साभार:गूगल बाबा |
नेता रोटी खायेंगे,छोड़ के छप्पन-भोग !!
बुत में परदा डालते,बनते हैं नादान !
सारे अच्छे काम हैं,घूँघट में आसान !!
सबने हाँका दे दिया,चलो गाँव की ओर !
वोट मिलेगी जाति की ,चूसेंगे हर पोर !!
बोरे भर वादे लिए,थैली भर संकल्प !
फिर से छलने आ गए,रहा न पास विकल्प !!
विकल्प तो महाराज ... तलाशना ही होगा ... चाहे जैसे भी हो ... जो भी हो ...
जवाब देंहटाएंयह काम भी इत्ता आसान नय है,बाबू !
हटाएंछला-छली या चला-चली
जवाब देंहटाएंहमारे लिए छला-छली ,उनके लिए चला-चली !
हटाएंआप इस विधा में भी पारंगत हैं, इस पोस्ट से प्रमानित होता है।
जवाब देंहटाएंजनसत्ता में छपने के लिए बधाई।
आप तो गुरु हैं,बकिया आभार आपका !
हटाएंSankalp me vikalp ka hota nahin hai prakalp
जवाब देंहटाएंSankalp voter ko lootne ka, kaise bane vikalp ?
इसीलिए उनके पास संकल्प कम हैं,जैसे हमारे पास विकल्प !
हटाएंचकाचक है जी! :)
जवाब देंहटाएंटीप भी चकाचक है !
हटाएंनेता घर घर फिर रहा सबके लागूँ पाय
जवाब देंहटाएंसत्ता फिर से खेंच लूँ बचता यही उपाय
एकठो दोहा आपने,आखिर दिया बनाय !
हटाएंपढ़ लेगा सन्देश वो,तब भी रुका न जाय !
वाह जी बढ़िया.
जवाब देंहटाएंसंकल्प या विकल्प !
हटाएंबस केवल छौंक बघार से ही कम नहीं चलेगा ..पूरा भोजन चाहिए!
जवाब देंहटाएंहमरे पास तो नाश्ता है,पूरी प्लेट तो बहिन जी के पास है !
हटाएंबुत में परदा डालते,बनते हैं नादान !
जवाब देंहटाएंसारे अच्छे काम हैं,घूँघट में आसान !!
घूँघट में सारे अच्छे काम आसान हैं. वाह!
मस्त मस्त दोहें हैं जी.
कोई देखे भी ना,
हटाएंवो अच्छे भी लगते रहें !
अद्भुत दोहे आपके, राजनीति के रंग,
जवाब देंहटाएंनेताओं के आपने खूब बताए ढंग!
गिद्ध खात मृत जीव को, जीवित को नहीं खात,
नेता हमरे खाए लें, पैसा, मानुस जात!
जिंदा-मुर्दा खात सब,ई नेता की जात ,
हटाएंताते नेता ना बने,खाली खाएं भात !
कलयुग के ये कालनेम है सब कुछ इनकी माया है
हटाएंराष्ट्रप्रगति का सारा धन, इनके पेट समाया है
बस यही देखने आये कि अभी तक अली सा'ब आये कि नहीं ?
जवाब देंहटाएं:)
आप गए कि वो आये,
हटाएंथैली भर बोरा लाये !
थैली थैला और झोले बोरे का नाम ना लो
हटाएंई चुनावी दोहों को कोई और नाम ना दो!
बेहतर दिन और जीवन की आस सपनों में
जवाब देंहटाएंअर्थ की आस प्यास और खटास अपनों में
जनविकास की नीतियां बुतों में अटक गईं
चुनाव की प्याली में तूफ़ान सी खटक गईं
यही वक़्त है सही वक़्त है गाँव जाकर लूट लो
जय करो फिर वोट काटो और यहाँ से फूट लो
गर आपकी अंधी दया, यूँ ही बनी रहेगी,
हटाएंफसल उनकी औ हमारी ,चौगुनी बढती रहेगी !
ही ही ही हू हू हू हा हा हा हा आहा
हटाएंचुनाव के चक्कर में सब है स्वाहा!
@अली सा'ब के समर्थन से :)
सच है प्रवीण भाई ....
जवाब देंहटाएंकिंकर्तव्य विमूढ़ से बैठे हैं ..क्या करें इस बार !
हाँ सतीश भाई,पर मैं प्रवीण नहीं हूँ !
हटाएंभूल सुधार :
हटाएंकृपया मेरी टिप्पणी में प्रवीण की जगह संतोष पढ़ा जाए ..
संतोष भाई , लगता है उम्र हो गयी है सो आप दोस्तों को झेलना ही है :-)
सठिया तो हम गए हैं गुरु.....:-)
हटाएंखूब-सूरत प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत बधाई ||
कटाक्ष है जनाब.. बेहतरीन.. इस चुनावी सरगर्मी में..
जवाब देंहटाएंप्यार में फर्क पर अपने विचार ज़रूर दें...
दे दिया है ,देख लें !
हटाएंprabhavshali asarkari dohe
जवाब देंहटाएंबोरे भर वादे लिए,थैली भर संकल्प !
जवाब देंहटाएंफिर से छलने आ गए,रहा न पास विकल्प !!
बहुत अच्छे और मारू दोहे :)
जवाब देंहटाएंअगर किसी को लग जाएं तो...!
हटाएंतो हम आकर मरहम लगा देगे,....
हटाएंसारे अच्छे काम घूंघट में वाह..
जवाब देंहटाएंबाहर वालों की निकले आह ;-)
हटाएंखुराफातियों के लिए एक राह :)
हटाएंहम बूढों की सुनो कराह !
हटाएंहमारी तो बस एक ही चाह
हटाएंरचना पढकर बोले,वाह,वाह,....
welcome to new post--काव्यान्जलि : हमदर्द.....
चुनावी दोहे भी अब संगीन आ रहे हैं
जवाब देंहटाएंटीप सादे हैं, उत्तर रंगीन आ रहे हैं!
आप आये,बहार आई!
हटाएंपोस्ट की अब हुई कमाई !!
हमारा भी तो हिस्सा बनता है भाई,...
हटाएंआप भी आओ छोड़ रजाई !!
हटाएंदोहों में ही सही, राजनीतिज्ञों की अच्छी खबर ली है।
जवाब देंहटाएंउनकी क्या खबर हम लें,
हटाएंजो औरों की रखते हैं !
चिकोटी काटते दोहे. लेकिन उनकी खाल बहुत मोटी है.
जवाब देंहटाएंकोई नहीं,पत्रकार लोग तो महीन कर देते हैं !
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