ये कैसा नीम सन्नाटा है,
मेरे आने के पहले ही
चला गया मुझे लाने वाला !
क़ातिलों के हाथ
ज़रा भी नहीं कांपे,
उन्हें अपने बच्चों के
चेहरे नहीं दिखे,
मेरी माँ की चीत्कार भी
नहीं सुन सके वो.
मेरे पिता कायर नहीं थे,
इस व्यवस्था से
अर्थ की सत्ता से
वे तालमेल नहीं बिठा पाए
उनके सपने बड़े नहीं थे,
पर अपने पांव पर
चलने भर का पाप किया था उनने.
उनके छोटे से सपने को भी
बड़े और सफ़ेद लिबास में खड़े लोगों ने
निगल लिया
कई लोगों के भविष्य में झोंक दी राख
खा गए अपने ही मांस के लोथड़े को
आ गया होगा सुकून
उनकी भूखी आत्माओं को,
भर गए होंगे
उनके खाली खप्पर लहू से !
ध्यान से देखेंगे तो पाएंगे ,
उस खून में एक बूँद मेरी
और बहुत-सारी
उनके बच्चों की हैं .
मैं प्रणाम करता हूँ अपने पिता को,
अपने जन्म से पूर्व ही !
मैं आऊँगा ज़रूर अपनी माँ के पास
उसी के आँचल में छुपूंगा
उसी की पीठ पर चढ़कर
बहुत दूर तक घूम आऊँगा !
पर माँ !
क्या बाहर की दुनिया ऐसी ही है ?
विशेष :आई पी एस नरेन्द्र कुमार का कल होली के दिन खनन-माफिया ने क़त्ल कर दिया.उनकी पत्नी के गर्भ में पल रहे बच्चे की आवाज़ है यह !
हमारी हार्दिक श्रद्धांजलि उन्हें !
मेरे आने के पहले ही
चला गया मुझे लाने वाला !
क़ातिलों के हाथ
ज़रा भी नहीं कांपे,
उन्हें अपने बच्चों के
चेहरे नहीं दिखे,
मेरी माँ की चीत्कार भी
नहीं सुन सके वो.
मेरे पिता कायर नहीं थे,
इस व्यवस्था से
अर्थ की सत्ता से
वे तालमेल नहीं बिठा पाए
उनके सपने बड़े नहीं थे,
पर अपने पांव पर
चलने भर का पाप किया था उनने.
उनके छोटे से सपने को भी
बड़े और सफ़ेद लिबास में खड़े लोगों ने
निगल लिया
कई लोगों के भविष्य में झोंक दी राख
खा गए अपने ही मांस के लोथड़े को
आ गया होगा सुकून
उनकी भूखी आत्माओं को,
भर गए होंगे
उनके खाली खप्पर लहू से !
ध्यान से देखेंगे तो पाएंगे ,
उस खून में एक बूँद मेरी
और बहुत-सारी
उनके बच्चों की हैं .
मैं प्रणाम करता हूँ अपने पिता को,
अपने जन्म से पूर्व ही !
मैं आऊँगा ज़रूर अपनी माँ के पास
उसी के आँचल में छुपूंगा
उसी की पीठ पर चढ़कर
बहुत दूर तक घूम आऊँगा !
पर माँ !
क्या बाहर की दुनिया ऐसी ही है ?
विशेष :आई पी एस नरेन्द्र कुमार का कल होली के दिन खनन-माफिया ने क़त्ल कर दिया.उनकी पत्नी के गर्भ में पल रहे बच्चे की आवाज़ है यह !
हमारी हार्दिक श्रद्धांजलि उन्हें !
अत्यंत दुखद। परिवार के लिए अभी कोई सांत्वना काम नहीं आएगी...
जवाब देंहटाएंमन दुखी हो गया, जान का कोई मोल नहीं रहा लगता है।
जवाब देंहटाएंपर माँ
जवाब देंहटाएंक्या बाहर की दुनिया ऐसी ही है ?
एक बहुत दुखद घटना,नमन...ऐसे देश के सपूतों को...
RESENT POST...फुहार...फागुन...
दुखद है....
जवाब देंहटाएंगन्दी राजनीति क्या नतीजा है............
आपकी रचना सच्ची श्रद्धांजलि है
शुक्रिया..
सादर.
बेहद दुखद .
जवाब देंहटाएंफ़र्ज़ की राह पर चलने वालों को कदम कदम पर खतरों का सामना करना पड़ता है . यह हमारी व्यवस्था का दोष है .
मार्मिक !कोई हथियार से मारता है ,कोई शब्दों से ... कुछ लोगो का जन्म मानवता को शर्मसार करने के लिए ही होता है , कुछ का अमर हो जाने के लिए ...
जवाब देंहटाएंदर्दनाक !
ह्रदय को झकझोर देने वाला मासूम प्रश्न..
जवाब देंहटाएंमाँ! क्या बाहर की दुनियाँ ऐसी ही है?
इस प्रश्न का ज़वाब सिर्फ एक अभागी माँ को नहीं, बाहर की दुनियाँ में रहने वाले हर एक शख्श को देर सबेर देना होगा। तय करना पड़ेगा कि हमारी दुनियाँ कैसी हो! साफ करनी होगी अपने हिस्से की जमीन, साफ करना होगा अपने हिस्से की आबोहवा। देर सबेर.. हरेक के घर में आने वाला है एक बच्चा जो पूछेगा यही मासूम प्रश्न...
क्या बाहर की दुनियाँ ऐसी ही है?
शख्स
हटाएंइष्ट-मित्र परिवार को, सहनशक्ति दे राम ।
जवाब देंहटाएंरावण-कुल का नाश हो, होवे काम तमाम ।
होवे काम तमाम, अजन्मे दे दे माफ़ी ।
अमर पिता का नाम, बढ़ाना आगे काफी ।
इस दुनिया का हाल, राम जी अच्छा करिए ।
नव-आगन्तुक बाल, हाथ उसके सिर धरिये
दिनेश की टिप्पणी : आपका लिंक
dineshkidillagi.blogspot.com
होली है होलो हुलस, हुल्लड़ हुन हुल्लास।
कामयाब काया किलक, होय पूर्ण सब आस ।।
अत्यंत दुखद...आज की व्यवस्था में मनुष्य की जान की कोई कीमत नहीं रही..बहुत मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंदोष हमारा है
जवाब देंहटाएंरोष हमारा है
कोष के लालच में
वीभत्स नजारा है।
sahmat hain |
हटाएंबहुत ही दुखद और अफसोसजनक घटना है .... ये बदल पायेगा यहाँ...?
जवाब देंहटाएंमर्मस्पर्शी भाव लिए पंक्तियाँ
दुखद घटना ... जो ईमानदारी से काम करता है उसे ही कीमत चुकनी पड़ती है ऐसी व्यवस्था है ...आपकी रचना ने मन को झकझोर कर रख दिया है ...
जवाब देंहटाएंdil ko hila gyi ghatna bhi, or kavita bhi !!!
जवाब देंहटाएंबहुत दुखी हूं मैं भी यह सब सोचकर!
जवाब देंहटाएंजो हुआ, बहुत ग़लत हुआ! हार्दिक श्रद्धांजलि!
जवाब देंहटाएं...इस घटना के लिए दोषी कौन है ? व्यवस्था और भ्रष्टाचार !
जवाब देंहटाएंयाद आ गयी वह प्रार्थना जो एक गर्भस्थ शिशु ने अपनी माँ से की थी कि अगर ऐसी ही है दुनिया तो मुझे जन्म क्यूँ दिया.. यह तो अजन्मे शिह्सू की पुकार है..शायर कहता है
जवाब देंहटाएंमेरे दिल के किसी कोने में इक मासूम सा बच्चा
बड़ों की देखकर दुनिया बड़ा होने से डरता है!!
wah trivedi ji sunder kavita ban padi hai ghatna afsosjanak va sharmnak hai par kavita bahut achchhi .....
जवाब देंहटाएंअत्यंत दुखद ओर निंदनीय घटना...
जवाब देंहटाएंसशक्त लेखन...
सादर श्रद्धांजली.
घटना की तरह ही झझकोर देनेवाली रचना।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंहौलनाक ! उन्हें श्रृद्धांजलि !
हटाएंपहले भी इस घटना से मन भारी था , आपकी रचना को पढकर तो बहुत ही दुःख हो रहा है
जवाब देंहटाएंकुछ प्रतिक्रियाएं फेसबुक पर भी...
जवाब देंहटाएंhttp://www.facebook.com/santosh.trivedi/posts/3419785219162
behad marmik.....samyik kavita......
जवाब देंहटाएंमैं प्रणाम करता हूँ अपने पिता को,
जवाब देंहटाएंअपने जन्म से पूर्व ही !bahut hi marmik prastuti santosh jee.
कुछ प्रतिक्रियाएं यहाँ भी..!
जवाब देंहटाएंhttp://baiswari.jagranjunction.com/2012/03/11/%E0%A4%8F%E0%A4%95-%E0%A4%85%E0%A4%9C%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A5%87-%E0%A4%AC%E0%A4%9A%E0%A5%8D%E0%A4%9A%E0%A5%87-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%9A%E0%A5%80%E0%A4%96/
इस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - बंद करो बक बक - ब्लॉग बुलेटिन
जवाब देंहटाएंजबाब तो देना ही होगा.........दुखद व शर्मनाक घटना
जवाब देंहटाएंहार्दिक श्रद्धांजलि!
जवाब देंहटाएं.....बहुत ही अफसोसजनक घटना है
उस अजन्मे शिशु के नजरिये से इस घटना को देखना अलग अनुभव है ...ईसा अनुभव जिसे कोई देखना ना चाहेगा .....पर नियति और यथार्थ से मुँह मोड़ कैसे सकते हैं ......उसके इस अजन्मे अनुभव को दिशा देने की बारी अब उसकी माँ , रिश्तेदार , समाज और हम सबकी है!
जवाब देंहटाएं