मुझे ले तो आये हो
ढोकर एक बोरे की तरह,
पड़ी रहूँगी किसी कोने में
घर में एक बुजुर्ग की तरह !
जावेद अख्तर जी से 'लावा' की हस्ताक्षरित प्रति लेते हुए (२७/०२/२०१२),पुस्तक-मेला ,दिल्ली |
या भूल जाओगे
किसी रिश्ते की तरह ?
मैं गुमसुम हो
तकती रहूँगी तुम्हारी राह
कभी तो सहलाओगे मुझे
जुल्फों की तरह !
हमारे हर्फ़ न होंगे स्याह
और न ही ज़र्द,
जिंदा रहेंगे अर्थ
रूह के हिस्से की तरह !
कभी तो सहलाओगे मुझे
जवाब देंहटाएंजुल्फों की तरह !
हमारे हर्फ़ न होंगे स्याह
और न ही ज़र्द,
जिंदा रहेंगे अर्थ
रूह के हिस्से की तरह....
बहुत सुंदर भाव पुर्ण सुंदर पंक्तियाँ ....
जावेद जी से मुलाक़ात के लिए ...बधाई काश हम भी वहाँ होते...
बहुत धन्यवाद धीरेन्द्र भाई....
हटाएंकभी 'तुम्हारौ' मौका आई !
जिंदा रहेंगे अर्थ
जवाब देंहटाएंरूह के हिस्से की तरह....
sateek abhivyakti .badhai javed ji se mulakat karne par .
शिखाजी शुक्रिया !
हटाएंबहुत सुन्दर भाव,
जवाब देंहटाएंबधाई!!! जावेद अख्तर जी से 'लावा' की हस्ताक्षरित प्रति प्राप्त करने के लिए...
हाँ विद्या जी...यह जीवन की एक बड़ी उपलब्धि है हमारे लिए !
हटाएंbahut sundar bhavpoorn prastuti.badhai.
जवाब देंहटाएंशालिनीजी आभार आपका !
हटाएंपड़ी रहूँगी किसी कोने में
जवाब देंहटाएंघर में एक बुजुर्ग की तरह !
सुंदर रचना.....
आभारी हूँ आपका !
हटाएंसुनों किताबें बोलतीं, पावन करती देह ।
जवाब देंहटाएंकानों में मिश्री घुले, करलो इनसे नेह ।
करलो इनसे नेह, निभाती रिश्ता हरदम ।
लेकर जाओ गेह, मित्र ये रहबर अनुपम ।
मानस मोती पाय, अघाए मानव बुद्धी ।
साबुन तेल बगैर, करे तन-मन की शुद्धी।
दिनेश की टिप्पणी - आपका लिंक
http://dineshkidillagi.blogspot.in
किताबें दोस्त हमारी
हटाएंचलती हैं हमसफ़र की तरह !
हमारे हर्फ़ न होंगे स्याह
जवाब देंहटाएंऔर न ही ज़र्द,
जिंदा रहेंगे अर्थ
रूह के हिस्से की तरह !
सुंदर अभिव्यक्ति .... किताब पर तो कभी ध्यान चला भी जाये लेकिन उपेक्षित बुजुर्ग क्या करें ?
करना तो हमें ही है,बुजुर्ग क्या करेंगे ?
हटाएंअब ले आए हैं तो पढ़ा भी जायेगा .
जवाब देंहटाएंये तो हो नहीं सकता की सिर्फ ज़ावेद साहब के साथ फोटो खिंचवाने के लिए खरीदी है . :)
बहरहाल नज़्म बहुत खूबसूरत बन पड़ी है . बधाई .
मैं किताब को,
हटाएंजावेद को,
और फोटो को यदि पढ़ सका
तो धन्य हो जाऊंगा
पकी हुई फसल की तरह !
माट्साब!
जवाब देंहटाएंइस व्यथा को कभी सुना है किताबों की सिसकियों में:
कितनी रूहें तडपती हैं,
पडी-पडी आलमारियों में
उन किताबों की, जिनके
दो जुड़े हुए पन्ने भी न काटे गए,
गर्भनाल की तरह!!
/
पुस्तकों की संवेदना की मार्मिक अभिव्यक्ति!!
...और उन्हें छोड़ दिया गया
हटाएंकिसी लावारिस की तरह !
मेरी पुस्तकें भी यही कहती हैं मुझसे..
जवाब देंहटाएंउनसे बातें किया करो,
हटाएंवो हमारा आइना हैं !
किताब की कथा व्यथा को सुंदर सहज शब्दों में उतार दिया ।
जवाब देंहटाएंआभार आशाजी !
हटाएंओह अदभुत प्रविष्टि !
जवाब देंहटाएंजेहे-नसीब मेरे ..!
हटाएंकिताबें वैसे भी तड़पती हैं
जवाब देंहटाएंहम जैसे चटोर के हाथों पड़कर
छोड़ता हूं जब उन्हें पूरा ही चाटकर!
आप सौभाग्यशाली हैं...!
हटाएंशीशे के पीछे से झांकती किताबें ऐसे भी बतियाती है ...
जवाब देंहटाएंसुन पा रहे हैं तो पढ़ भी लेंगे ही !
...ठीक है,फिर देख लेते हैं !
हटाएंकभी मैंने भी पुस्तकों की तुलना रूपसियों से की थी ..मुझे तो लाये हो सजना ...क्या बात है ?
जवाब देंहटाएंअच्छा जा रहे हो !
मगर वे 'रूपसियां' अब 'बुजुर्ग' बन रही हैं !
हटाएंहम सबसे यही शिकायत होगी ......सच में किताबों के मन का दर्द कितना गहरा है.....
जवाब देंहटाएं..पर हम यदि सुन सकें तो अच्छा होगा !
हटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंआभार दीपिका जी !
हटाएंचकाचक फोटो है। किताबें जो लाये हैं उनके बारे में लिखिये और अपनी कविता में व्यक्त आशंका को खलास कर दीजिये।
जवाब देंहटाएंपढ़ तो लेंगे पर लिखना शायद ही हो पाए !
हटाएंकिताबो की मूक भाषा कभी कभी चीख के भी बोलती है ... पर यदि हम सुनना चाहें तभी ...
जवाब देंहटाएंबिलकुल ठीक !
हटाएंवास्तव में किताबों की यही हालात हैं अच्छी पोस्ट बधाई
जवाब देंहटाएंआभार सुनील भाई !
हटाएंपुस्तके हमारी धरोहर है उनको सहेजना हमारा कर्तव्य है,...बेहतरीन रचना....
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति,
NEW POST ...काव्यान्जलि ...होली में...
NEW POST ...फुहार....: फागुन लहराया...
मस्त तस्वीर...अब किताबों की समीक्षा की जाये...
जवाब देंहटाएंसमीक्षा-कर्म बड़ी चुनौती है....!
हटाएंशानदार अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंकिताब को भी जुबान देती हुई.
अच्छा ...तो किताब इस तरह भी सोचती हैं?
जवाब देंहटाएं:)