बरगद बूढ़ा हो गया,सूख गया है आम |
नीम नहीं दे पा रही,राही को आराम ||(१)
कोयल कर्कश कूकती,कौए गाते राग |
सूना-सूना सा लगे,बाबा का यह बाग ||(२)
अम्मा डेहरी बैठकर ,लेतीं प्रभु का नाम |
घर के अंदर बन रहे,व्यंजन खूब ललाम ||(३)
आँगन में दिखते नहीं, गौरैया के पाँव |
गोरी रोज़ मना रही लौटें पाहुन गाँव ||(४)
मनरेगा के नाम पर,मुखिया के घर भोग |
ककड़ी,खीरा छोड़कर,चिप्स चबाते लोग ||(५)
रामरती दुबली हुई,किसन हुआ हलकान |
बेटा अफ़सर बन गया,रखे शहर का ध्यान ||(६)
प्रदूषण गाँव तक पहुच गया है भाई. हवाओं मे जहर फैलता जा रहा है. मन सफ़ेद से काले होते जा रहे है. जवान पीढ़ी को शहर का प्रदूषण साफ़ करना है. प्रोग्रेस करनी है . . . . गाँव की पवित्रता चली गई तो देश का बड़ा गर्क पक्का है समझो. . . . बहुत सुंदर कविता है .
जवाब देंहटाएंyatharth ankalan karti hui bahut sundar kavita .
जवाब देंहटाएंshubhkamnayen.
बहुत सुन्दर, लेकिन हर शब्द में व्यथा छिपी है, क्या कहूँ - दर्दीले दोहे?
जवाब देंहटाएंदर्दीले दोहे :)
हटाएंसंतोष त्रिवेदी दर्द दोहक कवि :)
...किसी भी प्रकार का कवि तो बना अन्यथा अनूपजी तो हमें कवि मानने से ही इनकार करते रहे हैं !
हटाएंक्यों ना अनूप जी के इंकार पे एक कविता हो जाये :)
हटाएं:-)
हटाएंअली सा, यह तो आपके द्वारा संतोष जी का अनूप सनूप दोहन है
हटाएंप्रिय सुज्ञ जी ,
हटाएंअनूप जी पे कविता कहने का आग्रह थोड़े ही किया है , संतोष जी को कवि मानने से उनके 'इनकार' पे कविता का 'इसरार' है :)
हमारी क्या औकात कि हम आपको कवि मानने से इन्कार करें। अली जी की फ़रमाइश पूरी करने का इंतजाम किया जाये।
हटाएंबहुत ही सटीक और तीखी अभिव्यक्ति है त्रिवेदी जी.......बधाई स्वीकार करें।
जवाब देंहटाएंगर्मियों की छुट्टियों में , फ़ुल्ल कवि जी हो गए माट साब ,
जवाब देंहटाएंखतम हुई जो छुट्टियां , फ़िर ढूंढ रहे हैं छडी और किताब ।
जय हो ई चिप्स चिबाने वाले का जानेगें खीरा पे काला नमक और काली मिर्च को बुरक कर डालने का स्वाद :)
जबरदस्त -ये दोहावली शतक पूरा करे ..
जवाब देंहटाएंमगर एक विपरीत उक्ति दोष सा लग रहा -
एक जगहं आप कह रहे कोयल कर्कश कूकती
और जल्दी ही दूसरी जगह वह मौन हो गयी ?
दोनों लाजवाब दोहे हैं मगर साथ साथ नहीं ..
उन्हें अलग दिक्काल चाहिए -
क्यों ?
आपकी आपत्ति जायज़ लगी सो थोड़ा बदलाव कर दिया है !
हटाएंबदलाव नहीं करना था। कहना था जहां मौन हुई, वहां पीएम हो गई।
हटाएंवाह वाह !!
जवाब देंहटाएंक्या कहने भाई जी । ।
कबूतर का भी प्रयोग कर लेते कहीं ।
बेचारे प्रसन्न हो जाते -
बहेलियों से पुरानी रंजिश है भाई ।।
क्रूर कबूतर हो रहे, करें साथ मतदान ।
जवाब देंहटाएंजब्त जमानत हो रही, बहेलिया हैरान ।।
Waaaaah.... Gehre bhav....
जवाब देंहटाएंहमारे ही परिवेश की कटु सच्च्चाईयाँ
जवाब देंहटाएंसमाज की बिखरन को समेटने का प्रयास करते शब्द..
जवाब देंहटाएंमनरेगा के नाम पर, मची हुई है लूट,
जवाब देंहटाएंमुखिया के तो मजे है जनता रही है टूट
जनता रही है टूट, काम नाम का होता
बटवारा कर आपस में अफसर घरमें सोता,,,,
MY RECENT POST काव्यान्जलि ...: बहुत बहुत आभार ,,
मनरेगा के नाम पर,मुखिया के घर भोग |
जवाब देंहटाएंककड़ी,खीरा छोड़कर,चिप्स चबाते लोग ||(५)
रामरती दुबली हुई,किसन हुआ हलकान |
बेटा अफ़सर बन गया,रखे शहर का ध्यान |
वाह ... गहन भाव लिए उत्कृष्ट लेखन ... आभार
अरे यहाँ तो कोयल आधी रात को गाने लगी है .... बसंत तो गया , पर वह जगाने लगी है ...
जवाब देंहटाएंसबकुछ बदल गया है
मनरेगा के नाम पर,मुखिया के घर भोग |
जवाब देंहटाएंककड़ी,खीरा छोड़कर,चिप्स चबाते लोग ||(५)
सभी दोहे यथार्थ का चित्रण करते हुये ....
बरगद, आम और नीम की राहत दुर्लभ, बढि़या दोहे.
जवाब देंहटाएंधारदार दोहे !
जवाब देंहटाएंनीम को पुल्लिंग ही रहने देते तो और भी अच्छा लगता . :)
रामरती दुबली हुई,किसन हुआ हलकान |
जवाब देंहटाएंबेटा अफ़सर बन गया,रखे शहर का ध्यान |
सटीक दोहे…………
अम्मा डेहरी बैठकर ,लेतीं प्रभु का नाम |
जवाब देंहटाएंघर के अंदर बन रहे,व्यंजन खूब ललाम ||(३)
....बहुत सुन्दर दोहे...आज की व्यथा को बहुत सटीकता से इंगित करते हुए...आभार
संतोष जी, यह दोहों से भरी बहुत सुन्दर पोस्ट रही। सभी दोहे बड़े सुन्दर हैं। मैं नहीं जानता हूँ कि अरविन्द मिश्र जी के कहने पर आपने क्या बदलाव किया है, पर दोहे अपनी दो पंक्तियों में पूर्ण होते हैं। यह दोहे का शास्त्र भी है, शक्ति भी। इसलिये दोहान्तर पर भिन्न वातावरण, रूपक, प्रतीक को असंगति नहीं मानते।
जवाब देंहटाएंपुनः कहूँगा कि सुन्दर दोहे लिखे हैं आपने। दोहा जो सदियों से आता काव्यरूप है उसमें आपने नवीन भाव-बर्ताव की चासनी बनाये रखी है। बधाई!
अमरेन्द्र भाई,वह दोहा मैं आपको यहाँ पढ़ा रहा हूँ,आप दोहे के बारे में ठीक कह रहे हैं पर बदलकर जो दोहा बना ,इससे एक नया भाव भी मिल गया !
हटाएं"आँगन में दिखते नहीं, गौरैया के पाँव |
कोयलिया भी मौन है,समझ शिकारी-दाँव |"
पूर्वस्थिति/परिवर्तन..आप गुरु-शिष्य के मध्य का मामला है. इस पर मेरी कोई टीप नहीं है. मैंने बस दोहे का स्वभाव-शास्त्र बताया है.
हटाएंअम्मा डेहरी बैठकर ,लेतीं प्रभु का नाम |
जवाब देंहटाएंघर के अंदर बन रहे,व्यंजन खूब ललाम ||
-वाह!! बहुत सुन्दर सभी!!
vyanjan khoob la-lam, hai sab ko khoob la-lata...
हटाएंaa-saman se dekh 'uran-tastari' bhi aa-ta........
pranam.
बडा प्यारा और रेाचक शीर्षक है
जवाब देंहटाएंbahut sundar likha hai
जवाब देंहटाएंयह रंग अच्छा लगा...
जवाब देंहटाएंसब कुछ तो बेरंग है आजकल !
मनरेगा के नाम पर,मुखिया के घर भोग |
जवाब देंहटाएंककड़ी,खीरा छोड़कर,चिप्स चबाते लोग ||(५)
लाजवाब बंधुवर।
रामरती दुबली हुई,किसन हुआ हलकान |
जवाब देंहटाएंबेटा अफ़सर बन गया,रखे शहर का ध्यान ||(६)
बहुत सुन्दर वाह
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएंहमारी समझ में तक जब आ गया ।
मन रे गा !!
मन रे गा
हटाएंसे
मन रे पढ़
की ओर बढ़ता
लेखन सफर।
जय हो जय हो
जवाब देंहटाएंकमाल की प्रस्तुति है.
पढकर अभिभूत हूँ.
बहुत अच्छी लगी सुंदर दोहों से सजी आपकी यह पोस्ट। इस विधा में आप इतने पारंगत हैं तो फिर काहे वक्त बर्बाद करते हैं? दोहे पर अब फिर से खूब काम हो रहा है। आप भी जम कर लिखना शुरू कर ही दीजिए।... शुभकामनाएँ और ढेरों बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया दोहे....
जवाब देंहटाएंअर्थपूर्ण.....
सादर
रामरती दुबली हुई,किसन हुआ हलकान |
जवाब देंहटाएंबेटा अफ़सर बन गया,रखे शहर का ध्यान ...
बहुत कड़वी सच्चाई कों लिखा है आपने ... इन दोहों में समाज का खाका खींचा है आपने ... बहुत ही लाजवाब हैं सभी दोहे ...
आप चिप्स का पैकेट साथ रखा कीजिए
जवाब देंहटाएंमार्केटिंग वाले भ खुश हो जाएंगे भरपूर।