19 मार्च 2012

मोहब्बत है या तिज़ारत ?

आज वो हमसे अपना हिसाब माँग रहे,
हम तो फ़कीर थे,सब कुछ लुटा दिया ! (१)

हमारी सदा नहीं उन तक  पहुँच रही,
हमने ज़हर का घूँट,जिसका सदा पिया ! (२)

उगते हुए  उजाले के  संग वो हुए ,
छोड़कर कम तेल का,बुझता हुआ दिया !(३)

हम खुश रहेंगे फिर भी हर हाल में,
चाहकर के उनको ,हमने बुरा किया ? (४)

मोहब्बत से हमने  यूँ लिया सबक,
कुछ ने महज़ नफ़े का,सौदा बना लिया !(५)

रुसवाई नहीं मेरी,उनसे नहीं गिला,
बस उसूलों से उनने,ज़रा फ़ासला किया !(६)

59 टिप्‍पणियां:

  1. कुछ ने बस महफूज सा सौदा बना लिया ? यही न ? :)

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    1. कब तलक महफूज़ रखेंगे वे दामन अपना,
      कभी तो उतरेंगे ज़मीं पर,छोड़कर सपना !!

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  2. दुनिया का तो दस्तूर यही है जी माट्साब,
    जो कुछ लिया, यहीं से लिया और यहीं दिया!
    भौतिकता के समाज का सच है ये घिनौना,
    अब इतनी छोटी बात पे छोटा न कर जिया!

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    1. माट्साब जाएँ कहाँ,ज़ालिम जहां को छोड़कर,
      आप रहेंगे साथ गर,लेकर बड़ा हिया !!

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  3. हमारी सदा नहीं उन तक पहुँच रही,
    हमने ज़हर का घूँट,जिसका सदा पिया ...

    ये अक्सर होता है दुनिया में ... जिसके लिए आप जीते मरते हैं वो पूछते भी नहीं हैं ... भई सभी शेर लाजवाब हैं ...

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  4. उगते हुए उजाले के संग वो हुए ,
    छोड़कर कम तेल का,बुझता हुआ दिया !(३)

    ....आज का सच...बहुत सुंदर और सटीक प्रस्तुति....

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  5. मोहब्बत से हमने यूँ लिया सबक,
    कुछ ने महज़ नफ़े का,सौदा बना लिया !

    वह वाह ! सही कहा है .
    सुन्दर ग़ज़ल .

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  6. अहा, बेहतरीन गजल..वाह..हर दिन निखार..

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  7. बहुत उम्दा - कुछ ने महज़ नफ़े का सौदा बना लिया

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  8. पकड़ प्रभू की पद्य पर, गजब गद्य गंभीर ।
    दीन मुहब्बत दीन की, मिली पीर दिल चीर ।
    मिली पीर दिल चीर, चाहतें हते हताशा ।
    पर मेरी तकदीर, नहीं है प्रिये बताशा ।
    हुआ उसूलन दूर, बढ़ाया जरा फासला ।
    सको नहीं तुम तूर, कभी इस जनम हौसला ।।

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    1. तरकश से बस आपके निकले केवल तीर,
      कुंडलिया बनकर गिरे ,असर करे गंभीर !

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  9. हमको तो गज़ल ने कुछ प्रभावित नहीं किया। वही पुराना रोना रोया गया है। गज़ल से बढ़िया तो कमेंट पर आये आपके उत्तर हैं।

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    1. देवेंद्रजी..आप सही कह रहे हैं,पर नए विषय थोड़ा कठिन लग रहे हैं.कोशिश करूँगा कि अगली बार मिलन के गीत गाऊँ.राजनीति व सामजिक-विषय भी आजमाने की कोशिश करूँगा.

      सादर !

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    2. आज वो हमसे अपना "हिसाब" माँग रहे ?

      हम तो "फ़कीर" थे , सब कुछ लुटा दिया ?


      हमने "ज़हर का घूँट जिसका" सदा पिया ?


      हम "खुश" रहेंगे फिर भी "हर हाल" में ?


      "चाहकर" के उनको ,हमने "बुरा' किया ?

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    3. अली साब,आपके संकेत समझना बड़ी टेढ़ी-खीर है !

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    4. ये तो तब भी फ़कीर और अब भी फ़कीर हैं
      धनवान तो वही हैं बस वही और केवल वही ...
      ता इलाही तूने कैसी कैसी सूरते बनायी हैं :)

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    5. शुक्रिया महाराज...आईना दिखाने के लिए !

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  10. हमारी सदा नहीं उन तक पहुँच रही,
    हमने ज़हर का घूँट,जिसका सदा पिया ! (२)

    न जाने क्यों मुहब्बत में ऐसे घूंट क्यों पीने पड़ते हैं .... खूबसूरत गजल

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  11. वाह जी वाह!
    हाथ बरसों से अपने खाली थे
    अपना क्या था जो अब गंवाना था

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    1. आपका यह शेर हमारी बची-खुची 'ग़ज़ल' भी खा गया !!

      आभार !

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  12. उगते सूरज के सब साथी होते हैं , रिवाज़ यही है , मगर हम उनसे निराले ही सही !
    कायदे - कानून के हिसाब से लिखना जटिल और कभी कभी बोझिल भी हो जाता है !

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    1. ठीक है पर यह मामला प्रेम में तकलीफदेह होता है !

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  13. रुसवाई नहीं मेरी,उनसे नहीं गिला,
    बस उसूलों से उनने,ज़रा फ़ासला किया

    उसूलों में मूल न हो तो भी फासला हो ही जाता है.
    प्रेम और प्यार का मूल हो,इर्ष्या द्वेष निर्मूल हों,
    तो फासला एक न एक दिन मिट ही जाएगा.

    सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार,संतोष जी.

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  14. अभिभूत करती रचना सार्थक प्रयास बधाईयाँ जी

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  15. आज वो हमसे अपना हिसाब माँग रहे,
    हम तो फ़कीर थे,सब कुछ लुटा दिया !
    .....बहुत ही बेहतरीन पंक्तियाँ बेहतरीन गजल संतोष जी

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    1. सच में अच्छा लगता है सुनकर ऐसा उत्साहवर्धक बयान !

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  16. मोहब्बत से हमने यूँ लिया सबक,
    कुछ ने महज़ नफ़े का,सौदा बना लिया !
    यह सौदेबाजी कभी कभी बहुत भारी पड़ जाती है। ऐसा दिल रखने वाले को क्या सकून आ पाता है?

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    1. ...मगर क्षणिक-आनंद की प्राप्ति तो हो ही जाती है !

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  17. सर जी , आप अपनी रचनाओं में इतनी रवानगी और ताजगी कहाँ से ले आते हैं ! कुछ हमें भी सिखाएं ! बेहतरीन और ताजगी से भरी गजल !

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