चुनाव के वक्त हिन्दू होते हैं,मुसलमान होते हैं,
फ़िर पाँच साल तक ,हम इंसान होते हैं !
सालों बाद उनने हमें गौर से जाना ,
सब राज-पाट ले लो, इक अंगूठे के लिए,
बस थोड़े दिनों के वे , जजमान होते हैं !
रख के भी क्या करोगे,जो है तुम्हारे पास,
रखने वाले हर दम, धनवान होते हैं !
आपकी नजदीकियाँ ,अब समझ आई हमें,
बहुत दिनों तलक, हम नादान होते हैं !
हर तरफ से उठ रही , आज ये आवाज़,
हमारी भी जिंदगी के अरमान होते हैं !
इस बदलती रुत ने ,समझा दिया हमें,
मौसमी हैं बादल,मेहमान होते हैं !
मौसमी हैं, झड़ जायेंगे,
जवाब देंहटाएंसन्नाट संदेश..
..फिर आ जायेंगे,बच के कहाँ जायेंगे ?
हटाएंआप कसीदे काढते रहें और हम मैदान में जमे हैं ....
जवाब देंहटाएंआप देखते रहें कहीं गडबड़ी न हो जाए !
हटाएंतगड़ी गोलिया चलाई हैं ....
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें शिकारी को !
शिकारी इस बार भी खाली हाथ लौटेगा,
हटाएंनिशाना फिर से चूकेगा,सयाने हैं परिंदे ये !
परिंदे मारना लाज़िम, अगर अपना वजूद चाहो !
हटाएंकभी बाजों की संगति में कबूतर जी नहीं सकते
अब लगा है तीर निशाने पर,
हटाएंकब तक बचायेगा वो अपने पर !
वास्ते सतीश भाई ,
हटाएंदरिंदे मारना लाजिम ,अगर अपनी ज़मीं चाहो !
कबूतर एक हो जायें तो शाहीं जी नहीं सकते !!
बाज के चरण पकड़ें फिर जमी पर आ गिरें
हटाएंइस तरह उड़ने से अच्छा, केचुए रेंगा करें।
@ अली भाई और देवेन्द्र पाण्डेय ,
हटाएंआज तो रंग जमा दिया आप लोगों ने ....
परिंदे शायद संतोष भाई ने बाज जैसे दरिंदों के लिए ही कहा है
आनंद आ गया !
आप तीनों से निवेदन है कि इसे आगे बढ़ाएं तो और मज़ा आये ....
बाज से भी ज़्यादा ,मज़बूत हैं दरिंदे,
हटाएंशिकारी रहा समझ ,फक़त इन्हें परिंदे !!
बड़े शातिर दरिंदे हैं साधू हो नहीं सकते
हटाएंपरिंदे कैद हैं हर सूँ साथी हो नहीं सकते।
बहुत ज़बरदस्त व्यंग है .. अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआभार !
हटाएंचुनाव के समय हम,हिंदू-मुसलमान होते है
जवाब देंहटाएंबाकी के पांच सालों तक,हम इंसान होते है
खरी करारी रचना बहुत अच्छी प्रस्तुति,बेहतरीन पोस्ट....
new post...वाह रे मंहगाई...
सुधार के लिए आभार....चाहता मैं भी था,पर कुछ कारणों से वह पंक्ति बड़ी होने पर भी रखा !
हटाएंWELCOME to may new post...वाह रे मंहगाई...
हटाएंहो आयें हैं जी....!शायद अब घट गई हो !
हटाएंbahut khoob !!!!
जवाब देंहटाएंखूब-खूब आभार बज़रिये देवेन्द्र जी !
हटाएंइस बदलती रुत ने ,समझा दिया हमें,
जवाब देंहटाएंमौसमी हैं बादल,मेहमान होते हैं !
आपके मस्त दोहे पढ़ पढ़ कर अब हम भी ख़बरदार हो रहे हैं.
सुन्दर मस्त प्रस्तुति के लिए आभार.
समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर भी आईयेगा,संतोष जी.
एवमस्तु !
हटाएंमौसमी ही हैं । बस यह मौसम आता है पांच साल में ।
जवाब देंहटाएंअच्छा है,जल्दी आएगा,तो फिर से....हमें बंटना होगा !
हटाएंअतिथि देवो भव, चुनाव मेहमान का स्वागत.
जवाब देंहटाएंकाश ! ऐसा मेहमान जल्दी न आये !
हटाएंदो बार पढकर सोचा ! इन लोगों के बारे में टिप्पणी करने की इच्छा नहीं हो रही :)
जवाब देंहटाएं@इन लोगों के बारे में टिप्पणी करने की इच्छा नहीं हो रही :)
हटाएंअब इससे भी ज़्यादा कुछ बचता है इनके बारे में ?
आपकी यह मौसमी रचना काबिले तारीफ है।..बधाई हो।
जवाब देंहटाएंउनकी तरह रचना भी अब मौसमी हो गई है,
हटाएंवे रोज़ जो आने लगे ,तो समझो शामत आ गई !!
कुछ नी ओ सक्ता.
जवाब देंहटाएंहम्म भी नईं रुक सक्ता !
हटाएंज़बरदस्त बहुत सटीक रचना प्रस्तुत की है आपने
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकर....आपकी रचनाएं पढकर और आपकी भवनाओं से जुडकर....
जवाब देंहटाएंआप डॉ. अरविन्द मिश्रजी से सलाह लें तो ज़्यादा कुछ कर पाएंगे .
हटाएंआपका आभार !
सालों बाद उनने , हमें गौर से पहचाना ,
जवाब देंहटाएंहम उन्हीं के मंदिर के भगवान होते हैं ..
क्या बार है ... कुछ ऐसा ही हमारे नेता भी समझते हैं पर केवल वोट के लिए ... फिर भूल जाते है ....
नासवा जी ,आपका आभार !
हटाएंसंतोष जी...
जवाब देंहटाएंमेरी एक शिकायत पर गौर फरमायें। शिकायत यह है कि..
आप सभी के कमेंट का प्रत्युत्तर दे रहे हैं सिर्फ एक रचना त्यागी जी को छोड़कर। क्षमा करें यह आपका व्यक्तिगत मामला है लेकिन धन्यवाद तो बनता ही है। मैं नहीं समझ पा रहा कि उनका क्या अपराध है!:)
आपकी शिकायत दूर कर दी गई है, मौक़ा-मुआयना कर सकते हैं :-)
हटाएंवैसे केवल औपचारिक टीप का औपचारिक जवाब देने से बचता हूँ , बकिया रचना जी से कोई एलर्जी नहीं है !
आपका आभार इतनी सूक्ष्मता से बाँचने के लिए !
:)
हटाएंरोते, पीटते, मांगते कट जाती है ज़िन्दगी
जवाब देंहटाएंपर इन्हीं 2-4 दिन हम भी भगवान होते हैं
असली भगवान की केवल एक दिन पूजा !
हटाएंसारा खेल ही मौसमी है, तो धर्म और धार्मिकता भी ऐसी ही चलेगी न फिर ?
जवाब देंहटाएंराजनीति मौसमी है,धर्म तो सनातन है !
हटाएंआपके और हमारे लिए तो सनातन है संतोष जी - हमारे राजनीतिज्ञों की बात कर रही थी मैं ... पल में तोला , पल में माशा वाले लोगों की ...
हटाएंबिलकुल दुरुस्त फ़रमाया शिल्पा जी !
हटाएंसुन्दर, सटीक, सामयिक रचना।
जवाब देंहटाएं(हमारी पिछली टिप्पणी लगता है फिर से स्पैम के खड्डे में गिर गयी।)
...शायद ऐसी ही टीप के इन्तेज़ार में वह खड्ड में थी,अब निकल आई है !
हटाएंआभार !
आपकी ही पंक्तियों से,
जवाब देंहटाएंहर तरफ से उठ रही , आज ये आवाज़,
हमारी भी जिंदगी के अरमान होते हैं !
.....यही वो मौसम है अपने -अपने अरमानों के साकार करने का !
सब चुने
सही चुने !
..आपने सही पकड़ा !आभार
हटाएंबहुत ही रोचक रचना।
जवाब देंहटाएंचुनाव-घटना भी कम रोचक नहीं है !
हटाएंइत्ते से भी मान जाए तो काहे के घाघ?
जवाब देंहटाएंऊ हैं अपने जंगल के बाघ !
हटाएंभावों और शब्दों का उत्कृष्ट संयोजन बेहद गहन अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंआभार !
हटाएंअच्छे और सच्चे दोहे...
जवाब देंहटाएं..जो मन को मोहे !
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