१)
सर्द सुबह
मफलर बाँधे हुए,
शहर की सुनसान सड़क पर
कोहरे के साथ
आँखमिचोली करना
कभी कभी अच्छा लगता है।
२)
सर्दी की शाम
छप्पर के नीचे
अलाव तापते हुए
आलू भूनता हूँ,
कभी कभी बुढ़ापे में
अपने मन की सुनता हूँ।
३)
पीठ पर भारी बस्ता लादे
सुबह-सुबह निकलते हैं बच्चे,
कोहरे को चीरते हुए
नन्हें नन्हें पाँव बढ़ाते हैं,
हाथ की लकीरें मिटाते हैं !
सर्द सुबह
मफलर बाँधे हुए,
शहर की सुनसान सड़क पर
कोहरे के साथ
आँखमिचोली करना
कभी कभी अच्छा लगता है।
२)
सर्दी की शाम
छप्पर के नीचे
अलाव तापते हुए
आलू भूनता हूँ,
कभी कभी बुढ़ापे में
अपने मन की सुनता हूँ।
३)
पीठ पर भारी बस्ता लादे
सुबह-सुबह निकलते हैं बच्चे,
कोहरे को चीरते हुए
नन्हें नन्हें पाँव बढ़ाते हैं,
हाथ की लकीरें मिटाते हैं !
भविष्य को सँवारने जाते बच्चे।
जवाब देंहटाएंवाह!
जवाब देंहटाएंलकीर तो नहीं मिटती पर पांव तो जमाना ही है।
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