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गोपाल चतुर्वेदी और लालित्य ललित के साथ ! |
देखता हूँ
आसमान के तारों को
एक निश्चित अंतराल में टिमटिमाते हुए
यहाँ ज़मीन पर
नियमित रूप से
हमारा कुछ भी नहीं है !
दूर तक फैले गगन में
कितना कुछ है पंख पसारने को,
यहाँ दिल से दिल की दूरी भी
नपी-नपाई होती है !
विशेष:चित्र का रचना के साथ कोई साम्य नहीं है !
एक निश्चित अंतराल में टिमटिमाते हुए
जवाब देंहटाएंसुन्दर तारे जो दिखते हैं जमीन से
दरअसल वे हैं बहुत गर्म
विकराल आग के गोले
वहाँ जीवन नहीं है
जीवन तो बस इस धरती पर है
अपनी प्यारी धरती पर।
बहुत बढ़िया !
हटाएं:)
जवाब देंहटाएंबस तारों को दूर से देखना अच्छा लगता है,,,
जवाब देंहटाएंएक कहावत है,,,,दूर के ढोल सुहावने,,,,,,
RECENT POST समय ठहर उस क्षण,है जाता
हम भी टिमटिमाते हैं,
जवाब देंहटाएंआकर चले जाते हैं।
क्या बात करते हैं माट्साब!! गज़ब का साम्य है फोटो और कविता में.. साहित्य अकादमी की कार्यशाला में जहाँ आपने देखा कई दिग्गज सितारों को टिमटिमाते हुए और तब आपने पाया कि आपका अस्तित्वा इस ज़मीं पर कुछ नहीं जबतक इन सितारों का प्रकाश आपको उपलब्ध न हो.. और तब यह ज्ञान प्राप्त हुआ कि इस व्यंग्य लेखन/साहित्य/काव्य के विस्तृत आकाश में कितना कुछ है अपन्ख पसारने को.. जबकि धरती पर दिल से दिल की दूरी भी नापी-नपाई है!!
जवाब देंहटाएंऔर ऐसे ही कुछ देदीप्यमान सितारों के साथ आपकी तस्वीर!!
बहुत अच्छे!!
हमें आप जैसे विशेषज्ञ से ही खटका था :-)
हटाएंसलिल भैया,
हटाएंआजकल एक आदत सी हो गई है कि जब भी कोई पोस्ट पढ़ता हूँ तो आपके कमेंट तलाशने लगता हूँ। कभी निराश नहीं हुआ। कहीं कमेंट ने पोस्ट की श्री वृद्धि की है तो कहीं पोस्ट पर भारी पड़ी है। तस्वीर और पोस्ट की समानता की कितनी सुंदर व्याख्या की है आपने! ..वाह!!
माट्साब!
हटाएंबहुतों को खटकते हैं हम.. आपको भी 'खटका' तो किमाश्चर्यम!!:)
देवेन्द्र भाई, ब्लश कर रहा हूँ!!
आप और अली साहब छिपा हुआ भी पढ़ लेते हैं....:-)
हटाएं....आप हमें खटकते नहीं,अन्ना की तरह केजरीवाल के दिल में रहते हैं!
ऐ भाई, बहुतों में दो चार के नाम तो बताईए? ज़रा हम भी तो जानें|
हटाएंवैसे टिप्पणी से ही यूपी, बिहार लूटने की कला जिसके पास हो, वो अगर बहुतों को खटके भी तो कोई बड़ी बात नहीं है :)
संजय जी,
हटाएंहमारे 'खटका ' का मतलब आशंका है और सलिल बाबू ने श्लेष मार दिया !
शीर्षक दूरियां और तस्वीर नजदीकियों से ओत प्रोत
जवाब देंहटाएंकविता प्रभावी है.... बहुत पसंद आयी
ye dooriyo aur najdikiyo ka andaj pasand aaya
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूबसूरत सृजन, बधाई.
जवाब देंहटाएंकृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारें , अपना स्नेह प्रदान करें.
अब चले हो आकाश छूने? रचना के जरिये!
जवाब देंहटाएंअब बुढ़ापे में टंकी पर चढ़ने से रहा,गुरूजी :-)
हटाएंसही दिशा में जा रहे हैं .
जवाब देंहटाएंयहाँ इंसान जो रहते हैं ...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया भाई जी ||
जवाब देंहटाएंयहाँ दिल से दिल की दूरी भी
जवाब देंहटाएंनपी नपाई होती है.
दिल से दिल की दूरी की नपाई
आसान नही संतोष भाई.
लगता है दिल में कोई टीस टिमटिमा रही है जी
जिसमे आपने यह नपाई भाप ली है.