बादल हमको दे दगा,चले गए उस ओर |
बिन बारिश दम सूखता,नहीं नाचते मोर || (१)
धरती झुलसे उमस से,प्यासे पंछी मौन |
दादुर दर्शन हैं कठिन,अब टर्राये कौन ? (२)
सूखा सावन आ गया,गोरी खड़ी उदास |
झूले खाली पड़े हैं,बिरवा बिना हुलास || (३)
काया पत्थर की हुई,नहीं बरसते नैन |
रूठे बादल-बालमा,सूने हैं दिन-रैन || (४)
खुल्लमखुल्ला कर दिया,मेघों ने ऐलान |
सूरज की साजिश यही,नहीं बचे इंसान || ५)
जामुन काले हो रहे,बचा न उनमें स्वाद |
आम बिना टपके गिरें,मीठापन बर्बाद || (६ )
बिन बारिश दम सूखता,नहीं नाचते मोर || (१)
धरती झुलसे उमस से,प्यासे पंछी मौन |
दादुर दर्शन हैं कठिन,अब टर्राये कौन ? (२)
सूखा सावन आ गया,गोरी खड़ी उदास |
झूले खाली पड़े हैं,बिरवा बिना हुलास || (३)
काया पत्थर की हुई,नहीं बरसते नैन |
रूठे बादल-बालमा,सूने हैं दिन-रैन || (४)
खुल्लमखुल्ला कर दिया,मेघों ने ऐलान |
सूरज की साजिश यही,नहीं बचे इंसान || ५)
जामुन काले हो रहे,बचा न उनमें स्वाद |
आम बिना टपके गिरें,मीठापन बर्बाद || (६ )
काया पत्थर की हुई,नहीं बरसते नैन |
जवाब देंहटाएंरूठे बादल-बालमा,सूने हैं दिन-रैन || (४)
....बहुत खूब! सच में अब तो सूरज का अत्याचार असहनीय हो गया है...बहुत सुन्दर और सटीक प्रस्तुति..
आपके दोहा-मेघ से अपना मन-मयूर नाच लिया। सुंदर!
जवाब देंहटाएंसुन्दर दोहे!
जवाब देंहटाएंसंलग्न चित्र भी खूब है:)
बढ़िया दोहे.....
जवाब देंहटाएंसूरज की साजिश सफल न हो जाए!!!!
:-(
अनु
खुल्लमखुल्ला कर दिया,मेघों ने ऐलान |
जवाब देंहटाएंसूरज की साजिश यही,नहीं बचे इंसान ...
वाह जी वाह ... कमाल के दोहे हैं सभी ... अलग अंदाज़ है सभी का ... और ये सूरज की साजिश है या बादलों की ... जो सूरज का नाम ले रहे हैं ...
खुल्लमखुल्ला कर दिया,मेघों ने ऐलान |
जवाब देंहटाएंसूरज की साजिश यही,नहीं बचे इंसान ||
एकदम सच ... उम्दा प्रस्तुति ... आभार
काया पत्थर की हुई,नहीं बरसते नैन |
जवाब देंहटाएंरूठे बादल-बालमा,सूने हैं दिन-रैन |
नपे तुले शब्द और उम्दा भावों का सम्प्रेषण ......!
खूबसूरत दोहे-
जवाब देंहटाएंआभार-
दोहा दोहाई भरे, धरे नहीं अब धीर |
मेघावरि न शोभते, बिन बरसाये नीर ||
सुखा सुखा के तन-बदन, सारा रक्त निचोड़ |
घड़े भरे ले घूमते, देंगे रविकर फोड़ ||
सुबह सुबह क्या खाये थे जो इत्ता अच्छा लिख डाले ! श्रीमती त्रिवेदी मायके से वापस नहीं आईं होंगी अब भी ,ये पक्का हुआ :)
जवाब देंहटाएंश्रीमती जी आ गईं, खा के पूरी झाड़ |
हटाएंमेघों पर बरसा सकल, गुस्सा बड़ा पहाड़ ||
वाह कविताई हुलस रही है :-)
जवाब देंहटाएंऔर बिना टपके कैसे गिरे आम ? कोई नयी न्यूट्नीय व्याख्या हो तो
बताओ ?
आम स्वाभाविक रूप से पककर ही टपकते हैं,ऐसी गर्मी में वो भी झुलसकर गिर रहे हैं !
हटाएं'टपके' के बदले 'रसके' हो जाय तो कैसा रहे? आलोचना से बच जायेंगे। आपका तर्क दोहा में नहीं झलकता।:)
हटाएंबचपन में हवा चलाने के लिए हम बब्बे पढ़ते थे .
जवाब देंहटाएंआपके दोहे पढ़कर बारिस आने ही वाली है . :)
बहुत ही सुन्दर दोहे...
जवाब देंहटाएं:-)
बादलों का आवाहन करते तो कुछ तो फल अवश्य मिलता :)
जवाब देंहटाएंनिराश ना हों, वक्त अभी बाकी है !
दोहों में मौसम।
जवाब देंहटाएंया कि दोहों का मौसम।
हटाएंवाह-वाह!
जवाब देंहटाएंबादल करते हैं दगा लगा पलीता जोर।
कविजन की आतप व्यथा फैल रही चहुँओर॥
कमाल की अनुभूति है। ब्न बरखा के मन में क्या भाव आते हैं उसका बेहद आकर्षक वर्णन।
जवाब देंहटाएंइधर तो खूब बरस रहा है।
सच है....बिन बरखा सब सून....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर , बढ़िया ..
जवाब देंहटाएंसूरज की तपन तो और बादल उत्पन्न करती है, साजिश तो हवाओं की लगती है यहाँ पर..
जवाब देंहटाएंलगता है सूरज की तपिश आपने अपनी रचना में समेट दी है...
जवाब देंहटाएंसूरज की या इंसानों की ?
जवाब देंहटाएंसच ही सूरज साजिश कर रहा है ..... बादल हैं कि दिखते ही नहीं ..... हाल बेहाल है
जवाब देंहटाएंसटीक दोहे
वाह !
जवाब देंहटाएंबहुत खूब...बढ़िया पोस्ट मुझे देर से दिखी।:(
जवाब देंहटाएंकाया पत्थर की हुई,नहीं बरसते नैन |
जवाब देंहटाएंरूठे बादल-बालमा,सूने हैं दिन-रैन || (४)
बहुत खूब!! बादल और बालमा का अद्भुत प्रयोग!!
Very nice post.....
जवाब देंहटाएंAabhar!
Mere blog pr padhare.
....बहुत सुन्दर और सटीक दोहे
जवाब देंहटाएंमौसम खुशगवार हो गया है. मोर नाच लिया है, सूरज का ऐलान बादलो ने ठंडा कर दिया है. पंछी गाने लगे है. इंसान , इंसान हो गया है. . . . . ख़ुशी के गीत गा रहा है. बहुत खूब जी . .
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