भले सूरत बदल जाए ,
सूरज पश्चिम से उग आए,
मन की कुटिलता न बदले
लोमड़ी भी सिहर जाए !
जल जायेंगे चेहरे सभी
जो भूल से पहुँचे वहाँ !
जन्म उनका है निरर्थक
अभिशाप है यह भी हमारा,
जला कर ख़ाक कर देगा उन्हें,
दहकता डाह का अंगारा !
तरस आता है हमें
हालत ये उनकी देखकर ,
सूरज पश्चिम से उग आए,
मन की कुटिलता न बदले
लोमड़ी भी सिहर जाए !
कोयले की आग दहके,
शीतल-छाँव मत ढूँढो यहाँ,जल जायेंगे चेहरे सभी
जो भूल से पहुँचे वहाँ !
जन्म उनका है निरर्थक
अभिशाप है यह भी हमारा,
जला कर ख़ाक कर देगा उन्हें,
दहकता डाह का अंगारा !
तरस आता है हमें
हालत ये उनकी देखकर ,
टंकी चढ़ें,लोमड़ बनें
उसूल अपने बेचकर !
लोमड़ी के दिवस पूरे
अपने भी बेगाने हुए,
रात उनके साथ है
दिवस खिसियाने हुए !
क्या तीर मारा है संतोष जी.....
जवाब देंहटाएंसादर.
आभार आपका !
हटाएंसंदर्भ और प्रसंग भी दे देते।
जवाब देंहटाएंआपको सब पता है महराज.....!
हटाएंलोमड़ी की चालाकी
जवाब देंहटाएंसियार की धूर्तता
और कौवे की कुटिलता ने
एक दूसरे को
मूर्ख बनाने का
सदियों पुराना खेल
बंद कर दिया एक दिन
यह खतरनाक समझौता करके
की अब वे
एक दुसरे को मूर्ख बनाना छोड़कर
सबको मूर्ख बनायेंगे
और मजे से रहेंगे |
तब से लेकर आज तक उनका ही शासन है
पूरे जंगल में
गोया जंगल उनके बाप की जागीर है !
बढ़िया लोक-कथा से जोड़ा है !
हटाएंलोमड़ियां मरती कहां है, हमारे यहां कहावत है कि लोमड़ियों की 7 लाइफ़ होती हैं...
जवाब देंहटाएं..गनीमत है कि हमें एक ही लाइफ की परमिशन मिली है !
हटाएंखंबे खौफजदा हैं
जवाब देंहटाएंअब लोमडि़यां करेंगी
लघुशंका निवारण
पहले यह काम
कुत्तों के जिम्मे
रहा करता था।
इनकी साजिश
कुत्तों लोमड़ी की सियासत
रंग ला रही है
आप देख रहे हैं
पेट के रोल की कीमत
रोज ही बढ़ती जा रही है
रुपये को गिरा रही है
विकास निरा दिखा रही है
किसे करे कौन सम्मानित
खुजली मिटाने की अब
बारी आ गई है।
लोमडि़यों ने आजकल
इंटरनेट अपनाया है
अंगूरों के बगीचे को
अपना अंगूठा दिखलाया है।
जय हो अन्नाबाबा की ...आपके वार को समझना भी आसान नहीं है !
हटाएंफ़िजूल की सरखपाई है! तात्कालिक हलचलों पर इस तरह की कवितायें पढ़ने से यही लगता है कि हम लोग जिससे भी खफ़ा हो गये उसको लोमड़ी बना दिया। जिससे खुश हो गये उसको शेर बना दिया। कोई मतलब नहीं इस तरह की तुमबंदियों से।
जवाब देंहटाएंआपके गुरुजी का आशीर्वाद नहीं मिला अभी तक इस तुमबंदी को। :)
अनूप जी...यह सरखपाई आप जैसे वरिष्ठों की ही देन है,जो मुझे झेलनी पड़ रही है..!
हटाएंआपके पास तो असलहों का भंडार है,हमारे पास कमज़ोर तुकबंदी...अब इसी से काम चलाएंगे ना.. ?
बाकी,इसे कविता की श्रेणी में मैं रखता ही नहीं.
हमारे गुरूजी आजकल 'सद्भाव-यात्रा' कर रहे हैं और बाकी समय में सूपनखा पर शोध !
येल्लो क्या मारा है! हमारे पास असलहे किधर हैं जी! :)
हटाएंगुरुजी आपके महान हैं। वे हर छटे-छमाहे, जब भी किसी से नाराज होते हैं, पौराणिक पात्रों पर शोध करके एक ठो पोस्ट ठेल देते हैं। महिलाओं से नाराज होने पर शूर्पणखा की शरण में चले जाते हैं। :)
...अब मुश्किल है कि आप किससे नाराज़ हों ?
हटाएंहम किसी से नाराज नहीं है भाई! :)
हटाएंतुमबंदी या तुकबंदी अनूपप जी ..लीजिये आपने आह्वान किया और हम हाज़िर हो गए वर्ना आने वाले न थे इस वाहियात कविता पर ..
जवाब देंहटाएंपता नहीं संतोष जी काहें अपनी काव्य प्रतिभा की ऐसी गति करने और काव्य कला की ऐसी तैसी करने पर तुले हैं .
कीन्हे प्राकृत जन गुण गाना सिर धुन गिरा लाग पछताना ...
यद्यपि लोमड़ी दर्शन शुभ है -फिर फिर लोवा सामने आवा.... :)
संतोष त्रिवेदी जी से ऐसी रचना की उम्मीद कम ही होती है, आप खुद गुरु जन हैं, क्रोध पर नियंत्रण करना आपको कौन सिखाएगा ! रचनाएं व्यक्तिगत क्रोध और व्यक्ति विशेष के कारण लिखी जाएँ, मुझे लगता है रचना कर्म का अपमान है !
हटाएंमेरा अनुरोध है कि आप इनसे बाहर आयें और अपने पाठकों को कुछ बेहतर प्रदान करें !
हमें चाहिए कि अनजाने में भी हमसे किसी का अपमान न हो पाए अगर जानबूझ कर ऐसा करेंगे तब तो गुरुघंटालों की बन आएगी वे आपके पैरों के नीचे से तख्ता खींचने में देर नहीं लगायेंगे !
बैसवारी से बेहतरीन रचनाएं पढने को मिलेंगी मैं ऐसी उम्मीद रखता हूँ !
आशा है गलत नहीं समझेंगे ,
शुभेच्छु
@अरविन्द मिश्रजी
हटाएंगुरु जी,कभी तो आप दूर की कौड़ी लाते हैं और कभी इतना पास का नहीं दिखता...इसे मैंने कविता कहा ही कब....? लेबल देख लीजिए !
और हाँ,लोमड़ी का 'टैलेंट' आपने देख ही लिया..!!
सतीशजी....इत्ती घटिया रचना के लिए माफ़ी चाहता हूँ.इससे ज़्यादा कर भी नहीं पाया !
हटाएंआपने जो हम पर जिम्मेदारी दी है,उसे निभाने की कोशिश करूँगा !
अरविंदमिश्र जी,
हटाएंसंतोष जी की इस कविता/तुकबंदी को आप वाहियात कह सकते हैं काहे से कि आप उनके गुरु हैं। हम संतोषजी को यही समझाना चाहते हैं कि जरूरी थोड़ी है कि गुरु की हर विद्या का अभ्यास किया जाये। कुछ विद्यायें/आचरण केवल गुरु के ही पास रहने दीजिये। बाकी तो आप खुद ही विद्वान हैं। :)
सतीश सक्सेना जी,
हम आपके इस बात से सहमत नहीं हो पा रहे हैं कि हम वैसवारी पर सिर्फ़ बेहतरीन रचनायें ही पढ़ना चाहता हूं। मैं चाहता हूं कि बीच-बीच में खराब/घटिया लेखन भी होता रहे ताकि ( यहां ही नहीं हर जगह) ताकि लोग इस मुगालते में जी सकें कि बहुत अच्छा लिखते हैं। खराब लेखन के भी अपने फ़ायदे हैं। :)
समझ तो नहीं आई कविता , कविता के लेबल से ही लिख देते हैं टिप्पणी !
जवाब देंहटाएंब्लॉगिंग में लगातार बढती नकारात्मकता मुफ्त मिले इस प्लेटफोर्म को नुकसान पहुंचा रही है !
अब ये लोमड़ी ,कौवा , शेर, इनपर बात रुकनी चाहिए ...कुछ सार्थक हो !
वाणी जी,कभी-कभी कुछ 'निरर्थक' भी सार्थक काम कर जाता है !
हटाएंबाकी आपकी बातों से सहमत !
(१)
जवाब देंहटाएंसन्दर्भ और प्रसंग के मामले में मुझे भी प्रवीण पाण्डेय जी जैसा अनभिज्ञ / मासूम माना जाये :)
(२)
उचित समझियेगा तो बतला दीजियेगा कि कौन कमबख्त आपकी बर्दाश्त का इम्तहान ले रहा है :)
(३)
बहरहाल...
जब आप कपड़े पहनते हैं तो पैंट पे शर्ट की तुक / सिर पे बाल का लुक / भोजन करते हैं तो रोटी पे दाल की तुक / कदम पे दूसरे कदम (ताल) की तुक / पहली सांस पर दूसरी सांस की तुक...यहां तक कि जीवन की हर गतिविधि में तुकबन्दियों पे आधारित चिंतन और व्यवहार ही तो करते हैं हम सब ! कभी उत्कृष्ट तो कभी साधारण श्रेणी का तुकबंदेय उत्पाद हमारी जिंदगी का हिस्सा है ! इसलिए हे कविवर संतोष फल की चिंता मत करो बस कर्म किये जाओ :)
तालियाँ ....
हटाएंअली जी...मित्र के अनकहे दर्द को समझने वाला ही प्रखर मित्र होता है.आपने 'तुकबंदी' की ऐसी-तैसी करके यह जता दिया है. आपकी टीप लाजवाब है और कई सवालों के जवाब देती है.
हटाएंसतीशजी के साथ मेरी भी तालियाँ !!
संतोष जी...
हटाएंआपके ब्लॉग में आकर कभी निराश नहीं होना पड़ता। पोस्ट बढ़िया नहीं हुआ तो कमेंट लाज़वाब आ ही जाते हैं।:)
वाह .... बेजोड़
जवाब देंहटाएंरश्मि जी....आभार
हटाएंवाह!
जवाब देंहटाएं...आह !
हटाएंप्रतियोगिता से अलग-
जवाब देंहटाएंअलंकार खोजिये-
लोमड़ी के दिवस पूरे-
पड़े-घूरे, उसे घूरें ||
रात बाकी-दिवस पूरे |
सदा थू-रे, बदा थूरे ||
घूर के भी दिन बहूरे-
लट्ठ हूरे, नग्न-हूरें ||
आँख सेकें, भद्र छोरे |
नहीं छू-रे, चलें छूरें ||
मस्त हैं अंगूर लेकिन
खले तू-रे, नहीं तूरे ||
दिवस्पति की दिल्लगी से-
झूम झूरे झेर झूरे ||
आपके अलंकार भी अनोखे हैं...!
हटाएंयह भी एक सुखद संयोग है कि जब ब्लॉग जगत एक भीषण उपद्रव की स्थिति से गुजर रहा है, मैं स्व-निर्मित भवसागर में गोते लगा रहा हूँ. ऐसे में घटनाओं के प्रति अनजान हूँ और कविता पर कुछ कहना शब्दार्थ पर अभिमत प्रकट करने जैसा होगा.. अतः अंग्रेजों के आविष्कार इस्माइली से काम चलाते हैं.. हाजिरी लगा लीजिएगा माट्साब!!
जवाब देंहटाएं:)
आप आए बस इसी से मुझे ऑक्सीजन मिल गया...!
हटाएंआभार
इस रचना पर तो कुछ सूझ नही रहा था, विचरण करते आपकी इन पंक्तियों से अतिशय प्रभावित हुआ………।
जवाब देंहटाएंमैं तो वैसे भी जी लूँगा,
अमिय समझकर विष पी लूँगा,
तुमने जो विष-बेल उगाई,
जग को भी संत्रास दिया है,
हमने तो बस गरल पिया है !३!
मैं दीप जलाता फिरता हूँ,
दुःख नहीं कि मैं भी जलता हूँ,
देखो,समय बनेगा साक्षी,
तुमने कलुषित इतिहास किया है,
हमने तो बस गरल पिया है !४!
http://www.santoshtrivedi.com/2011/09/blog-post_22.html
...सुज्ञ जी,आपने काफ़ी-कुछ समझा है !!
हटाएंहाथ में तीर कमान है
जवाब देंहटाएंजुबां पर बुलंद नारा।
पंडित बन गए क्षत्रिय
क्या हस्र होगा हमारा !
भई , जब ये यू पी वाले इतने जोश में आ गए , तो हरियाणा पंजाब का क्या होगा ! :)
अब प्रत्युत्तर का इंतजार कीजिये ।
डॉक्टर साब....यह तो प्रत्युत्तर ही है,बाकी बीस साल से हरियाणा की संगति में ही हूँ !
हटाएंकर्म किये जा,फल की चिंता न कर तू इंसान ये है गीता का ज्ञान,,,,,
जवाब देंहटाएंसंतोष जी, सिर्फ आप लिखते जाइए,,,,,,
..हम लिखते तो हैं,पर चौकस भी रहते हैं !!
हटाएंआभार
प्रवीण पांडे जी की टिप्पणी हमारी भी समझी जाए…:)
जवाब देंहटाएं...अनीता जी ,वास्तव में उनकी ही टीप सबसे सार-गर्भित है !
हटाएंBUDDHAM SHARANAM GACHHAMI.....AUR HAMARE BLOG-BUDDHA HAIN ADARNIYA PRAVIN PANDEY....SO, UNKI TIP HI HAMARI BHI SAMJHA
हटाएंJAI....
PRANAM.
ऑपरेशन लोमड़ी' सफल रहा....वह अपने मौलिक-ट्रैक पर आ गई है ! उम्मीद करता हूँ कि कम-से-कम छः महीने तक नौटंकी चालू रहेगी!
जवाब देंहटाएंसभी का आभार !
तरस आता है हमें
जवाब देंहटाएंहालत ये उनकी देखकर ,
टंकी चढ़ें,लोमड़ बनें
उसूल अपने बेचकर ...
आखिर ये लोमड़ी कौन है ... खैर जो भी है असूल बेचकर कुछ भी करना ठीक नहीं ...