25 जून 2011

बहुत दिनों के बाद !

बहुत दिनों के बाद
सुनी मैंने दिल की आवाज़
एक बेचैनी सी कैसी
बज रहे अन्दर वाले साज !

बहुत दिनों के बाद
अघाकर सुना सुगम संगीत
लगा कोई है मेरा भी
इक प्यारा-सा मनमीत !

बहुत दिनों के बाद
डर रहा मैं सपनों से
विश्वास नहीं होता
दूर होता हूँ अपनों से !


बहुत दिनों के बाद
मिले हैं जीवन के कुछ अर्थ
जी रहा था जो अब तक
क्या गवाँ दिया यूँ व्यर्थ ?

बहुत दिनों के बाद
लगा अब भी है कुछ शेष
मेरे आगामी जीवन में
आयेंगे प्यारे सन्देश !


विशेष: बाबा नागार्जुन से माफ़ी सहित ! उनकी कविता,'बहुत दिनों के बाद ' से प्रेरित !

24 जून 2011

प्रार्थना


हे प्रभु मुझको पार लगा दो,इस जीवन के सागर से,
साभार :गूगल प्रभु
मैं तो कब से आस लगाये बैठा हूँ नट-नागर से !

हे प्रभु मुझको पार लगा दो इस जीवन के सागर से !!

तेरी ही महिमा से जग का,होता है संचालन,
ऊँच-नीच का भेद भुलाकर करते सबका पालन ,
कर दो कृपा-दृष्टि ऐ भगवन ,अभय-स्वरूपी वर से !

हे प्रभु मुझको पार लगा दो,इस जीवन के सागर से !!

 सारे जग में खेल है तेरा,तू है कुशल मदारी,
खाली झोली भर दो सबकी ,हे भोले-भंडारी.
मुक्ति दिला दो हे प्रलयंकर,इस शरीर- नश्वर से !

हे प्रभु मुझको पार लगा दो,इस जीवन के सागर से !!




विशेष:अकसर अकेले में गुनगुनाया करता हूँ !
रचना काल:०८/०९/१९९०,फतेहपुर

17 जून 2011

सरकार का प्रेस-नोट !

हम सभी देशवासियों को साफ़ सन्देश देना चाहते हैं.पहले भी कई मौकों पर अपनी प्रतिबद्धता हम जता चुके हैं और आज फिर दोहरा रहे हैं कि  इस देश में हम जैसा चाहेंगे वैसा ही होगा ! इन टुटपुंजिया अनशनों और ग्लैमरस-आंदोलनों से कुछ भी नहीं होने वाला है.हमने घाघ नेताओं,मठाधीशों को निपटा दिया तो आजकल के बाबा और महात्मा किस खेत की मूली हैं ? इसलिए 'जनलोक पाल' को हम अपने तरीके से, अपनी चाकरी में पालेंगे न कि अपने घोड़े की लगाम किसी और के हाथ में दे देंगे !

साभार:गूगल सरकार
पिछले कुछ दिनों से देश भर में अराजकता का माहौल बनाया जा रहा है.लोग कहते हैं कि मंहगाई बढ़ रही है पर रिकॉर्ड बोलते हैं कि लोग भूख से बिलकुल नहीं मर रहे हैं,बल्कि वे तो 'अनशन' से शौकिया ही मरने पर उतारू हैं !ये लोग वास्तव में ढोंगी हैं,जिनको मरना होता है वह चुपचाप 'सरक' लेता है,निगमानंद की तरह ! यूँ ढोल-नगाड़े बजाकर मजमा नहीं इकठ्ठा करता है.

देश के लोगों ने देखा है कि योग-गुरु की बत्ती  हमने कैसे बुझाई है? पहले तो उसको भाव दिखाकर अपने पक्ष में बयान दिलवा दिया कि प्रधानमंत्री और मुख्य-न्यायाधीश को लोकपाल के फंदे से बाहर रखा जाये बाद में जब वह हमसे सौदा न करके संघ की शरण में जाने लगा तो ऐसा दौड़ाया कि इस ज़िन्दगी में दोबारा दिल्ली में अनशन करने की नहीं सोचेगा .अब अन्ना नाम के महात्मा को भी सबक सिखाने की ज़रुरत है.उत्तर-भारत में अन्ना का मतलब 'छुट्टा-जानवर' से होता है ,पर हम उसको इतना छुट्टा नहीं होने देंगे कि वह बेकाबू हो जाये!हम दूसरों को अपने खूंटे में बाँधते हैं,न कि उसके खूंटे से बंधते हैं !इसमें अपनी  जात-बिरादरी,माफिया,कार्पोरेट घराने या बड़ी मछलियाँ अपवाद हैं !

कितनी बेतुकी मांगे इस 'नागरिक-समाज'  की तरफ से उठाई जा रही हैं? भला किसी देश के प्रधानमंत्री पर कोई उँगली उठाई जा सकती है!आखिर अपने देश की इज्ज़त का सवाल है.यह इस बात से भी प्रमाणित होता है की  कोई भी विपक्षी दल इस माँग का समर्थन नहीं कर रहा है.इन दलों ने बाबा की सेवा के बाद राजघाट में नाच-गाना प्रस्तुत किया ,पर महात्मा की इस माँग पर चुप्पी साध ली हैं.यह हमारे प्रजातंत्र की एकता और असलियत है.


अब हम किसी से डरनेवाले नहीं हैं और ये निश्चित कर लिया है कि  इस देश में कानून किसी को हाथ में नहीं लेने देंगे,वह साठ सालों से सुरक्षित हाथ में है.इन अनशनकारियों को ऐसा सबक सिखा देंगे कि ज़िन्दगी-भर अनशन के नाम से तौबा करेंगे !हम कोई भी कानून संसद में अपने लोगों के बीच आम-सहमति से बनाने की प्रक्रिया का पालन करेंगे,न कि किसी तम्बू या सड़क पर संविधान को बेपर्दा करेंगे !हम ऐसे मामलों पर त्वरित कारवाई करेंगे भले ही कसाब और अफजल को कोई छुडा ले जाए !

उम्मीद है कि  हमारी नसीहत को फरमान माना जायेगा,हमारे सभी हथियार पुलिस,नौकरशाही और माफिया भ्रष्टाचार और काले धन से सज्जित होकर अपने कर्तव्यों का निर्वहन पूर्ववत करते रहेंगे ! हम गाँधी के सपनों का भारत बनाकर दिखायेंगे ,इस काम में सरकार का हाथ आपके साथ है !

9 जून 2011

छात्रों में नशाखोरी !

आज हमारी चिंता का सबसे बड़ा विषय छात्रों में तेज़ी से बढ़ती नशाखोरी की प्रवृत्ति है।एक शिक्षक,अभिभावक या बतौर नागरिक हम सबकी यह ज़िम्मेदारी बनती है कि यह और विकराल रूप ले, इसे ख़त्म करने में पहल करनी चाहिए। आज हम किसी भी सरकारी स्कूल के बाहर यह नज़ारा खुले-आम देख सकते हैं कि छठी से लेकर बारहवीं कक्षा तक के बच्चे मजे से,बेखटके सिगरेट के छल्ले उड़ा रहे हैं,पान-मसाला चबा रहे हैं और मदिरालय के आस-पास मंडरा रहे हैं। यही काम पब्लिक स्कूलों के बच्चे भी करते हैं ,पर लुक -छुपकर।

हम यहाँ इस बात पर विचार कर सकते हैं कि ऐसा क्योंकर हो रहा है? इसके लिए हमारी कार्यपालिका यानी सरकार ही मुख्य रूप से दोषी मानी जाएगी। नैतिक शिक्षा का पाठ तो बच्चे कब का भूल चुके हैं क्योंकि उन्हें हमने विरासत में अश्लील टी.वी. सीरियल,लपलपाती महत्वाकांक्षाएं व पश्चिम की भोंड़ी नकल दी है। जहाँ अभिभावक स्कूलों के भरोसे बैठे हैं तो सरकारी नीति है कि बच्चों को डाट-फटकार न लगाई जाये! यहाँ स्पष्ट कर दूँ कि बच्चों को किसी प्रकार के शारीरिक या मानसिक प्रताड़ना की वक़ालत हरगिज़ नहीं की जा रही है,पर अगर माहौल अच्छा होगा तो बच्चे बिगड़ने वाली स्थिति तक पहुंचेंगे ही नहीं।

मैंने व्यक्तिगत स्तर पर कई बार कोशिश की कि  वे सिगरेट,पान-मसाला  और शराब जैसे व्यसनों से बचें  पर बच्चे इसे गंभीरता से लेते ही नहीं। कई बार तो शिक्षक को दिखाकर वे ऐसा करने का दुस्साहस करते हैं क्योंकि उन्हें पता है कि अध्यापक केवल एक सरकारी मुलाज़िम है और उसके हाथ बँधे हुए हैं. इसमें भी मैं उनका दोष रत्ती-भर भी नहीं मानता क्योंकि वे एक ऐसे मकड़जाल में फंसे हैं जिसके लिए सीधे-सीधे कोई जिम्मेदार नहीं है। सरकार है कि नियम तो बनाती है पर उनका पालन होना सुनिश्चित नहीं करती। यदि सर्वे किया जाये तो कई स्कूलों के आस-पास सिगरेट,पान-मसाले और शराब की दुकानें मिल जाएँगी ।

अभिभावक भी आज अध्यापकों को वह सम्मान नहीं देते जिससे उनके बच्चों के सामने उनकी गरिमा बरकरार रहे,फिर कैसे वे बच्चे उस 'मास्टर' को अपना शुभ-चिन्तक मानेंगे ?विद्यालयों में नैतिक-शिक्षा को पाठ्यक्रम का अंग बनाया जाना बहुत ज़रूरी है.अलग से इस पर ध्यान देने की ज़रूरत है . अगर सही मायनों में इस समस्या को देखा जाये तो समाधान निकल सकता है पर इसके लिए समाज,सरकार और संस्थाओं को एक-सुर में बोलना और काम करना होगा नहीं तो हमारी आने वाली पीढ़ी शारीरिक व मानसिक रूप से बीमार होगी और इस सबकी  ज़िम्मेदारी हम सबकी होगी !



संशोधित  रूप में पुनर्प्रकाशित,पहली बार (२१/१२/२००९)

4 जून 2011

लाल किले से बाबा लाइव !


भ्रष्टाचार के खिलाफ बिगुल बज चुका है,देशव्यापी अभियान चल रहा है,राम लीला मैदान  में देश के हर कोने से लोग इकठ्ठा हुए हैं,लगभग हर चैनल-वाला पूरी तरह से लहालोट है! इन सबका आखिरी निशाना लाल किला ही है ! लगता है देश में भ्रष्टाचार कहीं हैं भी ? इतने सारे लोग अगर इसके खिलाफ हैं तो हर कार्यालय,हर जगह ये कौन-से लोग हैं जो भ्रष्टाचारी हैं ?

सब अपने से बड़े भ्रष्टाचारी पर वार कर रहे हैं.न तो बाबा,न उनके चेले और न ही मीडिया इस मामले में पूरी तरह पाक-साफ है .मीडिया अपनी कमाई किस तरह से आज कर रहा  है,सबको पता है !आन्दोलन को कवर करने के लिए 'स्लॉट' बिक चुके हैं ,खूब स्पॉन्सर भी मिल गये हैं !

बहुत 'खुशी' का माहौल बनाया जा रहा है,ढोल-नगाड़े बजाकर इस आन्दोलन को 'अभिजात्य-टच ' दिया जा  रहा है .धरना-स्थल एक 'सेलेब्रिटी' बन गया है . यदि महात्मा गाँधी होते तो आज अपने इस हथियार पर उन्हें पुनर्विचार करने की ज़रूरत महसूस होती !

जिस प्रकार राम-मंदिर का मुद्दा ठीक था,पर उसके पीछे लोगों का उद्देश्य गलत, ठीक उसी प्रकार भ्रष्टाचार का मुद्दा ठीक है, पर इसके पीछे जुटे कुछ लोगों के उद्देश्य बिलकुल अलग हैं.लोगों के लिए केन्द्र का भ्रष्टाचार और कर्नाटक-जैसे राज्यों के भ्रष्टाचार अलग-अलग है !

स्वयं ईमानदार बनने से रोकने को किसने कहा है,पर इस बारे में उपदेश तो खूब मिल रहे हैं पर अमल करनेवाले बिरले ही हैं ! इसीलिए आज ईमानदारों  का टोटा है.जो एक-आध होते हैं उनको भी सरकारें सुरक्षा नहीं दे पातीं !आज जो सरकार के अंग नहीं हैं वे कल थे और कल होंगे पर उनकी प्राथमिकताएं बदल जाएँगी !

मेरी शुभकामनाएं  इस मुद्दे के साथ हैं ,पर यहाँ सारी कवायद काले-धन को सफ़ेद धन में बदलने की हो रही है !

1 जून 2011

यदि मैं नेता होता !

अच्छा होता ,अच्छा होता
भइया ,यदि मैं नेता होता !

मैं कुछ भी कहता,बक देता
साभार:गूगल बाबा
जो भी चाहे कर लेता,
कहे हुए की माफ़ी मिलती
ज़िम्मेदारी से बच जाता,
यारों, यदि मैं नेता होता।

लोक-लुभावन वादे करता
भड़काऊ भाषण दे लेता
शपथ-पत्र देकर बच जाता
फिर भी नाम कमा जाता,
लेकिन यदि मैं नेता होता !

पाँच साल तक वादे करता
मीठी-मीठी गोली देता
रोज़ी-रोटी भाड़ में जाए
धर्म-जाति की टॉनिक देता
जेल पहुँचना अच्छा होता ,
सबका यदि मैं नेता होता !

जेल,ज़मानत आदत पड़ती
सत्ता फिर भी हमको मिलती
जनता डरती,जेबें भरती
जिस भी दल में शामिल होता
ये सब कुछ 'कानूनी' होता
भइया,यदि मैं नेता होता !

टूजी -सूजी सब खा जाता,
'कामन-वेल्थ ' हड़प कर जाता,
काला-धन बाहर पहुँचाता ,
 हंसी-खुशी मैं तिहाड़ जाता,
'फर्स्ट-क्लास ' सुविधाएँ पाता,

भइया  ,यदि मैं नेता होता !



विशेष :संशोधित संस्करण (पहला १८-०४-२००९ )