अपने नियमित वार्तालाप के चलते कल जब डॉ. अरविन्द मिश्र जी को फोन लगाकर पूछा कि आप कैसे हैं,कहाँ हैं तो उन्होंने रहस्यमयी आवाज़ में फुसफुसाते हुए बताया,"यहीं दिल्ली में". एक बारगी कानों को भरोसा नहीं हुआ पर फिर तसदीक करने पर मैं बड़ा प्रसन्न हुआ.उन्होंने बताया कि अचानक विज्ञान के अंतर्राष्ट्रीय सेमीनार में शामिल होने वे बनारस से हवाई रास्ते से दिल्ली आ गए हैं और अगले तीन दिनों तक यहीं रहेंगे. इस बीच भारी व्यस्तता के बावजूद हमारी उनकी बात होती रही. मैं उनसे पहली मुलाक़ात के लिए बेसबरा हुआ जा रहा था.
ब्लॉगर चाय-पार्टी में बाएं से जाकिर अली ,दर्शन लाल बवेजा,डॉ. अरविन्द मिश्र, मैं और निमिश कपूर जी (ब्लॉगर नहीं) |
आज दोपहर मैं और अविनाश वाचस्पतिजी कम्प्यूटर सम्बन्धी कुछ काम से नेहरू प्लेस में मिले तो उन्होंने भी फोन पर मिश्राजी से बात करी और जाने का मन बनाया,पर बाद में वे अपने स्वास्थ्य सम्बन्धी कारणों से मेरे साथ पूसा में हो रहे सेमिनार में न जा सके,मैं अकेले ही फुर्र हो लिया !
डॉ. अरविन्द मिश्र,दर्शन जी और जाकिर जी फुरसतियाते हुए ! |
दिल्ली के बिलकुल बाहरी छोर पर बहुत ही सुंदर स्थान पर NASC का काम्प्लेक्स बना हुआ है.मैंने हाल में टहलते हुए अरविन्दजी को दूर से ही देख लिया और झट से उनकी बगल में जाकर खड़ा हो गया.वे भी मुझे देखते ही उछल पड़े और साथ खड़े यमुना नगर (हरियाणा) से आये दर्शन लाल बवेजा जी और लखनऊ से ज़ाकिर अली 'रजनीश' जी से मेरा परिचय कराया.मजे की बात यह रही कि मिश्र जी से भी मेरा आमने-सामने परिचय पहली बार हो रहा था.
बस...फिर हम सब बाहर प्रांगण में आ गए और मिश्र जी ने दूरंदेशी दिखाते हुए सलाह दी कि जाते हुए सूरज की रौशनी में फोटू-सोटू ज़रूर हो जायं ताकि यह सेमीनार छोटे-मोटे ब्लॉगर-मिलन की तरह यादगार हो जाए !फिर तो,दर्शन जी,जाकिर जी और एक कर्नाटक के सज्जन तथा एक मोहतरमा को इस फोटो- सेशन में शामिल कर लिया गया.किसी के कैमरे तो किसी का मोबाइल चमकने लगा,हम सब इत्ती सर्दी में भी फूल के कुप्पा हुए जा रहे थे.
डॉ. मिश्र की जकड़न में हम ! |
अंदर आने पर चाय व कॉफ़ी का आनंद लिया गया.इसके बाद बैठकर ब्लॉग-जगत की पिछली-अगली बातें की गयीं.डॉ.अमर कुमार याद किये गए.मिश्राजी ने कुछ नाजुक मसलों को भी छेड़ा,जिस पर खूब ठहाके लगे.इसे ब्लॉगिंग की अनिवार्यता बताया गया.वहां किस विषय पर सेमिनार किया जा रहा है,इस पर ज्यादा चर्चा तो न हुई ,हाँ,शाम को होने वाले कार्यकर्म,"ट्रेडिशन तो ट्रांजिशन" पर ज़रूर कुछ बातचीत हुई. मिश्र जी ने ट्रेडिशन को शुद्धता और शुचिता से जोड़ा जबकि मैंने इसे कठोर व ट्रेडिशन को लोचदार बताया. इस कार्यक्रम में प्रसिद्द कत्थक नृत्यांगना नम्रता पमनानी की प्रस्तुति रही,जिसे थोड़ी देर देखकर ,व्यस्तता के चलते मैं वापस आ गया.
क्या करूँ,दर्शनजी,जाकिर जी या मिसिर जी को छोड़कर मैं वापस तो आ गया,पर दिल वहीँ रख आया.वे अभी बारह जनवरी तक वहीँ हैं,हो सकेगा तो फिर जाऊँगा !
अस्वस्थ होने के बावजूद आज (११ जनवरी २०१२) अविनाश वाचस्पति जी मेरे साथ जाने को उद्यत हुए और हम सबने वहां खूब आनंद लिया .उसका भी चित्र दे रहा हूँ !
अस्वस्थ होने के बावजूद आज (११ जनवरी २०१२) अविनाश वाचस्पति जी मेरे साथ जाने को उद्यत हुए और हम सबने वहां खूब आनंद लिया .उसका भी चित्र दे रहा हूँ !
कमाल है हमें पता ही नहीं चला ...
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें आपको !
गोपनीय यात्रा को मान्यवर ने उजागर कर दिया ...माफी, अगली बार अब !
हटाएंऐसे स्थानों पर न होना
जवाब देंहटाएंमुझे अवसादग्रस्त बनाता है
दिल चाहता है
पर शरीर साथ छोड़ देता हूं
रुख मन का भी मोड़ देता है
अवसाद पाल रहे हो
क्या रहे हो मेरी दुनिया में
मेरे पास चले आओ स्वामी (अन्नाभाई)
आना तो चाहता हूं मैं भी जल्दी
कुछ औपचारिकताएं शेष हैं
जो मेरे लिए विशेष हैं
करना चाहता हूं आंखें दान
शरीर भी देना चाहता हूं दान में
आत्महत्या भी नहीं करूंगा
तू बुलाएगा तो मना नहीं करूंगा
पर पत्रिकाएं, पुस्तकें वगैरह
जो संचित हैं पास मेरे
सब सौंपना चाहता हूं
डर लगता है रद्दी वाले की भेंट न चढ़ जाए
बस जरूरी यही काम हैं
निबट जाएं तो ठीक मेरे निबटने से पहले
नहीं निबटे तो भी क्या कर लूंगा
तू बुलाएगा तो साथ तेरे चल दूंगा
सच्चाई जान रहा हूं
हो रहा है आत्मबोध
सब अपने लिए जीते हैं
कुछ तो खुद ही अपना खून पीते हैं
मैं भी पी रहा हूं
बीमार हूं पर इतना नहीं
खुद के कामों पर भी अवलंबित रहूंगा
राह तकता रहूं अन्यों की मदद की
वह अन्य परिवार जन मुख्य हैं
पर मैं न आपको तंग करना चाहता हूं
न अन्य सबको।
खुद ही खुशी से
चला जाता हूं
भागता हूं, दौड़ता हूं
दरअसल कार चलाकर पहुंचता हूं
लेने दवाईयां भी
इंडेट कराने
रक्त देने अपना तो
मुझे ही जाना पड़ेगा
सो जाता हूं
जांच रिपोर्ट लेकर
डॉक्टर से भी कराता हूं जांच
और लेता-मानता हूं सलाह।
फिर लगवाता हूं इंजेक्शन
वैसे तो सप्ताह में एक
जब जरूरी हो तो दो
तीन भी
बल्कि दो तो जरूरी हैं
रक्तजांच के लिए भी
लगती है सुई
और दवाई देने के लिए भी
चुभती है सुई
वह बात दीगर है
अब दर्द नहीं होता है।
प्रति सप्ताह तीन या चार दिन
इसी में व्यस्त रहता हूं
और जो समय बचता है
अखबार पढ़ता हूं
थकता हूं
थकान के कान नहीं मरोड़ पाता हूं
लिखता हूं
छापना संपादकों की जिम्मेदारी है
चिट्ठे पर छापने के लिए
नहीं करनी होती किसी की जी हजूरी है।
आप भी चिट्ठा बनाएं
अपनी भावनाओं को सामने लाएं
अभिव्यक्ति को अपनी खुला स्वर दें
किसी की बंदिश में न रहें
आए बाधा तो मुझे बतलाएं।
मेरी चिंता से चिंतित न हों
बस एक चिट्ठा जरूर बनाएं
मुझे सुख मिलेगा
हिंदी सुखी होगी
हिन्दुस्तान सुखी होगा
प्रत्येक मन कमल में
प्रसन्नता का फूल खिलेगा।
नकारात्मक विचारों को हावी न होने दें अविनाश भाई !
हटाएंकुछ नहीं होगा आपको ..अभी मीलों चलना है !
शुभकामनायें आपको !
आप शीघ्र स्वस्थ हों अविनाश जी ,,अब तो एक ब्राह्मण का भी आशीर्वचन है ....
हटाएंवाह जी. दिल्ली की ठंड में मंड.
जवाब देंहटाएंवाकई कमाल है!
जवाब देंहटाएं@ सतीश भाई ,
जवाब देंहटाएंये अब पता चलने वाली शुभकामनायें हैं या पहले ना पता चलने वाली :)
@ संतोष जी ,
एक बारगी कानों को भरोसा नहीं...की जगह 'एक बारगी कानों पे भरोसा नहीं' कहिये :)
दिन ढलते वक़्त की धूप में आप सबकी जवानी निखर रही हैं चेहरों का सौंदर्य देखते ही बनता है :)
तीसरा चित्र अदभुत है जहां तीन ब्लॉगर ने दो शैडो ब्लागर्स के साथ ग्रुप फोटो खिंचवाया हैं :)
ज़ाकिर अली और आप तो मूलतः साइंटिस्ट नहीं है इसलिए आप दोनों को छोड़ कर पहला चित्र आश्वस्त करता है कि इस देश के वैज्ञानिक गण अत्यंत सुखी और संपन्न हैं :)
अली की नज़र नाम का एक अलग ब्लॉग ही होना चहिये !
हटाएं...तथा एक मोहतरमा को इस फोटो- सेशन में शामिल कर लिया गया
जवाब देंहटाएंकिधर हैं जी वो जिन्हें आपने मोहतरमा कहा!
...पर दिल वहीँ रख आया
दिल उठा लाओ भाई। खून पम्प करने के लिये कोई दूसरा पम्प खरीदा है क्या?
अविनाश वाचस्पति जी की टिप्पणियां पढकर उनकी चिंता होती है। उनकी तबियत कुछ ज्यादा ही खराब लगती है।
अनूप भाई ..हम आपकी तरह मोहतरमाओं को फोकस नहीं करते ....वे बेहद अन्तरंग सामग्रियां हैं !
हटाएंकाश हमहुँ एहि अवसर पावा..
जवाब देंहटाएंएक तापस तेहिं अवसर आवा..थे तो आप वहीं! :)
हटाएंवाह जी वाह !
जवाब देंहटाएंअद्भुत मिलन.....
अद्भुत काम तो आपने किया है.....हमारी जवाबी सेटिंग करके ! आभार !
हटाएंजय जय !
हटाएं@तीसरा चित्र अदभुत है जहां तीन ब्लॉगर ने दो शैडो ब्लागर्स के साथ ग्रुप फोटो खिंचवाया हैं :)
जवाब देंहटाएंअली साब उन मोहतरमा की छाया मिसिर जी पर पड़ रही है,आप की नज़रें क़यामत ढाती हैं !
@ अनूप जी
अविनाशजी की सेहत थोड़ी गड़बड़ तो है पर चिंता की बात नहीं,वे ऐसे ही खुश रहते हैं.
मोहतरमा ने कैमरा हाथ में ले लिया था और उन्हें अली साब ने छाया में पकड़ लिया है,जिसमें वे मोबाइल पर बात कर रही हैं !
@सतीश जी और देवेंद्रजी
जवाब देंहटाएंकमाल तक तो ठीक है बस मलाल न होना चाहिए !
नजरें हों तो अली जी जैसी, जहां पड़ीं, वही निहाल.
जवाब देंहटाएंवाह ये मिनी ब्लोगेर मिलन भी खूब रहा ... तुरत फुरत में हुवा ब्लोगेर मिलन और उसकी रपट भी जोरदार रही ...
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बधाई |
जवाब देंहटाएंवैज्ञानिक ब्लागर मिलन कहें तो अतिशयोक्ति न होगी न...
जवाब देंहटाएंत्रिवेदी जी
जवाब देंहटाएंनमस्कार
आज पहली बार आप के ब्लॉग में आया हूँ, बैसवारी,पढ़ कर आपका प्रोफाइल देखा .पूरेपान्ड़ें,छिवलहा,का नाम देख बचपन की यादे ताजा हो गई. मेरा बचपन भी रौतापुर ग्राम में बीता है. सुन्दर प्रस्तुति , शुभकामनायें.
vikram7: हाय, टिप्पणी व्यथा बन गई ....
विक्रमजी,आपसे मिलकर और बातकर खुशी हुई !
हटाएंअच्छा तो मिश्र जी दिल्ली की सर्दी का आनंद ले रहे हैं !
जवाब देंहटाएंहमारी तरफ से भी शुभकामनायें ।
वास्तव में अली सा की नज़रें बहुत तेज हैं ।
बढ़िया है जी. दिल तो गया आपका. :)
जवाब देंहटाएंअकेले ही अकेले आनंद लिया,कोई बात नही,.आप भी तो अपने हो बहुत सुंदर,
जवाब देंहटाएंwelcome to new post --काव्यान्जलि--यह कदंम का पेड़--
एक और फोटू..! बवाल है।
जवाब देंहटाएंकुछ फोटुएं भी बवाल का सबब होती हैं !
हटाएंएक पंथ दो काज संपन्न हुए ...
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें !
धन्यवाद संतोष जी
जवाब देंहटाएंhttp://www.sciencedarshan.in/2012/01/international-conference-on-science.html
आपसे और दर्शन जी से पहली बार मिलना हुआ। लेकिन यह मुलाकात याद रहेगी।
जवाब देंहटाएंज़ाकिर भाई और दर्शन भाई ,आप का मिलना सुखद रहा !
जवाब देंहटाएंमिनी ब्लोगेर मिलन भी खूब रहा
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