23 नवंबर 2010

पढ़ाई का मतलब !

पढ़ाई हमेशा से समाज में चर्चा का विषय रही  है.सरकार,अभिभावक ,शिक्षक और छात्र इसे अपने-अपने ढंग से व्याख्यायित करते रहे हैं.सरकार के लिए जहाँ यह  अन्य मदों की तरह एक मद है,अभिभावकों के लिए दायित्व है,शिक्षकों के लिए एक पेशा है वहीँ छात्रों के लिए एक ज़रूरी क्रिया-कर्म !


दर-असल,आज की पढ़ाई ज्ञान व बोध केन्द्रित न होकर परिणाम व  रोज़गार-केन्द्रित हो गई है . यही वज़ह है कि विद्यालयों में पढ़ाई का माहौल नदारद-सा है.सरकार कागज़ों में परिणाम को लेकर चिंतित है तो अभिभावक बच्चों  के रोज़गार को लेकर. शिक्षक अपना  नौकरीय दायित्व निभा रहे हैं वहीँ छात्र  'रिमोट-चालित' से आगे बढ़ते चले जा रहे हैं !शिक्षा  के बाक़ी घटकों के बारे में अपनी राय गलत भी हो सकती है,पर कम-से-कम एक शिक्षक के दृष्टिकोण  से ज़रूर कुछ कहना चाहूँगा !


लगभग ६०-७० की संख्या वाली कक्षाओं में अव्वल तो अपनी बात रखने का समय ही बमुश्किल मिल पाता है.फिर भी,बच्चों का 'मूड' यदि ठीक होता है तो  उन्हें यही बताता हूँ कि इस पढ़ाई  का उद्देश्य महज़ परीक्षा पास करना ही नहीं है,इनमें जो लिखा है वह हमारे व्यावहारिक जीवन के लिए भी ज़रूरी है.परीक्षा पास करना  या न कर पाना  ज्ञान या बोध प्राप्त करने से बिलकुल अलग है.आज के प्रतिस्पर्धी माहौल को देखते हुए भी उन्हें पढ़ाई के प्रति एक नियमित योजना बनानी होगी.लेकिन ,अगर वे ऐसा नहीं करते हैं तब भी हमीं दोषी हैं क्योंकि वे तो ठहरे 'नाबालिग़'!


छात्रों को अकसर नशे की प्रवृत्ति  से भी दूर रहने के लिए कहता हूँ,हालाँकि  अपेक्षाएं ज़्यादा नहीं रखता. अधिकतर बच्चे किशोरावस्था में विपरीत-लिंग के प्रति आकर्षित  रहते हैं और इसमें कलियुग के नए 'यंत्र'(मोबाइल)  का ख़ासा दुरूपयोग हो रहा है ! गाहे-बगाहे ,बड़े बच्चों से किशोरावस्था की इस समस्या के बारे में भी बातें हो जाती हैं.सबसे बड़ी चिंता  बच्चों का धड़ल्ले से सिगरेट पीना है और इसे वे विद्यालय के अंदर व बाहर बेख़ौफ़ होके अंज़ाम देते  हैं ! कई बार शिक्षक चाहकर भी कुछ कर नहीं पाते क्योंकि उन्हें नियम-कायदों का हवाला दिया जाता है. क्या अभिभावकों की तरह शिक्षक उन्हें  डांट   भी नहीं सकता ? क्या एक तरह से वह उनका अभिभावक  भी नहीं है ?  

आज,शिक्षा के बढ़ते महत्त्व को देखते हुए इस बात की ज़रुरत अधिक है कि वर्तमान  पद्धति ज़मीनी हकीक़त से कितनी दूर या पास है ? यह तभी हो सकता है जब इसके सभी घटकों का दृष्टिकोण सकारात्मक और रचनात्मक हो !!

18 नवंबर 2010

मोबाइल का महँगा शौक !

कहते हैं समय के अनुसार व्यक्ति की रुचियाँ बदलती हैं,पर ये बदलाव कई बार बड़ा भारी पड़ता है !अपन को पहले लिखने-पढ़ने का शौक था पर यह कभी इतना कष्टप्रद नहीं रहा जितना इस इलेक्ट्रानिक  युग की चकाचौंध में संचार के सबसे आकर्षक व प्रभावी हथियार मोबाइल के साथ हो रहा है.

पिछले दो सालों में हमने क़रीब पाँच फ़ोन बदल लिए हैं.पहले मोटोरोला का L-9 ,फिर E -6  और उसके बाद नोकिया का 5800 फोन लिया पर सबसे ज़्यादा रुलाया नोकिया के इसी फोन ने . ख़रीदने के सात महीने के अन्दर ही इसके बार-बार हैंग और ऑन-ऑफ हो जाने से तंग आ गया और आधी क़ीमत पर  उसे हटा दिया . स्पाइस का MI-300 लेने से पहले रोज़ इन्टरनेट पर नए और मन-मुताबिक फ़ीचर  वाले फ़ोन की तलाश में खूब लगा था,पर अचानक कम बजट में ज़्यादा फ़ीचर के लालच में मैंने इसे लिया और लेते ही मुझे अपनी गलती का एहसास हुआ.फ़ोन में जो वेब-सर्फिंग,कैमरा ,बैटरी ,रफ़्तार,लुक आदि चाहिए था,वह सब नदारद था.

बहरहाल,मैंने विक्रेता से बात की तो उसने बमुश्किल मेरी परेशानी को देखते हुए उसे वापस कराने का आश्वासन दिया और मैंने भी झट से वह फ़ोन वापस दे दिया. तीन दिन के अन्दर मुझे 'क्रेडिट-नोट' मिलना था जिसकी बिना पर मैं दूसरा फ़ोन ले सकता था,पर हाय मेरी किस्मत ! वह विक्रेता दुर्घटना में ऐसा घायल हुआ कि पूरे तीस दिन मुझे भारी यंत्रणा में गुज़ारने पड़े ! इस बीच में मैं लगातार नेट पर ऐसा फ़ोन ढूँढ रहा था, जिसमें सारे आधुनिक फ़ीचर हों,साथ ही हिंदी का समर्थन भी,पर नोकिया के सिम्बियन फ़ोन के अलावा मुझे ऐसे फ़ीचर-युक्त फ़ोन के दीदार कहीं नहीं हुए.

सैमसंग के वेव पर मेरी नज़र थी पर इसमें बाडा का ऑपरेटिंग सिस्टम था,मोटोरोला का बैक-फ्लिप andriod     के पुराने वर्जन  और ग्राहक-सेवा की वज़ह से नापसंद था और सोनी का xperia -10 भी इसी तरह की कमियों के चलते मेरी सूची से हट गया.

अंत तक काफी सोच-विचार करके और माथा पकड़ के मैंने सैमसंग का गैलेक्सी एस फ़ोन ले लिया जो मेरी ज़ेब के लिए तो भारी था ही घर में श्रीमती जी भी हमारे ऊपर  अपना नजला गिराने वाली थीं,पर खुदा का शुक्र कि  उन्होंने यह कहकर हमें बख्श  दिया कि तुमसे कहना क्या,तुम्हें  जो करना है वही करोगे! मैं भी उन्हें और शायद अपने को भी यह कहकर समझाता रहा कि भाई !लोग तो अपनी बीमारी में कितना खर्च कर देते हैं और यदि मैंने 28000 रूपये  देकर अपनी बीमारी से निज़ात पा ली है तो बुरा क्या  है ?

नए फ़ोन को लेकर खुश भी हूँ,हिंदी फिर भी हाथ नहीं आई,बजट अलग से बिगड़ गया,फिर भी अगर हमारी नए-नए फ़ोन की तलब शांत हो गयी हो तो  बड़ा नेक काम होगा,पर यह शायद मैं भी नहीं जानता !

8 नवंबर 2010

ओबामा जी आए हैं !

ओबामा जी आए हैं,ओबामा जी आए हैं ,
हम सब उनको  ताक रहे हैं
हमरी  ख़ातिर  का लाए हैं ?

पर ऊ तो निकले बड़े शिकारी
आए करने हमको ख़ाली,
हमको तो झुनझुना दे दिया
सरका दी पड़ोस में थाली !

ओबामा जी आए हैं,ओबामा जी आए हैं !

उनके स्वागत में तो हमने
सारी 'लाल-दरी' बिछवा  दी,
बदले में कोरे वादे पाए,
ख़ुद कर ली अपनी बर्बादी !

कब तक मुँह ताकेंगे उनका
स्वाभिमान कब सीखेंगे ?
घिसट-घिसट कर चलना छोड़ें
तभी विश्व के साथ बढ़ेंगे !

ओबामा जी आए हैं,ओबामा जी आए हैं !