16 जून 2013

ओ मेरे पिता !

ओ मेरे पिता
तुमने हर दुःख सहा
माँ से भी ना कहा
कंधे पर लादकर
बोझ मेरा सहा।
घोड़ा बने,
संग खेले मेरे,
मैंने मारी दुलत्ती
सब खिलौने मेरे।
मुझको मेला घुमाया
हर कुसंग से बचाया
दिल के अंदर भरे प्यार को
सारे जग से छुपाया।
मुझमें उम्मीद दी
रोशनी दी हमें,
मेरे अस्तित्व को
एक पहचान दी।
खुद को मिटाकर
पसीना बहाकर
मुझे माँ से मिलाया
संस्कृत किया,
स्वयं को तपाकर  
ज़हर सब पिया
मुझको अमृत दिया।
 
पिता ओ पिता !
तुम नहीं हो अलग।
रूप बदला भले
पर मुझमें तेरी झलक।
चाहे जो कुछ करूँ
नहीं तुमसे उरिन,
यह जीवन तुम्हारा
है तुम बिन कठिन।
ओ मेरे पिता !

23 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सही कहा, बिना पिता इस संसार से परिचय भी असंभव है, काश इस ॠण को हर इंसान समझ पाये, शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  2. बहुत सुन्दर शब्दों में पिता को श्रोद्धांजलि दिया आपने
    latest post पिता
    LATEST POST जन्म ,मृत्यु और मोक्ष !

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  3. ब्लॉग बुलेटिन की फदर्स डे स्पेशल बुलेटिन कहीं पापा को कहना न पड़े,"मैं हार गया" - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  4. संवेदनाओं के शब्द बहुत खूबसूरती के साथ शब्दों को पिरोया है आपने
    ....शानदार प्रस्तुति

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  5. @चाहे जो कुछ करूँ
    नहीं तुमसे उरिन,
    यह जीवन तुम्हारा
    है तुम बिन कठिन।
    ओ मेरे पिता!

    - बहुत बढ़िया, पितृदेवो भवः!

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  6. पिता से कोई उऋण नहीं हो पाता पर फिर भी यह बात न जाने लोग क्यों भूल जाते हैं ... सुंदर रचना

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  7. सच पिता जी ऐसे ही होते हैं
    मन के भीतर पनपती सुंदर और सच्ची अनुभूति
    पिता को नमन
    सादर

    आग्रह है मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों
    पापा ---------



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