लोगों ने कहा
कपडे बदल लो
मैंने रंगरेज बदल लिया।
लोगों ने कहा
चेहरे को सजा लो
मैंने आइना बदल लिया।
लोगों ने कहा
धारा के साथ बहो
मैं पत्थर बन गया।
लोगों ने कहा
तुम चुप रहो
मैं अगुआ बन गया।
लोगों ने कहा
तुम गलत हो
मैं और मज़बूत हो गया।
लोगों ने कहा
तुम कापुरुष
हो
मैंने सबक सिखा दिया।
लोगों ने कहा
वे नीति-निर्धारक हैं
खुद का मखौल बना लिया।
मखौल बनाना खोल ढकने से बेहतर है।
जवाब देंहटाएंबढ़िया.....
जवाब देंहटाएंसादर
अनु
अब काव्य मंच संभाल ही लो -कामभर की कविताई तो आ ही गयी है!
जवाब देंहटाएंअंत आते-आते समझ में नहीं आई। मतलब अच्छी कविता होगी।
जवाब देंहटाएं...आपको मेरी रचना कहाँ समझ आएगी :-)
हटाएंलगता है देवेन्द्र जी ने आपकी कविता ना समझने की सुपारी ले रखी है वर्ना इतने भी नासमझ नहीं हैं वे :)
हटाएं.
हटाएं.
.
@लोगों ने कहा
वे नीति-निर्धारक हैं
खुद का मखौल बना लिया।
सही !
...
अपना दर्शन, अपनी राह,
जवाब देंहटाएंक्यों बाधित हो आज प्रवाह।
सही है ....
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें आपको !
प्रभावशाली ,
जवाब देंहटाएंजारी रहें।
शुभकामना !!!
आर्यावर्त (समृद्ध भारत की आवाज़)
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बहुत सुंदर अच्छा प्रयास ,,,संतोष जी,आपने लिख दिया समझ में न आये ये पाठको की कमी है,,,,
जवाब देंहटाएंrecent post: मातृभूमि,
✿♥❀♥❁•*¨✿❀❁•*¨✫♥
♥सादर वंदे मातरम् !♥
♥✫¨*•❁❀✿¨*•❁♥❀♥✿
लोगों ने कहा
तुम गलत हो
मैं और मज़बूत हो गया
...लोगों का काम है कहना
संतोष त्रिवेदी जी
कविता प्रभावित तो करती है...
:)
अच्छे काव्य-प्रयास के लिए बधाई !
लिखते रहें … और श्रेष्ठ लिखते रहें …
हार्दिक मंगलकामनाएं …
लोहड़ी एवं मकर संक्रांति के शुभ अवसर पर !
राजेन्द्र स्वर्णकार
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इस बदलाव की दिशा भी कमाल है ...
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण प्रभावी रचना ...
भावपूर्ण प्रभावी रचना...
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