1 नवंबर 2011

बदलते हुए !

इन्हीं  आँखों से मैंने, जाम को ज़हर होते देखा,
ढल गयी जो शाम उसे सहर होते देखा !१!


ज़िन्दगी के मायने ,अब बदल गए,
अपनों में परायों का, असर होते देखा !२!


खुशबू-ओ-मोहब्बत से ,भरे हुए चमन में,
घुसते हुए लोगों का ,क़हर होते देखा !३!


जिन्होंने बनाए थे ,अपने खूं से  घरौंदे,
उन्हीं को आज हमने , खंडहर होते देखा !४!


कहाँ तक बचेंगे ,बदलती रिवायत से,
छिपाते जिसे रहे ,नज़र होते देखा !५!




*आख़िरी शेर को छोड़कर सब पुरनिया  हैं !

फतेहपुर,२५/०३/१९९० 








23 टिप्‍पणियां:

  1. नौका तो पुरनियों पर भारी पड़ गया है :)

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  2. एक खुशी देने वाली बात भी है इस गज़ल के एक मिसरे में...

    ढल गयी जो शाम उसे सहर होते देखा।

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  3. @देवेन्द्र पाण्डेय आपने बिलकुल सही पकड़ा है.यह बात मेरे संज्ञान में थी लेकिन ज़िन्दगी सुख-दुःख का मिक्सर ही तो है इसलिए उसे बदला नहीं ,वर्ना मामला एकतरफ़ा हो जाता !

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  4. ज़िन्दगी के मायने ,अब बदल गए,
    अपनों में परायों का, असर होते देखा !२!
    यह एक ऐसी तल्ख़ हक़ीक़त है जिससे हमें रोज़ ही दो-चार होना पड़ता है।

    एक प्रयोग मैं भी कर ही लूं,
    ढ्ल न पाई शाम, बस सहर होते देखा।

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  5. @ अरविन्द जी ,
    कहें क्या जिसे हमने मजलूम समझा
    उसे मिश्र जी ने 'जबर' होते देखा :) १

    नहीं है वहां कुछ , हमीं ऐसा समझे
    मगर अगली सुबह खबर होते देखा :) २

    यूं पोसा जो माना अकलमंद है वो
    उसी नाज़नीं को डफर होते देखा :) ३

    वो नौका पुरनियों पे भारी पड़ी जो
    उसे ही बुढापों का घर होते देखा :) ४

    लिखी पोस्ट उसको निशाना बनाके
    छपी टीप तो फिर लवर होते देखा :) ५

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  6. @अली भाई आप भी बस कहर ढाते हैं!

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  7. ज़िन्दगी के मायने ,अब बदल गए,
    अपनों में परायों का, असर होते देखा !२!....apna sach

    bakiya, aisa kahar.....krah ke bhi jhela ja
    sakta hai.....

    sadar.

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  8. ज़िंदगी की हकीकत को कहती अच्छी गज़ल

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  9. हर शाम का अंत शहर से ही होता है. अच्छी गज़ल

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  10. @ अली साहब हमने तो तुक्केबाजी की थी,आपने तीर बनाकर निशाना लगा दिया !

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  11. कहाँ तक बचेंगे ,बदलती रिवायत से,
    छिपाते जिसे रहे ,नज़र होते देखा !५!

    सभी शेर बेहतरीन हैं......

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  12. ज़दगी के मायने ,अब बदल गए,
    नहं है वहां कुछ , हमीं ऐसा समझे मगर अगली सुबह खबर होते देखा :)
    Kya post hai? Adbhut!
    Aur comments bhi utne hi
    dhardaar.
    Badhai.

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  13. अरविन्द जी के ब्लॉग से यहाँ तक आना हुआ.बहुत ही बेहतरीन शेर...बहुत अच्छा लगा आपको पढ़कर...आभार...

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  14. हमें लगा हम तो इस ब्लॉग का अनुसरण कर रहे थे । फिर पहले कैसे नहीं पढ़ा ।
    लेकिन शायद यादों के कम्यूटर में मकड्जाल लग गया था ।

    बढ़िया ग़ज़ल लिखे हैं भाई जी । और अली सा'ब तो सोने पर सुहागा लगा दिए हैं ।

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  15. जिन्होंने बनाए थे ,अपने खूं से घरौंदे,
    उन्हीं को आज हमने , खंडहर होते देखा...


    बेहद खूबसूरत एवं भावपूर्ण गजल के लिये बधाई !
    मेरे ब्लॉग पे आपका स्वागत है ..

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  16. वाह वाह .......!
    इसके जियादा का हमारे पास इसे तौलने का शउर नहीं ...:-)

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  17. विलाप भाव में लोग इस्माइली लगा के टीप रहे हैं, वाकही बड़े कयामती हैं!

    चिंतन चालू रहे! कोई राह निकल आयेगी।

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  18. और हाँ, अली जी का नहले पे दहला मजेदार है :)

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  19. @ अमरेन्द्र हाँ भई,अली साब का ज़वाब नहीं !

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