6 जून 2012

वो भरमा गए हैं !

दरख्तों के साये यूँ गहरा गए हैं,
कभी पास थे,कितने दूर आ गए हैं | (१)


कभी देख-सुनके चहकते थे उनको,
बंधन से अब छूटकर आ गए हैं |(२)


मेरे लबों पे है उनका फ़साना,
सबको सुनाकर यहाँ आ गए हैं |(३)


बड़ी बेरहम बेवफ़ाई है उनकी,
आईना दिखाकर मगर आ गए हैं |(४)


महबूब कोई फिर से मिलेगा,
हमको भुलाकर वो भरमा गए हैं |(५)

41 टिप्‍पणियां:

  1. पंडित जी, पता नहीं क्यों आज सुभाह से + में लग रहा था आप कुछ रोमांटिक हो.

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  2. कभी पास थे,कितने दूर आ गए हैं--
    यह तो रहस्यमयी लग रहा है .

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  3. महबूब कोई फिर से मिलेगा,
    हमको भुलाकर वो भरमा गए हैं ,,,,

    संतोष जी,,,,आज कुछ अलग हटकर पढ़ने को मिला,,,बहुत बढ़िया गजल,,,

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  4. (१)
    'सूरज' सिर से दूर चला जाये तो यही होता है !

    (२)
    कितना सुनें कान पथरा गये हैं :)

    (३)
    बदनाम करना तुम्हारा शगल है
    इसी वास्ते वो तुम्हें ठुकरा गये हैं :)

    (४)
    चिनाय सेठ ...

    (५)
    महबूब उनको मिले या मिले ना
    तुम्हारी फिकर से वो घबरा गये हैं :)

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    1. शुक्रिया अली जी, पहला शेर समझ आ गया वर्ना मुझे यही लग रहा था कि दूसरी पंक्ति यूँ होती तो बेहतर होता:
      "कभी दूर थे, कितने पास आ गए हैं।"

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    2. इसी पंक्ति पर हम भी अटके.

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    3. वैसे तो अली साब ने अपनी तरफ से समझा ही दिया है,मैं यह कहूँगा:

      दो दरख्तों के साये इतने गहरा गए हैं कि पास खड़े भी दूर हो गए हैं.वह साया अविश्वास या बेवफाई का हो सकता है !

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    4. अली सा ने बढ़िया लिख कर सबका काम आसान कर दिया।

      देर से ही सही, मुआफ करना
      बस हाजिरी लगाने आ गये हैं।

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  5. Sarkaar gustakhi maa'f... Aapki is zabardast gazal padhkar, iske aagey do she'r hamne bhi type kar daale... Aur voh bhi mobile se...


    Vo yu'n jaane wala kaha'n tak chalgaa...
    Har ek su lagega ki ham aagaye hai'n...

    Meri ashiqui ki kashish dekhiye to...
    Nazar nichi karke voh sharma gaye hain..

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    1. शाहनवाज़ भाई ,इसे मैं दुरुस्त किये देता हूँ,गज़ब की लाइनें लिखी हैं |

      वो यूँ जाने वाला ,कहाँ तक चलेगा,
      हरसू लगा कि हम आ गए हैं !

      मेरी आशिकी की कशिश देखिये तो,
      नज़र नीची करके वो शरमा गए हैं !!

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    2. मेरे अश`आर को हिंदी में टाइप करने के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया संतोष भाई!!!

      :-)

      दरअसल जिस वक़्त आपकी ग़ज़ल पढ़ी उस समय में रास्ते में था और अपने आपको यह दो अश`आर लिखने से रोक नहीं पाया... इसलिए मोबाइल से ही टाइप कर दिया.

      इसी बात पर एक शे`र और सही... तीनो एक-साथ लिख रहा हूँ :-)

      वो यूँ जाने वाला कहाँ तक चलेगा,
      हरसू लगेगा कि हम आ गए हैं

      मेरी आशिकी की कशिश देखिये तो,
      नज़र नीची करके वो शरमा गए हैं

      अभी तक थे मशहूर जलवे सनम के
      मगर आज अपने गज़ब ढा गए हैं

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  6. आरजू उन्हें बस कदमबोशी की थी
    इस दम्भ से भरे वे गश खा गए है।

    ताने उल्हाने चुभाते है नश्तर
    दर्द पराए अब रास आ गए है।

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  7. बदनाम करना तुम्हारा शगल है
    इसी वास्ते वो तुम्हें ठुकरा गये हैं :)
    :) :) :) :) :)

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    1. यह भी गनीमत रही मेरे मोहसिन,
      हज़रत अली सामने आ गए हैं!!

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    2. ओ ठुकराने वाले, हमें याद रखना
      बहुत रोओगे ,तुम हमें याद करके
      तुम्हारे चलाये गए खंजरों के ,
      कसम से हमीं,सामने आ गए हैं !

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    3. अभी तो शुरू की है दास्तान अपनी
      अभी से नज़र क्यों भरी जा रही है !
      सितम , आज बतलायेंगे जख्म मेरे
      वे फिर भूलकर, घर मेरे आ गए हैं!

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    4. शुरू से सितम गर यही हैं सनम के,
      तो हम भी सितमगर के द्वार आ गए हैं !

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    5. करे क़त्ल मेरा खुशी उसको हासिल,
      दुआओं का हकदार बन आ गए हैं !

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    6. है जिनके लिए बस ठोकर में दुनियाँ,
      कि प्रेमी ठुकन से अब बाहर आ गए है।

      ठोकर सिखाती है सम्हल कर चलना,
      कि चल अब अंधेरे घने छा गए हैं।

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    7. वाह! वाह! वाह!
      बड़ी शानदार महफिल जमी थी!

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    8. महफिल तो जमी थी गमे शाम की पर,
      बंदिशों से नुक़्ते यूं बाहर आ गए है।

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    9. सतीश जी,सुज्ञ जी और देवेन्द्र जी,
      महफ़िल को गुलज़ार करने का आभार |

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    10. भाई वाह ...

      सही लेन लग रही है.

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  8. आपको भुलाकर कोई संयत कैसे रह सकता है, भरमाना स्वाभाविक है।

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  9. महबूब कोई फिर से मिलेगा,
    हमको भुलाकर वो भरमा गए हैं!!
    गज़ब का आत्मविश्वास है !
    अच्छी लगी ग़ज़ल !

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  10. यही वह नासमझी है कि भुला तो देते हैं, पर भरम में रहते हैं कि सही किया या ग़लत!

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  11. दरख्तों के साये यूँ गहरा गए हैं,
    कभी पास थे,कितने दूर आ गए हैं | ... पर ख़ामोशी बोलने लगी है , दूर होकर भी पास आ गए हैं

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  12. मेरे लबों पे है उनका फ़साना,
    सबको सुनाकर यहाँ आ गए हैं ...

    जहां भी जाएंगे उनके फ़साने ही कहेंगे ... बहुत ही अलग अंदाज़ के शेर हैं सभी ...

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  13. पुराने महबूब के इंतजार में संतोष रहता है, तभी तो असंतोषी गजल कहता है।
    या यूं कहें कि अब नया महबूब तलाशने में संतोषी जीव को डर/हुनर लगता है।

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  14. महबूब कोई फिर से मिलेगा,
    हमको भुलाकर वो भरमा गए हैं
    उफ्फ्फ !!!! लाजवाब ,कमाल है !!!
    संतोष जी इतनी प्यारी गज़ल, सादगी से भरपूर और भावनाओं से ओतप्रोत ।

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  15. बड़ी जालिम गजल है!

    टिप्पणियां और भी गजब!

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  16. दरख्तों के साये यूँ गहरा गए हैं,
    कभी पास थे,कितने दूर आ गए हैं | (१)

    बहुत खूब ! लाज़वाब गज़ल....

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  17. उत्तर
    1. आहों का कराहों का कलरव जो सुना,
      मास्साब की कक्षा में पंछी आ गए है। :)

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    2. अरसे बाद दिखे हैं ये पंछी,
      शिकारी भी उनके पीछे आ गए हैं !:)

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  18. कई को मिला है,मिले आपको भी
    कृपा बाबा निर्मल जो बरसा गए हैं!

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