya vachan vani ji :)
my previous comment is probably in spam
पहली बार आया हूँ ब्लौग-जगत में,आप सबसे मिलकर अच्छा लगा !
जवाब देंहटाएंखुरपेंचिया शब्द बहुत पसंद आया.
जवाब देंहटाएंघुघूतीबासूती
संतोष जी ,
जवाब देंहटाएंआपने हमें कोट किया है , तो दो शब्द हम भी कहते चलें , अरविन्द जी के हवाले से खबर थी कि ज्ञान विज्ञान वर्डप्रेस का ब्लाग है सो उनको सुझाव दे डाला ! अब चूंकि अनूप जी ने उसे ब्लागस्पाट से जोड़ कर बताया है और कहा है कि उसमें पोस्ट फिर से लिखना शुरू की जा सकती हैं , तो फिर अरविन्द जी के लिए हमारे सुझाव में निम्नानुसार संशोधन पढ़े ...
"मृत हो चुके वर्डप्रेस" के स्थान पर "निष्क्रिय पड़े ब्लागस्पाट" पढ़ा जाये !
Sir ji hamne to abhi bahut kuch samjhna hai blogjagat ke bare me....
जवाब देंहटाएंपुनः एक स्पष्टीकरण -अनूप शुक्ल जी ने जो लिंक दिया है वह नीचे है जिसमें ज्ञान विज्ञान ब्लॉग को वर्डप्रेस पर मूव होना बताया गया है -
जवाब देंहटाएंhttp://vigyaan.blogspot.in/
यहाँ पहुँचिये तो ब्लॉग को डिलीट करना बताया गया है
मगर फिर भी अनूप जी अपनी ही बात दोजे हुए हैं ...
और महराज आपकी तो इस पोस्ट से ब्लागजगत में बाकायदा मुसलमानी हो गयी
मुबारक हो !
आपको पांच साल कुछ महीने हो गये ब्लॉगिंग करते हुये लेकिन ब्लॉग के बारे में जानकारी शायद उतनी है जितनी विज्ञान के बारे में। मतलब अब आपको वैज्ञानिक चेतना संपन्न ब्लॉगर के साथ ब्लॉग चेतना संपन्न वैज्ञानिक भी कहा जा सकता है। :)
हटाएंमैंने लिखा था:
१. ज्ञान-विज्ञान जो ब्लॉग वर्डप्रेस पर नहीं है ब्लॉगस्पाट पर है। वह मरा भी नहीं है। कभी भी उसमें फ़िर से पोस्टें शुरु हो सकती हैं।
अली जी ने इसके बाद अपनी पहले की टिपपणी में संसोधन भी जारी किया:
"मृत हो चुके वर्डप्रेस" के स्थान पर "निष्क्रिय पड़े ब्लागस्पाट" पढ़ा जाये !
लेकिन आप अपना ही बाजा बजाये जा रहे हैं। देखिये ज्ञान-विज्ञान ब्लॉग पर नयी पोस्ट:
ए. टी.एम. मतलब पैसा निकालने की मशीन
इतनी शानदार जानदार बहस-
जवाब देंहटाएंप्रवास पर था -
हाजिरी लगा रहा हूँ -
सुरबाला ही धर सके, सर पर आला फूल |
खुर वाला खुरपेंच से, झोंके अंखियन धूल |
झोंके अंखियन धूल, हजारों रची कुंडली |
आलोचक हैं मूक, दीखती नहीं मंडली |
अहमक भाव अनूप, अहम् का पीकर हाला |
लांछित करके लेख, पूजता है सुरबाला ||
खुरपेंच पे बढ़िया खुरपेंच :)
जवाब देंहटाएं@@अनूप शुक्ल
जवाब देंहटाएंवैज्ञानिक चेतना संपन्न व्यक्ति धूर्त नहीं होता -आप जिस ब्लागस्पाट ब्लॉग के बारे में बार बार
अपनी बात पर अड़े हुए हैं वहां साफ़ लिखा हुआ है कि वह वर्डप्रेस पर चला गया है ..वहां पहुँचिये तो
यह वहां से डिलीट होना बताया गया है ..
अब भी ब्लागस्पाट पर बिना अपडेट हुए पड़ा है .
इसमें ऐसी कौन सी बात है जिसके लिए वैज्ञानिक चेतना सम्पन्नता की बात कही जाय :)
बात वही है मनुष्य अपनी फितरत से बाज नहीं आता ..
आप क्या फ़तवा देनें या साबित करने की कोशिश में लगे हैं ?
आपने अपनी उपाधि को सचमुच सार्थक कर दिया है !
ए. टी.एम. मतलब पैसा निकालने की मशीन
जवाब देंहटाएंमंगलवार, जून 26, २०१२
प्रेषक: अनूप शुक्ल समय: 2:12 पूर्वाह्न
अपनी बात साबित करने के लिए यह धूर्तता भरा तरीका निकला आपने ?
खुद ही पोस्ट प्रेषित कर दी अपडेट पोस्ट दिखाने के लिए
एक वैज्ञानिक चेतना संपन्न व्यक्ति और एक धूर्त व्यग्कार का यही फर्क है !
और यही है आपका असली चेहरा ?
मूर्ख किसे बना रहे हो?
अपने खूनी दबाब (BP) के शिकंजे फ़ंसी धन्य है वैज्ञानिक चेतना। समझना भी नहीं चाहती
हटाएंइस बारे में टिप्पणियां देखिये वैज्ञानिक जी।
ब्लॉगस्पॉट पर ज्ञान-विज्ञान चिट्ठा है।
वह वर्डप्रेस पर गया इसका मतलब थोड़ी है कि ब्लॉगस्पॉट वाले का टेंटुआ दबा गया।
वर्डप्रेस पर अपडेट नही है तो इसका मतलब थोड़ी कि ब्लॉगस्पाट मर गया। ब्लॉग स्पॉट पर ज्ञान-विज्ञान ब्लॉग सामूहिक ब्लॉग है जिसका मैं भी एक सदस्य हूं -तब से जब न साई ब्लॉग (जिसके सबसे पहला विज्ञान ब्लॉग कहने की बात से यह चर्चा शुरु हुई) पैदा हुआ था न उससे जुड़े कोई अन्य ब्लॉग।
यही बात मैंने पहले भी कही- १. ज्ञान-विज्ञान जो ब्लॉग वर्डप्रेस पर नहीं है ब्लॉगस्पाट पर है। वह मरा भी नहीं है। कभी भी उसमें फ़िर से पोस्टें शुरु हो सकती हैं।
उस पर आप कहते हैं-http://vigyaan.blogspot.in/
यहाँ पहुँचिये तो ब्लॉग को डिलीट करना बताया गया है
मगर फिर भी अनूप जी अपनी ही बात दोजे हुए हैं ...
इस पर मैंने उसे अपडेट करके एक ठो पोस्ट डाली। उसके बारे में बताया।
इस पर आप लिखते हैं:
एक वैज्ञानिक चेतना संपन्न व्यक्ति और एक धूर्त व्यग्कार का यही फर्क है !
और यही है आपका असली चेहरा ?
मूर्ख किसे बना रहे हो?
ये कैसी वैज्ञानिक चेतना है जो अपनी समझ के आगे कुछ समझना नहीं चाहती सिर्फ़ उखड़ना जानती है। :)
अनूप जी,अब मामले को व्यक्तिगत स्तर तक न ले जाएं.खुरपेंच खत्म करके अब खुराफात न शुरू कीजिये.
हटाएंकृपया हँसी-ठिठोली को इतना न खींचें कि मामला रंजिश का हो जाय !मिश्रजी से मैं यही निवेदन करूँगा कि वे इस तरह के उकसावे में न आकर शांत रहें !
...दोनों वरिष्ठ ब्लॉगर हैं,इस नाते ही सही बडप्पन दिखाएँ !
आभार
पहलौटेपन के चक्कर में और कितना संशोधित करवाइयेगा मेरी टिप्पणी को , भाई लोग ! चलिये एक संशोधन और सही :)
हटाएं"निष्क्रिय पड़े ब्लागस्पाट" के स्थान पर "पच्चीस जून तक निष्क्रिय पड़े ब्लागस्पाट" पढ़ा जाये
अभी भी कसर छोड़ दिए अली साहब, समय और लिखना चाहिए था:)
हटाएंसंजय जी,
हटाएंबहुत खींच तान के देखा था , वो (२५ जून) रात बारह बजे के बाद हौसला छोड़ बैठती है सो मैंने भी समय लिखने की हिम्मत नहीं करी :)
वाह ! यह भी खूब रही .....
जवाब देंहटाएंबहुत खूब...
@अनूप शुक्ल ,
जवाब देंहटाएंआईये आपको आज वैज्ञानिक चेतना के वारे में कुछ शिक्षित करते हैं -
१-वैज्ञानिक चेतना एक पद्धति का अनुसरण करती है जिसे वैज्ञानिक पद्धति या विज्ञान पद्धति कहते हैं .
२-इसके जरिये किसी संकल्पना/वक्तव्य को जांचा जाता है और निष्कर्ष पर पहुंचा जाता है .
आईये आपके दावे को पुनः इस पद्धति की कसौटी पर कसते हैं .
मैंने कहा था साईब्लाग विज्ञान संचार को समर्पित पहला ब्लॉग है
आपने दन से प्रतिवाद कर कहा कि साईब्लाग नहीं ज्ञान विज्ञान(http://vigyaan.blogspot.in/2010/06/moved-to-wordpress.html)पहला ब्लॉग है -तब आप यह बात छुपा लिए थे कि वह समूह ब्लॉग है न कि एकल और आप भी उसके सदस्य हैं .
आईये अब आपके इस दावे को विज्ञान की पद्धति पर देखा जाय (जो मैंने देख लिया था विज्ञान पद्धति से अनुशासित होने के कारण )
१-दिए लिंक पर पहुँचने पर सामने उद्घोषणा मिली ब्लॉग मुखिया की -
मंगलवार, जून 15, 2010
Moved to Wordpress
New location is on http://ashishuvaach.wordpress.com
प्रेषक: Ashish Garg समय: 12:39 पूर्वाह्न२-
२-स्पष्ट है ब्लॉग माडरेटर (मुखिया ) ने ब्लागस्पाट के ब्लॉग को नए लोकेशन पर जानी की बात कही है .हम नए लोकेशन पर गए .
३-यहाँ पहुँच कर यह घोषणा मिली -
ashishuvaach.wordpress.com is no longer available.
The authors have deleted this blog.
३-अब जब मैंने यह जानकारी दी तब आपका खुराफाती शातिर दिमाग जिसके कारण आप पूरे ब्लॉग जगत में सन्नाम हैं ,सक्रिय हो गया .
४-आपने ब्लॉग को जबरदस्ती जिन्दा दिखाने के लिए २५ जून को खुद एक पोस्ट ब्लागस्पाट पर डाली ....और यह साबित करने का प्रयास किया कि यह सक्रिय है .
निष्कर्ष : आपके दावे की पोल खुल गयी है .साई ब्लॉग एकल ब्लॉग है और अभी भी उसका पहला होना बरकरार है .
वैज्ञानिक मनसा व्यक्ति ऐसी धोखाधड़ी ,शातिरपना नहीं दिखाता.
कौन पहला है कौन बाद का मुद्दा यह नहीं है .विज्ञान के सारे ब्लॉग मुझे प्रिय हैं मगर ज्ञान विज्ञान तो महज विज्ञान का भी ब्लॉग नहीं लगता ..इसमें आप सरीखों ने कई 'ज्ञान' की बातें घुसेड़ी हैं -यह विशिष्ट ज्ञान =विज्ञान का ब्लॉग है भी नहीं ..
किसी ब्लॉगर को लेट डाउन करने के लिए अर्धसत्य और दुरभि संधियों ,धोखे आदि की जगाहन वैज्ञानिक चेतना संपन्न ब्लॉगर में नहीं होती -आप अपनी व्यंग चेतना बनाए रखिये .....और एक अच्छा व्यक्ति बनिए ..लेखक तो काम भर के हो गए हैं ..मगर खुरपेंच खुरापातों से बाज आईये !
डा.अरविन्द मिश्र ने कहा:
जवाब देंहटाएंहाँ जब वे मुझे वैज्ञानिक चेतना संपन्न कहते हैं तो मेरी सुलग जाती है :)
सवाल-जबाब के बहाने इस तथ्य की पुष्टि हो गयी। सही ही है कौन अपने बारे में झूठे आरोप सहन करेगा। यह आप का ही जिगरा था जो आप इतने दिन तक वैज्ञानिक चेतना संपन्नता का आरोप झेलते रहे।
अब इस मुद्दे पर हम कुछ न कहेंगे। आपको जो कहना हो कहिये। :)
सुन्दर परम्परा .
जवाब देंहटाएंखिंचाई करने की कोशिश अच्छी थी पर इसमें भी सारा आकर्षण अनूप शुकुल ही ले गये |धीरे धीरे टिप्पणी करने वाले भी अनूप जी के पक्ष में ही सॉफ्ट कोर्नर होते दिखे हो सकता है कि शायद ये फुरसतिया या खुरपेचिया का आतंक हो :) हाँ कुछ टिप्पणीकार उनके पक्ष में मजबूती से खड़े दिखाई दिये ,विपक्ष वाले तो अपनी टिप्पणी के अंत ताक आते आते पिघलने लगे बाद में संतोष जी भी बात बराबर करते दिखे | कुल मिला के बाज़ी फुरसतिया उर्फ खुरपेचिया के पक्ष में ही दिखी वो अपनी खिचाई से भी कमाई कर ले गये |
जवाब देंहटाएंखिंचाई करने की कोशिश अच्छी थी पर इसमें भी सारा आकर्षण अनूप शुकुल ही ले गये |धीरे धीरे टिप्पणी करने वाले भी अनूप जी के पक्ष में ही सॉफ्ट कोर्नर होते दिखे हो सकता है कि शायद ये फुरसतिया या खुरपेचिया का आतंक हो :) हाँ कुछ टिप्पणीकार उनके पक्ष में मजबूती से खड़े दिखाई दिये ,विपक्ष वाले तो अपनी टिप्पणी के अंत ताक आते आते पिघलने लगे बाद में संतोष जी भी बात बराबर करते दिखे | कुल मिला के बाज़ी फुरसतिया उर्फ खुरपेचिया के पक्ष में ही दिखी वो अपनी खिचाई से भी कमाई कर ले गये |
जवाब देंहटाएंआज इस पोस्
जवाब देंहटाएंट की टिप्पणियां फिर पढ़ीं.
जब पिछली बार यहां आया था तब से अब तक बहुत पानी बह गया ..