भ्रष्टाचारी-बेल अब ,दिन प्रति बढ़ती जाय |
साँस उखड़ती जा रही,आस गई कुम्हिलाय ।।
रहे रहनुमा नाम के,देश बेंच कर खाँय ।
जन्मभूमि की आबरू,देते रोज़ गवाँय ।।
हवा और माटी कहे,मिली तुम्हारे खून।
काहे के हो रहनुमा,झूठे सब कानून ।।
सत्ता-मद में डूबकर ,भूल गए आचार ।
नारायण के भेष में,फ़ैल रहा व्यभिचार ।।
डरता है ईमान अब,उखड़ रहे हैं पाँव ।
भ्रष्टाचार बदल रहा,रोज़ पुराने दाँव ।।
तुलसी मद किसका रहा,सदा एक-सा काल ।
आह करेगी राख सब,साखी दीनदयाल ।।
लहर चली छोटी सही,यही बनेगी ज्वार ।
नीके दिन भी आइहैं,तू मत हिम्मत हार ।।
साँस उखड़ती जा रही,आस गई कुम्हिलाय ।।
रहे रहनुमा नाम के,देश बेंच कर खाँय ।
जन्मभूमि की आबरू,देते रोज़ गवाँय ।।
हवा और माटी कहे,मिली तुम्हारे खून।
काहे के हो रहनुमा,झूठे सब कानून ।।
सत्ता-मद में डूबकर ,भूल गए आचार ।
नारायण के भेष में,फ़ैल रहा व्यभिचार ।।
डरता है ईमान अब,उखड़ रहे हैं पाँव ।
भ्रष्टाचार बदल रहा,रोज़ पुराने दाँव ।।
तुलसी मद किसका रहा,सदा एक-सा काल ।
आह करेगी राख सब,साखी दीनदयाल ।।
लहर चली छोटी सही,यही बनेगी ज्वार ।
नीके दिन भी आइहैं,तू मत हिम्मत हार ।।