इस
समय शिक्षा देश के ज़रूरी एजेंडे
से लगभग बाहर हो चुकी है।मंहगाई और भ्रष्टाचार हमारा जो नुकसान कर रहे हैं वह तो
कम हो नहीं रहा,एक
महत्वपूर्ण मुद्दे से भी समाज और सरकार का ध्यान हटा दिया गया है ।सरकार,अभिभावक,शिक्षक और छात्र ,शिक्षा को लेकर बिलकुल अलग सोच रख रहे
हैं।हम यहाँ पर सरकारी स्कूलों में मिलने वाली शिक्षा की बात कर रहे हैं क्योंकि
अभी भी बड़ी आबादी अपने बच्चों को यहीं भेज रही है।सरकार के लिए जहाँ यह विषय अन्य
मदों की तरह एक मद है,अभिभावकों
के लिए दायित्व है,शिक्षकों
के लिए एक पेशा है वहीँ छात्रों के लिए एक खानापूरी करने जैसा कर्म बन गया है।
दर-असल,आज की पढ़ाई ज्ञान व बोध केन्द्रित न
होकर परिणाम व रोज़गार-केन्द्रित हो गई है । यही वज़ह है कि विद्यालयों में
पढ़ाई का माहौल नदारद-सा है।सरकार कागज़ों में परिणाम को लेकर चिंतित है तो
अभिभावक बच्चों के रोज़गार को लेकर। शिक्षक अपना नौकरीय दायित्व निभा रहे हैं वहीँ छात्र परीक्षाओं के खौफ से
रहित होकर शिक्षण-समय में विद्यालय के बाहर टहलते मिलते हैं। वर्तमान प्रणाली
में उनके मन में न शिक्षकों के प्रति आदर बचा है और न अनुशासन का डर।वे सिगरेट ,पान मसाला ,शराब जैसे दुर्गुणों के शिकंजे में
फँसते जा रहे हैं और शिक्षक चाहकर भी कुछ अधिक कर नहीं पाते।उल्लेखनीय है कि इन
छात्रों के अधिकतर अभिभावक इस सबसे अनजान रहते हैं। वे इतने जागरूक भी नहीं हैं कि
नियमित रूप से यह देख सकें कि उनके बच्चे विद्यालय में क्या करते हैं।अब तो
छात्रों को डांटने से भी शिक्षक परहेज करते हैं।कई बार शिक्षक चाहकर भी कुछ कर
नहीं पाते क्योंकि उन्हें नियम-कायदों का हवाला दिया जाता है। क्या अभिभावकों की
तरह शिक्षक उन्हें डांट भी नहीं सकता ? क्या एक तरह से वह उनका अभिभावक नहीं है ?
इसके
अलावा कक्षा में जो मुख्य मुश्किलें आती हैं वह बहुत महत्वपूर्ण हैं।लगभग हर कक्षा ६०-७० की
संख्या वाली होती है,
जिसमें
बैठने की उचित व्यवस्था नहीं होती और यदि किसी प्रकार बच्चों को बैठा भी दिया जाता
है तो अनुशासन नहीं बनता।शिक्षक पढ़ाने की जगह कक्षा में उठते शोर को ही नियंत्रित
करने में अपनी ऊर्जा खर्च कर देता है।ऐसे में उसे बहुत कम समय मिलता है जिसमें वह
अपनी बात उन तक पहुँचा पाता है।बच्चों के लिए बने बनाये पाठ्यक्रम को पूरा करने से
बेहतर यह है कि उन्हें शिक्षा के असली उद्देश्य की जानकारी दी जाय और उन्हें यह
बताया जाय कि परीक्षा उत्तीर्ण करने से ज़्यादा ज़रूरी है यह समझ आना कि उनके लिए
क्या अच्छा है और क्या बुरा ।यह भी कि जो पुस्तकों में लिखा है वह उनके व्यावहारिक जीवन के
लिए भी ज़रूरी है।परीक्षा पास करना या न कर पाना ज्ञान या बोध प्राप्त करने से बिलकुल
अलग है।
आज
के प्रतिस्पर्धी माहौल को देखते हुए भी उन्हें पढ़ाई के प्रति एक नियमित योजना
बनानी होगी।नशे और मोबाइल की लत से उन्हें दूर होना होगा,लेकिन ,अगर वे ऐसा नहीं करते हैं तब भी वे दोषी नहीं हैं क्योंकि वे तो ठहरे
नाबालिग़ !इस ओर सबसे अधिक ध्यान सरकार को देना चाहिए पर वह बच्चों में निशुल्क
पुस्तकें,वर्दी,वजीफा आदि बाँटकर अपने कर्तव्य की इतिश्री मान लेती है।अभिभावक भी
साल में तीन-चार बार पैसे पाकर मस्त रहते हैं !हमारी आने वाली पीढ़ी कैसी बनने वाली
है,यह शिक्षा ही
निर्धारित करती है।अगर समय रहते समाज और सरकार ने इस ओर ध्यान नहीं दिया तो बड़े भयावह परिणाम आने
वाले हैं !