हवाओं
में,फिजाओं में ,जहाँ
संगीन पहरे हैं.
चलाओ
गोलियाँ ! छलनी हमारी
छातियाँ हो जांय ,ये आतिश बुझ नहीं सकती, हमारे ज़ख्म गहरे हैं.
तुम्हारे चैन की अब, आखिरी शब आ गई ,
हमारा आज बिगड़ा है ,मगर सपने सुनहरे हैं.
बढ़े क़दमों ! नहीं रुकना ,बदल जायेगा मौसम ये,
नया सूरज उघाड़ेगा ,अँधेरे में जो चेहरे हैं.
पहले आखिरी लाइन कुछ यूँ थी,'नया सूरज निकलते ही,बड़े कमज़ोर कोहरे हैं."
जवाब देंहटाएंतुम्हारे चैन की ,अब आखिरी शब आ गई ,
जवाब देंहटाएंहमारा आज बिगड़ा पर, सपने सुनहरे हैं.
बहुत खूब ... यही हौसला बरकरार रहे
वाह, आज तो कवि ललकार उठा है ~
जवाब देंहटाएंबढ़े क़दमों ! नहीं रुकना ,बदल जायेगा मौसम ये,
जवाब देंहटाएंनया सूरज उघाड़ेगा ,अँधेरे में जो चेहरे हैं.
....बहुत सशक्त ललकार..
अगर गोलियाँ नेताओं को लगे तो बात बने।
जवाब देंहटाएंशानदार लेखन, बधाई !!!
जवाब देंहटाएंनया सूरज उघाड़ेगा,अँधेरे में जो चेहरे हैं.,,
जवाब देंहटाएंबहुत खूब,ललकार बरकरार रखे,,,,
recent post : समाधान समस्याओं का,
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार (24-12-2012) के चर्चा मंच-११०३ (अगले बलात्कार की प्रतीक्षा) पर भी होगी!
सूचनार्थ...!
क्या जलवे हैं कवि के! एकदम क्रांतिकारी हो उठा!
जवाब देंहटाएंबहुत खूब, बदल डालो इस देश को
जवाब देंहटाएंतुम्हारे चैन की अब, आखिरी शब आ गई है ,
जवाब देंहटाएंहमारा आज बिगड़ा ,मगर सपने सुनहरे हैं.
pranam.
क्रान्ति की ये मशाल जलती रहनी जरूरी है ... हालांकि सरकार दमन करना चाहती है अब ...
जवाब देंहटाएंआज बड़ा कोहरा छाया है,
जवाब देंहटाएंशायद, कल का राज छिपाया है।
नया सूरज उघाड़ेगा ,अँधेरे में जो चेहरे हैं.
जवाब देंहटाएं.......सशक्त
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♥नव वर्ष मंगबलमय हो !♥
♥(_¸.•'´(_•*♥♥*•_)`'• .¸_)♥
चलो दिल्ली ,चलो जनपथ, जहाँ हुक्काम बहरे हैं
हवाओं में,फिजाओं में ,जहाँ संगीन पहरे हैं
चलाओ गोलियाँ ! छलनी हमारी छातियाँ हो जांय
ये आतिश बुझ नहीं सकती, हमारे ज़ख्म गहरे हैं
तुम्हारे चैन की अब, आखिरी शब आ गई
हमारा आज बिगड़ा है ,मगर सपने सुनहरे हैं
बढ़े क़दमों ! नहीं रुकना ,बदल जायेगा मौसम ये
नया सूरज उघाड़ेगा ,अँधेरे में जो चेहरे हैं
आऽऽहा हाऽऽऽ हऽऽऽ !
वाऽह ! क्या तेवर हैं !
अच्छा लिखा है
आदरणीय संतोष त्रिवेदी जी !
बहुत ओजपूर्ण रचना है ... रवानी से भरपूर !
आज ऐसी रचनाओं की आवश्यकता है ।
हर नागरिक को सजगता से अपना दायित्व निभाने का समय आ गया है...
अब भी गफ़लत में रहे तो हम ही हमारी भावी पीढ़ियों के अपराधी होंगे ...
उत्कृष्ट सामयिक रचना के लिए पुनः साधुवाद !
# तुम्हारे चैन की अब, आखिरी शब आ गई ....... यहां देख लें , कोई शब्द आप भूले हैं ।
नव वर्ष की शुभकामनाओं सहित…
राजेन्द्र स्वर्णकार
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अब तो सच में दिल्ली जाकर एक हुंकार भरने की ज़रुरत है...
जवाब देंहटाएंनववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।।।
तुम्हारे चैन की अब, आखिरी शब आ गई ,
जवाब देंहटाएंहमारा आज बिगड़ा है ,मगर सपने सुनहरे हैं.
...आज इसी ज़ज्बे की ज़रुरत है..नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें!
दिल्ली चलो अब एक होके
जवाब देंहटाएंअब सजा तो देनी है
जो हो गई सो हो गई
अब देर नही करनी है
ek najar is par bhee daal den.....
हटाएंnationalraditions.blogspot.in
मंगलमय नव वर्ष हो, फैले धवल उजास ।
जवाब देंहटाएंआस पूर्ण होवें सभी, बढ़े आत्म-विश्वास ।
बढ़े आत्म-विश्वास, रास सन तेरह आये ।
शुभ शुभ हो हर घड़ी, जिन्दगी नित मुस्काये ।
रविकर की कामना, चतुर्दिक प्रेम हर्ष हो ।
सुख-शान्ति सौहार्द, मंगलमय नव वर्ष हो ।।
बहुत सराहनीय प्रस्तुति. आभार. बधाई आपको
जवाब देंहटाएंवाह! क्या आक्रोश है!!.. देर से पढ़ पाने का अफसोस है।
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