'नई दुनिया' में १५/०६/२०१३ को प्रकाशित ! |
जब से हमने यह सुना है कि
थोड़े ही दिनों में ‘तार’ यानी टेलीग्राम का अस्तित्व समाप्त हो जायेगा,दिल भारी हो रहा है।वैसे तो इस ‘तार’ से हमारे तार बहुत पहले ही टूट चुके थे,फ़िर भी उसका
ऐसे जाना खल रहा है।पहले फिक्स फ़ोन और फ़िर मोबाइल फ़ोन के वज़ूद में आने के बाद से
ही ‘तार’ का चलन समाप्त-प्राय सा हो
गया है ।नए ज़माने की तकनीक से मीलों दूर बैठे हम आमने-सामने बात कर सकते हैं पर
शायद अब जीवन उतना सहज नहीं रह गया है।आज हम चौबीसों घंटे एक-दूसरे से तकनीक के
माध्यम से जुड़े रहते हैं, जिससे कई फायदे हैं तो नुकसान भी
।नई तकनीक का सकारात्मक पहलू यह है कि हम अपने प्रियजनों से हर समय रूबरू रहते हैं
वहीँ इसका नकारात्मक पक्ष यह भी देखने में आया है जब वेबकैम के सामने कोई प्रेमी
अपनी मौत का सीधा प्रसारण कर देता है।
’तार’ का आना कभी सहजता या सामान्य समाचार का प्रतीक नहीं रहा।पुराने समय में जब
गाँव में डाकिया ‘तार’ की सूचना लाता
तो प्रकटतः कुहराम-सा मच जाता।वह केवल इतना बताता कि फलां के नाम ‘तार’ आया है और उसे डाकबाबू ने बुलाया है।परिवारीजन
और आस-पड़ोस में यह खबर बड़ी तेजी से फैलती और लोग किसी अनिष्ट की आशंका करने
लगते।थोड़ी देर बाद किसी प्रियजन की गंभीर बीमारी या मौत की खबर आती।शायद ही कभी यह
‘तार’ किसी की नौकरी या खुशखबरी की खबर
लाया हो !एक पुरानी फिल्म में ‘तार’ का
वास्तविक अर्थ तब समझ में आता है,जब घर के लोग बिना पढ़े ही ,‘तार’ पाने के साथ रोना-धोना शुरू कर देते हैं।बाद
में मास्टरजी ‘तार’ पढ़कर बताते हैं कि घर का लड़का वकील बन गया है तो अचानक मातम खुशी में बदल
जाता है।उस समय लोग अधिकतर ‘तार’ का
इस्तेमाल किसी अहैतुक घटना पर ही करते थे ,इसलिए जब भी ‘तार’ की खबर आती,लोग किसी
अनिष्ट की आशंका से घबड़ाने लगते।
उस दौर में ‘तार’ ने कभी सामान्य कुशल-क्षेम या प्यार-इज़हार की खबर नहीं दी।इस तरह इसकी छवि
आतंकित-सी करती थी।अब दिन-रात बातें तो होती हैं पर खबर या सन्देश लायक कुछ नहीं
बचा।मन में जो गुदगुदी चिट्ठी से या कभी-कभार फ़ोन से आती थी,वह
इस संचारी-समय में गायब है।लगभग हर समय एक-दूसरे के संपर्क में रहने के कारण संवाद
में हम सपाट और बेतकल्लुफ होते हैं और रोमांचहीन भी।इस असहज और अस्त-व्यस्त सी
ज़िन्दगी में ‘तार’ की भूमिका अपने आप
नगण्य हो गई।’बेतार’(वायरलेस) के आने
के साथ ही वह ’तार’ निष्प्राण हो गया,जो स्वयं कभी किसी के ‘निष्प्राण’ होने की सूचना देने का मुख्य जरिया बना करता था।
‘तार’ का जाना महज एक साधन का जाना भर नहीं है।इससे बहुत से लोगों के सुख-दुःख
जुड़े हुए थे।इसने कई पीढ़ियों को बदलते और रोते-कलपते देखा।यह कई घरों के उजड़ने का
गवाह रहा तो वहीँ दूर-देश से प्रियतम की खबर का माध्यम
भी बना।इस तरह ‘तार’ भले ही कभी-कभी
अपनी सेवा देता था,पर एक तसल्ली भी देता था कि अगर कुछ गड़बड़
होगा तो ‘तार’ ज़रूर आएगा।ऐसे में यह न
आकर भी कुशल-क्षेम का बायस तो बनता ही था।यानी यह हमारे जीवन का एक ज़रूरी हिस्सा
बन गया था।
आज भले ही हम नए ज़माने के
यंत्रों को हमेशा अपने साथ रखते हैं,फ़िर भी उनसे उस तरह का जुड़ाव
नहीं हो पाया है,जैसा कि ‘तार’ या ‘चिट्ठी’ के मामले में होता
था।’चिट्ठी’ या ‘पाती’
भी अब गुजरे जमाने की बात हो चली है,पर
औपचारिक रूप से उनका अस्तित्व अभी खत्म नहीं हुआ है।’तार’
का यूँ चले जाना भले नई पीढ़ी के लोगों को न अखरे पर जिनका इससे
आत्मीय जुड़ाव रहा है,उनके लिए इसका ‘निधन’
अपने ही किसी आत्मीय के जाने जैसा है।ऐसे में हमारा ‘बेतार’ होना दुखद नहीं तो क्या है ?
सच कहा, एक अध्याय का अन्त..
जवाब देंहटाएंसाधन की उपयोगिता समाप्त होने पर साधन का खत्म होना लाज़मी है ..... अब बस इसका इतिहास ही याद रहेगा ।
जवाब देंहटाएंतार से तारतम्य कभी का छूट चुका था, उसका जाना अवश्यंभावी ही था।
जवाब देंहटाएंअमूमन लोगों को तार का आना बुरी सूचना से ही जुडा होने का अंदेशा रहता था.
जवाब देंहटाएंलेकिन तार से हम अलग रूप से जुडे थे, जो कि हमारी रोजी रोटी यानि व्यापार का एक जरिया था. उन दिनों में भावों का पता, कुछ भी व्यापारिक उतार चढाव के लिये यही एक मात्र सहारा था. टेलीफ़ोन की लाईनें तो मिलती ही नही थी.
हमारे व्यापार का अधिकतम कार्य तार के द्वारा ही होता था, हर व्यापारी का एक टेलीग्राफ़िक एड्रेस अलग से होता था जिसका रजिस्ट्रेशन करवाना रहता था और हर साल रिन्य़ुअल लगता था. टेलीफ़ोन के 185 नंबर पर तार लिखवाने के लिये लाईन लगती थी.
रोजाना के दस पंद्रह तार आना और इतने ही जाना, यह हमारा सीधा जुडाव था. हालांकि बाद के युग में यह खत्म सा हो गया और अब तो काफ़ी सालों से तार वाले दीपावली का इनाम लेने भी आना बंद हो गये.
खैर एक अध्याय का अंत हुआ...तकनीकी युग है. वैसे बेटा, बाप को और चेला गुरू को रिप्लेस कर देता है, वैसा ही यहां भी हुआ.:)
रामराम.
बिज़ली का तार पहले आया जो छूने भर से लोगों की जान ले लेता था -फिर यह तार आया तो जाहिर था कि इसे भी जनमानस में अशुभ सूचक होना था ! बढियां लिखे हैं -हम डाक विभाग के कौनो बड़े अधिकारी होते तो कुछ इनाम अकराम भी देते :-)
जवाब देंहटाएंहम तो सोच रहे हैं कि आपकी व्यथा को डाक तार विभाग तक पहुंचा दें। साथ में कुछ सिफारिश भी कि और दस बीस साल रहने दें , आपका क्या जाता है ! :)
जवाब देंहटाएंयह एक युग का अवसान है.
जवाब देंहटाएंसमय बड़ा बलवान है
आपने लिखा....हमने पढ़ा
जवाब देंहटाएंऔर लोग भी पढ़ें;
इसलिए आज 16/06/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक है http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
आप भी देख लीजिए एक नज़र ....
धन्यवाद!
अच्छा लगा पढ़ना। मुझे याद है..पिताजी भैया से कहते थे पहुँचते ही 'तार' कर देना। अधिक लिखने की आवश्यकता नहीं है, REACHED लिखने से काम चल जायेगा। :)
जवाब देंहटाएंसच कहा आपने...एक अध्याय समाप्त हो गया....अब ये बस याद है
जवाब देंहटाएंतार की मीठी सी याद-भर रहेगी
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