तुमसे जितनी बार मिला हूँ,
नए रूप से यार, हिला हूँ !(१)
भरे सरोवर मुरझाया-सा ,
छोटे नद औ नार खिला हूँ !(२)
बीच समंदर डूबा-उतरा ,
लिए नाव-पतवार मिला हूँ !(३)
गम के घूँट न लगते कड़वे,
चोटों को हर बार सिला हूँ !(४)
तेरे सभी पैंतरे अच्छे,
नहीं हुआ हुशियार,भला हूँ ! (५)
बढ़िया प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंआभार आपका ||
...लाज़वाब! बहुत सटीक और अद्भुत पढ़कर बहुत अच्छा लगा !!
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जवाब देंहटाएंवाह,,,क्या बात है,,उम्दा प्रस्तुति,,,
हटाएंrecent post: मातृभूमि,
गम के घूँट न लगते कड़वे,
जवाब देंहटाएंचोटों को हर बार सिला हूँ ...
बहुत खूब ... इस ज़माने में वो ही टिक सका है जिसने अपनी चोटों को आप ही सिला है ...
तेरे सभी पैंतरे अच्छे,
नहीं हुआ हुशियार,भला हूँ ...
जीवन इसी भोलेपन में बीतता रहे तो आसान हो जाता है ...
बहुत लाजवाब शेर हैं सभी इस गज़ल के ....
भरे सरोवर मुरझाया-सा ,
जवाब देंहटाएंछोटे नद औ नार खिला हूँ !(२)
....बहुत खूब!
तेरे सभी पैंतरे अच्छे,
जवाब देंहटाएंनहीं हुआ हुशियार,भला हूँ...................बहुत सुन्दर।
तेरे सभी पैंतरे अच्छे,
जवाब देंहटाएंनहीं हुआ हुशियार,भला हूँ
बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति
बहुत ही बढ़ियाँ, प्रवाहमयी पंक्तियाँ ।
जवाब देंहटाएंभावो का सुन्दर समायोजन......
जवाब देंहटाएंयह ग़ज़ल मुझे दे दे ठाकुर :-)
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ...
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