26 अगस्त 2015

ग़ज़ल

कुछ जुमले थे कुछ नारे थे
वो ईश्वर के हरकारे थे।

सबका विकास, सब साथ रहें
लगते केवल जयकारे थे।

बज रहे रेडियो हर हफ्ते
मन-बात नहीं अंगारे थे।

बुलेट ट्रेन सरपट दौड़ी
कुचले किसान बेचारे थे।

बदले वक्त में वो भी बदले
जो आँखों के तारे थे।

©संतोष त्रिवेदी
२६ अगस्त २०१५