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कार्यक्रम की शुरुआत |
महात्मा गाँधी अंतर राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय ,वर्धा द्वारा आयोजित हिंदी ब्लॉगिंग पर दो दिवसीय संगोष्ठी (२०-२१ सितम्बर २०१३) कई मायनों में अविस्मरणीय और उपलब्धिपूर्ण रही.हिंदी ब्लॉगिंग और सोशल मीडिया के इस पर होने वाले प्रभावों पर जमकर बहस और चर्चा हुई.विशेष रूप से इस आयोजन की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि 'चिट्ठासमय' की संकल्पना का साकार होना रहा.विश्वविद्यालय के कुलपति विभूति नारायण राय जी ने इसके लिए एक समयबद्ध प्रारूप तैयार करनी की घोषणा की जो हिंदी ब्लॉगिंग में लम्बे समय से एक अच्छे एग्रीगेटर की कमी को पूरा करेगा.यह उम्मीद की जानी चाहिए कि १५ अक्टूबर तक 'चिट्ठासमय' अपना काम करना शुरू कर देगा.विश्वविद्यालय ने पहले से ही राय जी के नेतृत्व में
हिंदी समय के माध्यम से हिंदी साहित्य के करीब एक लाख पृष्ठ अंतर्जाल पर उपलब्ध करा रखे हैं.कुलपति महोदय ने यह भी जानकारी दी कि इस साइट के जरिये सामग्री डाउनलोड करने की भी सुविधा है.
इस सम्मलेन में जिन बातों पर विमर्श हुआ उनमें महत्वपूर्ण बात यह रही कि फेसबुक,ट्विट्टर आदि सोशल साइटों से ब्लॉगिंग को नुकसान पहुँच रहा है या नहीं.बहुत से लोगों की आशंकाओं को सिरे से खारिज किया गया.इस चर्चा में जो मुख्य बातें उभरकर सामने आईं वे ये रहीं कि ब्लॉग मुख्य रूप से सोशल मीडिया का काम करता है.यह फेसबुक,ट्वीटर से बिलकुल अलग माध्यम है.जहाँ फेसबुक और ट्विट्टर 'तुरंता-मीडिया'(इन्स्टैंट मीडिया) का काम करते हैं,चलते-फिरते,खाते-पीते,विमर्श करते हुए आप अपने विचारों या सूचनाओं को साझा कर सकते हैं,वहीँ ब्लॉग पर थोड़ा ठहरकर,चिंतन-मनन कर,गंभीर और विस्तृत तरीके से बात कही जा सकती है.इस नाते इसका स्थायित्व भी अधिक है.इसलिए ब्लॉग को अन्य किसी माध्यम से कोई खतरा नहीं है,बल्कि फेसबुक और ट्विट्टर इसके एग्रीगेटर बनकर इसकी पहुँच को और व्यापक कर सकते हैं.
ब्लॉगिंग एक विधा है या माध्यम ,इस पर कई लोगों में असहमतियां रहीं.डॉ. अरविन्द मिश्र जहाँ इसे नई और भिन्न सुविधाओं से लैस विधा मान रहे थे,वहीँ डॉ सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी इसे विधाओं का समुच्चय के पक्ष में तर्क दे रहे थे.इष्टदेव सांकृत्यायन भी इस पक्ष में लग रहे थे.
प्रवीण पाण्डेय इसे कुछ अर्थों में ही विधा मानने को तैयार थे.दूसरी ओर अनूप शुक्ल ,हर्षवर्धन त्रिपाठी और मैं ब्लॉगिंग को एक उन्नत माध्यम ही स्वीकार रहे थे.इसके पक्ष में हर्षवर्धन त्रिपाठी ने सबसे ज़ोरदार तर्क दिए और अपनी बातों से साबित करने की कोशिश की कि यह समाचार पत्र,रेडियो या दूरदर्शन की तरह एक संचार का एक 'टूल' या माध्यम है.बहरहाल अंत में यह सहमति बनी कि इसे विधा या मीडियम के पचड़े में नहीं डालना चाहिए और हम सबको नियमित व सार्थक ब्लॉगिंग पर फोकस करना चाहिए.
एक विमर्श सोशल मीडिया के राजनीति में योगदान पर भी ख़ूब हुआ.इसमें सबकी सहमति इस बात पर थी कि आज की राजनीति का मुद्दा बदलने व उसकी दिशा को मोड़ने तक की हैसियत में यह न्यू मीडिया आ गया है.इसमें हमें अपने-आप थोड़ा सावधानी से काम करते हुए अपना योगदान करना होगा अन्यथा समाज में विद्वेष फ़ैलाने वाली बातें इसको नुकसान पहुँचा सकती हैं.सरकार इस बहाने कई पाबंदियां और मुश्किलें खड़ी कर सकती है.इस सत्र में विशेष रूप से अनिल सिंह रघुराज,संजीव तिवारी, ललित शर्मा, संजीव सिन्हा और पंकज झा ने भाग लिया.
हिंदी ब्लॉगिंग में साहित्य की स्थिति पर भी ख़ूब विमर्श हुआ.इसमें अशोक प्रियरंजन और मनीष मिश्र के विचार सबसे अधिक प्रभावी लगे.हम सभी को प्राचीन साहित्य को नई पीढ़ी के सामने लाने के लिए उसे धीरे-धीरे ब्लॉग के माध्यम से लाना होगा.कविता,कहानी या साहित्य की अन्य विधाओं में लोग ख़ूब लिख रहे हैं पर स्तरीय-लेखन का ध्यान रखना होगा.
इस सम्मलेन में दुतरफा काम हुआ .जहाँ एक तरफ़ लेखन में प्रवीण पांडेय,अनूप शुक्ल ,अरविन्द मिश्र ,अविनाश वाचस्पति,कार्तिकेय मिश्र ,डॉ प्रवीण चोपड़ा आदि ने अपने अनुभव साझा किए वहीँ तकनीक के क्षेत्र में आदि चिट्ठाकार आलोक कुमार,चिट्ठाजगत के विपुल जैन,शैलेश भारतवासी आदि ने ब्लॉग बनाने व कम्प्यूटर में हिंदी-लेखन पर प्रयोगात्मक-शिक्षण दिया.विश्वविद्यालय के छात्रों को व्यक्तिगत रूप से इसका बहुत लाभ हुआ.कई पुराने ब्लॉगर्स ने भी अपनी जानकारी नई की.
इस सम्मलेन में इण्डिया टुडे की फीचर -एडिटर मनीषा पाण्डेय और वंदना दुबे अवस्थी ने स्त्री-विमर्श को आवाज दी.इसी बहस में शकुंतला शर्मा व शशि जी ने भी योगदान किया.
गाँधी और विनोबा की कर्मभूमि पर बने इस विश्वविद्यालय को इसके कुलपति के रूप में ऐसी विभूति मिली हुई है जिसने हिंदी ख़ासकर हिंदी-ब्लॉगिंग के लिए अपेक्षा से अधिक रूचि दिखाई.अधिकतर ब्लॉगर्स की माँग थी कि ब्लॉगिंग में एग्रीगेटर की बेहद कमी महसूसी जा रही है,इस बात को उन्होंने सहृदयता से लिया और वहीँ 'चिट्ठासमय' की घोषणा कर दी.देश भर से आए हुए आगंतुकों का उन्होंने भरपूर आतिथ्य किया.कई लोगों को व्यक्तिगत रूप से वहाँ का पर्यटन भी करवाया.इस
सबके पीछे कार्यक्रम के संयोजक सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी साधुवाद के पात्र हैं,जिन्होंने इस आयोजन को
उसके लक्ष्य तक पहुँचाने में अपना योगदान किया.
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बैठक-स्थल पर पहुँचते हुए |
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नई-पुरानी पीढ़ी |
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समापन-सत्र |
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प्रकृति के संग |
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अकादमिक के संग प्रिंट मीडिया व अंतरजाल |
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बैठक-दृश्य
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