डायरी के पुराने सफों में
हर सफे के हर्फ़ में ,
दिखती हो तुम,
खो जाती हो तुम !
ढूंढता हूँ तुम्हें
हर वक़्त,हर शय में
पास होकर भी
दूर हो जाती हो तुम !
इतनी शिद्दत से कभी
कुछ नहीं किया,
तलाश में अब हूँ मगर
कहाँ आती हो तुम ?
डायरी नहीं बनाता
अब सफों से दूर हूँ,
हर्फ़ भी पहचानते नहीं
प्रेम नहीं पढ़ाती हो तुम !
हो सकता है कभी
प्रेम मिल जाय कहीं,
पर प्यार में सोंधापन ,सहजता
कहाँ से लाती हो तुम ?
अभी भी रहस्य है यह..
जवाब देंहटाएंमन कि सहज ...कोमल ..सुंदर अभिव्यक्ति ...!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर उदगार ह्रदय के ....!!
बधाई एवं शुभकामनायें ...!!
प्रवीण भाई यह फेसबुक के सारे रहस्य ओपन करके ही संतोष पाएंगे।
जवाब देंहटाएंडायरी में बहुत कुछ दबी सी रहती हैं, उन बातों को पढ़कर ही सुकून मिलता है। (कभी-कभी)
जवाब देंहटाएंप्यार जताने का यह तरीका भी अच्छा है।
जवाब देंहटाएंकिससे प्यार जता रहे हैं वे ? पत्नी तो हो ही नहीं सकती ! डायरी के पन्नों में दिखने और खो जाने वाली पत्नी ? अमां, बिल्कुल भी नहीं !
हटाएंइस कविता में उमड़ता , प्यार , दुलार , इकरार और नायक बेकरार किसके लिए ?
इस कविता में वियोग , सुयोग , संजोग , दुर्योग और नायक तलबगार किसके लिए ?
जो कोई भी हो हम क्यों पूछें ? पर ये कविता बोले तो 'पत्नी से बेवफाई' :)
पुरानी यादें भुलाई नहीं जाती अली सर ....
हटाएंशायद आपको यह अनुभव नहीं :)
एक बार नेट चैटिंग के दरमियान लड़की ने लड़के की ऐसी ही बातों के उत्तर में कहा था....
जवाब देंहटाएंपासवर्ड तो
दे ही दिया
अब क्या चाहते हो
तुम?
:)
☺
हटाएं'पासवर्ड' यानि कि उन्हें 'पास के बोल' से क्या , जो चाहिये आप नहीं समझते क्या :)
हटाएंपर प्यार में सोंधापन ,सहजता
जवाब देंहटाएंकहाँ से लाती हो तुम ?
कौन जाने?????????
माट्साब!
जवाब देंहटाएंकहाँ आप भी कस्तूरी को कुंडली में धारण करके जग माहीं खोज रहे हैं... कभी एक नुस्खा आजमा कर देखिये.. जब ज़रा गर्दन झुकाई देख ली!! फिर क्या डायरी, लफ्ज़, शिद्दत और शै.. फिर तो बस ज़र्रे-ज़र्रे में उसी का नूर दिखाई देगा!!
इतनी शिद्दत से कभी
जवाब देंहटाएंकुछ नहीं किया,
तलाश में अब हूँ मगर
कहाँ आती हो तुम ?
डायरी नहीं बनाता
अब सफों से दूर हूँ,
हर्फ़ भी पहचानते नहीं
प्रेम नहीं पढ़ाती हो तुम !
हो सकता है कभी
प्रेम मिल जाय कहीं,
पर प्यार में सोंधापन ,सहजता
कहाँ से लाती हो तुम ?... बेहद अच्छी रचना
मन के भाव कभी कभी सहज ही कुछ प्रश्न खड़ा करते हैं ... फिर बैचैन हिते हैं पर जवाब नहीं मिलता ... अच्छा लिखा है ...
जवाब देंहटाएंपर प्यार में सोंधापन ,सहजता
जवाब देंहटाएंकहाँ से लाती हो तुम ?......bahot khoobsurat.
सरलता सरल है, सरल व्यक्ति के लिये
जवाब देंहटाएंलोग बिछड़ते हैं फिर याद आने के लिये
मन के सरल स्पष्ट भाव..... बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंखूबसूरत यादों की सौंधी महक हर सफे में , हर हर्फ़ में और इस कविता में !
जवाब देंहटाएंचाहे किसी के लिए भी हो पर खूबसूरत कविता,
जवाब देंहटाएंसाधुवाद.
हो सकता है कभी
जवाब देंहटाएंप्रेम मिल जाय कहीं,
पर प्यार में सोंधापन ,सहजता
कहाँ से लाती हो तुम ?
वाह...बहुत अच्छी रचना .....
RECENT POST....काव्यान्जलि ...: कभी कभी.....
दोनों की उम्मीद एक सी,साझा लगे तराना
हटाएंघर की मुर्गी दाल बराबर,गाते रहो फसाना
जो सहज है,केवल वही प्रेम में होता है। इसे लाया गया है,यह कोई ऐसा व्यक्ति ही सोच सकता है जो स्वयं प्रेम में सहज नहीं है।
जवाब देंहटाएंसहज कोई नर कभी प्रेम में यहाँ नही रह पाता
हटाएंसदियों से दुनियां में प्रेमी, पागल ही कहलाता
Saral aur bhavpurn abhivyakti...
जवाब देंहटाएंहो सकता है कभी
जवाब देंहटाएंप्रेम मिल जाय कहीं,
पर प्यार में सोंधापन ,सहजता
कहाँ से लाती हो तुम ?
.....कहाँ मिलेंगे इन प्रश्नों के उत्तर....भावों की बहुत सहज और प्रभावी अभिव्यक्ति...
हो सकता है कभी
जवाब देंहटाएंप्रेम मिल जाय कहीं,
पर प्यार में सोंधापन ,सहजता
कहाँ से लाती हो तुम ?
bahut hi sundar tariike se bhavo ki abhivyakti,
जांच कमेटी भैया मेरे,अब हम है बिठलाते
जवाब देंहटाएंकहाँ छुपा है प्रेम आप का ढूंढ उसे हैं लाते
एक फितूर ही है साला प्रेम भी ......
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टीम हमारीवाणी
... बेहद प्रभावशाली अभिव्यक्ति है ।
जवाब देंहटाएंसभी साथियों का आभार..!
जवाब देंहटाएंकोमल से भाव सँजोये सुंदर प्रस्तुति ॥
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