13 जुलाई 2012

वर्षा गीत !

वर्षा की रिमझिम बूंदों ने 
मन में नई मिठास भरी,
नए-नए पौधों से सजकर 
सारी धरती हुई हरी ||


सूरज की कठिन चुभन से
तन जब अग्नि समान हुआ,
मेघ-देव से जल-प्रसाद पा 
शीतल,शांत महान हुआ ||


झड़ी लगी जब वर्षा की 
लबालब्ब सब खेत हुए,
कृषकों के नाचे मन-मयूर 
मुदित सभी के हृदय हुए ||


वर्षा-देवी के स्वागत में
सूरज ने गरमी रोकी ,
पशु-पक्षी सारे चहक उठे
आई बहार भी फूलों की ||


हे वर्षा-देवी ! स्वागत-स्वागत 
सूखी धरती पर बार-बार,
तुम आईं ,जीवन आया 
संग में आईं खुशियाँ हज़ार ||




विशेष : रचनाकाल --१८/०६/१९९० 
स्थान: दल्ली-राजहरा (छत्तीसगढ़)

36 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर वर्षा स्वागत गीत...

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  2. सच्ची बहुत सुन्दर -बस अब इसे नंदन या चम्पक में भेज दें!

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    1. हा हा हा ! अरविन्द जी की टिप्पणी ने हंसा दिया .
      वर्षा का साथ मुबारक हो . :)

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    2. हा हा हा हा माट साब के लिए मिसर सर की प्रस्तावना का हम पुरजोर समर्थन करते हैं , मेज थपथपा कर प्रस्ताव पारित किया जा रहा है माट साब । जलसे की तैयारी करिए अब :)

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    3. २२ साल पुरानी रचना ...
      वा वाह... वा वाह....

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    4. गुरूजी,नंदन और चम्पक वाले इत्ती आसानी से नहीं छापते.यह कविता तब मैंने स्थानीय अखबार में दी थी,पर शायद उन्हें हमारी 'प्रतिभा' का अहसास नहीं था.

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  3. वर्षा की बूंदे गिरी, पड़ने लगी फुहार
    कृषक भी खुश हो उठे छा गई बहार,,,,,,

    बहुत सुंदर प्रस्तुति,,,,

    RECENT POST...: राजनीति,तेरे रूप अनेक,...

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  4. दिल्ली का दिल भी तरावट महसूस करने लगा-
    बढ़िया भाव ||

    पूरब में अब बाढ़ ने , ढाया कहर अजीब |
    वर्षा रानी दे रहीं, थोड़ी ज्यादा पीर |

    पश्चिम में सावन छाता, ठीक ठाक संतोष |
    कवि हृदयों में है बढ़ा, ज्यादा जोश-खरोश ||

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    1. दिल्ली का दिल भी तरावट महसूस करने लगा-
      बढ़िया भाव ||

      पूरब में अब बाढ़ ने , ढाया कहर अजीब |
      वर्षा रानी से हुआ, ज्यादा त्रस्त गरीब |

      पश्चिम में सावन घटा , ठीक ठाक संतोष |
      कवि हृदयों में है बढ़ा, ज्यादा जोश-खरोश ||

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    2. रविकर ने छोड़ दिया,है अचूक हथियार |
      घायल रचना हो गई,बारिश बंटाधार ||

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  5. हे वर्षा-देवी ! स्वागत-स्वागत
    सूखी धरती पर बार-बार,
    तुम आईं ,जीवन आया
    संग में आईं खुशियाँ हज़ार ||

    सुंदर प्रस्तुति

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  6. ये तो मानना ही पड़ेगा कि छत्तीसगढ़ ने आपको प्रेरित किया ! कविता ठीक है उसमें आपकी युवकाईके दिनों की झलक मिलती है !

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    1. अली साब,उम्मीद है कि युवकाई के दिनों की कविता पढ़कर उबकाई नहीं आई होगी !

      ...स्नेह के लिए विशेष आभार !

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  7. सुंदर वर्षा गीत ....मिश्रा जी ने अच्छा सुझाव दिया है ....

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  8. बारिश की सोंधी खुशबू से आह्लादित रचना

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  9. दल्‍ली राजहरा, छत्‍तीसगढ़, इसीलिए इतना सुंदर. (पाबला जी ध्‍यान दें.)

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  10. हृदय नम करती वर्षा की बूँदें, वाह..

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  11. यह पुरानी रचना हर वर्षा ऋतु में नवीन रंग देगी। सुंदर सरस गीत है..

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  12. वर्षा यहाँ, वर्षा वहाँ
    भीगा हुआ सारा जहाँ

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  13. बहुत - बहुत सुन्दर सावनी रचना..
    बेहतरीन है:-)

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  14. इस कविता के हरेक बंद पर कुछ ना कुछ लिखने का मन हो रहा है...

    (1)इसे पढ़कर पता चलता है कि छत्तीसगढ़ में जून, 1990 में नये-नये पौधे रोपे गये थे।:)
    (2)इसे पढ़कर ज्ञान हुआ कि वर्षा का प्रसाद पा कर व्यक्ति शीतल, शांत होने के साथ-साथ महान भी बन जाता है। आज से छाता लगाना बंद।:)
    (3)यह तो मुझे भी लगता है। ऐसा ही होता होगा।
    (4)वर्षा के बाद बसंत-बहार का मौसम आता है।
    (5)अतिंम बंद बहुत अच्छा लगा।

    ....सुखद एहसास कराने के लिए धन्यवाद।

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  15. सूरज की कठिन चुभन से
    तन जब अग्नि समान हुआ,
    मेघ-देव से जल-प्रसाद पा
    शीतल,शांत महान हुआ ...

    बरखा का प्रताप ... अग्नि देवता भी प्रसन्न हो गए और अपनी चुभन कम कर गए ....
    हर छंद मस्त बहार की तरह ..

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  16. हे वर्षा-देवी ! स्वागत-स्वागत
    सूखी धरती पर बार-बार,
    तुम आईं ,जीवन आया
    संग में आईं खुशियाँ हज़ार ||


    वर्षा देवी का सुंदर स्वागत !!
    बारिश का मौसम ही कुछ ऐसा है कि हर कोई स्वागत करने को तैयार रहता है .....

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  17. हे वर्षा-देवी ! स्वागत-स्वागत
    सूखी धरती पर बार-बार,
    तुम आईं ,जीवन आया
    संग में आईं खुशियाँ हज़ार ||


    बेहतरीन मनभावन प्रस्तुति.
    पढकर सुखद अनुभव हुआ.

    आभार.

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  18. हे वर्षा-देवी ! स्वागत-स्वागत
    सूखी धरती पर बार-बार,
    तुम आईं ,जीवन आया
    संग में आईं खुशियाँ हज़ार ||
    अनुपम प्रस्‍तुति ... आभार

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  19. बहुत ही सुंदर रचना संतोष जी।

    सूरज की कठिन चुभन से
    तन जब अग्नि समान हुआ,
    मेघ-देव से जल-प्रसाद पा
    शीतल,शांत महान हुआ ||

    शुभकामनाये।
    प्रतीक संचेती

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  20. वर्षा ऋतु पर सरल शब्दों में लिखी एक अच्छी कविता.

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  21. वर्षों बाद वर्षा की कविता मैने शीतऋतु में पड़ी.. कपायमान हो उठा.. बहुत सुंदर..

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