जब भी देखता हूँ ,कोई सांवली-सी सूरत,
तुम्हारा ही अक्स ,उसमें नज़र आता है !
छुप-छुप के तुम्हें देखना ,यदि वाक़ई ज़ुर्म है,
तो ये गुनाह हमने ,कई बार किया है !
देखा जब भी आपको ,नज़रें झुकी मिलीं,
जाने खफ़ा हैं मुझसे ,या फिर अदा है आपकी !
गए तो आँधियों की तरह ,उजाड़कर मुझको !
तुमको न भुला पाया, क्यों नहीं अब तक,
मेरे पास न सही ,मेरे अहसास में तो हो !
विशेष : पहले के तीन शेर तकरीबन पचीस-बरस पुराने हैं और आखिरी के दो ताज़ा !
पुराने और ताजे, सब ताजे हैं! फोटो बड़ा बासंती रूचि का चेंपे हैं आप! वाह!
जवाब देंहटाएंबस...फोटू ही हमारे हाथ लगा है !
हटाएंअब अली जी आयें और अपना हुनर दिखाएँ! कुछ कुछ क्ल्यू तो मिल गया -क्या पुराना बुखार उतर गया जो नया सर चढ़ बैठा है ? :)
जवाब देंहटाएंनहीं वो नहीं उतरा ! यह तो पुराने और नये का फ्यूजन है :)
हटाएंअली साब,मिसिर जी को थोड़ा 'कन्फ्यूज़न' है !
हटाएंन फ्यूज़न है , न कन्फ्यूज़न है ! यह तो त्रिवेदी जी का इन्त्युज़न( intuition ) है ! :)
हटाएंलगता है यही सही कान्क्लूजन है :)
हटाएंजी हाँ,मेरा भी यही डिसीज़न है !
हटाएंमौज ले रहे हैं क्योंकि बसंत का सीजन है ।
हटाएंपर अली सा की टीप सदा करती चुस्ती स्फूर्ति का परफ्यूजन हैं ।
लिख्खा है आपने करवट बदल-बदल के
हटाएंटीपा है डॉ दराल ने फोटू बदल-बदल के
वैलेन्टाइन की टीस है है या वेल इन टाइम की ...
जवाब देंहटाएंमौसम का असर है, या मौसमी असर!
जो भी है, हर शे’र लाजवाब है!!
मुझे यह बेहतरीन लगा ...
देखा जब भी आपको ,नज़रें झुकी मिलीं,
जाने खफ़ा हैं मुझसे ,या फिर अदा है आपकी !
एक क़व्वाली याद आ गई
“आंख उठाना तुम्हारा तो फिर ठीक था,
आंख उठाकर झुकाना ग़ज़ब ढ़ा गया ...
हाल क्या है दिलों का न पूछो सनम ..
वाकई इस शेर के पीछे एक कहानी है,उसे साझा कर रहा हूँ.
हटाएंफतेहपुर में हम जहाँ रहते थे,लड़की वहीँ पास में रहती थी.स्वभाव की शर्मीली,गज़ब की खूबसूरत,हम तीन-चार दोस्त स्कूल से उसकी वापसी पर खड़े रहते.इनमें से एक मकान-मालिक का भी लड़का था.वह जब आती तो नज़रें भी नीची होती और थोड़ा दूर से निकल जाती थी वह.मैं शेरो-शायरी करके दोस्तों को सुनाता रहता ,पर बाद में पता चला कि मकान -मालिक के लड़के ने उससे शादी कर ली.शादी के काफी दिनों बाद इक दिन अचानक हमारी मुलाक़ात हुई तो उस लड़के ने अपनी पत्नी से वह भेद बता दिया कि ये आप के ऊपर शायरी करते थे.मैं चुप !!
हम्म !
हटाएंहम्म के बाद संतोष जी जो कहते हैं उसके अनुसार मेरा कहना बनता है कि चाबी नहीं खोनी चाहिये :)
हटाएं:-)
हटाएंहाय!माशूक हो गई मालिक मकान की और हम किरायेदार भी न रहे(:-(
हटाएंवाकई ,बड़ा तकलीफदेह रहा यह !
हटाएंयूं दिल के तदपने का कुछ तो है सबब आखिर,
जवाब देंहटाएंया दर्द ने करवट ली, या तुमने इधर देखा!
त्रिवेदी जी, सर्द हवाएं जब हड्डी तक पैबस्त होने लगें तो दर्द और शायरी दोनों उभरने लगती हैं.. दर्द पुराना - शायरी नई! कुल मिलाकर यादें-नई पुरानी!
यह भी खूब रही ज़ालिम,
हटाएंसताते भी हो,हंसाते भी हो !
वसंत आ ही गया!
जवाब देंहटाएंकविता में या जीवन में ?
हटाएंसुंदर भाव.... प्रेमपगे
जवाब देंहटाएं...हम गए ठगे !
हटाएंछुप-छुप के तुम्हें देखना ,यदि ज़ुर्म है कहीं ,
जवाब देंहटाएंतो ये गुनाह हमने ,कई बार किया है !
शानदार ....
आनंद आ गया संतोष भाई !
आपके आनंद आने से हमारा कहना सार्थक हुआ !
हटाएंपुराने और नए दोनों में गजब की ताजगी है....
जवाब देंहटाएंबेहतरीन।
यह आपकी ज़र्रानवाज़ी है !
हटाएंबढ़िया प्रस्तुति ||
जवाब देंहटाएंस्मृतियों की गहराई में एक याद निकल आयी धीरे।
जवाब देंहटाएं....यानी पूरा सिलसिला है ?
हटाएंभाई जी , ...यानी कि नई बोतल में पुरानी शराब ! अंतराल स्मृतियों को और गाढ़ा करता ही है !
जवाब देंहटाएंबुढ़ापे में यह गाढ़ापन ज़्यादा असर करता है !
हटाएंpuranee yaadon taaja kartee sunder post.behtreen...
जवाब देंहटाएंअच्छा है यह ३:२
जवाब देंहटाएं...गर यह २:३ होता तब?
हटाएंतब भी हमारा नसीब ऐसा ही होता !
हटाएंरचना की (और चित्र की भी) ताजगी लाजवाब है.
जवाब देंहटाएंजाने खफ़ा हैं मुझसे ,या फिर अदा है आपकी ! :) वाह !
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