आदरणीय प्रधानमंत्रीजी,
बहुत दुखी मन से यह पत्र लिख रहा हूँ।देश में ज़बरदस्त संकट की स्थिति पैदा हो गई है।सुना है,चूहे तीन करोड़ का अनाज खा गए हैं।यह बहुत ही गंभीर मसला है।ये हमारा बजट था ,इसे दूसरा कैसे उड़ा सकता है?हम तो कहते हैं कि तुरत ही संसद का विशेष सत्र बुलाया जाए और इस पर बहस हो।एक संसदीय समिति से इसकी जांच भी कराई जाय कि हमारे बहादुरों के रहते ये सब हुआ कैसे ?
तीन करोड़ की रक़म यूँ ही जाया हो जाए,यह हम सब सहन नहीं कर सकते हैं।यह हमारे मौलिक-अधिकारों पर डाका है और इसे हम बिलकुल बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं।कालेधन को लेकर इतना शोर किया जा रहा है,अगर वह आ भी गया तो वह हमारे काम का नहीं है।उसे सफ़ेद करना पड़ेगा और उसमें समय लगेगा।जो धन हमारे पास पहले से ही चकाचक सफ़ेद है उसे हम ऐसे नष्ट नहीं होने देंगे ।उन चूहों की हमारे आगे बिसात ही क्या है? उन्होंने हमारी प्रभुसत्ता को ललकारा है इसलिए हम चुप नहीं बैठने वाले।
हमें किसी अन्ना से खतरा नहीं है पर जब बात हमारे अन्न की हो,पेट की हो तो यह बड़े खतरे का संकेत है।हमारे पुराणों में अन्न को देवता कहा गया है और इन चूहों ने इस लिहाज़ से देवताओं पर आक्रमण किया है।अगर यह हाल देवताओं का हो रहा है तो फिर असुर कब तक सुरक्षित रहेंगे ?हमें किसी बाबा से भी कोई डर नहीं है क्योंकि वे सब मौका पाते ही कुतरने की जुगाड़ में लगे हैं।हम अपने जीते जी यह नहीं होने देंगे ।संसद के हमले के बाद यह बड़ा वाकया है .हमारी सत्ता को चूहों ने चुनौती दी है इसलिए यह छोटा-मोटा मसला नहीं है,गंभीर आपदा का समय है, हमारे अस्तित्व का प्रश्न है।अगर हम अभी एकजुट नहीं हुए तो कब होंगे ?
तीन करोड़ की रकम इतनी मामूली भी नहीं है।इस मद से हमारे यहाँ कम से कम दस टायलेट बन सकते हैं जिनमें हमारे भाई-बिरादर बैठकर गंभीर-चिंतन करते ! इन चूहों ने अनजाने में ऐसा नहीं किया है।यह एक साजिश है हमें भूखों मारने की।हमने अपना सब-कुछ इस देश के लिए न्योछावर कर दिया है और लगातार इसी प्रयास में लगे हैं।हमने इस देश की सेवा में अपना पूरा परिवार झोंक दिया है ।अगर चूहे इस देश के मद को ऐसे खर्चने लगेंगे तो हमारे बिलों का क्या होगा? ये चूहे तो खा-पीकर अपने बिलों में मस्त घूमेंगे पर हम देश-सेवा को तरसते रह जायेंगे ।इस सबका सबसे बड़ा खतरा यह है कि चिरकुट-टाइप के चूहे इसका स्वाद पाकर और जोर से हमले करेंगे और सारे बिलों पर उन्हीं का कब्ज़ा हो जायेगा ।
इस ज्ञापन के द्वारा आपको हम सचेत करते हैं कि कम से कम अब तो जाग जाओ।अभी तक हमारे ऊपर सीधा हमला नहीं हुआ था,इसीलिए हम चुप बैठे थे।इन चूहों ने आज तीन करोड़ खाए हैं,कल हमें भी कुतरना शुरू कर देंगे।इन चिरकुट-टाइप चूहों से सख्ती से निपटने की ज़रुरत है नहीं तो हमारे खिलाड़ी और अफसरटाइप चूहों की प्रजाति पर ही संकट उत्पन्न हो जायेगा ! इस पर आप जल्द से जल्द एक सर्वदलीय बैठक बुलाकर आगे की रणनीति तय कर लें। इन चूहों को हमें ऐसा सबक सिखाना है कि इनकी सात पुश्तें अनाज को देखकर डरें और अन्न खाना ही भूल जांय !
उम्मीद है कि इस पत्र को आप वरीयता के आधार पर लेंगे और इस प्रकार लोकतंत्र और हमारे मौलिक अधिकारों की रक्षा करेंगे ।
बहुत दुखी मन से यह पत्र लिख रहा हूँ।देश में ज़बरदस्त संकट की स्थिति पैदा हो गई है।सुना है,चूहे तीन करोड़ का अनाज खा गए हैं।यह बहुत ही गंभीर मसला है।ये हमारा बजट था ,इसे दूसरा कैसे उड़ा सकता है?हम तो कहते हैं कि तुरत ही संसद का विशेष सत्र बुलाया जाए और इस पर बहस हो।एक संसदीय समिति से इसकी जांच भी कराई जाय कि हमारे बहादुरों के रहते ये सब हुआ कैसे ?
तीन करोड़ की रक़म यूँ ही जाया हो जाए,यह हम सब सहन नहीं कर सकते हैं।यह हमारे मौलिक-अधिकारों पर डाका है और इसे हम बिलकुल बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं।कालेधन को लेकर इतना शोर किया जा रहा है,अगर वह आ भी गया तो वह हमारे काम का नहीं है।उसे सफ़ेद करना पड़ेगा और उसमें समय लगेगा।जो धन हमारे पास पहले से ही चकाचक सफ़ेद है उसे हम ऐसे नष्ट नहीं होने देंगे ।उन चूहों की हमारे आगे बिसात ही क्या है? उन्होंने हमारी प्रभुसत्ता को ललकारा है इसलिए हम चुप नहीं बैठने वाले।
हमें किसी अन्ना से खतरा नहीं है पर जब बात हमारे अन्न की हो,पेट की हो तो यह बड़े खतरे का संकेत है।हमारे पुराणों में अन्न को देवता कहा गया है और इन चूहों ने इस लिहाज़ से देवताओं पर आक्रमण किया है।अगर यह हाल देवताओं का हो रहा है तो फिर असुर कब तक सुरक्षित रहेंगे ?हमें किसी बाबा से भी कोई डर नहीं है क्योंकि वे सब मौका पाते ही कुतरने की जुगाड़ में लगे हैं।हम अपने जीते जी यह नहीं होने देंगे ।संसद के हमले के बाद यह बड़ा वाकया है .हमारी सत्ता को चूहों ने चुनौती दी है इसलिए यह छोटा-मोटा मसला नहीं है,गंभीर आपदा का समय है, हमारे अस्तित्व का प्रश्न है।अगर हम अभी एकजुट नहीं हुए तो कब होंगे ?
तीन करोड़ की रकम इतनी मामूली भी नहीं है।इस मद से हमारे यहाँ कम से कम दस टायलेट बन सकते हैं जिनमें हमारे भाई-बिरादर बैठकर गंभीर-चिंतन करते ! इन चूहों ने अनजाने में ऐसा नहीं किया है।यह एक साजिश है हमें भूखों मारने की।हमने अपना सब-कुछ इस देश के लिए न्योछावर कर दिया है और लगातार इसी प्रयास में लगे हैं।हमने इस देश की सेवा में अपना पूरा परिवार झोंक दिया है ।अगर चूहे इस देश के मद को ऐसे खर्चने लगेंगे तो हमारे बिलों का क्या होगा? ये चूहे तो खा-पीकर अपने बिलों में मस्त घूमेंगे पर हम देश-सेवा को तरसते रह जायेंगे ।इस सबका सबसे बड़ा खतरा यह है कि चिरकुट-टाइप के चूहे इसका स्वाद पाकर और जोर से हमले करेंगे और सारे बिलों पर उन्हीं का कब्ज़ा हो जायेगा ।
इस ज्ञापन के द्वारा आपको हम सचेत करते हैं कि कम से कम अब तो जाग जाओ।अभी तक हमारे ऊपर सीधा हमला नहीं हुआ था,इसीलिए हम चुप बैठे थे।इन चूहों ने आज तीन करोड़ खाए हैं,कल हमें भी कुतरना शुरू कर देंगे।इन चिरकुट-टाइप चूहों से सख्ती से निपटने की ज़रुरत है नहीं तो हमारे खिलाड़ी और अफसरटाइप चूहों की प्रजाति पर ही संकट उत्पन्न हो जायेगा ! इस पर आप जल्द से जल्द एक सर्वदलीय बैठक बुलाकर आगे की रणनीति तय कर लें। इन चूहों को हमें ऐसा सबक सिखाना है कि इनकी सात पुश्तें अनाज को देखकर डरें और अन्न खाना ही भूल जांय !
उम्मीद है कि इस पत्र को आप वरीयता के आधार पर लेंगे और इस प्रकार लोकतंत्र और हमारे मौलिक अधिकारों की रक्षा करेंगे ।
आपका ही
देश का प्रमाण पत्र धारी सेवक
ब्लॉग अन्ना की चिट्ठी प्रधान मंत्री के नाम
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक और सटीक प्रतिवेदन...
जवाब देंहटाएंआपके इस सार्थक प्रतिवेदन को प्रधानमंत्री जी पढकर शायद कुछ करे,,,,,,
जवाब देंहटाएंMY RECENT POST,,,,काव्यान्जलि ...: ब्याह रचाने के लिये,,,,,
वाह जी वाह, बहुत बढ़िया !!!!
जवाब देंहटाएंगुत्थमगुत्था अर्थशास्त्र और चूहों की भूख..
जवाब देंहटाएंअब यही सब होगा....
जवाब देंहटाएंआशा है आपकी अर्जी पर सुनवाई होगी.....
जवाब देंहटाएंसादर..
चूहे इसे पढ़कर फुल फ्लेज्ड खुंदक में हैं।
जवाब देंहटाएंजिनके लिए लाखों करोड़ रुपये मायने नहीं रखते उन्हें सिर्फ तीन करोड़ की चिरकुट चिट्ठी :)
जवाब देंहटाएंबहुत नाइंसाफी है !
एक बला+आगर=बलागर की अपील पर सभी बलागर ध्यान दें। चूहों की बला(आफत) अनाज का आगर(ढेर) खाये जा रही है।:) वैसे भी बलागर, बला का आगर(चतुर) होता है। एक सुझाव...
जवाब देंहटाएंविदेशों से बिल्लियाँ आयात की जांय। चूहे मारने की यह पुरातन पद्धति है।:)
क्या पता पढ़े-लिखे चूहे अपने समाज में ब्लॉग लिख रहे हों- चिरकुट इंसान(ब्लॉगर) से बचाओ। :)
जवाब देंहटाएंचिरकुट चूहों की हरकत पर, "चाची" का *चूँचरा सुना ।
जवाब देंहटाएं*बहाना/ विरोध
आज तलक क्या सफ़ेद हाथी, गन्ना खाकर मरा सुना । ।
आज अन्न पर प्रेक्टिस करते, कल अन्ना को धरा सुना ।
आन्दोलन से सत्ता ना डरती, ज्ञापन से क्या डरा सुना ।
तीन करोड़ रकम सच में छोटी है , इस पर क्या ध्यान दिया जाए !
जवाब देंहटाएंरोचक !
प्रधानमंत्री पढ़ें तो ख़त .... :) मुझे तो संदेह है , चूहों के साथ कहीं बैठे होंगे
जवाब देंहटाएंआपके सारे आरोप निराधार हैं। आप आंदोलनकारियों के गुट के मालूम पड़ते हैं जिनका एकमात्र मकसद छोटे-बड़े सभी चूहों का राज खत्म करना है। इरादा भले नेक हो,मगर आपकी शैली बहुत आपत्तिजनक है। ऐसा लगता है कि यह विपक्ष की चाल है। प्रधानमंत्री को पत्र लिख रहे हैं,मगर इतना भी ध्यान नहीं रहता कि पद की गरिमा के अनुरूप शैली क्या होनी चाहिए। सचेत करने चले हैं,जैसे हम बेहोश हैं। होश में रहो और चूहेबाज़ी से ऊपर उठो। आरोप लगाना आसान है,मगर अपने को बेदाग साबित करने के लिए हम कोई कसर बाक़ी नहीं रखेंगे। समिति बनवाने पर भी हमने कब ना-नुकुर की है। आपने चाहा और ये लो बन गयी!
जवाब देंहटाएंभेस बदल के आने वाले चूहे ये ही तो हैं ... पकड़ सको तो दोष लगाओ ...
जवाब देंहटाएंसभी चूहों,बाजों और मनुष्यों का आभार !
जवाब देंहटाएंमित्रों चर्चा मंच के, देखो पन्ने खोल |
जवाब देंहटाएंपैदल ही आ जाइए, महंगा है पेट्रोल ||
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बुधवारीय चर्चा मंच ।
आभार रविकर जी !
हटाएंवाह , बहुत खूब....
जवाब देंहटाएंअच्छी खिंचाई...
जवाब देंहटाएंसादर।