7 जुलाई 2012

प्रणय-गीत


मेरे जीवन की प्रथम-किरण,
         मेरे अंतर की कविता हो,
हृदय अंध में डूब रहा ,
        प्रज्ज्वलित करो तुम सविता हो !


मम भाग्य-विधाता  तुम्हीं  हो,
       तुम बिन जीवन है पूर्ण नहीं,
मेरे अंतर-उद्गारों को ,
      साथी ! करना तुम चूर्ण नहीं !


प्रेरणा तुम्हीं हो कविता की,
      मेरे मानस की अमर-ज्योति,
सत्यता तुम्हारे सम्मुख है,
     नहीं तनिक भी अतिशयोक्ति !


मेरे जीवन की डोर तुम्हीं,
    अपने से अलग नहीं करना,
प्यार तुम्हीं से केवल है,
      अंतर्मन में मुझको रखना !!



पहली बार प्रकाशित :२२/१०/२०१०


विशेष :पहला गीत,रचना-काल-१०/०६/१९८७
 स्थान-फतेहपुर(उ.प्र.)


रीपोस्रिपोस्ट

32 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. महाराज,किशोरावस्था में लिखे इस गीत से ग़दर जैसा कुछ तो नहीं हुआ था,बस मन की मन में ही रह गई !

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  2. अंतर्मन में या अंतर्जाल में।
    वही मन का जंजाल भी है।

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  3. मेरे अंतर-उद्गारों को ,
    साथी ! करना तुम चूर्ण नहीं !

    सही है , किशोरावस्था के यह गीत यादगार रहेंगे !

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  4. जाग दर्दे इश्क जाग दिल को बेकरार कर ... :-)
    अब किसे समर्पित है यह अनुपम चिर टटकी कृति ?

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  5. महराज अब तो हमारे प्रयाण गीत लिखने का वक्त आ गया
    अब आपही मोर्चा संभालिये इन प्रणय गीतों का :-)

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    1. ..अब तो पुरानी यादों के सहारे समय काटना है,मोर्चा संभालने का माद्दा नहिं आय !

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  6. इतना पुराना गीत और फिर भी बिलकुल फ्रेश है!! :)

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  7. इस कविता की कोमल भावना मन के अंतस को स्पंदित करती है। इतना समर्पण हो तो मनोरथ तो पूर्ण होना ही चाहिए।

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  8. मेरे जीवन की डोर तुम्हीं,
    अपने से अलग नहीं करना,
    प्यार तुम्हीं से केवल है,
    अंतर्मन में मुझको रखना ...

    बहुत सुन्दर प्रणय, प्रेम के रंग में पगी रची सम्पूर्ण रचना ... कोई भी प्रेमिका मर मिटेगी ... भाभीजी का क्या हुवा होगा ...

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  9. प्रेमपगी सुंदर रचना .... कोमल से एहसास लिए हुये

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  10. प्रेरणा बनकर मेरी
    शब्द शब्द उतरते rahna

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  11. जय हो, श्रृंगार पसरा जा रहा है ब्लॉग जगत में..

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  12. बचपन की मोहब्बत को , दिल से ना जुदा करना !
    अंतर्मन में ये ज्योति , हरदम जलाये रखना .

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  13. प्रथम प्रेम का कोमल एहसास।
    सावन! तू भी क्या चीज है यार!! आता है तो उधेड़ कर रख देता है.. गरीब का घर, कवि का मन।

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  14. ये प्रणय निवेदन, भावनात्मक रूप से अतिरंजित गीत/आग्रह है! प्रतीत होता है कि कवि ने यह रचना, अपने विवाह पूर्व की अतिप्रेमातुर, प्रगाढ़ मोहासिक्त, परमप्रणय निबद्ध अवस्था में अवस्थित होकर, रची होगी! जहां तत्कालीन सुकुमार कवि अपनी प्राणवल्लभा, शीर्ष प्रियतमा, यथा संभव एकमेव प्रियतमा को वह सब कहना चाहता है, जो वस्तुतः होता ही नहीं किन्तु यह मानकर कहा जाता है कि इसे सुनकर उस मानिनी को परम आह्लाद / अतिप्रियता की प्रतीति होगी!

    यह कविता, प्रेम निवेदक के हृदय प्रासाद में सजी हुई /अलंकृत संवेदनाओं की पेंटिंग जैसी है जिसमें बहुत संभव है कि प्रतीकों के रूप में प्रेयसी के नाम का उपयोग भी किया गया हो ? मसलन किरण, कविता, सविता अथवा ज्योति :)

    मैं इसे विशिष्ट वय में विशिष्ट युवा की विशिष्ट रमणी के लिए विशिष्ट शब्द्जालीय प्रस्तुति मानूंगा! निज तौर पर मेरे लिए यह संतोष जी की सर्वश्रेष्ठ रचना है !

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    उत्तर
    1. अली साब ,
      आपने साबित कर दिया है कि आप आला दर्जे के नजूमी ही नहीं ज्योतिषी भी हैं.आपकी अधिकतर निष्पत्तियां आश्चर्यजनक रूप से सही हैं.

      ...आपका इस विशद-विवेचन के लिए आभार !

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    2. aur yahan maan gaye.....

      ye ali sa ke shabd-lalitya ka hi jor hai ke jabar pe bhi chal jata hai....ha ha ha


      pranam.

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  15. @ ali : संतोष जी की सर्वश्रेष्ठ रचना...
    मुझे लगता है इस प्रमाणपत्र में ‘अबतक की’ जोड़कर जारी किया जाना समीचीन होगा।
    संतोष जी का सर्वश्रेष्ठ आना अभी बाकी है। असली प्रणय गीत तो आदरणीय अरविन्द जी जैसा अनुभव पाने के बाद ही लिख पाएंगे।

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    1. सिद्धार्थ जी ,
      यहां अरविन्द जी के प्रणय गीत पर कोई वक्तव्य नहीं :)

      अभी कुछ ही दिन पहले संतोष जी की , विवाहोपरांत लिखी गई , सर्वश्रेष्ठ कविता देखी थी अब ये विवाह पूर्व की कविता है जो प्रथम उल्लिखित कविता पर ज़बर / भारी है ! अगर आपको लगता है कि संतोष जी इसके बाद भी कुछ कर गुज़रेंगे तो फिर कोई हर्ज़ नहीं जोड़ लीजिए आपके सुझाये तीन शब्द :)

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  16. तुम्ही प्रेरणा, तुम्ही धारणा, तुम्ही मेरी रचयिता हो
    तुम लेखनकी भाग्य विधाता,तुम्ही मेरी कविता हो
    अब तक डोर टूट न पाई अलग नही कर पाया हूँ
    तुम जीवन की प्रथम किरण,तुम्ही मेरी सविता हो

    RECENT POST...: दोहे,,,,

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  17. लगता है प्रथम प्रेम की अनुभूति से उपजी थी यह कविता :) जो भी हो, सुंदर है..

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  18. अब तक डोर टूट न पाई अलग नही कर पाया हूँ

    आपमें अभी भी उर्जा है डोर थामे रहें :)

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  19. पहले पैरा मैं नदिया में, कविता सविता से भेंट हुई |
    इक कथरी नई सिलें बैठी, मिल पाने में यूँ लेट हुईं ||

    अंध-हृदय- पैरा क्रमांक -१
    सटीक निवेदन- पैरा क्रमांक -२
    प्रसस्ति गान पैरा क्रमांक -३

    ईश्वर भैया सब देख रहा, अब बोलो कि तब बोलो |
    पल में मासा पल में तोला, यह प्यार तुला पर नित तोलो |
    पैरा क्रमांक -४

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  20. मेरे जीवन की प्रथम-किरण,
    मेरे अंतर की कविता हो,
    हृदय अंध में डूब रहा ,
    प्रज्ज्वलित करो तुम सविता हो !

    ....लाज़वाब भावपूर्ण प्रवाहमयी रचना...

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  21. बहुत सुन्दर प्रणय गान पहली में ही छा गये .....
    ये डोर न छूटे बंधे रहो कविता का हो पल पल अद्भुत श्रृंगार ..
    खो जाओ नैनन में उनके जिनसे थे नैना हुए चार ..शुभ कामनाएं ..
    रायबरेली में मेरे पिता श्री अपने कार्य काल में थे उस जमीन से मेरा भी नाता , इस लिए और आनंद आया भ्राता ..
    भ्रमर ५
    भ्रमर का दर्द और दर्पण

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  22. प्रणय गीत में भर दिया, निज मन का उदगार।
    प्रमें हमेशा ही रहा, जीवन का आधार।।

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