आज वो हमसे अपना हिसाब माँग रहे,
हम तो फ़कीर थे,सब कुछ लुटा दिया ! (१)
हमारी सदा नहीं उन तक पहुँच रही,
हमने ज़हर का घूँट,जिसका सदा पिया ! (२)
उगते हुए उजाले के संग वो हुए ,
छोड़कर कम तेल का,बुझता हुआ दिया !(३)
हम खुश रहेंगे फिर भी हर हाल में,
चाहकर के उनको ,हमने बुरा किया ? (४)
मोहब्बत से हमने यूँ लिया सबक,
कुछ ने महज़ नफ़े का,सौदा बना लिया !(५)
रुसवाई नहीं मेरी,उनसे नहीं गिला,
बस उसूलों से उनने,ज़रा फ़ासला किया !(६)
हम तो फ़कीर थे,सब कुछ लुटा दिया ! (१)
हमारी सदा नहीं उन तक पहुँच रही,
हमने ज़हर का घूँट,जिसका सदा पिया ! (२)
उगते हुए उजाले के संग वो हुए ,
छोड़कर कम तेल का,बुझता हुआ दिया !(३)
हम खुश रहेंगे फिर भी हर हाल में,
चाहकर के उनको ,हमने बुरा किया ? (४)
मोहब्बत से हमने यूँ लिया सबक,
कुछ ने महज़ नफ़े का,सौदा बना लिया !(५)
रुसवाई नहीं मेरी,उनसे नहीं गिला,
बस उसूलों से उनने,ज़रा फ़ासला किया !(६)
कुछ ने बस महफूज सा सौदा बना लिया ? यही न ? :)
जवाब देंहटाएंकब तलक महफूज़ रखेंगे वे दामन अपना,
हटाएंकभी तो उतरेंगे ज़मीं पर,छोड़कर सपना !!
वाह वाह
हटाएंवाह ..
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया !!
धन्यवाद संगीताजी !
हटाएंसुन्दर गज़ल...
जवाब देंहटाएंसादर.
सुन्दर टीप !
हटाएंसादर !
दुनिया का तो दस्तूर यही है जी माट्साब,
जवाब देंहटाएंजो कुछ लिया, यहीं से लिया और यहीं दिया!
भौतिकता के समाज का सच है ये घिनौना,
अब इतनी छोटी बात पे छोटा न कर जिया!
माट्साब जाएँ कहाँ,ज़ालिम जहां को छोड़कर,
हटाएंआप रहेंगे साथ गर,लेकर बड़ा हिया !!
हमारी सदा नहीं उन तक पहुँच रही,
जवाब देंहटाएंहमने ज़हर का घूँट,जिसका सदा पिया ...
ये अक्सर होता है दुनिया में ... जिसके लिए आप जीते मरते हैं वो पूछते भी नहीं हैं ... भई सभी शेर लाजवाब हैं ...
धन्यवाद उस्ताद जी !
हटाएंउगते हुए उजाले के संग वो हुए ,
जवाब देंहटाएंछोड़कर कम तेल का,बुझता हुआ दिया !(३)
....आज का सच...बहुत सुंदर और सटीक प्रस्तुति....
आभार गुरूजी !
हटाएंमोहब्बत से हमने यूँ लिया सबक,
जवाब देंहटाएंकुछ ने महज़ नफ़े का,सौदा बना लिया !
वह वाह ! सही कहा है .
सुन्दर ग़ज़ल .
ज़र्रानवाज़ी का शुक्रिया !
हटाएंअहा, बेहतरीन गजल..वाह..हर दिन निखार..
जवाब देंहटाएंउतर जायेगा कुछ दिनों में यह मौसमी बुखार !!
हटाएंबहुत उम्दा - कुछ ने महज़ नफ़े का सौदा बना लिया
जवाब देंहटाएंहमने भी तिजारत को ठेंगा दिखा दिया..!
हटाएंबढ़िया ग़ज़ल संतोष जी...
जवाब देंहटाएंआभार अरुण जी...!
हटाएंपकड़ प्रभू की पद्य पर, गजब गद्य गंभीर ।
जवाब देंहटाएंदीन मुहब्बत दीन की, मिली पीर दिल चीर ।
मिली पीर दिल चीर, चाहतें हते हताशा ।
पर मेरी तकदीर, नहीं है प्रिये बताशा ।
हुआ उसूलन दूर, बढ़ाया जरा फासला ।
सको नहीं तुम तूर, कभी इस जनम हौसला ।।
तरकश से बस आपके निकले केवल तीर,
हटाएंकुंडलिया बनकर गिरे ,असर करे गंभीर !
उतनी ही सुन्दर टीप !
जवाब देंहटाएंआभार !
बढ़िया ग़ज़ल महाराज !
जवाब देंहटाएंआभार और ब्लॉगिंग-जगत में पधारने की बधाई !
हटाएंहमको तो गज़ल ने कुछ प्रभावित नहीं किया। वही पुराना रोना रोया गया है। गज़ल से बढ़िया तो कमेंट पर आये आपके उत्तर हैं।
जवाब देंहटाएंदेवेंद्रजी..आप सही कह रहे हैं,पर नए विषय थोड़ा कठिन लग रहे हैं.कोशिश करूँगा कि अगली बार मिलन के गीत गाऊँ.राजनीति व सामजिक-विषय भी आजमाने की कोशिश करूँगा.
हटाएंसादर !
आज वो हमसे अपना "हिसाब" माँग रहे ?
हटाएंहम तो "फ़कीर" थे , सब कुछ लुटा दिया ?
हमने "ज़हर का घूँट जिसका" सदा पिया ?
हम "खुश" रहेंगे फिर भी "हर हाल" में ?
"चाहकर" के उनको ,हमने "बुरा' किया ?
अली साब,आपके संकेत समझना बड़ी टेढ़ी-खीर है !
हटाएंये तो तब भी फ़कीर और अब भी फ़कीर हैं
हटाएंधनवान तो वही हैं बस वही और केवल वही ...
ता इलाही तूने कैसी कैसी सूरते बनायी हैं :)
शुक्रिया महाराज...आईना दिखाने के लिए !
हटाएंहमारी सदा नहीं उन तक पहुँच रही,
जवाब देंहटाएंहमने ज़हर का घूँट,जिसका सदा पिया ! (२)
न जाने क्यों मुहब्बत में ऐसे घूंट क्यों पीने पड़ते हैं .... खूबसूरत गजल
...तब भी मोहब्बत कितनी हसीन है !
हटाएंआभार अतुल भाई !
जवाब देंहटाएंवाह जी वाह!
जवाब देंहटाएंहाथ बरसों से अपने खाली थे
अपना क्या था जो अब गंवाना था
आपका यह शेर हमारी बची-खुची 'ग़ज़ल' भी खा गया !!
हटाएंआभार !
उगते सूरज के सब साथी होते हैं , रिवाज़ यही है , मगर हम उनसे निराले ही सही !
जवाब देंहटाएंकायदे - कानून के हिसाब से लिखना जटिल और कभी कभी बोझिल भी हो जाता है !
ठीक है पर यह मामला प्रेम में तकलीफदेह होता है !
हटाएंरुसवाई नहीं मेरी,उनसे नहीं गिला,
जवाब देंहटाएंबस उसूलों से उनने,ज़रा फ़ासला किया
उसूलों में मूल न हो तो भी फासला हो ही जाता है.
प्रेम और प्यार का मूल हो,इर्ष्या द्वेष निर्मूल हों,
तो फासला एक न एक दिन मिट ही जाएगा.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार,संतोष जी.
आभार राकेश जी !
हटाएंअभिभूत करती रचना सार्थक प्रयास बधाईयाँ जी
जवाब देंहटाएंआभार उदयवीर जी !
हटाएंवाह! बेहतरीन ग़ज़ल....
जवाब देंहटाएंसादर.
शुक्रिया सरकार !
हटाएंआज वो हमसे अपना हिसाब माँग रहे,
जवाब देंहटाएंहम तो फ़कीर थे,सब कुछ लुटा दिया !
.....बहुत ही बेहतरीन पंक्तियाँ बेहतरीन गजल संतोष जी
सच में अच्छा लगता है सुनकर ऐसा उत्साहवर्धक बयान !
हटाएंमोहब्बत से हमने यूँ लिया सबक,
जवाब देंहटाएंकुछ ने महज़ नफ़े का,सौदा बना लिया !
यह सौदेबाजी कभी कभी बहुत भारी पड़ जाती है। ऐसा दिल रखने वाले को क्या सकून आ पाता है?
...मगर क्षणिक-आनंद की प्राप्ति तो हो ही जाती है !
हटाएंbahut achcha likhe.....
जवाब देंहटाएंबहुत दिन बाद आप दिखे...आभार !
हटाएंek bar fir achhi rachna.badhaii.
जवाब देंहटाएंआभार पाण्डेय जी !
हटाएंबहुत सुंदर ग़ज़ल बन पड़ी है......
जवाब देंहटाएंआभार मोनिका जी !
हटाएंबहुत सुन्दर लिखा है आपने.
जवाब देंहटाएंआभार कुसुमेश जी !
हटाएंसर जी , आप अपनी रचनाओं में इतनी रवानगी और ताजगी कहाँ से ले आते हैं ! कुछ हमें भी सिखाएं ! बेहतरीन और ताजगी से भरी गजल !
जवाब देंहटाएंआप तो घुटे-घुटाये हो !
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