सावन झाँके दूर से,बेबस है इंसान ।
कब तक सोखेगी धरा, धूप हुई हलकान ।।
पढ़-लिख काया बदल ली,बदले नहीं विचार ।
कौआ कोयल-भेष में,करता शिष्टाचार ।।
शब्द अर्थ को खो रहे,भटक रहे हैं छंद।
लिखते कुछ,होते अलग,ब्लॉगर-लेखक-वृन्द ।।
तुलसी इस संसार में ,वही बड़ा विद्वान।
खड़ी फ़सल में आग दे,बोए निज अभिमान ।।
लिपा-पुता चेहरा दिखे,भोला-सा इन्सान ।
जेबों में मक्कारियाँ ,कर देती हैरान ।।
सूरत धोखा दे रही,संबंधों में खोट ।
रिश्तों में चालाकियाँ ,देती गहरी चोट ।।
पाहुन सावन की तरह,भूले अपना देश ।
मेघ-डाकिया बाँटता ,नित झूठे सन्देश ।।
कब तक सोखेगी धरा, धूप हुई हलकान ।।
पढ़-लिख काया बदल ली,बदले नहीं विचार ।
कौआ कोयल-भेष में,करता शिष्टाचार ।।
शब्द अर्थ को खो रहे,भटक रहे हैं छंद।
लिखते कुछ,होते अलग,ब्लॉगर-लेखक-वृन्द ।।
तुलसी इस संसार में ,वही बड़ा विद्वान।
खड़ी फ़सल में आग दे,बोए निज अभिमान ।।
लिपा-पुता चेहरा दिखे,भोला-सा इन्सान ।
जेबों में मक्कारियाँ ,कर देती हैरान ।।
सूरत धोखा दे रही,संबंधों में खोट ।
रिश्तों में चालाकियाँ ,देती गहरी चोट ।।
पाहुन सावन की तरह,भूले अपना देश ।
मेघ-डाकिया बाँटता ,नित झूठे सन्देश ।।
बहुत सुन्दर संतोष जी...
जवाब देंहटाएंसूरत धोखा दे रही,संबंधों में खोट ।
रिश्तों में चालाकियाँ ,देती गहरी चोट ।।
बेहतरीन पेशकश.
सादर
अनु
आभार अनुजी !
हटाएंवाह क्या कहने, लक्ष्य का संधान करती पंक्तियाँ..
जवाब देंहटाएंकितने घायल हुए...:)
हटाएंपाहुन सावन की तरह,भूले अपना देश ।
जवाब देंहटाएंमेघ-डाकिया बाँटता ,नित झूठे सन्देश ।।
हृदयस्पर्शी....
आभार आपका !
हटाएंतुलसी इस संसार में ,वही बड़ा विद्वान।
जवाब देंहटाएंखड़ी फ़सल में आग दे,बोए निज अभिमान ।।
बहुत गहरे तक चले गये !
कहीं इतना तो नहीं कि लौट के न आ सकें :)
हटाएंतुलसी इस संसार में ,वही बड़ा विद्वान।
जवाब देंहटाएंखड़ी फ़सल में आग दे,बोए निज अभिमान ।।
संतोष जी किससे और कब चोट खाये हैं ? मन की बात सीधे सीधे कह दी ... सुंदर प्रस्तुति
संगीता जी,यह व्यक्तिगत नहीं सामाजिक चोट है !
हटाएंशब्द अर्थ को खो रहे,भटक रहे हैं छंद।
जवाब देंहटाएंलिखते कुछ,होते अलग,ब्लॉगर-लेखक-वृन्द ।।
अति सुंदर,,,,,,
RECENT POST ...: आई देश में आंधियाँ....
शुक्रिया भाई !
हटाएंबहुत सुन्दर -------
जवाब देंहटाएंस्वागत है श्रीमान !
हटाएंसभी दोहे एक से बढकर एक हैं - चोट खाना भी इंसानी स्वभाव है और शायद चोट देना भी।
जवाब देंहटाएंसही है अनुराग जी !
हटाएंक्या बात है !
जवाब देंहटाएंकोई खास नहीं,बस हम और हमारी जात है:)
हटाएंकमाल के दोहे हैं!
जवाब देंहटाएंमाह में कम से कम एक दोहे वाली पोस्ट की प्रतीक्षा रहेगी। आप खूब दोहे लिखिये। ये दोहे आपको पहचान दिलाने की काबलियत रखते हैं।
आपकी प्रेरणा और किरपा रही तो कोशिश रहेगी.
हटाएंआभार आपका !
सूरत धोखा दे रही,संबंधों में खोट ।
जवाब देंहटाएंरिश्तों में चालाकियाँ ,देती गहरी चोट ।।
आह -एक दोहावली संकलन आ जाय -शुभाशीष!
आभार गुरूजी,
हटाएंक्या इसे भी नंदन या चम्पक वालों के पास भेज दूँ :)
आज कुतर्की कह रहे, उस गुरु को आभार |
जवाब देंहटाएंतर्क-शास्त्र जिसने सिखा, भुला दिया व्यवहार |
कल लुंगी पहने रहे, किया हवा की बात |
बरमुड्डा अब झाड़ के, बिता रहे हैं रात |
तुलसी सूर कबीर के, नव-आलोचक आज |
करे कल्पना काल की, नारि विधर्मी राज ||
समयानुकूल कविवर जी !
हटाएंसूरत धोखा दे रही,संबंधों में खोट ।
जवाब देंहटाएंरिश्तों में चालाकियाँ ,देती गहरी चोट ।।
संतोष भाई ,
आज तो आपने दिल जीत लिया ! आपके अंदर एक बढ़िया कवि ह्रदय छिपा है ! उसका ध्यान रखें ..
हार्दिक शुभकामनायें !
सतीशजी ,आपके ये प्रेरक-शब्द ही मेरी वास्तविक उपलब्धि है !
हटाएंआभार !
उत्कृष्ट प्रस्तुति शुक्रवार के चर्चा मंच पर ।।
जवाब देंहटाएंआइये पाठक गण स्वागत है ।।
लिंक किये गए किसी भी पोस्ट की समालोचना लिखिए ।
यह समालोचना सम्बंधित पोस्ट की लिंक पर लगा दी जाएगी 11 AM पर ।।
आभार कविवर जी !
हटाएंलिपा-पुता चेहरा दिखे,भोला-सा इन्सान ।
जवाब देंहटाएंजेबों में मक्कारियाँ ,कर देती हैरान ।।,, पर है तो यही आज का सच
कविता में यदि वास्तविकता के तत्व हों तो कमाल हो जाता है.आपका आभार !
हटाएंलगता है मेरे अवलोकन को ही आपने अभिव्यक्ति दे दी।
जवाब देंहटाएंशब्द अर्थ को खो रहे,भटक रहे हैं छंद।
लिखते कुछ,होते अलग,ब्लॉगर-लेखक-वृन्द ।।
तुलसी इस संसार में ,वही बड़ा विद्वान।
खड़ी फ़सल में आग दे,बोए निज अभिमान ।।
लिपा-पुता चेहरा दिखे,भोला-सा इन्सान ।
जेबों में मक्कारियाँ ,कर देती हैरान ।।
सूरत धोखा दे रही,संबंधों में खोट ।
रिश्तों में चालाकियाँ ,देती गहरी चोट ।।
सुज्ञ जी,
हटाएंआपको अभिव्यक्ति देने की हिमाक़त मेरी नहीं.आपने ऐसा कहकर केवल मेरा मान बढ़ाया है !
आभार !
बहुत बढ़िया और संजीदा...
जवाब देंहटाएंशुक्रिया दीपिकाजी !
हटाएंसावन की बेवफाई से तो हम भी परेशां हैं . लेकिन बाकि इतनी सारी शिकायतें क्यों ! :)
जवाब देंहटाएंक्योंकि सावन और साजन दोनों रूठे हैं,ब्लॉगर,लेखक भी रोज़ अपनी स्थापनाएं बदल रहे हैं.
हटाएंsundar prastuti.
जवाब देंहटाएंशुक्रिया शालिनी जी !
हटाएंमेघ-डाकिया बाँटता ,नित झूठे सन्देश ।।
जवाब देंहटाएंकमाल है साहेब, कमाल के दोहे रच डाले आपने.
बाबा के आगे तो हम बच्चे ही हैं जी !!
हटाएंशब्द अर्थ को खो रहे,भटक रहे हैं छंद।
जवाब देंहटाएंलिखते कुछ,होते अलग,ब्लॉगर-लेखक-वृन्द ।।
तुलसी इस संसार में ,वही बड़ा विद्वान।
खड़ी फ़सल में आग दे,बोए निज अभिमान ।।
गहन भाव लिए ... सटीक प्रस्तुति ... आभार
सदाजी,बहुतै अभार !
हटाएंजियो पार्थ घूमती मछली की आंख बेध डाली :)
जवाब देंहटाएंअली साब,
हटाएंकृष्ण तो आप हैं पर यह मछली कौन है...?
:) घूमती मछली की आंख बेध डाली..मतलब आपका निशाना सटीक है। अब आप धुरंधर धनुर्धर बन चुके हैं। कवि का धुरंधर धनुर्धर बनने से आशय यह कि अब आप शब्द रूपी बाण चलाने में माहिर श्रेष्ठ कवि बन चुके हैं।
हटाएंयह कृपा-दृष्टि अली सा की है.आप बराबर हमारे प्रेरणास्रोत रहे हैं !
हटाएंवाह जी बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंअमेरिका से टिपियाने का आभार !
हटाएंआज की दोहरी ज़िन्दगी की औकात बताते बेहतरीन दोहे .व्यंजना में अप्रतिम सम्प्रेषण में ला -ज़वाब,सीधे करें वार सतसैया के दोहरे से .
जवाब देंहटाएंभाव विरेचन करती बहुत अच्छी प्रस्तुति है सदा जी .
जवाब देंहटाएंआज की दोहरी ज़िन्दगी की औकात बताते बेहतरीन दोहे .व्यंजना में अप्रतिम सम्प्रेषण में ला -ज़वाब,सीधे करें वार सतसैया के दोहरे से . लाज़वाब कर दिया आपने संतोष त्रिवेदी जी .सीधी बात दो टूक कह गए सब दोहे ,खड़े रह गए सब दोराहे शहर के .सभी लिंक अर्थ पूर्ण अभिव्यंजना लिए .बधाई चयन के लिए .
वीरूजी,
हटाएंआपने तो हमें सातवें आसमान में पहुंचा दिया...अभार !
सावन में सूखा पड़ा, लोग हुए हैरान।
जवाब देंहटाएंसमय बड़ा बलवान है, हार गया इंसान।।
सही है शास्त्रीजी !
हटाएंतुलसी इस संसार में ,वही बड़ा विद्वान।
जवाब देंहटाएंखड़ी फ़सल में आग दे,बोए निज अभिमान ।।
सुंदर दोहे ....
सादर !
शिवनाथ जी ,शुक्रिया !
हटाएंइससे आगे अभिव्यक्ति का सौपान भला , अब और क्या होगा
जवाब देंहटाएंहै सारा परिवेश दोहों में ,दगा बाज़ी है दोहों में .
अनुसंधान परक दोहे ,छल छद्म विद्रूप सब कुछ समेटे अपने लघु कलेवर में .सादर नमन .
यह आपके लघु-भ्राता के लिए बस प्यार है और कुछ नहीं !
हटाएंसूरत धोखा दे रही,संबंधों में खोट ।
जवाब देंहटाएंरिश्तों में चालाकियाँ ,देती गहरी चोट ।।
...लाज़वाब! सभी दोहे बहुत सुन्दर और सार्थक...
कैलाश जी ,शुक्रिया !
हटाएंतुलसी इस संसार में ,वही बड़ा विद्वान।
जवाब देंहटाएंखड़ी फ़सल में आग दे,बोए निज अभिमान ।।
बहुत गहन और यथार्थ लिखा है ...
बढ़िया प्रयास ...
लिखते रहें शुभकामनायें....
आभार अनुपमा जी !
हटाएंशब्द अर्थ को खो रहे,भटक रहे हैं छंद।
जवाब देंहटाएंलिखते कुछ,होते अलग,ब्लॉगर-लेखक-वृन्द ।।
सोलह आना सच |
अमितजी,आपको कुछ अच्छा लगा,मन प्रसन्न हुआ !
हटाएंvery nice..:)
जवाब देंहटाएंwah...bahut khoob..satya vachan
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