26 जुलाई 2013

धरतीपकड़ फ़िर मैदान में !


'कलयुग के भगवान तुम्हारी जय हो ! तुम्हारे पास चमचमाती कार है, आलीशान बंगला है ढेर सारा रूपया है ... लजीज व्यंजन खाते हो ... विदेशी शराब और अर्द्धनगन सुन्दरियां तुम्हारी शाम को हसीन बनाती है।तुम्हारी काबिलियत तुम्हारे पुरुषार्थ की पृष्ठभूमि है ....कौन है इस जग में भूप ,जो तुम्हारी नंगई को नंगा कर दे , जो तुम्हें नंगा करने की सोचेगा खुद नंगा हो जाएगा । आदमी सादा जीवन की विचारधारा का पैरोकार होता है इसलिए तुम्हें जी खोलकर लूटने का अधिकार होता है ,तुम्हारी महिमा अपरंपार है नेताओं ।इतना कहकर निर्दलीय जीने हवन कुंड में दुबारा फिर घी डालते हुए कहा -


ओम श्री मुद्राय नमः।।'
 
'सबकी अपनी-अपनी प्रॉब्लम है  भारत की गरीबी को सबसे बड़ी प्रॉब्लम बताने वाला एक डाकू टाईप बन्दा कल बता रहा था कि मैं और मेरे साथियों ने बड़ी मुश्किल से एक बस को लूटा , मगर हाय री हिन्दुस्तान की गरीबी पूरी बस से केवल अड़तीस हजार ही जुट पाए अब थानेदार को लूटने के एवज में पचास हजार कौन दे इसलिए मैंने सारे पैसे यात्रियों को लौटा दिए ...'
 
 
का करोगे रामभरोसे, राजनीति मथुरा  का पेड़ा है, आगरा का पेठा, लखनऊ की रबडी है, मनेर का खाजा । राजनीति है ही ससुरी ऐसी मिठाई कि जो चख लेता है  ऊ ससुरा चोर हो जाता है ।  अऊर त अऊर राजनीति में चोरी-चमारी करने से इज्जत बढ़ती है न कि घटती है   बोले निर्दलीय जी !
 
 
ये कुछ अंश हैं ,रवीन्द्र प्रभात जी के सद्यःप्रकाशित होने वाले व्यंग्य उपन्यास के ,जो हिंद-युग्म से प्रकाशित होकर आ रहा है .प्रकाशक ने बड़े पैमाने पर इसके वितरण की योजना बनाई है.जो भी अंश हमने पढ़े हैं,संकेत मिलहै कि इस उपन्यास का कथानक चाहे जैसा हो,भाषा और शिल्प के लिहाज़ से बड़ा मज़बूत और प्रभावी होगा.इसमें बोलचाल के लिए बेहद आत्मीय और सहज शैली अपनाई गई है.जिस तरह हम आपस में बातचीत करते हैं,ठीक उसी तरह.इस व्यंग्य उपन्यास में देशज शब्दों के जरिये तीखापन लाया गया है,जो पठनीयता को और आकर्षक बनाता है.इससे ज़्यादा और कहना अभी ठीक नहीं लगता पर व्यंग्य-लेखन के क्षेत्र में होने के कारण मुझे भी इसके आने का बेसब्री से इंतज़ार है.इसकी बुकिंग के जो शुरूआती रुझान मिले हैं,प्रकाशक के मुताबिक बहुत उत्साहजनक हैं.
 
हिंद-युग्म ने इस उपन्यास की प्री-बुकिंग के लिए कुछ साइटों को चुना है,जहाँ से यह रियायती दामों पर बुक कराई जा सकती है.इस पेपरबैक पुस्तक का मुद्रित मूल्य 95/- है पर इसे होमशॉप से महज़ 68/- में बुक कराया जा सकता है.एक और बात ,यह पैसा इसकी डिलीवरी के समय ही दिया जायेगा.
पाठकों की सुविधा और उनके आर्थिक हितों के लिए यहाँ पर केवल होमशॉप 18 का लिंक दिया जा रहा है,जहाँ पर यह सबसे कम दर (मात्र ६८ रूपये) में उपलब्ध है.
 
रवींद्र प्रभात जी को इस रचना-कर्म पर बधाई !