वर्षा की रिमझिम बूंदों ने
मन में नई मिठास भरी,
नए-नए पौधों से सजकर
सारी धरती हुई हरी ||
सूरज की कठिन चुभन से
तन जब अग्नि समान हुआ,
मेघ-देव से जल-प्रसाद पा
शीतल,शांत महान हुआ ||
झड़ी लगी जब वर्षा की
लबालब्ब सब खेत हुए,
कृषकों के नाचे मन-मयूर
मुदित सभी के हृदय हुए ||
वर्षा-देवी के स्वागत में
सूरज ने गरमी रोकी ,
पशु-पक्षी सारे चहक उठे
आई बहार भी फूलों की ||
हे वर्षा-देवी ! स्वागत-स्वागत
सूखी धरती पर बार-बार,
तुम आईं ,जीवन आया
संग में आईं खुशियाँ हज़ार ||
विशेष : रचनाकाल --१८/०६/१९९०
स्थान: दल्ली-राजहरा (छत्तीसगढ़)
मन में नई मिठास भरी,
नए-नए पौधों से सजकर
सारी धरती हुई हरी ||
सूरज की कठिन चुभन से
तन जब अग्नि समान हुआ,
मेघ-देव से जल-प्रसाद पा
शीतल,शांत महान हुआ ||
झड़ी लगी जब वर्षा की
लबालब्ब सब खेत हुए,
कृषकों के नाचे मन-मयूर
मुदित सभी के हृदय हुए ||
वर्षा-देवी के स्वागत में
सूरज ने गरमी रोकी ,
पशु-पक्षी सारे चहक उठे
आई बहार भी फूलों की ||
हे वर्षा-देवी ! स्वागत-स्वागत
सूखी धरती पर बार-बार,
तुम आईं ,जीवन आया
संग में आईं खुशियाँ हज़ार ||
विशेष : रचनाकाल --१८/०६/१९९०
स्थान: दल्ली-राजहरा (छत्तीसगढ़)
बहुत सुन्दर वर्षा स्वागत गीत...
जवाब देंहटाएंसच्ची बहुत सुन्दर -बस अब इसे नंदन या चम्पक में भेज दें!
जवाब देंहटाएंहा हा हा ! अरविन्द जी की टिप्पणी ने हंसा दिया .
हटाएंवर्षा का साथ मुबारक हो . :)
:-)
हटाएंसुन्दर गीत है....
अनु
हा हा हा हा माट साब के लिए मिसर सर की प्रस्तावना का हम पुरजोर समर्थन करते हैं , मेज थपथपा कर प्रस्ताव पारित किया जा रहा है माट साब । जलसे की तैयारी करिए अब :)
हटाएं२२ साल पुरानी रचना ...
हटाएंवा वाह... वा वाह....
फिलहाल तो इसको ब्लॉग बुलेटिन पर लिंक कर रहा हूँ ... ;-)
हटाएंआपके इस खूबसूरत पोस्ट का एक कतरा हमने सहेज लिया है प्लस ३७५ कहीं माइनस न कर दे ... सावधान - ब्लॉग बुलेटिन के लिए, पाठक आपकी पोस्टों तक पहुंचें और आप उनकी पोस्टों तक, यही उद्देश्य है हमारा, उम्मीद है आपको निराशा नहीं होगी, टिप्पणी पर क्लिक करें और देखें … धन्यवाद !
गुरूजी,नंदन और चम्पक वाले इत्ती आसानी से नहीं छापते.यह कविता तब मैंने स्थानीय अखबार में दी थी,पर शायद उन्हें हमारी 'प्रतिभा' का अहसास नहीं था.
हटाएंवर्षा की बूंदे गिरी, पड़ने लगी फुहार
जवाब देंहटाएंकृषक भी खुश हो उठे छा गई बहार,,,,,,
बहुत सुंदर प्रस्तुति,,,,
RECENT POST...: राजनीति,तेरे रूप अनेक,...
दिल्ली का दिल भी तरावट महसूस करने लगा-
जवाब देंहटाएंबढ़िया भाव ||
पूरब में अब बाढ़ ने , ढाया कहर अजीब |
वर्षा रानी दे रहीं, थोड़ी ज्यादा पीर |
पश्चिम में सावन छाता, ठीक ठाक संतोष |
कवि हृदयों में है बढ़ा, ज्यादा जोश-खरोश ||
दिल्ली का दिल भी तरावट महसूस करने लगा-
हटाएंबढ़िया भाव ||
पूरब में अब बाढ़ ने , ढाया कहर अजीब |
वर्षा रानी से हुआ, ज्यादा त्रस्त गरीब |
पश्चिम में सावन घटा , ठीक ठाक संतोष |
कवि हृदयों में है बढ़ा, ज्यादा जोश-खरोश ||
रविकर ने छोड़ दिया,है अचूक हथियार |
हटाएंघायल रचना हो गई,बारिश बंटाधार ||
हे वर्षा-देवी ! स्वागत-स्वागत
जवाब देंहटाएंसूखी धरती पर बार-बार,
तुम आईं ,जीवन आया
संग में आईं खुशियाँ हज़ार ||
सुंदर प्रस्तुति
sundar swagat varsha rani ka ...
जवाब देंहटाएंये तो मानना ही पड़ेगा कि छत्तीसगढ़ ने आपको प्रेरित किया ! कविता ठीक है उसमें आपकी युवकाईके दिनों की झलक मिलती है !
जवाब देंहटाएंअली साब,उम्मीद है कि युवकाई के दिनों की कविता पढ़कर उबकाई नहीं आई होगी !
हटाएं...स्नेह के लिए विशेष आभार !
सुंदर वर्षा गीत ....मिश्रा जी ने अच्छा सुझाव दिया है ....
जवाब देंहटाएंबारिश की सोंधी खुशबू से आह्लादित रचना
जवाब देंहटाएंदल्ली राजहरा, छत्तीसगढ़, इसीलिए इतना सुंदर. (पाबला जी ध्यान दें.)
जवाब देंहटाएंपाबलाजी,ज़रा व्यस्त रहते हैं आजकल !
हटाएंहृदय नम करती वर्षा की बूँदें, वाह..
जवाब देंहटाएंbarso re megha.........:)
जवाब देंहटाएंpyara sa geet:)
यह पुरानी रचना हर वर्षा ऋतु में नवीन रंग देगी। सुंदर सरस गीत है..
जवाब देंहटाएंवर्षा यहाँ, वर्षा वहाँ
जवाब देंहटाएंभीगा हुआ सारा जहाँ
वाह !!!!सुंदर वर्षा गीत
जवाब देंहटाएंबहुत - बहुत सुन्दर सावनी रचना..
जवाब देंहटाएंबेहतरीन है:-)
इस कविता के हरेक बंद पर कुछ ना कुछ लिखने का मन हो रहा है...
जवाब देंहटाएं(1)इसे पढ़कर पता चलता है कि छत्तीसगढ़ में जून, 1990 में नये-नये पौधे रोपे गये थे।:)
(2)इसे पढ़कर ज्ञान हुआ कि वर्षा का प्रसाद पा कर व्यक्ति शीतल, शांत होने के साथ-साथ महान भी बन जाता है। आज से छाता लगाना बंद।:)
(3)यह तो मुझे भी लगता है। ऐसा ही होता होगा।
(4)वर्षा के बाद बसंत-बहार का मौसम आता है।
(5)अतिंम बंद बहुत अच्छा लगा।
....सुखद एहसास कराने के लिए धन्यवाद।
सूरज की कठिन चुभन से
जवाब देंहटाएंतन जब अग्नि समान हुआ,
मेघ-देव से जल-प्रसाद पा
शीतल,शांत महान हुआ ...
बरखा का प्रताप ... अग्नि देवता भी प्रसन्न हो गए और अपनी चुभन कम कर गए ....
हर छंद मस्त बहार की तरह ..
हे वर्षा-देवी ! स्वागत-स्वागत
जवाब देंहटाएंसूखी धरती पर बार-बार,
तुम आईं ,जीवन आया
संग में आईं खुशियाँ हज़ार ||
वर्षा देवी का सुंदर स्वागत !!
बारिश का मौसम ही कुछ ऐसा है कि हर कोई स्वागत करने को तैयार रहता है .....
हे वर्षा-देवी ! स्वागत-स्वागत
जवाब देंहटाएंसूखी धरती पर बार-बार,
तुम आईं ,जीवन आया
संग में आईं खुशियाँ हज़ार ||
बेहतरीन मनभावन प्रस्तुति.
पढकर सुखद अनुभव हुआ.
आभार.
सुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंMan jhoom uthaa...
जवाब देंहटाएं............
ये है- प्रसन्न यंत्र!
बीमार कर देते हैं खूबसूरत चेहरे...
हे वर्षा-देवी ! स्वागत-स्वागत
जवाब देंहटाएंसूखी धरती पर बार-बार,
तुम आईं ,जीवन आया
संग में आईं खुशियाँ हज़ार ||
अनुपम प्रस्तुति ... आभार
बहुत ही सुंदर रचना संतोष जी।
जवाब देंहटाएंसूरज की कठिन चुभन से
तन जब अग्नि समान हुआ,
मेघ-देव से जल-प्रसाद पा
शीतल,शांत महान हुआ ||
शुभकामनाये।
प्रतीक संचेती
वर्षा ऋतु पर सरल शब्दों में लिखी एक अच्छी कविता.
जवाब देंहटाएंवर्षों बाद वर्षा की कविता मैने शीतऋतु में पड़ी.. कपायमान हो उठा.. बहुत सुंदर..
जवाब देंहटाएं