बचपन से लेकर अब तक कितनी रूचियाँ बनीं,कितनी बदल गईं,पता ही नहीं लग पाया ! खेलने से लेकर पढ़ने और चाहने तक,लिखने और देखने तक में निरंतर बदलाव आते रहे.जो खास बात और बदलाव हुआ वह दोस्तों के संग बातचीत का रहा.ऐसा नहीं कि इस बीच हम पुराने दोस्तों को भूल गए पर हाँ ,जब जो रूचि हावी हुई उसी के मुतल्लिक,समान रूचि के लोगों से खूब बतकही हुई.
जब हम गाँव में पढ़ने जाते थे,स्कूल के साथी और घर के आस-पास के कुछ दोस्त रहे, जिनसे मेरी बातें,मुलाकातें होती रहीं.यह सिलसिला कक्षाओं के बढ़ने के साथ-साथ बढ़ता और बदलता गया.इस बदलाव और समय की कसौटी पर कुछेक लोग ही बचे और याद रहे,जिनसे ज़्यादा घनिष्ठता रही,खुलापन रहा !इनमें से कइयों से बरसों से न बात हुई न मुलाकात हुई,फिर भी गाहे-बगाहे उनकी याद आती रहती है.निश्चित ही मैं भी उन्हें बहुत याद आता होऊंगा,अपने स्वभाव के कारण ! फोन की इतनी सुविधा पहले नहीं थी,फिर फेसबुक या अन्य जरिया तो दूर की बात है.उन दोस्तों में कुछ ही से मुलाक़ात बाद में हुई जिनके फोन नंबर मुझे मिल पाए.अब इतना सारा समय बीत चुका है इसलिए पुराने दोस्तों से बात करें भी तो क्या और कितनी बार ?
लगभग बीस साल से अपने खूंटे से अलग होकर दिल्ली में जमा हूँ.बीच-बीच में गाँव हो आता हूँ,पर दोस्त शायद ही मिल पाते हैं.यहाँ आये हुए भी काफ़ी अरसा हो चुका है,बहुत लोगों से मेल-मुलाक़ात हुई.काफ़ी सारे विभागीय मित्र बने पर वही बात कि उन सबमें हमारी रुचियों के समकक्ष कितने रहे या मैं उनमें से कितनों के खांचे में फिट हो पाया ? इन बीस बरसों में भी दोस्तों की प्रासंगिकता बदलती रही,चाहते न चाहते हुए भी.कई बार स्थान परिवर्तन होते ही जो दोस्ती अटूट और एकनिष्ठ दिखती थी,औपचारिकता में बदल गई,मिलना-मिलाना कम हो गया !दो-तीन दोस्त ज़रूर ऐसे हैं जो शुरू से लेकर आजतक संपर्क में हैं,पर उनसे भी कभी-कभार ही बात हो पाती है.
गाँव से यहाँ आने और महानगरीय जीवन शैली में फंसने के कारण अपने खास रिश्तेदारों से भी नियमित बात नहीं हो पाती है.पिछले दो साल से जब से ब्लॉगिंग में रमा हुआ हूँ,तब से वास्तविक दुनिया के मित्रों से संपर्क कट-सा गया है.इस आभासी दुनिया में कई लोग बहुत नजदीक महसूस होते हैं ,उनसे लगभग रोज़ ही बात हो जाती है,कुछ लोगों से कभी-कभी.दर-असल यहाँ भी शुरू में हमने कई लोगों से संपर्क करने और फिर बात करने की मुहिम चलाई पर जिन्हें ज़्यादा पसंद नहीं रहा होगा,उनसे बातचीत कम होती गई या धीरे-धीरे छूट गई.यह मामला एकतरफा होता भी तो नहीं.हम यह कतई चाहते भी नहीं कि अगला हमारी बातों से बोर हो.हम जिससे बात करने में असहज महसूस करें,उससे आखिर कब तक बतियायेंगे ?हमारे विभाग में एक साहित्यिक मित्र रहे,जिनसे शेरो-शायरी पर खूब चर्चा होती,दुर्भाग्य से वे नहीं रहे,ऐसे में कई बार उनकी कमी खलती है !
फिलहाल,हमारी रूचि ब्लॉगिंग और कुछ-कुछ फेसबुक या ट्विटर में रमी हुई है.इसी दुनिया के दोस्तों से खूब बातें होती हैं,विमर्श होता है.मेरी सुप्त पड़ी रचना-शक्ति जागृत हुई है,कविताई परवान चढ़ रही है.पर ऐसा ही बना रहेगा,ज़रूरी नहीं है.कई बार ताने-उलाहने मिल चुके हैं इस नशीली दोस्ती के लिए पर दिल वही तो करना चाहेगा जिसमें उसका खून बढ़ता हो ! आखिर रूचियाँ बदलने में हमारा कोई ज़ोर है क्या ? पढ़ना-लिखना और खूब बातें करना हमें सुकून देता है,अवसाद और अकेलापन भी नहीं आने देता !