जब
नारी-शक्ति की बात होती है तो सामान्य लोग इसे लैंगिक आधार पर देखने लगते हैं। इस
तरह उनको लगता है कि यह स्त्री के पुरुष से अधिक शक्ति की बात है,जबकि ऐसा नहीं है। नारी सृजन का पर्याय
है और सृष्टि में संतुलन के लिए वह अपनी शक्ति का प्रयोग करती है। इसमें सृजन और
संहार दोनों समाहित हैं। इस प्रक्रिया में पुरुष भी एक तत्व है पर इसका मतलब नारी
उसके विरुद्ध है,उचित
नहीं है।
नर-नारी
की तुलना करने के बजाय नारी-शक्ति को समझना चाहिए। लैंगिक आधार पर गुण-अवगुण दोनों
में विद्यमान होते हैं पर सृजन के आधार-स्तंभ के रूप में देखने पर स्पष्ट हो जाता है कि
लैंगिक-दृष्टि से देखने पर हम नारी के अर्थ और उसकी महत्ता को संकुचित कर देते हैं।
शक्तिस्वरूपा नारियों ने बिना कोई लिंगभेद किए आसुरी-प्रवृत्तियों का नाश किया है।
इससे स्पष्ट हो जाता है कि नारी को शक्ति कहने के पीछे कोई पुरुष-विरोधी मानसिकता नहीं है। यह भी सही नहीं है कि
नारी को हम देवी-स्वरूप देकर उसे केवल पूजा-पाठ की वस्तु मान लें। अतीत में समाज
के कुछ चतुर लोगों ने अवश्य यह जाल फ़ैलाने का प्रयास किया और वही मानसिकता अभी तक
बरक़रार है। नारी पर फूल-माला चढ़ाकर उसे एक प्रतिमा में बदल देना उसके अस्तित्व को
बाँध देना है।
समाज
में लैंगिक भेदभाव के चलते नारी को प्रमुखता न दिए जाने से उसका महत्त्व कम नहीं
हो जाता । मुख्य बात यह है कि कोई भी अपनी सत्ता को क्यों छोड़ना चाहेगा ? यह आज हर क्षेत्र में हो रहा है,इसके लिए स्वयम को पहचानना होता है,तभी अधिकार मिलते हैं। जब तक आप अधिकार
देने की बात करेंगे,देनेवाले
को आप स्वतः महान बना देते हैं। कौन से अधिकार नारी के लिए उचित हैं या अनुचित हैं,इसका निर्णय भी वही ले सकती है। समाज
में नारी की स्वतंत्रता को लेकर जो हल्ला मचता है,दरअसल वो निरर्थक और अनुचित है। नारी आज
अपनी स्वतंत्रता और उसका दायरा बाँधने के लिए स्वयं सक्षम है। स्वतंत्रता की इस
राह में उसे यदि खुली हवा के झोंके मिलेंगे तो अंधड़ के थपेड़े भी। समाज इस विषय में
अपना विचार तो दे सकता है पर अध्यादेश
नहीं जारी कर सकता।
नारी
को हम जब तक केवल लैंगिक आधार पर ही देखते रहेंगे,हर बात पर पुरुष से तुलनात्मक अध्ययन करते रहेंगे,वह अबला और शोषित बनी रहेगी। साहित्य और
समाज में नारीवाद का अलग खेमा बनाकर हम नारी-शक्ति को केवल सीमित और प्रतिस्पर्धी बना रहे हैं। नारी समाज का कोई खेमा या
वाद भर नहीं है। यह समाज
की सूत्रधार है। इसलिए उसकी अपनी महत्ता है,उसे किसी से मांगने की ज़रूरत नहीं है।
सधे और सटीक विचार
जवाब देंहटाएंसटीक व्याख्या -
जवाब देंहटाएंज्वलंत मुद्दा-
आभार भाई जी-
१९-२० को दिल्ली में हूँ -सादर
हटाएंहमसे अवश्य मिलिएगा रविकर जी। इस लेख को मास्टर का शक्ति प्रदर्शन पूरी शिद्दत से निखरकर सामने आया है।
हटाएंसही विचार हैं आपके . . .
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें !
सटीक व्याख्या - !
जवाब देंहटाएंRECENT POST : अपनी राम कहानी में.
बहुत बढ़िया आलेख....
जवाब देंहटाएंबधाई!!
अनु
अच्छा लिखा है।
जवाब देंहटाएंजो लोग नारीशक्ति को शारीरिक बल से आंकते हैं वे मूर्ख हैं।
अच्छी बात।
जवाब देंहटाएंनवरात्र पर नव्य नारी विमर्श -बढियां लिखा है
जवाब देंहटाएंबिना संतुलन तो कोई तन्त्र स्थिर रहता। सुन्दर आलेख
जवाब देंहटाएंअच्छी व्याख्या की आपने |
जवाब देंहटाएंमेरी नई रचना :- मेरी चाहत
वह समाज की सूत्रधार है और शक्ति पुंज भी , शिव से इ निकालो तो मात्र शव ही !
जवाब देंहटाएंसार्थक चिंतन !
नारी और नर किसी भी हद तक जा सकते हैं .
जवाब देंहटाएंइस बात से तो सहमत नहीं कि स्त्री को जागरुक करने की आवश्यकता नहीं लेकिन फिर भी लेख की मूल भावना से सहमत ।अच्छा लेख है।
जवाब देंहटाएंबढ़िया आलेख।
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