मेरे प्यारे भाई बहनों
मैं यहाँ आकर भी जीवित हूँ,जैसी मेरी इच्छा थी ।अब आप लोग भी अपने दैनिक
कार्यों में व्यस्त हो गए होंगे।मैं आप सबको अपने प्रति बे-इन्तहा प्यार दिखाने के
लिए आभार व्यक्त करती हूँ।गाँव से आई एक अकेली लड़की को पूरी दुनिया और देश का जो प्यार
मिला, वह हमारे जीने से
ज़्यादा महत्वपूर्ण है।मेरे मन में अब किसी के प्रति कोई विद्वेष या घृणा-भाव नहीं
है।मेरे नश्वर शरीर का मरना यदि किसी मरते हुए समाज को जिंदा करने में सहायक है
तो,ऐसी मौत के लिए मुझे फख्र है।जिन्होंने मेरे शरीर को नोचा-खसोटा,उनके लिए भी
मेरे मन में सहानुभूति है।वे जब तक जियेंगे,हर पल मरेंगे ।हर क्षण वो मेरी आँखों
की चमक महसूस करेंगे।वे मुझे भूल न सकें इसके लिए मैं सूरज की हर किरण,हवा की हर
दस्तक के साथ,उनके आस-पास ही रहूँगी,झकझोरती रहूँगी ।
मुझे उन सबके परिवारों की भी बड़ी चिंता है।उन सबकी माँ-बहन-बेटियाँ कैसे
दूसरों से नज़रें मिलाती होंगी ? मैं जानती हूँ कि अभी हमारी बहनों के आँखों में
इतना पानी तो बचा होगा कि उसे वे उन अपनों पर उलीच सकें,जिनके आँखों की कोरें
बिलकुल सूख चुकी हैं।मुझे अपने माँ-बाप के अलावा आप सबसे आंसुओं का इतना सैलाब
मिला है कि मुझे नई ज़िंदगी मिल गई है।इसलिए आप सब मेरे न रहने का शोक न मनाएं वरन
अब सोते-से जग जाएँ।मेरे अकेले के जीने से कहीं ज़्यादा ज़रूरी है कि मेरी बाकी
बहनें चैन से रहें।शारीरिक रूप से तो मैं एक बार ही मरी हूँ,पर मैं चाहती हूँ कि उन्हें
रोज़-रोज़ मानसिक तौर पर न मरना पड़े।
मेरे साथ जो हुआ,इसकी मुझे कोई शिकायत नहीं है।इसी बहाने कई बातें साफ़ हो गईं।जिस
व्यवस्था में रहते हुए हम डरते रहे,मरते रहे,वह स्वयं डरी हुई और बड़ी कमज़ोर निकली।आप
लोगों ने जिस व्यवस्था को बनाये रखकर उससे अपनी रक्षा का भ्रम पाल लिया था,वह
चूर-चूर हो गया।मैंने देखा कि मुझसे हमदर्दी जताने आए लोगों पर यही व्यवस्था कहर
बनकर टूट पड़ी।इसके लिए उसके भंडार-गृह से आँसू गैस के गोले और लाठियाँ तुरंत बाहर निकल
आईं,जबकि आतताइयों के लिए इसी व्यवस्था को महीनों,सालों सोचना पड़ता है।मेरे साथ जो
हुआ ,उसके प्रतिकार को तो यह सरकार तत्पर नहीं दिखी,पर हाँ,मेरी ओर आने वाले सभी
रास्ते बंद कर दिए गए।आप सबने दिखा दिया कि डरी हुई व्यवस्था एक जागे हुए समाज को कभी
डरा नहीं सकती।
मैं तो एक प्रतीक मात्र थी।मुझे तो इस भौतिक शरीर को एक न एक दिन त्यागना ही
था,पर इस व्यवस्था के द्वारा मेरा कत्ल किया जाना बहुत कुछ उघाड़ गया है।उस दिन
किसी दामिनी के साथ नहीं,इस व्यवस्था के साथ बलात्कार हुआ था और लगातार हो रहा है।मैं
गौरवान्वित हूँ कि इस बात को सबके सामने लाने का जरिया मैं बनी।कुछ लोग यह कह रहे
हैं कि दामिनी मर गई है पर सच्चाई तो यह है कि उस दिन पूरे समाज की मौत हुई
थी,जिसे एक कांधा भी नसीब नहीं हुआ।दामिनी न तो पहले डरी और न बाद में।हाँ,मैंने
लाठी-गोलियों से लैस इस व्यवस्था को थर-थर काँपते ज़रूर देखा है।मुझे आप सबके
निश्छल प्रेम पर पूरा भरोसा है और यह भी कि इस मरे हुए समाज में प्राण फूंकने का
काम आप लोग ही कर सकते हैं।अब जब भी किसी बहन-बेटी के साथ कुछ गलत होता दिखे तो
मुझे याद कर लेना ।यह दामिनी हमेशा आपके दिलों में यूँ ही धधकती और समाज को
झिंझोड़ती रहेगी ।
हमारी ओर से ....
वह ज्योति थी
अँधेरे से इसलिए लड़ती रही
आखिर तक ज्वाल बन जलती रही,
वह है सभी ज़िन्दा शरीरों में
और हैवानों को जला देगी,
राख उसकी हड्डियों की
नरपिशाचों को गला देगी !
हमारी ओर से ....
वह ज्योति थी
अँधेरे से इसलिए लड़ती रही
आखिर तक ज्वाल बन जलती रही,
वह है सभी ज़िन्दा शरीरों में
और हैवानों को जला देगी,
राख उसकी हड्डियों की
नरपिशाचों को गला देगी !
मिनी इण्डिया जागता, सोया भारत देश |
जवाब देंहटाएंफैली मृग मारीचिका, भला करे आवेश |
भला करे आवेश, रेस नहिं लगा नाम हित |
लगी मर्म पर ठेस, जगाये रखिये यह नित |
करिए औरत मर्द, सुरक्षित दिवस यामिनी |
रक्षित नैतिक मूल्य, बचाए सदा दामिनी ||
...आभार कविवर !
जवाब देंहटाएंप्रतीक मात्र ही थी ... पर अलख जगा गई ... अब समाज का उसमें रहने वालों का कर्तव्य है इस अलख को जगाये रखना ...
जवाब देंहटाएंतुम हिन्दुस्तान को हमेशा याद आओगी दामिनी।
जवाब देंहटाएंएक आत्मा लाखों को झकझोर गयी, सोता आक्रोश जगा गयी।
जवाब देंहटाएंव्यवस्था को निष्ठुर होते देखा,अपनों पर कहर भी ढाते देखा !
जवाब देंहटाएंआक्रोशित समाज के आगे हार मानती व्यवस्था को भी देखा !!
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति मंगलवार के चर्चा मंच पर ।।
जवाब देंहटाएं...आभारी हूँ !
हटाएंभावनात्मक उद्बोधन....सुन्दर।
जवाब देंहटाएंसंदेश पर अमल कैसे हो, यह सोचना है।
जवाब देंहटाएंप्रभावी,
जवाब देंहटाएंशुभकामना,
जारी रहें !!
आर्यावर्त (समृद्ध भारत की आवाज)
kahte hain lekhak samaaj ko aaeena dikhate hain ...aapki post bhi yahi kar rahi hai ...
जवाब देंहटाएंयह दामिनी हमेशा आपके दिलों में यूँ ही धधकती और समाज को झिंझोड़ती रहेगी ।
जवाब देंहटाएंसच कहा आपने ....वो अलख कभी न बुझेगी ..
प्रभावी आलेख,,,संतोष जी,
जवाब देंहटाएंआज जरूरत पुनःदेश को,मिलकर एक जनून की,
फिर से लुट न पाए दामिनी,ऐसे सख्त क़ानून की!
रामराज्य आ जाए फिर से, नवनिर्माण जरूरी है,
आओ मिलकर जोर लगाये, बस थोड़ी सी दूरी है!
recent post: वह सुनयना थी,
बहुत भाव प्रवण और आंख खोलने वाला व्यक्तव्य -किन्तु इस पंक्ति से सहमत नहीं -
जवाब देंहटाएं"जिन्होंने मेरे शरीर को नोचा-खसोटा,उनके लिए भी मेरे मन में सहानुभूति है।"
दामिनी को एक आम लड़की ही रहने दो -उसकी अंतिम इच्छा थी आततायियों को जलाजला तड़पा कर मारने की -अपनी उदारता उस पर मत थोपिए !
...गुरूजी, उस वाक्य के आगे भी देखिए, अर्थ स्पष्ट हो जाएगा कि ऐसा क्यों कहा है !
हटाएंवह लड़की अमर रहेगी ....
जवाब देंहटाएंजोरदार! भावपूर्ण! विह्वल कर देने वाला आलेख।
जवाब देंहटाएंमन को उद्वेलित करते शब्द ..... यह आक्रोश जाया न हो
जवाब देंहटाएंरोज-रोज ही दामिनी, होती हैं हैरान।
जवाब देंहटाएंमृत्युदण्ड के मुस्तहक, हैं ऐसे हैवान।।
अगर आपको ऐतराज़ ना हो तो ये आलेख सृजक पत्रिका के लिये अपने फ़ोटो और संक्षिप्त परिचय के साथ मुझे मेल करें।
जवाब देंहटाएंrosered8flower@gmail.com
बेहद उम्दा आलेख्।
धन्यवाद ....परिचय और फोटो ब्लॉग पर मिल जाएगा ! आप ले सकते हैं ।
हटाएं
जवाब देंहटाएंVirendra Kumar SharmaJanuary 8, 2013 1:13 PM
एक सामूहिक अनुभूति को आपने स्वर दिया है .तदानुभूति हमें भी हुई है .दामिनी कंस के काल का भविष्य कथन सिद्ध होवे ये ज़ज्बा बना रहे लाठी भान्जू सरकार जागे फिल वक्त तो -
गूंगा राजा बहरी रानी ,
दिल्ली की अब यही कहानी .
D
दामिनी का अपनों के नाम सन्देश !
संतोष त्रिवेदी
बैसवारी baiswari
मिनी इण्डिया जागता, सोया भारत देश |
फैली मृग मारीचिका, भला करे आवेश |
भला करे आवेश, रेस नहिं लगा नाम हित |
लगी मर्म पर ठेस, जगाये रखिये यह नित |
करिए औरत मर्द, सुरक्षित दिवस यामिनी |
रक्षित नैतिक मूल्य, बचाए सदा दामिनी ||
...आभार आपका ।
हटाएंवह जो वहशियों का अंत तक विरोध करती रही ,उसके जाने के बाद देखना तो अब है कि वह देश के पौरुष की आँखें खोल सकी या नहीं !
जवाब देंहटाएंyou should NOT superimpose your thoughts and wishes on a dead girl and write them as if coming from her - it is as cruel as what those animals did to her .... the whole post is outrageous......
जवाब देंहटाएंhow can you , as a man , try to even feel things and speak on the behalf of rape victims never even giving them the dignity to feel their sorrow - make her into a tyagmayi devi and smoothly polish off the whole henios episode .... yuck
@@ मेरे साथ जो हुआ,इसकी मुझे कोई शिकायत नहीं है??? - WHO THE HELL ARE YOU TO SAY THAT ??
@@ मेरे नश्वर शरीर का मरना यदि किसी मरते हुए समाज को जिंदा करने में सहायक है तो,ऐसी मौत के लिए मुझे फख्र है ???? - eevry human wants to live - DON't TURN HER INTO A WILLING MARTYR _ SHE WANTED TO LIVE _SHE SAID SO....
@@ जिन्होंने मेरे शरीर को नोचा-खसोटा,उनके लिए भी मेरे मन में सहानुभूति है। ??? - OH REALLY ????
@@ मैं तो एक प्रतीक मात्र थी??? - OH REALLY _ she might have been "prateek maatr to YOU santosh ji - she was not a prateek maatr to herself and her family ....shameful to say all this
@@ उस दिन किसी दामिनी के साथ नहीं,इस व्यवस्था के साथ बलात्कार हुआ था ??? - oh really ?? poori vyavasthaa ke sath haan ? to jo baaki har don ho rahe hain ve balaatkaar ?? aur hua bhi ho poori vyavasthaa ke saath - to usse "daamini ke saath nahi hua" kahne ka adhikaar hai aapko ??
who gave you the right to make her personal suffering so negligible ??
shameful shameful shameful... and i oppose ALL THE COMMENTATORS HERE WHO ARE AGREEING WITH YOU HERE ....
...आभार शिल्पा जी!
हटाएंमैं आपके प्रश्नों का उत्तर नहीं दूँगा क्योंकि आपने इसके पहले भी व्यंग्य न समझ पाने की बात कही थी । यह आलेख एक तरह से इस व्यवस्था पर व्यंग्य है।
.
.और हाँ,दामिनी का मुद्दा बतौर आपके महज एक स्त्री का है,इस नाते भी मेरा पुरूष होना अपराध है जबकि मैंने बतौर नागरिक अपना कर्तव्य निर्वहन किया है।
aapse bahas main nahi karoongi - aap chaahe mujhe yah kah kar neecha dikhaane ka prayaas kar lein - kintu yah mudda "mahaj" ek stree kaa nahi hai -
हटाएंyah ek manushya ka hai - jo jeena chaahti thee ...
aur aapne jo bakwaas thopi hai us ladki par jo apnee baat nahi kah sakti - yah ILLEGAL bhi hai - you can NOT assume things she though as per the law also
- AND THIS IS NOT "VYANGYA" AT ALL - you should be ashamed to do what u r doing - just getting some hits on ur blog and trying to belittle me or any woman who objects by saying "u dont understand vyangya:" is ridiculous....
...शिल्पा जी,यदि आप कुछ कहती हैं तो थोड़ा सहने की भी क्षमता रखें.मैंने यह आलेख एक मनुष्य होने के नाते ही लिखा है और यह दामिनी या उस लड़की का वास्तविक सन्देश नहीं है,यह सब जानते हैं,सिवा आपके.यह न तो ब्लॉग-हिट्स पाने के लिए लिखा गया है और न स्त्री को अपमानित करने के लिए.आप बातों को व्यक्तिगत न लेते हुए,संयम से एक-एक पंक्ति पढ़ें तो पता चलेगा कि इसमें कुछ भी गैर-कानूनी नहीं है.
हटाएंआपने स्वयं अनूप शुक्ल जी पर हमारे लिखे व्यंग्य को यह कहकर नकार दिया था कि आपको व्यंग्य की समझ नहीं है.बहरहाल यह अगर व्यंग्य नहीं है तो भी इसका उद्देश्य किसी भी रूप में स्त्रीत्व को अपमानित नहीं करता.ऐसा केवल आपको लगा जबकि इस पोस्ट को परिकल्पना सहित कई जगह स्थान मिला.
.
.और हाँ,मैं अब ब्लोगिंग में हिट्स को लेकर चिंतित नहीं रहता क्योंकि अब समय कम दे पाता हूँ.
...आपका मैं सदैव आदर करता रहा हूँ और उम्मीद करता हूँ कि इस लेख को आप तंग नज़रिए से न देखें !
http://www.parikalpnaa.com/2013/01/blog-post_8.html
हटाएं@@ "आपने स्वयं अनूप शुक्ल जी पर हमारे लिखे व्यंग्य को यह कहकर नकार दिया था कि आपको व्यंग्य की समझ नहीं है" i said i do not LIKE it - not that i do not UNDERSTAND it - mr trivedi , for ur information - these are two diff things. and this is NOT about me , this is NOT about VYANGYA, - it is about the topic at hand , this is about a GIRL who wanted to live, who was brutally tortured and killed, and u r trying to do what the news channels do - convert it into a sob sister story .....
हटाएं@@ " इसका उद्देश्य किसी भी रूप में स्त्रीत्व को अपमानित नहीं करता" streetv ko apmaanit aap kar hi nahi sakte - n maine aisaa kahaa hai , abat streetv uaa purushatv kee hai hi nahi - baat maanav jeevan par adhikar kee hai, it is about her imaginary non-sorrow in losing her life so cruelly and brutally.
nahi - aap us ladki kee bhaavnaaon ko apne imagination ke hisaab se pesh kar rahe hain - the law says you CAN NOT STATE WHAT THE DECEASED FEELS _ AND NEVER WHAT FORGIVENESS SHE MIGHT HAVE FELT TOWARDS HER MURDERERS while the case is subjudice _ and the case is subjudice - you very well know it...
@@ "शिल्पा जी,यदि आप कुछ कहती हैं तो थोड़ा सहने की भी क्षमता रखें" - mr trivedi - i am NOT speaking as shilpa ji to santosh ji - i am opposing your attempt to paint her feelings and thoughts with your brush
@@ "ऐसा केवल आपको लगा" - aavashyak nahi hai ki jo cheez ek hi vyakti ko mahsoos hui vah sahi nahi ho sakti... apples used to fall off of trees long before newton - but he was the first one who "felt" there was a hidden information in that....
@@ "जबकि इस पोस्ट को परिकल्पना सहित कई जगह स्थान मिला" - that is what i am saying - to prove YOURSELF a great writer and an achiever - u are quoting YOUR success - you are making out that the murdered girl was a WILLING MARTYR .
no.
she was NOT a soldier in the army who WILLINGLY went to risk her life to improve the country - she was a human being - a happy girl who was studying to be a doctor and improve human life - she had plans for a future
she was KILLED by maniacs -do NOT try to show that she was forgiving them, or that she does not mind dying to give a message to the society etc etc....
i am talking about your false presentation of her feelings and thought processes, and you are talking about ME in person and justifying what u r doing.....
...शिल्पा जी,हमारा आपका उद्देश्य एक ही है फ़िर क्यों हम वाद-विवाद में उलझे हैं ?हमारा उद्देश्य ऐसा कतई नहीं रहा,आप दो-तीन पिछली पोस्टें भी देखे का कष्ट करें.हमने इस मुद्दे को महज़ स्त्री-विरोधी न मानकर समाज-विरोधी माना है,उसमें भी हम गलत हो सकते हैं.
हटाएं.
.बहरहाल,आप सौ फीसदी सही और हम सौ फीसदी गलत हैं !
agar aap galat hain to yah sab imaginary bhaavnaayein is imaginary patr se hataa lijiye
हटाएंdon't act a diplomat and say things like - "आप सौ फीसदी सही और हम सौ फीसदी गलत हैं !" - both of us know where we stand in this matter.
iske aage main ab is post par kuchh nahi likhoongi - meri taraf se yah yahaan aakhiri sujhaav hai. you ave to decide whether you want to SHOW AND PROVE YOURSELF RIGHTEOUS - or you wish to DO THE RIGHT THING
...अगर आपको लगता है कि क्या सही है,क्या नहीं,उसे अपने ब्लॉग पर साया करदें,बिना लाग-लपेट के !
हटाएंकुछ लोग नारी- विमर्श को केवल तथाकथित नारीवादियों का ही अधिकार मानते हैं,स्त्रियों की समस्याएँ उन्हें केवल स्त्रियों की ही लगती हैं।यहाँ तक कि एक सामाजिक मुद्दे को दरकिनार कर ऐसे लोग अपनी निजी खुन्दक निकालते हैं,गोलबंदी करते हैं ।इनकी बुद्धि पर तरस ही आता है ।
जवाब देंहटाएंमैं यहाँ अब टिप नहीं करना चाहती थी, लेकिन आपकी बात (these last two comments) से लग रहा है किया तो आप मुझे "गोलबंदी कर रही" बता रहे हैं, या "फिर बिना लाग लपेट के" कह कर आदरणीय रचना जी पर मुझे यहाँ भेजने का इलज़ाम लगा रहे हैं ।
हटाएं@@@ गोलबंदी - -हाँ मैं अपनी पूरी ताकत से गोलबंदी करूंगी । मैं इससे बिलकुल इनकार नहीं करती । एक मृत लड़की जो अपनी बात नहीं कह सकती, को "sacrificial indian lady" के रूप में portray करने के प्रयासों के खिलाफ मैं बिलकुल हूँ - और छुप कर नहीं - खुले आम करूंगी ।
इसी तरह की यही कथाएँ बना कर कि "मुझे उनसे कोई शिकायत नहीं" "मेरी मृत्यु बस प्रतीक मात्र थी" "मुझे उनसे सहानुभूति है" - यही सब झूठी कथाएँ बना कर हमारे समाज ने स्त्री को "देवी" बना कर उससे उसके मानवाधिकार छीन रखे हैं । इसी तरह सती प्रथा आदि कुप्रथाओं का महिमामंडन होता है ।
मानव को मानव रहने दीजिये - देवी मत बनाइये । वह बच्ची मरने की घडी तक उन लोगों को तदपा कर मरना चाहती थी - आप जबरन उसकी ओर से उन्हें माफ़ न करें । अपराध आपके प्रति नहीं हुआ - और माफ़ी का अधिकार सिर्फ उसे होता जिसके प्रति अपराध हुआ हो ।
एक मानव जिसकी नृशंस ह्त्या कर दी गयी - उसके अधिकारों की बात करने को "आप" - जी हाँ - "मैं" नहीं, आप - बार बार बार बार - नारीवाद का नाम क्यों दे रहे हैं ??? यह आप ही बेहतर जानते होंगे । मैं स्त्री पुरुष की बात कर ही नहीं रही - मैं एक बलात्कार और ह्त्या की पीडिता को जबरदस्ती sacrificial martyr दिखाने का विरोध कर रही हूँ ।
हाँ यह बात और है कि ब्लॉग जगत में तो कम से कम मुझे पढने वाले लोग बहुत ही कम हैं - और उनमे से कोई भी मेरे साथ खड़े होंगे इसकी मुझे कोई ख़ास आशा नहीं है । इतना तो ब्लॉग जगत को अब तक जान ही चुकी हूँ । और इसी सन्दर्भ में एक और बात यह कि मैं स्वयं सबल हूँ - मुझे किसी के "रक्षा" की आवश्यकता नहीं है - हाँ जितना मुझसे हो उतने लोगों का ध्यान इस ओर खींचने का प्रयास करूंगी । फिर जो उचित उन्हें लगे - वे वह करें - हर एक को अपना पथ स्वयं ही चुनना होता है ।
@@@ निजी खुंदक - आपसे ? मुझे ??? न मैं आपको जानती हूँ, न आप मुझे । न आप मुझे पढ़ते हैं, न मैं आपको ।
मैंने परसों या जब भी यहाँ पहली टिप की - यहाँ इसलिए आई थी कि NDTV पर हम लोग में मुनव्वर राणा पर प्रोग्राम था - उसमे एक व्यक्ति मुझे आप जैसे लगे - तो यहाँ देखने आई कि यदि आप थे तो आपने इस बारे में शायद यहाँ लिखा होगा - तो मेरी नज़र इस पोस्ट पर पड़ी । "निजी खुंदक" शब्द का प्रयोग "आप" कर रहे हैं - तो यह आपके ही मन में होगी ?
@@@ "बिना लाग लपेट के" - यह रचना जी के ब्लॉग का नाम है । मुझे स्त्रियों के नाम लिए बिना उन पर तिरछे कटाक्ष करना बहुत ही ओछा लगता है , परन्तु किया क्या जाये ? यह आदत हमारे यहाँ बहुत गहरे बैठी है - और आप भी इसके पीड़ित लगते हैं । रचना जी ने मुझे यहाँ नहीं बुलाया था - उल्टा मैंने ही उन्हें इस चर्चा का लिंक दिया - सार्वजनिक टिपण्णी से दिया - कोई "छुप छुप कर लामबंदी" नहीं की ।
@@@ नारीवादी - मैं न तो नारीवादी हूँ, न पुरुषवादी हूँ । मैं मानवता वादी हूँ - यदि आप मुझे पढ़ते होते तो यह बात जानते ही होते । मैं गीता की स्टुडेंट हूँ, और गीता कहती है कि मेरा शरीर सिर्फ मेरा वस्त्र है - मैं नहीं हूँ । और वस्त्र स्त्री या पुरुष नहीं होता । और हाँ - आपके व्यंग्य बाणों का मुझ पर तो कम से कम कोई असर नहीं होगा । तो आप अपना तुणीर मुझ पर बर्बाद न ही करें तो बेहतर होगा । मेरे पास समय की बहुत कमी है - ब्लॉग के माध्यम से बहुत सारी बातें हैं जो साझा करना चाहती हूँ - तो इन निजी अपमानों की अदलाबदली के लिए न तो मेरे पास समय है, न इस में मेरी कोई रूचि है ।
if you wish to talk about the issue - it is fine - but DON"T try personal comments about me like THIS ONE "कुछ लोग नारी- विमर्श को केवल तथाकथित नारीवादियों का ही अधिकार मानते हैं,स्त्रियों की समस्याएँ उन्हें केवल स्त्रियों की ही लगती हैं।यहाँ तक कि एक सामाजिक मुद्दे को दरकिनार कर ऐसे लोग अपनी निजी खुन्दक निकालते हैं,गोलबंदी करते हैं ।इनकी बुद्धि पर तरस ही आता है ।"
...शिल्पाजी,हमें भी आपसे कोई खुंदक न रही या रहने का कोई कारण बनता है,पर हमारी पोस्ट को लेकर जिस तरह मनमाने अर्थ लगाये गए,जहाँ तक हम सोच भी नहीं सकते थे,सो उसका हार्दिक दुःख हुआ.
हटाएं...आपको किसी रक्षा-कवच की ज़रुरत नहीं है,वह भी खासकर मेरी,पर हाँ अगर आपको याद हो कि एक मुद्दे पर कभी हमने आपका बचाव भी किया था,क्योंकि उस जगह आप सही थीं.
...आपने बिना लाग-लपेट को इस तरह व्याख्यायित किया है कि यह किसी का ट्रेड-मार्क हो,अर्थात अब हमारे शब्द-चयन पर भी आपको आपत्ति है.
...यह क्या कम है कि आप यहाँ अपनी बात मुक्त-रूप से कह पा रही हैं पर क्या यही बात कथित नारीवादियों पर भी लागू होती है ?
.
.आश्चर्य है कि आप मुनव्वर राणा जी को ढूंढते-ढूढ़ते रह गईं,न वो मिले और न और कोई सार्थक-पोस्ट,जबकि पिछली पोस्टों में मुनव्वर जी का पूरा कार्यक्रम देखा जा सकता है.यह कई महीने पहले हुआ था.
.
.आपने आज अपेक्षाकृत शालीनता से बात की,उसके लिए आभार !
.
.और हाँ,हम किसी और के लिए कोई टीप नहीं कर रहे हैं,हालाँकि हमें जानकारी है कि कुछ लोगों से चिरौरी-विनती की गई है.इसमें आप शामिल हैं,ऐसा मैं नहीं कह रहा.
उम्मीद है कि एक सार्थक-उद्देश्य के लिए हम ब्लोगिंग करते रहें,बिना आपसी मन-मुटाव और नकारात्मकता को ढूंढते हुए !
इस संवाद से हम भी बाखबर हैं! विचारपूर्ण और सार्थक !
जवाब देंहटाएंमुझे देर हो गई आते-आते ...
जवाब देंहटाएंसमय का आभाव है इनदिनों, इसलिए आपका आलेख पढ़ा नहीं था मैंने त्रिवेदी जी ....पढ़ने के बाद हैरान हूँ ...!!!
महिलाओं का शोषण, भारत में आज से नहीं अनादिकाल से हो रहा है। स्त्री को शोषित करके देवी बना देने का फार्मूला बहुत पुराना है। फिर वो सीता हो या राधा अनुरोध है कृपा करके दामिनी को बक्श दें । मैं शिल्पा की बातों का समर्थन करती हूँ। शिल्पा ने बिलकुल सही कहा है।
इस प्रकरण से कहीं न कहीं पूरा समाज एक किस्म के अपराधबोध को महसूस कर रहा है ।उसे अंदर ही अंदर कुछ कचोट रहा मानो उस पर कोई उंगली उठा रहा।इस लेख में बदलाव से ज्यादा उस अपराधबोध को कम करने की असफल कोशिश नजर आती है।इसीलिए आप लेख में बार बार ये कहते नजर आते हैं मानो उस लड़की को अब समाज से कोई शिकायत नहीं बल्कि वह खुश है।जबकि वह आज जिंदा होती तो देखती लोग कैसे उसे ही कटघरे में खड़ा कर रहे और कैसे अभी भी बलात्कार की घटनाएँ लगातार सामने आ रही है।माहौल को तो हर महिला बदलना चाहती है लेकिन क्या कोई इस तरह जरिया(आपने यही शब्द प्रयोग किया) बनना चाहेगी और फिर गौरवान्वित महसूस करेगी?एक हँसते खेलते जीवन का दर्दनाक अंत कर दिया गया।वह लड़की बहादुर तो थी लेकिन कोई त्यागमयी देवी नहीं।शिल्पा जी से सहमत।
जवाब देंहटाएं...टिपण्णीकर्ताओं से अनुरोध है कि वह महज एक शब्द या लाइन पकड़कर टीप न दें,बल्कि पूरा पैराग्राफ व समग्र पोस्ट पढ़ें.बार-बार ऐसी निरर्थक टीपों का कोई जवाब नहीं दे पाऊँगा.
जवाब देंहटाएं.कुछ लोग जबरिया अपना नजरिया हम पर थोपने को तैयार दीखते हैं,जबकि पोस्ट की मूल-भावना से उन्हें कोई मतलब नहीं है.
ऐसे लोगों से अपील है कि वे कुछ नेताओं और बाबाओं द्वारा की जा रही अतार्किक बैटन का खंडन करें न कि यहाँ अपनी ऊर्जा नष्ट करें.हमने तो उस विषय पर भी (प्रकाशित व्यंग्य) लिखा है,पर उसे कोई नहीं पढना चाहता.
.
.हमारे पास समयाभाव बहुत है,इसलिए ब्लॉग पर भी नियमित नहीं हूँ.यदि कोई सार्थक-टीप आई तो उसको जगह मिलेगी,अन्यथा घेर-घारकर लाई हुई टीपों को स्थान नहीं मिल पायेगा.
अगर बहुत ज़रूरी है तो ऐसे लोग अपने ब्लॉग पर बिना लाग-लपेट के हमारे नाम का स्यापा पढ़ सकते हैं.
happy blogging !
हटाएंटिपण्णीकर्ताओं=टिप्पणीकर्ताओं
बैटन=बातों
जब दामिनी जीवित थी,मौत से संघर्षरत थी,पूरा देस उसकी जिजीविषा का क़ायल था,तभी तथाकथित नारीवादी ब्लॉग पर ईश्वर से उसको उठाने की प्रार्थना की गई थी । ऐसा क्यों? यह बहुतों के नज़रिए के खिलाफ था पर चूँकि उस पोस्ट को एक नारी ने लिखा था,इसलिए उसकी मंशा पर सवाल नहीं उठाए गए । न आप में से किसी ने उठाया और न मैंने ।
जवाब देंहटाएं...इसलिए महज पूर्वाग्रह से प्रेरित होकर इस काल्पनिक पोस्ट के बहाने नकारात्मकता प्रदर्शित की जा रही है,मेरी भावनाओं की अनदेखी करके !
शांत वत्स शांत -जो आलोचनाओं में प्रशंसा और प्रशंसा में आलोचना देखता है वह विज्ञ पुरुष है !
जवाब देंहटाएंदामिनी तो गयी -सभी मानवता पर उस जघन्यतम अपराध से मर्माहत हुए -आप भी हुये!
लोग रेतेरिक भी हुए, कवि जनों ने कवितायें लिखीं -युवाओं ने मशाल जलाई -यह सहज ही था ..
उस अमानवीय अत्याचार के प्रतिकार में सारा भारत उठ खड़ा हुआ -मेरे तो विचार तंतु ही कुंद रहे काफी दिनों तक -
हादसे से उबार कर मैंने भी कुछ लिखा और अपनी भावनाएं व्यक्त कर पाया -
आपका भी कथ्य मौलिक है -किन्तु आवशयक नहीं कि सभी की सहमति उससे बने .....मैं भी असहमत हुआ ......
आप रोष छोडिये और अन्य देवियों तथा सज्जनों से भी अपील है कि वे इस मुद्दे पर गंभीरता बरतें ,सहिष्णुता बरतें .....
नहीं तो सामान्य समझ की बात करें तो मृत आत्मा को कष्ट होगा!
गोलबन्दी तो कदापि न की जाय क्योंकि इसके कारण ब्लागिंग को बहुत नुक्सान हो चुका है।
गोलबंदी लामबंदी के प्रेरक तत्त्वों को हतोतसाहित करें हम सब!
यह लेख मैंने शुरु में भी पढ़ा था और आज लेख के साथ टिप्पणयां भी पढ़ीं। खासकर आपकी और शिल्पा मेहता की आपसी टिप्पणियां।
जवाब देंहटाएंहरेक का अपनी-अपनी समझ होती है। लिखने वाला अपनी समझ से लिखता है। पाठक अपने नजरिये से देखता है। इसी लेख को वन्दनाजी ने छापने की अनुमति मांगी। शिल्पा जी ने सिरे से खारिज कर दिया। आपने जो लिखा उसे पाठक को अपने हिसाब से ग्रहण करने का हक है। आप किसी पाठक को घेरकर ये थोड़ी कह सकते हैं -यहां इस कोने से खड़े होकर देखिये। इधर से मतलब निकालिये उधर से नहीं।
आपकी भावनायें अच्छी होंगी लेकिन इस लेख में वह सब उतनी सलीके से आ नहीं पायीं। शिल्पा मेहता की आपत्तियों को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता।
हर एतराज के पीछे गुटबाजी खोजना अच्छा बचाव नहीं होता। वह मनुष्य बड़ा अभागा होगा है जिसे कोई टोंकने वाला नहीं होता।
हमारे पास समयाभाव बहुत है,इसलिए ब्लॉग पर भी नियमित नहीं हूँ.यदि कोई सार्थक-टीप आई तो उसको जगह मिलेगी,अन्यथा घेर-घारकर लाई हुई टीपों को स्थान नहीं मिल पायेगा.
आपका यह बयान बहुत भद्दा है। ये चुके हुये बड़े लेखकों के बयान की तरह हैं। आपने तो अभी लिखना शुरु किया है भाई! जरा सहज रहिये। :)
बस यह कहना है कि लेख की मूल भावना जाने बिना हमारी इंटिग्रिटी पर सवाल उठाना क्या उचित है?
हटाएंयह महज गोलबंदी है और इन चीजों से मैं नहीं घबड़ाता, न इसके लिए अनुभव लेने की जरूरत है।
...आप इस बात से अनजान हैं कि पोस्ट और टीपें हटाने के लिए चिरौरी -बिनती की जा रही है,यह सही है ?
इस ब्लॉग- जगत की दुरभिसंधियों से आप अनजान हैं,आश्चर्य है।हम तो सबको और सब कुछ छाप रहे हैं पर हमें उपदेश देने वाले ताले लगा रखे हैं,वे किस मुँह से किसी को सही- गलत बता रहे हैं।
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.मैं नवोदित हूँ,नासमझ हूँ पर लोकतांत्रिक और ईमानदार हूँ पर ऐसे नकारात्मक प्रवृतियों से कोई समझौतेबाज़ी नहीं।
आपने हमें बताया क्योंकि आप यह जानते हैं कि समझने वाले हमीं है,कभी उधर मत सलाह दे दीजियेगा !
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'और हाँ,इतने दिनों बाद आपने फौलो-अप किया,वह भी बिना घेर-घार के,आपका आभार !
सब टिपें पढ़ रही हूँ , अब सिर्फ एक दर्शक की तरह । देख रही हूँ, ह्युमन नेचर की झलकी की तरह । अब कुछ कहूँगी नहीं इस मुद्दे पर , कि जहां समझने की इच्छा न हो, वहां समझाना व्यर्थ है, ऊर्जा का अपव्यय भी । आप समझ ही नहीं पा रहे कि मैं आपत्ति किस बात पर कर रही हूँ , क्यों चाहती हूँ कि यह पोस्ट हटाई जाए ।
हटाएंसंतोष जी - आपको अपनी "भावना " न समझे जाने का दुःख हुआ :) लेकिन मुझे नहीं । मुझे अपनी "भावना" न समझे जाने का रत्ती भर भी दुःख नहीं हुआ - क्योंकि यह होता ही है , हर व्यक्ति अपने हिसाब से "पिक एंड चूज़" करता है ।
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जाते हुए एक "व्यंग्य" की चुटकी भी ले लूं, की आपको "व्यंग्य" से बहुत प्रेम है - तो व्यंग्य की भाषा भी सही, जबकि मुझे यह भाषा पसंद नहीं ....
"संतोष जी - चकित हूँ - दामिनी की भावना समझे बिना , उसकी अंतिम इच्छा को नज़रंदाज़ कर, उसके परिवार की बातों को नज़रंदाज़ कर आप कह रहे हैं कि "मुझे उनसे कोई शिकायत नहीं जिन्होंने मुझसे इतना वहशीपना किया", इतने क्षमाशील हैं आप , जब आप "दामिनी" की ओर से लिखते हैं, जिसकी क्रूर ह्त्या की गयी । ......
.....लेकिन, लेकिन, लेकिन,.......
खुद अपनी थोड़ी सी criticism से आप इतने आहत हो जाते हैं कि, मुझ पर , जिसने न आपको कोई टॉर्चर किया, न आपकी ह्त्या की, आप इतने क्रोधित हो उठते हैं कि मैं आपको गोल्बदी करने वाली, सलाह न सुनने वाली आदि कह देते हैं , और टिप प्रकाशित न करने की खुली धमकी दे देते हैं । वाह, क्या क्षमाशीलता है आपकी । "
इति व्यंग्यो अध्यायः ...
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आप बेझिझक अपनी टिप्स एम् मुझ पर व्यंग्य करते रहिये - मुझे दुःख नहीं होगा, क्योंकि मुझे यह अपेक्षा ही है ।
आभार
anoop sir "हर एतराज के पीछे गुटबाजी खोजना अच्छा बचाव नहीं होता। " very well said
हटाएंsantosh ji - yadi ap meri pichhli tip prakaashit n karte hain, to ise bhi n kijiye ...
शिल्पा जी,हो सकता है मेरा तरीका आपको पसंद नहीं आया हो,उसका मुझे अफसोस है पर सबसे ज्यादा दुख इस बात का रहा कि आपने शुरू से ही मेरी मंशा पर सवाल उठाए !
हटाएं...बहरहाल मैं अपनी सफाई नहीं पेश करूँगा और जिस भावना से मैंने लिखा है,उस पर कायम हूँ ।
लिखने वाला जिस भाव से लिखता है जरूरी नहीं कि पाठक उसी भाव से उसको समझे। पाठक को मजबूर नहीं किया जा सकता कि ऐसे समझो, वैसे ही लेखक को मजबूर नहीं किया जा सकता है ऐसा मत लिखो। मेरी समझ से तो उसे हड़काया नहीं जाना चाहिए कि ऐसा लिखने की तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई? गलत लिखा है..कहा जा सकता है। आलोचना की जा सकती है। अगर आलोचना में दम हुआ तो वह आलेख वैसे ही दूसरे पाठकों से रिजेक्ट कर दिया जायेगा और लेखक उपहास का कारण बनेगा।
जवाब देंहटाएंलेकिन संतोष जी, व्यवहार में होता यह पाया गया है कि लोग लेखक का घर भी फूँक देते हैं, फतवा भी जारी कर देते हैं। इसलिए व्यंग्य लिखने वालों के लिए यह खतरा हमेशा बना रहता है। श्रेष्ठ व्यंग्यकार तो वही माना जाता है जिसे एकाध बार पाठक पीट देते हैं। :) इसलिये यदि आपने व्यंग्य लेखन की राह चुनी है तो सब कुछ सहन करने की आदत भी डालिये।
शुभकामनायें..