26 मार्च 2014

लहर जो सुनामी बन रही है !


बहुत ज़ोरदार लहर चल रही है। रास्ते में जो भी कूड़ा-करकट या उपयोगी-अनुपयोगी सामान मिल रहा है,वह सबको लपेट रही है। बड़े ही निर्विकार भाव की लहर है। अपने-पराये में कोई भेद नहीं कर रही है। सत्ता कितनी निर्मम और कितनी दयालु हो सकती है,यह लहर बता रही है। शिखर पर पहुँचने में कई निरीह कुचले जाते हैं पर इतिहास में उनका कोई नाम नहीं होता। इतिहास उन्हीं का लिखा जाता है जो शिखर पर काबिज होते हैं। अब यह महत्वपूर्ण नहीं है कि शीर्ष पर कैसे पहुँचा जाता है । इतिहास उन्हीं का गुणगान करता है जो अपनी तरह से नया इतिहास बनाते हैं। ऐसे में यह लहर इतिहास बना रही है। इससे बचना असम्भव है। हवा लहर का साथ बखूबी दे रही है।अंत तक लहर हवा हो जाए,बिना इसका विचार किये भी।

मठ के मठ उजड़ रहे हैं।दूसरे,तीसरे,चौथे सभी खम्भे ढह रहे हैं। कलम से क्रांति करने वालों के हाथों में  अब फूल खिल रहे हैं। लहर ने सबको प्रभावित किया है।देश सेवा के लिए अब जज्बे की नहीं उन्माद की ज़रूरत है।फ़िलहाल, दो ही विकल्प बचे हैं;या तो आप लहर के साथ बह जाइये या प्रतिरोध करके किनारे लग जाइये। लहर के साथ बहने वालों को विश्वास है कि वे ही असल किनारे तक पहुँचेंगे और उन्हें ही सीप के मोती मिलेंगे। अगर इस लहर में चूक गए तो ऐसे लोग वैतरणी पार करने का सुनहरा मौका गँवा देंगे। फ़िर उनको मोक्ष की प्राप्ति कैसे होगी ? इसलिए सबकी चाहत और नज़रें मोक्ष नगरी काशी पर ही टिकी हुई हैं।कुछ लोगों ने अभी तक जो पढ़ा था या दूसरों को समझाया था,वो सब अकारथ निकला। किताबी-उसूलों के बूते तो सारी ज़िन्दगी वृथा हो जायेगी। यह बात उनकी भोली आत्मा भी समझ गई है। अब जज्बात या दिल से नहीं,बल्कि दिमाग से सोचने का समय है। जो दिल,आत्मा,उसूल जैसी फ़िज़ूल चीजों को गले लगाये बैठे हैं,वे ही मुख्य धारा से बाहर हैं,किनारे हैं।

लहर की खासियत है कि वह अनियंत्रित होती है। उस पर कोई अनुशासन नहीं आयद होता। वह तेज हवाओं और आँधियों के साथ मिलकर कब सुनामी बन जाए ,पता नहीं। एक सामान्य लहर निर्माण या सृजन के लिए पथ-प्रशस्त कर सकती है पर सुनामी बन जाने पर केवल और केवल विध्वंस करती है। इसे बाहर से बैठकर देखने वाले सबसे पहले उसकी चपेट में आते हैं। फ़िलहाल,इस लहर से कबीर,बिस्मिल्ला और तुलसी बिलकुल किनारे लग गए हैं। बनारस में भूतभावन महादेव अपने लिए नया ठिकाना और नए भक्त खोज रहे हैं। भक्त अपने नए ईश्वर को पाकर आह्लादित हैं.उनको लगता है,उनके सारे दुःख हरने की क्षमता उसी में है.नया ईश्वर लहरों पर सवार होकर आ रहा है पर उसे अपने ही भक्तों पर भरोसा नहीं है,इसलिए उसने अपने बचने का विकल्प भी खोज लिया है.

लहर तगड़ी है फ़िर भी सुरक्षित कोना ढूँढ रही है.उसे पता है कि लहर से टकराने की हिम्मत किसी में नहीं है।यदि कोई ऐसी हिमाकत करता है तो उसे अंडे और पत्थर खाने का हुनर आना चाहिए।दाग से लड़ने के लिए दागी होना ज़रूरी है,इसलिए हवा में स्याह रंग भी ख़ूब उड़ाया जा रहा है।ऐसे में आम आदमी के पास लहर के साथ बह जाने,सुनामी में डूब जाने या कल्पना-समुद्र में गोता लगाने के अलावा कोई विकल्प नहीं है.फ़िलहाल,वह मैली हुई गंगा में दो-चार डुबकी लगाकर लहर के बीत जाने का इंतज़ार कर रहा है. 

27/03/2014 को जनवाणी में,जनसत्ता में 21/04/2014 को 

25 मार्च 2014

बेमौसम की बदरी !

सबने अब हुँकार भरी है,
वही देश का प्रहरी है||



अपनी अपनी विजय पताका,
अपनी अपनी गगरी है ||



फिर से आस लगाए हम,
कब हालत ये  सुधरी है ?



गाँव,शहर वाकिफ़ उनसे ,
वाकिफ़ काशी नगरी है ||



टीका,टोपी स्वाँग सभी,
स्वर्ग से काया उतरी है ||



पंडित,मुल्ला धरम बचाते,
इतनी पाप की गठरी है ||



छँट जायेगा जल्द कुहासा,
बेमौसम की बदरी है ||






16 मार्च 2014

चुनावी-होली !

लोटा उठाने के दिन आ गए हैं,
नोटा दबाने के दिन आ गए हैं ।
 

मोहब्बत जो दिल में रही आप से,
दुख है, भुलाने के दिन आ गए हैं ।
 

हुई बंद शहनाई बिस्मिल्ला खां की,
तुरही बजाने के दिन आ गए हैं ।

बहुत पढ़ लिए पैगामे-मोहब्बत,
दिलों को जलाने के दिन आ गए हैं ।

हर हर महादेव,भोले को भूले,
मोदी बनाने के दिन आ गए हैं ।

होली चुनावों के मौसम जो आई,
गर्दा उड़ाने के दिन आ गए हैं।

उनकी नजर से कब तक बचोगे,
पहाड़े पढ़ाने के दिन आ गए हैं।