28 फ़रवरी 2012

किताब जो बोलती है !


मुझे ले तो आये हो 
ढोकर एक बोरे की तरह,
पड़ी रहूँगी किसी कोने में 
घर में एक बुजुर्ग की तरह ! 
जावेद अख्तर जी से 'लावा' की हस्ताक्षरित प्रति लेते हुए
 (२७/०२/२०१२),पुस्तक-मेला ,दिल्ली 
मेरी बातें सुनोगे भी कभी
या भूल जाओगे 
किसी रिश्ते की तरह ?
मैं गुमसुम हो 
तकती रहूँगी तुम्हारी राह 
कभी तो सहलाओगे मुझे 
जुल्फों की तरह !
हमारे हर्फ़ न होंगे स्याह 
और न ही ज़र्द,
जिंदा रहेंगे अर्थ 
रूह के हिस्से की तरह !

23 फ़रवरी 2012

इक किरन मेरी नहीं !

चुभ रही हर बात हमको ,
कुछ नहीं परवाह उनको ,
मेरे हिस्से में अँधेरा ,
धूप की बौछार उनको !(१)

मौसम हुआ है फगुनई,
रुचियाँ बदलतीं नित नई,
हमने भी कोई चाह की,
तो कहानी बन गई ?(२)

हर ख़ुशी उनको मिले,
हार सब उनके गले,
हम लगाकर टुकटुकी
सिर्फ देखें,तो भले !(३)

अन्याय ये अब दूर हो,
पना तो कोई पूर  हो,
जाम खाली है मेरा,
तुम नशे में चूर हो ?(४)

अपनी तो आदत रही,
हमने चुप कर सब सही,
इतने सूरज रख लिए
इक किरन मेरी नहीं ! (५)




और यह रहा अपने अली साहब का जवाबी हमला !


एक मीठी सी चुभन
बस छांह में घर बार अपना
धूप की बौछार पाकर
जल उठे संसार उनका (१)


गर बदलती आरजूएं
अपना हर पल भी नया है 
चाहतों के सिलसिले से
हर कथा में ठन गई है (२)


हर खुशी उनको मिले तो
हर पराजय भी उन्हीं की
आपकी टुकटुक से यारब
उनका बंटाधार होगा (३)


अपने हिस्से की पिला के
होश उनके छीन,कहते
जाम मेरा रिक्त सा है
मुझसे ये अन्याय क्यों है (४)


अपनी तो आदत यही है
चुप रहो लड़वाओ उनको
सूर्य किरणे वो संभाले
हमको छाया ही भली है (५)


पराजय = हार


और ई ल्यो अपने बिहारी बाबू सलिल वर्माजी भी कूद पड़े !


उनकी हर रात 
दीवाली में गुज़र जाती थी
हमने इक बल्ब चुराया 
तो बुरा मान गए! |१|
/
बदले मौसम चाह बदली 
पर कहानी है वही
उनका गुस्सा है कि 
अपनी पार्टनर क्यूँ है नई!|२|
/
हर खुशी उनको मिले 
जीवन में उनके नूर है,
वे बेचारे कह रहे हैं
खट्टे सब अंगूर हैं.|३|
/
जाम सडकों पे औ ब्रेड पे
देखते हम रह गए,
और हमारे दिल के अरमां
आंसुओं में बह गए!|४|
/
इक किरण उम्मीद की
फूटी नहीं, थी बुज़दिली
हाथ रक्खे हाथ पर
वो दोस्त के संग फूट ली!|५|

20 फ़रवरी 2012

ईश्वर क्या है ?

ईश्वर से  मेरा सम्बन्ध
बहुत गहरा है,
खुला और अनौपचारिक !
मैं नास्तिक नहीं हूँ ,
पर मैं डरकर
या स्वार्थवश
नहीं चाहता  उसकी कृपा पाना !
मंदिरों में खूब गया हूँ
पर नहीं मांगी हैं दुआएं ,
किसी और के लिए अनिष्ट ,
अपने लिए सभी साधन !
उसे पूजने में
नहीं ढूँढा है  मैंने कोई यंत्र
या कोई उपाय ,
बस
बैठ जाता हूँ  उसके पास
बिलकुल एकाकार होकर
अपने अन्तरंग साथी की तरह
दुःख-सुख भी साझा करता हूँ ,
पर
अतिरिक्त लाभ की आकांक्षा किये बिना
मैं उसे अपने पास ,
अपने साथ
हमेशा पाता हूँ .
ईश्वर वह नहीं है
जो हमसे कुछ चाहे,
उसकी पूजा के बदले
हमें भी दे सके कुछ !
वह न स्वार्थी है और न अभिमानी !
ईश्वर न कभी शाप देता है
न कोरे आशीर्वाद .
वह तो हमारे साथ चलता है,
हमें सचेत करता है
पर हम हमेशा
बुरा होने पर उसको ज़िम्मेदार
और अच्छा होने पर अपनी पीठ थपथपाते हैं.
ईश्वर कभी प्रतिशोध नहीं करता ,
और न ही प्रतिक्रिया देता है,
वह समान भाव से
हमें दिखाता है रास्ता
सहता है हमारा क्रोध
बताता है यथार्थ
और
मुहर लगाता है हमारे कर्मों पर !
ऐसे ईश्वर को
मैं चाहता हूँ,
वह रहता है हमारी आत्मा में
नहीं मिलता है किसी शिवालय या देव-स्थान में,
हम सबके पास है
हमारा अपना ईश्वर
और हमारी तरह
वे सब ईश्वर अलग नहीं हैं.
वह एक ही है
उसका कोई धर्म,रंग या देश नहीं है.
ऐसे ईश्वर के लिए
अगर मैं आस्तिक हूँ तो हूँ !



17 फ़रवरी 2012

प्यार हुआ जाता हूँ !

तबीयत कुछ ठीक सी ,रहती नहीं अब ,
बगैर किसी मर्ज़ के,बीमार हुआ जाता हूँ !१!
साभार:गूगल बाबा 

खामोश हूँ,पर होश में हूँ मैं अभी,
ढहते हुए शहर में,मीनार हुआ जाता हूँ !२!

बुरे दिन भी ये ,कितने हसीन होते हैं,
जंगल से निकलके ,घर-बार हुआ जाता हूँ !३!

कोई समझ न पाए,दास्तां मेरी ,
धीरे-धीरे मैं भी ,ख़बरदार हुआ जाता हूँ !४!

अब दर्द को भुलाने की बात भूलकर,
ग़म के साथ रहके ,प्यार हुआ जाता हूँ !५!

13 फ़रवरी 2012

शहरयार को सलाम !


अभी थोड़ी देर पहले अचानक फेसबुक में काजल कुमार जी के हवाले से खबर दिखी जिसमें बताया गया कि हमारे आला दर्जे के शायर शहरयार जी नहीं रहे ! अचानक वातावरण में एक स्तब्धता-सी छा गयी. वे गंगा-जमुनी संस्कृति के आखिरी पीढ़ी के प्रतिनिधि शायर थे.उनका यूँ अचानक चले जाना हिंदी ,उर्दू दोनों के लिए एक बड़ा धक्का है.'सीने में जलन आँखों में तूफ़ान सा क्यूं है,इस शहर में हर शख्स परेशान सा क्यूं है " आदि न जाने ऐसे कितने नगमें हमें याद आयेंगे !



फिलहाल उनके बारे में संक्षिप्त जानकारी 


विकीपीडिया से साभार :


शहरयार का पूरा नाम कुंवर अख़लाक़ मुहम्मद ख़ान है, लेकिन इन्हें इनके तख़ल्लुस या उपनाम 'शहरयार' से ही पहचाना जाना जाता है. 1961 में उर्दू में स्नातकोत्तर डिग्री लेने के बाद उन्होंने 1966 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में उर्दू के लेक्चरर के तौर पर काम शुरू किया.
वह यहीं से उर्दू विभाग के अध्यक्ष के तौर पर सेवानिवृत्त भी हुए. शहरयार ने गमन और आहिस्ता- आहिस्ता आदि कुछ हिंदी फ़िल्मों में गीत लिखे लेकिन उन्हें सबसे ज़्यादा लोकप्रियता 1981 में बनी फ़िल्म 'उमराव जान' से मिली.
वर्ष 2008 के लिए 44 वें ज्ञानपीठ पुरस्कार से नवाजे गये शहरयार का जन्म 1936 में हुआ. बेहद जानकार और विद्वान शायर के तौर पर अपनी रचनाओं के जरिए वह स्व अनुभूतियों और खुद की कोशिश से आधुनिक वक्त की समस्याओं को समझने की कोशिश करते नजर आते हैं.
'इन आँखों की मस्ती के मस्ताने हज़ारों हैं, जुस्तजू जिस की थी उसको तो न पाया हमने, दिल चीज़ क्या है आप मेरी जान लीजिये, कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता. जैसे गीत लिख कर हिंदी फ़िल्म जगत में शहरयार बेहद लोकप्रिय हुये हैं.
इस वक्त की जदीद उर्दू शायरी को गढ़ने में अहम भूमिका निभाने वाले शहरयार को उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी पुरस्कार, साहित्य अकादमी पुरस्कार, दिल्ली उर्दू पुरस्कार और फ़िराक सम्मान सहित कई पुरस्कारों से नवाजा गया.

उन्हें ब्लॉगर-परिवार की ओर से हार्दिक श्रद्धांजलि !
आला गज़लकार शहरयार,हमसे बिछुड़ गया,
हिंदी,उर्दू दोनों बहनों का गुलशन उजड़ गया !
नायाब शायर शहरयार को,हमसे जुदा किया,
खुदा को भी किसी फ़रिश्ते की तलाश थी !

उनका है हर दिन बसंती !

आज से पहले न था
दिल में ,नहीं बाज़ार में ,
बौरा गया हर आदमी
अब अचानक प्यार में !!(१)
साभार: वेलेंटाइन डे

साल भर तकते रहे
हम निगाहे-यार में ,
एक भी कोना न पाए
उनके प्रेमागार में !!(२)

आज के दिन देख लें
हुस्न की तलवार में
धार कितनी है बची,
जाती हुई बहार में !!(३)

फूल कुछ मुरझा गए हैं
इंतज़ार-ए-यार में ,
एक दिन का प्रेम-उत्सव,
लुट गया व्यापार में !!(४)

उनका है हर दिन बसंती
हमें 'राशनिंग ' प्यार में ,
अच्छा है दिन एक बीते
बरस नहीं,मनुहार में !!(५)

10 फ़रवरी 2012

यादें :नई पुरानी !


जब भी देखता हूँ ,कोई सांवली-सी सूरत,
तुम्हारा ही अक्स ,उसमें नज़र आता है !


छुप-छुप के तुम्हें देखना ,यदि  वाक़ई ज़ुर्म है,
तो ये गुनाह हमने ,कई बार किया है !


देखा जब भी आपको ,नज़रें झुकी मिलीं,
जाने खफ़ा हैं मुझसे ,या फिर अदा है आपकी !

 

वो आये तो इक खुशनुमा झोंके की तरह,
गए तो आँधियों की तरह ,उजाड़कर मुझको !


तुमको न भुला पाया, क्यों नहीं अब तक,
मेरे पास न सही ,मेरे अहसास में तो हो !






विशेष : पहले के तीन शेर  तकरीबन पचीस-बरस पुराने हैं और  आखिरी के दो ताज़ा !

7 फ़रवरी 2012

उनका क़हर !

क़रीब न आते हैं,न बुलाते हैं हमें,
वे  ख़्वाब में  ही मिल जाते हैं हमें ! १!

बरसों से नहीं दिखी सूरत उनकी,
तस्वीर से ही दीद कराते हैं हमें !२!

उनके नूर से बेखुद हुआ जाता हूँ मैं ,
उँगलियों पे इस तरह नचाते  हैं हमें !३ !

उनकी राह को तकते ,ज़माना गुजरा,
वादों से आये रोज़ ,भरमाते हैं हमें !४!

शायद मेरी चाहत को ,समझ गए हैं वो ,
अनजान बनके  बारहा सताते हैं हमें !५ !



4 फ़रवरी 2012

बीमार ब्लॉगर क्या सोचता है ?

अभी पिछले सप्ताह मित्र की शादी के सिलसिले में दिल्ली से दूर अपने गाँव गया.जाते ही ऐसी सरदी लगी कि कल दिल्ली आकर भी उस बीमारी से पार नहीं पा सका हूँ.इस बीच अपने मित्रों से कटा रहा,लिखा-पढ़ी से दूर रहा,शादी का भी आनंद न ले पाया,पर फेसबुक के माध्यम से कुछ कहता रहा,चुनिन्दा देख लीजिए !

१)पड़ा हूँ बिस्तर में 
अपने गाँव में ,
बच्चों से दूर 
मेरे प्रेरणास्रोत निराला

माँ-बाप की छाँव में ,
ख़ुद बच्चा बनकर !

२)मैंने जो देखा मौत को इतने क़रीब से,
जिंदगी को रश्क हुआ ,उसके नसीब से !


और कल दिल्ली आकर :
१)बहुत थकान से हलकान हुआ जाता हूँ,
मुंद रही हैं आँखें,इंसान हुआ जाता हूँ !

२)आ गया हूँ घर में ,होश-ओ-हवास ग़ुम,
समय से पहले कितना ,बुढ़ा गया हूँ मैं !


इस बीच निराला जी के जीवन चरित को रुक-रुक कर पढ़ रहा हूँ.


थोड़ी देर पहले कुछ ऐसे ख़याल आये ,एक बीमार होते हुए ब्लॉगर को,वह आपसे बाँट रहा हूँ,सिरा ढूँढने की कोशिश न करना,मुझे तो मिला नहीं !!

गीत ख़ुशी के बहुत गा चुका,
फसल सुनहरी बहुत बो चुका,
अब  असली राग सुनाऊंगा,
बंज़र खेत दिखाऊँगा !! (१)

जीवन का वह मोड़ आ गया,
कुछ रिश्तों को छोड़ आ गया,
फिर से पतवार संभालूँगा,
नाव किनारे लाऊँगा  !!(२)

उजलेपन को जितना देखा,
पीछे थी श्यामल-सी रेखा,
अंधियारे को अपनाऊँगा,
अपने में ही खो जाऊँगा  !!(३)

मैंने दुःख को अपना माना,
तभी ठीक से  ख़ुद को जाना ,
रिश्तों से सुख में मिल लूँगा,
इसे अकेले ही सह लूँगा !!(४)

अच्छा या हो रहा बुरा,
समय कभी नहीं ठहरा,
कुछ समझौते भी कर लूँगा,
गाकर दर्द दवा कर लूँगा !!(५)