प्राइमरी का मास्टर का प्रतीक-चिह्न |
ali ने कहा…
अब जब लगभग सारी टिप्पणियां आ चुकी हैं तो कहने में कोई हर्ज नहीं है कि प्रवीण जी पे पोस्ट लिखते वक़्त आपने किंचित हडबडी से काम लिया है ! हुआ ये कि जो उनके गुण दिखने चाहिए वे ही निगेटिव शेड्स की प्रतीति कराने लगे ! अगर कोई बंदा उन्हें पहले से ना जानता हो तो उनके बारे में क्या सोचेगा ? यही कि लंद फंद और ब्लॉग जगत की खुराफातों का आशना या निष्णात व्यक्ति जबकि भाव ये आना चाहिये थे कि उन्होंने आपको ब्लॉग जगत के निगेटिव अंडर करेंट से सतर्क किया ! आपको तकनीकी रूप से सक्षम किया !
बेहतर होता जो एक नवोदित ब्लागर बतौर ही सही उनके किसी बेहतरीन आलेख का लिंक ही दे देते जिसकी वज़ह से आप उनके ओर आकर्षित हुए,उनसे प्रभावित हुए ! खैर अब तो आलेख दो तीन दिन पुराना हो गया सो मेरे सुझावों का कोई मतलब ही नहीं रह गया पर उस दिन उसे पढकर मैं खुद भी हतप्रभ रह गया था ! वे मास्टर हैं , गुणी है इसलिए उन्होंने आलेख की हडबडाहट को महसूस कर लिया होगा वर्ना उनको इससे बेहतर आलेख का हक़ बनता है !
अब चलते चलते एक मजाक...मित्रों को लठियाने से बेहतर है कि उनका लठैत बनके चला जाये :)
प्रवीण त्रिवेदी जी |
प्रवीण जी जितने बड़े तकनीकी-महारथी हैं उससे भी बड़े पोस्ट-लेखक ! तकनीक की उनकी पोस्टें तो कमाल की हैं हीं,शिक्षा और बच्चों के मनोविज्ञान को उनने बड़े ही उम्दा तरीके से प्रकट किया है !पहले उनके लेखों की विषय-वस्तु और भाषा शैली की बानगी देखते हैं :
इस पोस्ट से उद्दृत ;
.... कक्षा का ढांचा प्रजातांत्रिक हो जिसमें सभी सदस्य अपने आप को स्वतन्त्र, जिम्मेदार और बराबर पायें। सभी को अपनत्व महसूस हो और लगे कि यह कक्षा उनकी अपनी है। अध्यापक को लगे कि यह बच्चे उनके अपने हैं और बच्चों को भी महसूस हो कि अध्यापक उनके अपने हैं और सभी को लगे कि विद्यालय उनका अपना है, जैसा कि उनका अपना घर। कक्षा में आपसी सम्मान, प्रेम तथा विश्वास के रिश्तों का एक सूक्ष्म जाल हो जिसमें कक्षा के सभी सदस्य खुशी से सीखें और सीखायें।
शिक्षा से सम्बन्धित कई विचार प्रत्यक्ष अनुभव पर आधारित हैं और अपना अलग स्थान रखते हैं। हम नियमित लाभान्वित होते रहते हैं।
जवाब देंहटाएंबात तो सभी सही है लेकिन एसएमएस और फेसबुक भी तो हमारे ही जीवन का एक सक्रिय हिस्सा बन गए हैं।
जवाब देंहटाएंमित्रों को लठियाने से बेहतर है कि उनका लठैत बनके चला जाये :)
जवाब देंहटाएंसहमत हूँ
। आपको और मास्साब को एक बार फिर शुभकामनायें!
पुनः लिखना ही था इस शख्सियत पर ...अच्छा किया ..मैं खुद भी इसलिए नहीं लिख पाया कि वे सच में आपन तेज सम्भालौ आपे वाली कोटि के नर पुंगव हैं (कोई श्लेष नहीं ) उन पर लिखा जोखिम भरा है ..बहरहाल आपने बहुत संभाला है और एक बड़े उत्तरदायित्व का निर्वहन किया... आभार!
जवाब देंहटाएंदोनो पोस्टें पढ़ीं। प्रवीण जी के स्नेह से अपन अभी वंचित हैं। आप किस्मत वाले हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ||
जवाब देंहटाएंदो सप्ताह के प्रवास के बाद
संयत हो पाया हूँ ||
बधाई ||
@अरविन्दजी मैंने पहली पोस्ट लिखी थी ,बिना जोखिम लिए क्योंकि वह व्यक्तिगत सद्भाव पर ज्यादा आधारित थी,मूल्यांकन पर नहीं.हाँ,इस पोस्ट में ज़रूर आपकी और खासकर अली साब की उम्मीदों का साया था,पर साब टिटहरी तो उतना ही उड़ सकेगी,जितना उसका आकाश होगा !
जवाब देंहटाएंयह पोस्ट भी प्रवीण जी का एक-आध कोना भर देख पाई है !
मुझे लगता है कि मित्रों के परिचय की यही शैली उचित है ! आपने प्रवीण जी को परत दर परत उजागर करना शुरू किया तो अपरिचित से कुछ पहलू भी सामने आये ,मसलन हमें पता था कि वे फतेहपुरिया है और ब्लागर भी ,लेकिन तकनीकी रूप से सिद्धहस्त है ये राज पिछली पोस्ट में आप और अरविन्द जी ने खोला ! प्रविष्टि में दिए गये लिंक पढ़ रहा था तो एक आश्वस्ति सी हुई ! वे बच्चों से अपनेपन के जिस लेवल पर संवाद की बात कहते हैं वो तर्क , वो अपेक्षा , हमें अत्यधिक प्रिय है ! अपना मानना है कि सम्यक ज्ञान का सम्यक हस्तान्तरण इन्हीं परिस्थितियों में संभव हो सकता है !
जवाब देंहटाएंहम गरियाते रहे हैं कि प्राथमिक स्तर से ही कचरे की आपूर्ति हम तक हो रही है तो हम पीढ़ियों के युवापन को क्या ख़ाक परवान दें ! पर प्रवीण जी के ख्यालात एक उम्मीद जगाते हैं कि अगर उन जैसे मुट्ठी भर भी हों तो हमें मजबूत बुनियाद की ऊपरी मंजिलें गढ़ने में किस कदर सहूलियत हो जायेगी !
एक ब्लागर ,गूगलिटेरियन :) बतौर प्रवीण जी की तारीफ ही करेंगे पर एक हल्की सी शिकायत भी है कि वे लिंक बिखेरते समय यदा कदा विचार से अधिक मित्रता को आगे कर बैठते हैं ! अगर मैं भूला नहीं हूं तो एक दो बार मुझे ऐसा लगा कि अरे , यह प्रविष्टि तो अपशब्दात्मक और अशालीन कोटि की है फिर प्रवीण जी ने इसका लिंक
क्यों दिया है ?
याद आया तो हवाला भी दूंगा पर फिलहाल कहना ये है कि दूसरों की नंगई अपने सिर क्यों लेना :)
शुभकामनाओं सहित !
अली जी का शंका समाधान प्रवीण जी करें यही प्रतीक्षा है !
जवाब देंहटाएंबाकी ब्लागजगत के तीन प्रवीण हैं -प्रवीण पांडे ,प्रवीण शाह और प्रवीण त्रिवेदी ! और तीनों की अपने तई कोई सानी नहीं !
प्रवीण जी की पोस्टें यदा कदा पढ़ते रहता हूं।
जवाब देंहटाएं@ अली साब आपने जिस सूक्ष्मता से प्रवीण जी को देखा है वो नज़र हमारे पास न थी.दोनों पोस्टों पर आपकी टीपें हमारी पोस्ट पर भारी पड़ी हैं,पर इसी बहाने ही सही ,प्रवीण जी को हम सब 'मिस' तो करते ही हैं!
जवाब देंहटाएंप्रवीणजी के दूसरे पहलू ,जिसका ज़िक्र आपने किया है,उससे दो-चार नहीं हुआ हूँ,इसका ज़वाब वे ही दें तो अच्छा है .
@अरविन्द जी आपके आकलन से सहमत...तीनों ही प्रवीण हैं !
@अरविन्द मिश्र जी !
जवाब देंहटाएंअर्रर्ररे इतना जोखिम किस बात का और क्यूंकर?
@देवेन्द्र पाण्डेय जी !
हा हा जल्दी ही स्नेह का सीरा (रसगुल्ले वाला) लेकर हाजिर होयेंगे ....आपके द्वारे ! रूचियाँ बदलती रहती हैं ...सो व्यस्तता के बहाने यही सही .....सो आजकल सुषुप्तावस्था में हैं अपन
@संतोष जी !
मुझे लगता है कि अली जी जिस उम्मीद में हैं .....उसमे आप अब तक असफल रहे हैं ......और शायद मैं भी उसी उम्मीद में हूँ .....और शायद राजा सुबह-ए-बनारस भी .....:-)
ई टिटहरी को थोडा खिलाओ -पिलाओ भैया !!!!
@अली जी !
जवाब देंहटाएंवे फतेहपुरिया है और ब्लागर भी ,लेकिन तकनीकी रूप से सिद्धहस्त है
~ इसे रूचि से ज्यादा का मामला नहीं समझा जाना चाहिए! अपनी अपनी रुचियों में लोग दिन-प्रतिन समर्थवान होते देखे गएँ हैं...इस बारे में भी कुछ ऐसा ही समझा जाना चाहिए|
एक हल्की सी शिकायत भी है कि वे लिंक बिखेरते समय यदा कदा विचार से अधिक मित्रता को आगे कर बैठते हैं ! अगर मैं भूला नहीं हूं तो एक दो बार मुझे ऐसा लगा कि अरे , यह प्रविष्टि तो अपशब्दात्मक और अशालीन कोटि की है फिर प्रवीण जी ने इसका लिंक क्यों दिया है ? याद आया तो हवाला भी दूंगा
हालाँकि यह उत्तरदायित्व (...शायद इसे चुनौती कहना ज्यादा उचित हो? )शायद ही कोई लेना चाहे पर हिन्दी ब्लॉग जगत से बाहर (सोशल नेट्वर्किंग साइट्स में भी मैं दोनों हाथों से यह आरोप सहने को कतई तैयार नहीं हूँ कि केवल मित्रता के लिए मैंने किसी लिंक को आगे बढ़ाया हो!
हो सकता है कि किसी लिंक में कोई अपशब्द रहे हों ....पर उसमे कुछ ना कुछ ऐसा जरुर रहा होगा ...जिसके कारण मुझे ऐसा लगा होगा कि इसे और लोगों के समक्ष रखना (जाना) चाहिए| बड़ी विनम्रता से निवेदन है कि आप याददाश्त पर जोर डालें और लिंक ढूंढें .....क्योंकि इसके बगैर बात आगे बढ़ाना तार्किक नहीं होगा!!
...पर फिलहाल कहना ये है कि दूसरों की नंगई अपने सिर क्यों लेना :)
एक शुभचिंतक होने के नाते निश्चित रूप से आप का यह कहना उचित है ....पर एक विचारक के तौर पर मैं किसी पूर्वाग्रह के खिलाफ हूँ| हालाँकि बात फिर बगैर आपके उस उदाहरण के यही छोडना ही ठीक होगा ....:-)
@ प्रवीण जी १,
जवाब देंहटाएंआपके तकनीकी सामर्थ्य की बात हमने अरविन्द जी और संतोष जी से ही जानी ! जैसा कि आपने कहा , इसे रूचि का ही मामला माना गया है :)
@ प्रवीण जी २,
"अगर मैं भूला नहीं हूं तो एक दो बार मुझे ऐसा लगा कि अरे,यह प्रविष्टि तो अपशब्दात्मक और अशालीन कोटि की है"
दिक्कत यही है कि सैकड़ों / हजारों में से ये एक दो बार वाले लिंक निगाहों से गुजरे तो हैं पर पक्की पकड़ में आयें तो कहूं ,बस इन्हीं के कारण मित्रता को आगे रखने वाली कही ! अब जब आपने कह दिया कि विचार ही प्रधान है तो मान लिया :)
मुझे लगता है कि तब मैंने सम्बन्धित ब्लागर से उनके ब्लाग पर जाकर यही आपत्ति जताई थी ! बतौर लेखक उन्होंने मेरी बात का खंडन भी नहीं किया ! समय काफी हुआ लिंक ढूंढ पाऊं तो दूं !
खैर जो कहा यादों के हवाले से कहा , इसे अन्यथा ना लिया जाये :)
@ प्रवीण जी ३,
विचार पर कोई पूर्वाग्रह नहीं ! शुभचिंताओं पर कायम रहूँगा :)
@अरविन्द मिश्र जी !
जवाब देंहटाएंब्लागजगत के तीन प्रवीण हैं -प्रवीण पांडे ,प्रवीण शाह और प्रवीण त्रिवेदी ! और तीनों की अपने तई कोई सानी नहीं !
आखिर अपने नाम की भी लाज रखनी ही पड़ेगी ही ......खैर शेष दोनों प्रवीणों की प्रवीणता के हम भी कायल हैं!
@मनोज जी
काश कि यह सदा सदा हो सकता ?....:-)
@संतोष जी !
दोनों पोस्टों पर आपकी टीपें हमारी पोस्ट पर भारी पड़ी हैं,
इसमें कोई सन्देश नहीं कि अपनी टिप्पणियों से अली जी ने दोनों पोस्ट में आपको नचा के रख दिया है .....गाइए अब ....बहुते नाच नचायो !
यही है ब्लॉग्गिंग की ताकत कि जिसमे आप पूरे बल से कोई तथ्य सार्वजनिक रूप से चस्पा करने की कोशिश नहीं कर सकते ......यहाँ हम सब आपका तिया पांचा करने को तैयार बैठे जो हैं अपनी टीपों से .....................हा हा .....:-)
जय जय महाराज ......सुषुप्तावस्था से जाग्रत अवस्था की ओर खींचने की कोशिश के लिए !!!
@अली साब!
जवाब देंहटाएंयादों के हवाले से कहा , इसे अन्यथा ना लिया जाये :)
अन्यथा???.....सवाल ही नहीं उठता !
विचार पर कोई पूर्वाग्रह नहीं ! शुभचिंताओं पर कायम रहूँगा :)
स्वागत है श्रीमन!
@प्रवीण जी और अली साब आप दोनों का आभार,अब आप एक-दूसरे को बेहतर समझ सकेंगे !
जवाब देंहटाएंटिप्पणी करना और पढ़ना दोनो लाभकारी रहा। परस्पर स्नेह देखा..मिला भी...आभार।
जवाब देंहटाएंआपके पोस्ट पर आकर अच्छा लगा । मेरे नए पोस्ट शिवपूजन सहाय पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद
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