मैंने उन्हें सांत्वना देने की कोशिश करते हुए समझाया ,"काका ! अब जमाना काफ़ी बदल चुका है और राजनीति भी। जब डाकू रत्नाकर अपना मन बदल कर महर्षि वाल्मीकि बन सकते हैं, हिन्दुओं का बड़ा ग्रन्थ लिख सकते हैं तो ये छोटे-मोटे धंधे करके अपने परिवार का पेट पालने वाले नेता क्यों नहीं बदल सकते ? इनके बदलने से अगर कोई पार्टी शुद्ध हो रही हो , सत्ता के नजदीक आकर लोगों की सेवा के लिए बेताब हो तो इसमें हर्ज़ ही क्या है ?"
काका मेरी बात से मुतमईन न लगे। मैंने उन्हें और पौराणिक उदाहरण दिए। काका सुनो, "जब भगवान राम को लंका में बुराई पर अच्छाई की जीत चाहिए थी तो उन्होंने विभीषण को अपनी ओर मिलाया ताकि बुराई को ख़त्म करने में मदद मिल सके। अब वही काम राम के भक्तों वाली पार्टी कर रही है तो यह एक आदर्श स्थापित हो रहा है। आप नाहक परेशान हैं। इस पार्टी के लोगों ने यह भी कहा है कि उनके यहाँ जो भी आता है,पवित्र हो जाता है,बिलकुल पतितपावनी गंगा की तरह !"
काका ने फिर प्रतिवाद किया, "अभी दो दिन पहले ये सब संसद में हंगामा मचाय रहे कि मज़बूत लोकपाल लाना बहुतै ज़रूरी है और अन्ना बाबा का हमरा फुल सपोट है,तो उसका क्या ?" हमने कहा, "काका ! ई लोकपाल तो तभी जाँच करेगा न , जब कोई घपला-घोटाला होगा। सो, उसकी उपयोगिता को प्रमाणित करने के लिए पहले कुशल भ्रष्टाचारियों की भर्ती भी तो ज़रूरी है। बाद में जाँच शुरू होते ही वे उन्हें हटाकर डंके की चोट पर पाक-साफ भी बन जायेंगे। आखिर पार्टी विद डिफरेंट भी तो दिखना ज़रूरी है। जो भी सेवा कार्य या देश हित करना है, वह सत्ता में आये बिना कैसे हो सकता है ? सो, कुर्सी के लिए थोड़ा एडजस्टमेंट करने मा का बुराई है ?"
अब तक बदलू काका हमारी बातों से सहमत हो गए लग रहे थे, हम फिर से मिलने का वादा करके घर चले आए क्योंकि शाम के समाचारों में क्या पता ...... कोई फिर पवित्र हो गया हो ?
राजनीति जो न करा दे..
जवाब देंहटाएंसही बात है...बाल्मीकि महर्षि पार्टी में रखने के लिए पहले डाकू तो लाने ही पड़ेंगे न, ताकि उन्हें झाड़-पोंछ कर महर्षि बनाया जा सके... पार्टी में, आज के डाकू कच्चा माल हैं, उत्तम उत्पादन के लिए...
जवाब देंहटाएंअब तक बदलू काका हमारी बातों से सहमत हो गए लग रहे थे,हम फिर से मिलने का वादा करके घर चले आए ...जैसे आप गयेन रमई काका, तन्नी गुरू अउर फलाने ढेकाने सब मिली के बदलू काका का मजाक उड़ाये लागेन। सब कहत रहेन कि मास्टर साहब खूबै पिंगल बोलि गयेन राजनीति मा।
जवाब देंहटाएंचित्र देखकर तो लग रहा है कि अभी भी बदलू काका आम आदमी की तरह आपसे सहमत नहीं लग रहे? पार्टी विद डिफरेंस में धब्बा तो है ...इसमें कोई गुरेज नहीं ...पर कब और कितनी मान्यताएं बदल जाएँ ....क्या पता?
जवाब देंहटाएंजय जय !
काका भी भारतीय जनता की तरह बड़ी आसानी से आश्वस्त हो गए । :)
जवाब देंहटाएंतो इधर काका भी चुनावी दुबकी पर उतर आये !
जवाब देंहटाएंक्या बात है भाई साहब बेहतरीन व्यंग्य .
जवाब देंहटाएंभाई अजित सिंह के भी चरित्र चित्रण की आवश्यकता बनाती है त्रिवेदी जी!!
जवाब देंहटाएंआप यह बताईये कि आप किस पार्टी का समर्थन कर रहें.
जवाब देंहटाएंसभी तो पवित्र पावन कहतीं हैं आपने आप को.
सुन्दर व्यंग्यपूर्ण प्रस्तुति के लिए आभार जी.
अच्छा कटाक्ष
जवाब देंहटाएंपार्टियाँ भी सब एक सी हैं और प्रत्याशी भी।
जवाब देंहटाएंबंधु सजनी तो वोट दैके आत है , एडजस्टमेंट दानव खाये जात है :)
जवाब देंहटाएंका कहें बदलू काका, एक ठो शे’र अर्ज़ है ..
जवाब देंहटाएंसारा जीवन अस्त-व्यस्त है
जिसको देखो वही त्रस्त है ।
जलती लू सी फिर उम्मीदें
मगर सियासी हवा मस्त है ।
बहुत खूबसूरत प्रस्तुति ||
जवाब देंहटाएंबढ़िया है ...
जवाब देंहटाएं:-)
kahin charcha me kajal kumarji ke cartoon padhe...
जवाब देंहटाएं"lokpal me imandari ki jitni jaroorat hai.....o to
lokpal ban-ne ke bad hi aa sakti hai"...........
bakiya jitna kuch karne-karane ki nautanki chal rahi sab 'party with diffrence ke hi sign hain'
pranam.
उत्साह-वर्धन के लिए सभी का आभार !
जवाब देंहटाएंहर्ज़ ही क्या है ?
जवाब देंहटाएंभाई जी ,यह पवित्रता को अपवित्र होने से बचाने का समय है !... और रही बदलू काका की बात तो उन्हें ऐसी कोरी दलीलों से थोड़ी देर के लिए गुमराह तो किया जा सकता है ,उन्हें संतुस्ट नहीं किया जा सकता है!
जवाब देंहटाएंहरि हैं राजनीति पढ़ि आये..!
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