आज से पहले न था
दिल में ,नहीं बाज़ार में ,
बौरा गया हर आदमी
अब अचानक प्यार में !!(१)
साल भर तकते रहे
हम निगाहे-यार में ,
एक भी कोना न पाए
उनके प्रेमागार में !!(२)
आज के दिन देख लें
हुस्न की तलवार में
धार कितनी है बची,
जाती हुई बहार में !!(३)
फूल कुछ मुरझा गए हैं
इंतज़ार-ए-यार में ,
एक दिन का प्रेम-उत्सव,
लुट गया व्यापार में !!(४)
उनका है हर दिन बसंती
हमें 'राशनिंग ' प्यार में ,
अच्छा है दिन एक बीते
बरस नहीं,मनुहार में !!(५)
दिल में ,नहीं बाज़ार में ,
बौरा गया हर आदमी
अब अचानक प्यार में !!(१)
साभार: वेलेंटाइन डे |
साल भर तकते रहे
हम निगाहे-यार में ,
एक भी कोना न पाए
उनके प्रेमागार में !!(२)
आज के दिन देख लें
हुस्न की तलवार में
धार कितनी है बची,
जाती हुई बहार में !!(३)
फूल कुछ मुरझा गए हैं
इंतज़ार-ए-यार में ,
एक दिन का प्रेम-उत्सव,
लुट गया व्यापार में !!(४)
उनका है हर दिन बसंती
हमें 'राशनिंग ' प्यार में ,
अच्छा है दिन एक बीते
बरस नहीं,मनुहार में !!(५)
सही समीक्षा की है कविता में!
जवाब देंहटाएंमस्त है। शुरू में ही कुछ खटक रहा है..
जवाब देंहटाएंआज से पहले न था
दिल में ,नहीं बाज़ार में
कहना क्या चाहते हैं?
आज से पहले तो था
दिल में, नहीं बाजार में
या..
आज से पहले न था
दिल में न ही बाज़ार में
पाण्डेय जी ,मेरा यहाँ यह कहने का आशय यही है कि आज से पहले न दिल में और न बाज़ार में प्रेम ज़ोर मार रहा था,अनायास इस एकदिनी मौसम में उग आया है !इसीलिए दिल के आगे कॉमा लगाके दोनों बातों को यक-सा करने की कोशिश की है !
हटाएंजो नहीं कविता हुई अब प्यार के व्यापार में
हटाएंटीपना अपना कठिन इस टिप्पणी के वार में
लेके अपना गुरूज भाला जो देविंदर चल पड़े
कांपने ब्लागर लगे उनकी हर एक हुंकार में
अली सा..
हटाएंअरे रे रे..काहे शर्मिंदा कर रहे हैं! कोई हुंकार नहीं..। हम तो संदेह व्यक्त कर अपनी समझ बढ़ा रहे हैं। ब्लॉगिंग का यही तो सबसे बड़ा लाभ है कि तत्काल लिखे पर प्रतिक्रिया मिल जाती है और संदेह मिट जाता है। बस शर्त इतनी सी है कि प्रश्न स्वस्थ मन से हो और उत्तर भी खुल कर आये।
संतोष जी..
हटाएंतब तो मेरे खयाल से आपको ऐसे ही लिखना था...
आज से पहले न था
दिल में न ही बाज़ार में
बिलकुल दुरुस्त ! आभार आपका !
हटाएं☺☺☺ हा हा हा
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति,भावपूर्ण.
जवाब देंहटाएंआभार
ये किस पर और किसके लिए है ...जो कहकर खिसक लिए हैं!
जवाब देंहटाएंअवसर की है आज प्रतीक्षा..वर्ष व्यर्थ हो निकल रहा है।
जवाब देंहटाएंफूल कुछ मुरझा गए हैं
जवाब देंहटाएंइंतज़ार-ए-यार में ,
एक दिन का प्रेम-उत्सव,
लुट गया व्यापार में !!(४)
अच्छा व्यंग है ...बाजारवाद ने न जाने किस किस किस्म के दिन बना दिये हैं :):)
बहुत ही सुन्दर,
जवाब देंहटाएंबहुत ही बेहतरीन रचना है....
बहुत सुंदर और सटीक अभिव्यक्ति..
जवाब देंहटाएंफूल कुछ मुरझा गए हैं
जवाब देंहटाएंइंतज़ार-ए-यार में ,
एक दिन का प्रेम-उत्सव,
लुट गया व्यापार में
बहुत सुंदर
bahut sundar rachnaa
जवाब देंहटाएंसच में अचानक ही लोगों को एक दिन प्रेम याद आता है। प्रेम तो एक एहसास है, आजकल लोग उसे बाजार में तलाशते हैं। अच्छी कविता संतोष जी।
जवाब देंहटाएंहौसला-अफ़जाई के लिए सभी साथियों का आभार !
जवाब देंहटाएंफूल कुछ मुरझा गए हैं
हटाएंइंतज़ार-ए-यार में ,
एक दिन का प्रेम-उत्सव,
लुट गया व्यापार में !!(४)
ये कटाक्ष है या मन के भाव ...
प्रेम करने वालों के लिए तो हर दिन वेलेंटाइन ही होता है ...