31 मई 2012

निखंड घाम में !



निखंड घाम में काम करता आदमी,
पसीने को भी तरसता है ,
बंद कमरों में बैठे भद्र जन
बाहर का तापमान नाप रहे हैं ||

निखंड घाम में बाहर जाता आदमी
होठों से प्यास को दबाता है,
मॉल में घूमते बड़े लोग
ठंडी बियर डकार रहे हैं ||

निखंड घाम में सफ़र करता आदमी
गमछे से मुँह ढाँपता है,
बी एम डब्ल्यू में बैठे लोग
पॉप संगीत पर ठहाके मार रहे हैं ||

निखंड घाम में घर लौटता आदमी
एक नींबू के लिए मोलभाव करता  है,
कोठियों में आते संभ्रांत जन
अंगूर की पेटियाँ ला रहे हैं ||

71 टिप्‍पणियां:

  1. hamne bhi gandhi aashram se ek gamchha 90 rs. me liya hai.
    hijaab me nikalna padta hai.

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  2. निखंड घाम में सफ़र करता आदमी
    गमछे से मुँह ढाँपता है,
    बी एम डब्ल्यू में बैठे लोग
    पॉप संगीत पर ठहाके मार रहे हैं ...

    कितना कडुवा सच लिखा है ... यथार्थ लिखा है ... आम आदमी की त्रासदी कों लिखा है शब्दों में ...

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    1. ...हो सकता है,कुछ पंक्तियाँ यहाँ डाल देते तो मैं भी समझ सकता !!

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  4. सुख से यहाँ भी दूरी है
    सुख से वहां भी दूरी है ,
    यहाँ हेल्थ की मजबूरी है
    वहां वेल्थ की मजबूरी है !

    जिंदगी तेरे कितने रूप !

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    1. दराल साब,क्या खूब फ़रमाया है...!

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    2. वास्ते दराल साहब ,

      जिंदगी तेरे कितने रूप
      कहीं छांव तो कहीं धूप

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  5. दो स्थितियों के विरोधी दृश्य-क्रम को लिए रचना, सच्चाई रखने ka प्रयास!

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  6. उत्तर
    1. सतीश भाई ,
      संतोष जी ने दो परिस्थितियाँ सामने रखी हैं आपने कौन सी वाली के लिए उन्हें शुभकामनाएं दीं हैं :)

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    2. फंसायें मत गुरुवर ....

      मैंने सिर्फ शुभकामनायें दी हैं :)

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    3. शुभकामनायें भी फंसाती हैं! :)

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    4. ...मगर इस वक़्त मुझे सतीश भाई की शुभकामनाओं की सख्त ज़रूरत है |

      आभार

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    5. हमेशा आपके साथ खड़े हैं ...

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    6. सतीश जी,आपके इन शब्दों में गज़ब की ऊर्जा है,आभार |

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  7. निखंड घाम में घर लौटता आदमी
    एक नींबू के लिए मोलभाव करता है,
    ....... यह कविता ....... सत्य की बेहद करीब है !

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  8. ग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है ..!!

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  9. कविता पढ़कर ये भाव जगे....

    धूप में
    ढूँढता हूँ
    छांव
    छांव में
    पीता हूँ
    धूप
    घर आता हूँ
    जब थकते हैं
    पाँव
    लिखता हूँ
    धूप-छांव
    मैं कवि हूँ।

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  10. यही वह विडम्बना जिसे प्रतिपल भोगने हम विवश हैं।

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    1. बस लिखकर दिल का हाल बयां कर देते हैं,
      ऐसे भी दिन आए हैं ,छुपकर हम रो लेते हैं !!

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  11. संवेदनशील है मामला। शुभकामनायें आपको।

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    1. महराज...शुभकामना के अलावा और कुछ दीजिए.यह काम सतीशजी के नाम पेटेंट है !!

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  12. निखंड घाम के कुछ दृश्य हमने भी देखे ...
    निखंड घाम में
    श्रमिक महिलाएं
    तगार उठाये
    तीसरी मंजिल पर
    ईंटे पहुंचाएं ...
    तोड़ कर प्याज मुट्ठी से
    रोटी को पानी से गटककर
    थोडा सुस्तायें !
    निखंड घाम में कही
    बस के इंतज़ार में
    खड़ी है कुछ महिलाएं
    कतार लगाए !
    उसी निखंड घाम में
    स्कार्फ लपेटे कुछ बालाएं
    दस्ताने पहने
    काला चश्मा लगाये
    फटफटिया की पिछली सीट पर
    फ़र्राट लगाये !

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    1. वाणीजी...ई तो हमारी रचना से भी अच्छी रचना है !

      बहुत आभार

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  13. निखंड घाम में अब आप भी अखंड खर खाने को स्वतंत्र हैं !

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  14. फिर भी समाजवाद , संवेदनशीलता , समानता की बात होती है ... !

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  15. मित्रों चर्चा मंच के, देखो पन्ने खोल |
    आओ धक्का मार के, महंगा है पेट्रोल ||
    --
    शुक्रवारीय चर्चा मंच

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  16. निखंड घाम में सफ़र करता आदमी
    गमछे से मुँह ढाँपता है,
    बी एम डब्ल्यू में बैठे लोग
    पॉप संगीत पर ठहाके मार रहे हैं ||

    बढ़िया प्रस्तुति,सुंदर कविता,,,,,

    RECENT POST ,,,, काव्यान्जलि ,,,, अकेलापन ,,,,

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  17. अब निखंड घाम में हमारे मन पर तो केवल एक ही चित्र उभरता है और बचपन से छपा हुआ है.. तोडती पत्थर
    देखा उसे मैंने इलाहाबाद के पथ पर!!
    निखंड घाम में मैंने अपनी आँखों से ४८ डिग्री में डामर की सड़क काटते मजदूर को देखा है जिसके काम का लेखा-जोखा १८ डिग्री पर कमरे में बैठा इंसान कर रहा होता है.. तब मैंने एक शे'र कहा था:
    ठन्डे घरों में करता पसीने का वो हिसाब,
    तपती सड़क पे लम्हा इक गुज़ार तो आये!

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    1. ...कितना सटीक कहा है आपने..?

      और हाँ,हम कितना मिस करेंगे आपको सलिल जी ?
      मेरा एकठो शेर आपके वास्ते...

      नज़रों से मेरी छुपके,तुम जाओगे कहाँ,
      करोगे रुख जिधर भी, हमें पाओगे वहाँ !!

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    2. काहे को मिस करोगे उन्हें , उनका नौकरी में तबादला हुआ है वे इंटरनेट की दुनिया से कहीं नहीं जा रहे हैं !

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    3. अली जी, वे दोनों दिल्ली में रहते हैं, रोज़ मुलाकात की सम्भावनायें हैं, ट्रांस्फ़र के बाद मिस करने की पूरी सम्भावना है। :(

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  18. आभार शिल्पाजी...आप यूँ ही मुस्कराती रहें !

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  19. बंद कमरों में बैठे भद्र जन
    बाहर का तापमान नाप रहे हैं.....
    जबर्दस्त...
    सादर।

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  20. सच तो यही है .. जो आपने कहा उत्‍कृष्‍ट लेखन के लिए आभार ।

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  21. हे राम - यह मुस्कुराता smiley नहीं था संतोष जी | यह धूप में झुलसते श्रम करते श्रमिक के साथ उदास smiley था | खुदा न करे कि यूँ ही रहना पड़े, हमें, या आपको, या उस श्रमिक को, किसी और को .....

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  22. मुझे कुछ शुबहा हो रंहा था पर शायद स्नेह के कारण या बेख्याली में कह गया ,बाकी आपके भाव समझ गया था !

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  23. संतोष त्रिवेदी जी पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ बहुत सुन्दर व्यंग्य कापुट लिए प्रस्तुति बहुत पसंद आई

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    1. आपका स्वागत है !

      ...यह हमारी बदकिस्मती है कि हमारे व्यंग्य को लोग गंभीर समझ लेते हैं और गंभीर को व्यंग्य:-)

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  24. निखंड घाम में काम करता आदमी,
    पसीने को भी तरसता है ,
    बंद कमरों में बैठे भद्र जन
    बाहर का तापमान नाप रहे हैं |

    ...एक कटु सत्य जिसका हमारी व्यवस्था के पास कोई ज़वाब नहीं .....

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  25. सटीक .... यह उहापोह जीवन में हर कहीं दिखती है....

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  26. सुख दुख, अमीरी गरीबी, जीवन के दो रूप ... सुन्दर कविता।

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  27. एक सुखी है एक दुखी है, एक हंसता एक रोता रे, क्या कारण होगा,रे क्या कारण होगा?
    हर सफल शोषक नहीं होता,हर दुखी नहीं पीडित रे, कोई कारण होगा,सोचो तो कोई कारण होगा?

    वैसे इस निखण्ड घाम का अर्थ क्या है?

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  28. उत्तर
    1. यह कट-पेस्ट टाइप टिपियाना छोड़कर पढ़ना शुरू करो,सब आयेंगे !

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