5 नवंबर 2011

पन्ना मेरी किताब का !



सबसे  दूर हूँ,ग़ुमसुम सा हो गया हूँ ,
*गायब है एक पन्ना ,मेरी किताब का !१!

सोचता तो होगा,वह भी मेरी  तरह,
दूर जाके पन्ना,मेरी  किताब का !२!

मैं रहा अधूरा,वो भी रहा अकेला,
नुच गया है पन्ना, मेरी किताब का !३!

ज़िन्दगी के इस ,छोटे अहम सफ़र में ,
ज़िस्म-सा था पन्ना,मेरी किताब का !४!

ये हवाएँ,आंधियाँ,दुश्मन मेरी बनीं,
उड़ा गईं हैं पन्ना ,मेरी किताब का !५!


क़यामत के रोज़ मैं,खुदा से पूँछ लूँगा,
क्यों जुदा हुआ पन्ना ,मेरी किताब का ?६!





* पंक्ति डॉ अरविन्द मिश्र  द्वारा  सुझाई गयी,इसलिए उन्हीं को समर्पित !

36 टिप्‍पणियां:

  1. सोचता तो होगा,वह भी मेरी तरह ही ,
    कुछ दूर जाके पन्ना,मेरी किताब का !२!

    मैं तो रहा अधूरा,वो भी रहा अकेला,
    कुछ नुच गया है पन्ना, मेरी किताब का !३!

    मज़ा आ गया ...
    बेहद प्यारी रचना रही यह , बधाई आपको !

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  2. आदरणीय सतीश जी ,आपका स्नेह मिलता रहे,आभार !
    आपका संशोधन सर-माथे पर ,पर यहाँ ज़िक्र 'एक' पन्ने के गायब होने का है !

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  3. घर से दूर रहने का दर्द बखूबी बयाँ हुआ है ..अच्छी गज़ल

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  4. बेहतरीन अभिव्यक्ति, जीवन की किताब का पन्ना बहुत कुछ कहने में सक्षम है।

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  5. जिंदगी में कुछ खोकर ही बहुत कुछ मिलता है .

    बढ़िया प्रयास है .

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  6. सोचता तो होगा,वह भी मेरी तरह,
    दूर जाके पन्ना,मेरी किताब का !२!

    बहुत बढ़िया .....

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  7. जरूर गांव में छोड़ आए होगे
    हवा में उड़ गया होगा रास्‍ते में
    पन्‍ना संतोष की किताब का
    पन्‍ना ही होगा
    धायमां नहीं रहा होगा
    फिर भी जिसे मिले
    जब मिले, जहां मिले
    के आधार पर
    जरूर मिले।

    पन्‍ना पन्‍ना ही रहे तो ठीक है
    रीढ़ तो नहीं रहा होगा पन्‍ना
    वह आपकी किताब का।

    इतना भरोसा है
    संतोष भी है
    एक पन्‍ने की कमी के ख्‍याले
    पूरी एक पुस्‍तक रची जाएगी
    सर्जना आपकी एक पन्‍ने से
    कभी न छली जाएगी।

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  8. ये रचना है? कोई दिव्य पन्ना भी नहीं ,एक गला गलीज पन्ना जिसे उड़ फट जाना ही
    ठीक था...कुछ ठीक ठाक रचा करो भाई !

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  9. स्पष्टीकरण:
    दर-असल जो मतलब कुछ लोग लगा रहे हैं,वह कतई नहीं है.संगीताजी ने इसे 'पहली पंक्ति' के आधार पर गाँव से जोड़ दिया,जबकि यह रचना इस पृष्ठभूमि में लिखी गई है कि मेरा जीवन एक किताब की तरह है और उसमें से कोई प्यारी बात/प्यारी घटना/प्यारा इंसान किन्हीं कारणों से बिछुड़ गया है ! सतीश जी ने सही पकड़ा था !

    @अरविन्द मिश्र गुरूजी अफ़सोस है,आपकी उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा,शायद अली साहब ही आपको खुश कर सकें !
    सभी का आभार !

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  10. @दराल साब आपने सही सलाह दी है !

    @नुक्कड़ (अविनाश जी) आप सही कह रहे हैं,लेकिन उस एक पन्ने के गायब हो जाने से कहानी तो अधूरी हो गई !

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  11. क़यामत के रोज़ मैं,खुदा से पूँछ लूँगा,
    क्यों जुदा हुआ पन्ना ,मेरी किताब का ?


    अब तो खैर नहीं खुदा की!

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  12. @ त्रिवेदी जी १,
    वो एक पन्ना जो आपसे टूटकर आपको सबसे दूर और गुमसुम करदे आपकी ज़िन्दगी में उसकी अहमियत समझी जा सकती है ! मुझे तो आपका आर्तनाद साफ़ साफ़ सुनाई दिया !
    कुछ टिप्पणीकार बंधु जो मुद्दे को इधर उधर ले उड़े वो ज़रूर उनकी अपनी पीड़ा रही होगी :)

    @ अरविन्द जी,
    सब लोग आपकी तरह से शल्यक्रिया नहीं कर सकते ,संवेदनाओं को माया का ही एक रूप जो जानिये जो गह गया वो रह गया :)

    @ सतीश भाई ,
    अपनों के सोग का मज़ा लूटना ? उस पर प्यार उमड़ना ? ... अरे बेदर्द , ये अच्छी बात नहीं है :)

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  13. अच्छा किया कि यह साफ़ साफ़ हर पंक्ति में बता दिया कि पन्ना किताब का ही है ......वह भी आपकी किताब का ........गर कागज़ का होता तो ????

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  14. @जहां न पहुंचे कोई अली सा उहाँ होई......

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  15. @ अली भाई ,
    गुरुजनों के भाव बिना समझे, कवित्त भाव की प्रशंसा की थी ...
    अब आपकी मदद से कुछ समझ पाया हूँ :-)

    प्रभावित हूँ इस रचना के भाव से ...
    आपकी एक नज़र और चाहिए संतोष त्रिवेदी ( रचना ) पर !

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  16. बेहतरीन अभिव्यक्ति उतनी ही चुटीली टिप्पणियाँ।

    कविता के अर्थ के संबंध में अभी दो दिन पहले राजेश उत्साही जी के ब्लॉग गुलमोहर पर उनकी कविता के लिए कमेंट किया था...

    "मेरा यह भी मानना है कि कवि कविता किसी एक अर्थ में लिखता है और पाठक उसमें कई अर्थ ढूंढ लेते हैं। वे अर्थ भी जो कवि की कल्पना में नहीं होता।"

    उन्होने सहमति व्यक्त करते हुए इस पर एक पंक्ति और जोड़ दी...

    "मैं कहूंगा वे 'अपने' अर्थ ढूंढ लेते हैं।"

    ...इन संदर्भों में इस कविता के अर्थ के विषय में भी मेरा यही मानना है। किसी के पकड़ने को उचित ठहराना वैसा ही है जैसे कोई कवि के मन की बात कह दे तो वह प्रसन्न हो जाता है। लेकिन कविता यहीं जाकर ठहर नहीं जाती। कविता के अर्थ की खोज जारी रहती है।
    इस कविता में अपनी जड़ों से हत्थे से उखड़ जाने का दर्द भी अभिव्यक्त हो रहा है। व्यक्ति अपने पुर्वजों के गांव, जन्मभूमि से बिछुड़ कर दूर किसी शहर में नया आशियाना बनाता है...तो उसके मन में अपनी जड़ों से बिछुड़ने का गम भी रहता है।


    सबसे दूर हूँ,ग़ुमसुम सा हो गया हूँ ,
    *गायब है एक पन्ना ,मेरी किताब का !१!

    सोचता तो होगा,वह भी मेरी तरह,
    दूर जाके पन्ना,मेरी किताब का !२!

    ...इसमें वही दर्द महसूस किया मैने।

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  17. @अली साब आपने काफी हद तक मुतमईन किया है मुझे,पर यहाँ सवाल मेरा नहीं,गुरुदेव जी का है !

    @देवेन्द्र भाई आपकी बात अपनी जगह पर सही है,मैं भी कविता को किसी हद में बाँधने का हिमायती नहीं हूँ और न ऐसा किया जा सकता है. ज़रूरी नहीं कि रचनाकार ने जिस मनः स्थिति में लिखा हो,पाठक भी वैसा महसूसे ! मैंने स्पष्टीकरण इसलिए दिया था कि मामला ख़ास मिश्राजी के सुझाव का था और एक-दो टीपों से यह फिर उसी लाइन पर चल पड़ता.वैसे गाँव से छूटने का दर्द तो हम भोग ही रहे हैं !

    @सतीश जी,मैं भी चाहता हूँ कि अली सा अपनी नज़र ज़रूर डालें,तभी हमारे गुरुदेव (मिश्र जी ) को 'संतोष' होगा !
    @अनूप जी जब खुदा से मुलाक़ात होगी तो वह किस्सा भी अपडेट कर दूंगा !
    @प्रवीण जी अफ़सोस तो यही है कि वह पन्ना कागज का नहीं है.

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  18. @ संतोष त्रिवेदी ,
    अरविन्द मिश्र जी के बारे में कहना चाहूँगा ....
    बड़े प्रेमी मित्र हैं...शुरू में उनको लेकर बड़ी गलत फहमियां थीं कि बड़े क्रोधी स्वभाव हैं ...घमंडी हैं ...और पता नहीं क्या क्या ...
    मगर बहुत समय में पहचान पाया , नारियल जैसा स्वभाव है और विद्वान् तो हैं ही !
    इस निश्छल स्वभाव से एक बार मित्रता हो जाए तो कुछ भी लुटाने को तैयार रहते हैं...
    निडर और न झुकने वाला स्वभाव लिए अरविन्द को मैं गुरुजनों में से एक पाता हूँ ...
    गुरुजनों के क्रोध पर गौर न करें........ उनका प्यार ऐसा ही होता है !
    अभिवादन !

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  19. @ सतीश जी आप सहिये कह रहे हैं.हमें तो उनका आसिरवाद और सनेह अनायास ही मिल गया ! मैंने भी कम समय में अनुभव किया है कि मिसिरजी यारों के यार और दिलदार हैं.ऊ केवल कुत्तों की एक विशेष प्रजाति से भड़कते हैं,बकिया आपका सहजोग मिला तो दोस्ती का लैसंस भी उनसे मिल जायेगा !
    हमरी ई ऊर्जा जो फूट-फूट के निकल रही है उसमें उन्हीं का विशेष योगदान है !

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  20. आप सहज स्वभाव लगते हैं, जो ब्लॉग जगत में दुर्लभ है ! अधिकतर यहाँ लोग अपने अपने प्रभामंडल के साथ बाहर निकलते हैं और जो रस्ते में दिखा उसे वहीँ सबक सिखाया जाता है !
    ऐसे में जहाँ शीतल जल मिल जाए वहीँ रह जाने का मन करता है !
    आभार !

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  21. @क़यामत के रोज़ मैं,खुदा से पूँछ लूँगा,
    क्यों जुदा हुआ पन्ना ,मेरी किताब का ?६!


    बेहतरीन लगा जी, इस कविता में आपका सुलभ व्यक्तित्व नज़र आया है.

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  22. बहुत अच्छी अभिव्यक्ति !

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  23. तो उस एक पन्ने की सारी बातें बयां हो गईं ।

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  24. कभे-कभी बड़ा दर्द दे जाता है वह नुच गया, ग़ायब हो गया पना ज़िन्दगी की किताब का। वह कसक ज़िन्दगी भर यदि पीछा न छोड़े तो क़यामत के दिन ख़ुदा से पूछना तो पड़ेगा ही।

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  25. @सतीश जी यह केवल आपकी सदाशयता है !

    @ विवेक जी पन्ना अपने-आप अब किताब बन चुका है !

    @ मनोज कुमार कई चीज़ें हैं जो हर पल हमें सालती रहती हैं !

    आभार !

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  26. क़यामत के रोज़ मैं,खुदा से पूँछ लूँगा,
    क्यों जुदा हुआ पन्ना ,मेरी किताब का ?

    क्‍या अभिव्‍यक्ति है !!

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  27. पूंछ??? किसकी??? अजी पूछ लीजियेगा खुदा से.पर........... यह कैसे उदा,क्यों उड़ा पन्ना ,आपकी किताब का. खो जाती है मिलती नही दुबारा कईयों की किताबे बाबू यहाँ तो सिर्फ एक ही उड़ा है पन्ना आपकी किताब का
    आंसुओं से चेहरा भीगा लिया किसी मासूम की मानिंद
    जानती हू बहुत खोजा होगा हर जगहा उसको आपने
    पर कहीं भी ना फिर भी मिला पन्ना आपकी किताब का
    भूल जाइए गर जीना मुहाल कर दे उसमे लिखी इबारत
    तकदीर वाले हो कि जुड जाते है रोज नए नए पन्ने
    फिर भी दुआ है ला के दे दे कोई पन्ना आपकी किताब का
    मिल गया कहीं मुझे जो तो कह दूंगी मैं उसको
    जाओ उनके पास वापस, तुम ही हो पन्ना सन्तु दा की किताब का
    :)

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  28. @इंदु जी आपके रूप में जो पन्ना मिला है,वह किसी बड़े ग्रन्थ से कम नहीं है.बहुत कम सौभाग्यशाली हैं जिन्हें आप जैसों का 'सनेह' मिलता है !

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  29. किसी दूसरे की किताब का पन्ना नोच लाइये और अपनी किताब अच्छे से बाइंड करा लीजिये। :)

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  30. इंदु जी को आपका पन्ना अवश्य मिले यही मेरी शुभाशंसा है ....मगर ये पन्ना था किसका ? कहीं मेरे पन्ने को हथियाने को तो यह सब प्रपंच नहीं ? वैसे मैं फटे हुए पन्नों को कूड़े में फेंक दिया करता हूँ -शायद वही इंदु जी के हाथ लग जाए तो लग जाए और आप तक पहुंचे और आपको मुबारक हो!भूल से भी इधर खिसकाया तो खैर नहीं >>>
    अमरेन्द्र जी की सलाह अच्छी है आप ही के लायक हैं फटे पन्ने औरों की किताबों के .. :)

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  31. @अमरेन्द्र भाई हमरी किताब तो अधूरी है ही दूसरे की क्यों गहें ? और पन्ने को बाइंड करके रोकना नहीं चाहते !

    @ अरविन्द जी आप हमारे गुरुदेव हैं ,आपकी जूठन भी मिल जायेगी तो 'परसाद' समझ कर ग्रहण कर लूँगा,भले ही वह आपका फटा पन्ना हो या अमरेन्द्र का !

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  32. मैं रहा अधूरा,वो भी रहा अकेला,
    नुच गया है पन्ना, मेरी किताब का !३
    बहुत सुन्दर पंक्तियाँ! लाजवाब ग़ज़ल! बधाई!
    मेरे नये पोस्ट पर आपका स्वागत है-
    http://seawave-babli.blogspot.com/

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  33. किसी कविता या ग़ज़ल को लेखक अपनी मानसिक अवस्था के अनुसार लिखता है , ज़रूरी नहीं है कि पाठक भी उसी स्थिति को अनुभव करे ...
    किसी भी रचना की ऐसी शल्य क्रिया जो रचनाधर्मिता को बाधित करे , अत्यावश्यक नहीं है ...ज़रूरी ही हो तो मेल से सूचित करना ज्यादा उचित नहीं होगा ?

    अच्छी लगी आपकी ग़ज़ल !

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